बर्फानी बाबा और जय जगन्नाथ

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रथयात्रा, पुरी, उड़ीसा

भगवान जगन्नाथ, बलभद्र व सुभद्रा के रथों को सुदर्शन चक्र के साथ श्री मंदिर से दो मील दूर गुंदिचा मंदिर में ले जाने का सालाना पर्व।

दुनियाभर में कृष्णभक्तों के प्रमुखतम पर्वो में से एक। इसे भारत के सबसे प्रमुख सालाना धार्मिक आयोजनों में से भी एक माना जाता है। लाखों श्रद्धालुओं का हुजूम पुरी के बड़ा डंडा में इन रथों को खींचने के लिए जमा हो जाता है। सात दिन गुंदिचा मंदिर में रहने के बाद रथ देवताओं के साथ फिर श्री मंदिर लौट आते हैं।

पत्नी उठाकर दौड़ो विश्व चैंपियनशिप, सोंकाजारवी, फिनलैंड

दुनिया में होने वाली अनगिनत अजीबोगरीब चीजों में से एक। पुरुषों के लिए 250 मीटर की बाधा दौड़ पहली नजर में असामान्य नहीं लगती जब तक आपको यह पता नहीं चल जाए कि इस दौड़ में हर प्रतिभागी को अपनी पत्नी को उठाकर दौड़ना होता है। बाधाओं में पानी पर से छलांग लगाना भी शामिल है। इनाम-पत्नी के वजन के बराबर बीयर। थोड़े बहुत नियम-कायदे इस रेस के भी हैं, जैसे कि पत्नी की उम्र 17 साल से ज्यादा होनी चाहिए, उसका वजन 49 किलो से ज्यादा होना चाहिए। रेस में पत्नी गिर जाए तो जोड़े पर 15 सेकेंड की पेनाल्टी लगाई जाती है। एक बेल्ट के अलावा मदद में कोई अन्य चीज नहीं ली जा सकती। इस मुकाबले की परंपरा यहां 19वीं सदी से चली आ रही है।

पेरिस बीच, सीन नदी तट, पेरिस

हर साल गरमियों में सीन नदी के तट को एक समुद्र तट में बदल दिया जाता है-सफेद रेत, ताड़ के पेड़, और धूप सेकने की आराम कुर्सियां-सबका मजमा यहां लग जाता है। सिवाय एक चीज के, समुद्र की तरह आप सीन नदी में पानी में अठखेलियों का आनंद नहीं ले सकते क्योंकि यह नदी नहाने के लिए सुरक्षित नहीं है। यह परंपरा कुछ ही साल पहले 2002 में शुरू हुई थी और तब से हर साल यह होता है। इसका मकसद सिर्फ यही था कि नदी के किनारे सुस्ताने व सुकून के कुछ पल बिताने का मौका मिले। पर्यटकों के लिए भी पेरिस को समझने का यह बेहतरीन अवसर है। अन्य कई आयोजन इस दौरान यहां होते हैं।

अमरनाथ यात्रा, जम्मू-कश्मीर

भारत की सर्वप्रमुख तीर्थयात्राओं में से एक। तेरह हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित बाबा अमरनाथ की गुफा की यात्रा बाकी तीर्थयात्राओं की तरह आसान नहीं। लंबा सफर, पहाड़ी रास्ता और बर्फीला मौसम इसे चुनौतीपूर्ण बनाते हैं। रास्ते में 14500 फुट तक की ऊंचाई को पार करना होता है। लेकिन गुफा में पहुंचकर बर्फ के बने प्राकृतिक शिवलिंग के दर्शन की अनुभूति अद्भुत है। यात्रा 28 अगस्त को समाप्त होगी लेकिन आखिरी दर्शन 25 अगस्त को ही होंगे। यात्रा के लिए पंजीकरण शुरू हो चुका है। यात्रा पहलगाम व बालटाल, दोनों जगहों से शुरू की जा सकती है।

