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मनमोहक दृश्यावलियों के बीच उत्तराखंड के तीर्थ हमेशा से ही श्रद्धालुओं और घुमक्कड़ों को अपनी ओर खींचते रहे हैं। यही वजह है कि उत्तराखंड में प्रकृति और धर्म का अद्भुत समावेश देखने को मिलता है। कोलाहल से दूर प्रकृति के बीच हिमालय के उत्तुंग शिखरों पर स्थित इन स्थानों तक पहुंचने में आस्था की असल परीक्षा तो होती ही है साथ ही आम पर्यटकों के लिए भी ये यात्रा किसी रोमांच से कम नहीं होती। चमोली जिले में स्थित अनसूइया देवी का मंदिर एक ऐसा ही स्थान है जहां पर भक्ति और प्राकृतिक सौम्यता एकाकार हो उठती है। मंदिर तक पहुंचने के लिए चमोली के मंडल नामक स्थान तक मोटर मार्ग है। ऋषिकेश तक आप रेल या बस से पहुंच सकते हैं। उसके बाद श्रीनगर गढ़वाल और गोपेश्वर होते हुए मंडल पहुंचा जा सकता है। मंडल से माता के मंदिर तक पांच किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई में ही श्रद्धालुओं की असली परीक्षा होती है। लेकिन आस्थावान लोग सारी तकलीफों को दरकिनार करते हुए मंदिर तक पहुंचते हैं।
अविस्मरणीय यात्रा
प्रकृति की गोद में स्थित इस स्थान तक की यात्रा अविस्मरणीय होती है। मंदिर तक जाने वाले रास्ते के शुरू में पड़ने वाला मंडल गांव फलदार पेड़ों से भरा हुआ है। यहां पर पहाड़ी फल माल्टा बहुतायात में होता है। गांव के कठिन जीवन की झलक जहां पर्यटकों को सोचने पर मजबूर कर देती है वहीं लोगो का भोलापन उनका दिल जीत लेता है। गांव के पास बहती कलकल छल छल करती नदी पदयात्री को पर्वत शिखर तक पहुंचने को उत्साहित करती रहती है। अनसूइया मंदिर तक पहुंचने के रास्ते में बांज, बुरांस और देवदार के वन मुग्ध कर देते हैं। मार्ग में उचित दूरियों पर विश्राम स्थल और पीने के पानी की पर्याप्त उपलब्धता है जो यात्री की थकान मिटाने के लिए काफी हैं। यात्री जब मंदिर के करीब पहुंचता है तो सबसे पहले उसे गणेश की भव्य मूर्ति के दर्शन होते हैं, जो एक शिला पर बनी है। कहा जाता है कि यह शिला यहां