राइन इन फ्लेम्स, जर्मनी

राइन यूरोप की सबसे लंबी और सबसे प्रमुख नदियों में से एक है। यह एक ऐसा जलसा है जो नदी के साथ-साथ प्रवाहित होता है। नदी के तट पर बसे अलग-अलग शहरों में अलग-अलग मौकों पर शानदार आतिशबाजियां होती हैं। इस दौरान नदी में सजी-धजी नावें व जहाज बहते हैं। वाकई लगता है मानो नदी में अग्निज्वाला धधक रही हो। देशभर में लोग राइन नदी के तट पर इस खूबसूरत नजारे का गवाह बनने के लिए जमा हो जाते हैं। छोटे-मोटे आयोजनों के अलावा पांच बड़े जलसे राइन इन फ्लेम्स के होते हैं। पहला 5 मई को, दूसरा 7 जुलाई को, तीसरा 11 अगस्त को, चौथा 8 सितंबर को और पांचवा 15 सितंबर को। 7 जुलाई के आयोजन में बिंगेन और रुडशेम के वाइन शहरों के बीच की धारा में 50 से ज्यादा नौकाएं सफर करती हैं। रास्ते में पड़ने वाले सारे कैसल व चर्च रोशनी से जगमगाते रहते हैं।

आनायुत्तू, वदक्कुमनाथा मंदिर, त्रिशूर

हर साल मलयालम महीने करकीदकम के पहले दिन मनाया जाने वाला यह पर्व दरअसल हाथियों का महाभोज है। इस दिन बड़ी संख्या में कतारबद्ध खड़े हाथियों को विशेष रूप से तैयार किया हुआ भोजन कराया जाता है। इस विशेष भोजन में खासे औषिधीय तत्व भी होते हैं। इन्हें हाथियों की सेहत के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। इसी महीने को आयुर्वेद में तमाम चिकित्सा थेरेपी के लिए भी काफी अहम माना जाता है। इसलिए यदि आप केरल की प्रसिद्ध आयुर्वेद चिकित्सा से अपना इलाज कराना चाहते हैं तो भी यह सबसे अच्छा मौका है। लेकिन आनायुत्तू पर्व के लिए तो बड़ी संख्या में लोग त्रिशूर पहुंचते ही हैं। हाथियों को एक पंक्ति में खड़ा होकर भोजन करते देखने का दृश्य इतना अद्भुत होता है कि अब बड़ी संख्या में पर्यटक भी यह नजारा लेने यहां पहुंचने लगे हैं।

व‌र्ल्ड म्यूजिक फेस्टिवल, बोर्नियो, मलेशिया

बोर्नियो के चमत्कारिक जंगलों के बीचों-बीच होने वाला अद्भुत संगीत समारोह जिसमें दुनिया के शीर्ष संगीतकारों और बोर्नियो के मूल संगीतकारों का बेमिसाल संगम देखने-सुनने को मिलता है। इस दौरान कार्यशालाएं होती हैं, लेक्चर होते हैं और कंसर्ट भी आयोजित की जाती हैं। दूर-दूर से लोग जमा होते हैं। और जब लोग जमा होते हैं तो जाहिर है कि खाने-पीने व वास्तुशिल्प के भी पंडाल सज जाते हैं। अपने में एक शानदार अनुभव। बाद में ऐसी ही एक महफिल पेनांग में भी जमती है।

युरुक कबग्यात, लामायुरू मठ, लद्दाख

जुलाई व अगस्त में लद्दाख इलाके में मनाए जाने वाले बौद्ध पर्वो की लंबी फेहरिस्त का एक पर्व। लेह से 127 किलोमीटर दूर लामायुरु में स्थित बेहद खूबसूरत मोनेस्ट्री में दो दिन का यह पर्व मनाया जाता है। लामा लोग मुखौटे पहनकर नृत्य करते हैं। ये मुखौटे द्रिंगुंग्पा परंपरा के संरक्षक पूर्वजों का प्रतिनिधित्व करते हैं। दूर-दूर से लोग इसमें शरीक होने पहुंचते हैं। प्राकृतिक खूबसूरती और पुरातन परंपरा का शानदार नजारा यहां दिखता है।

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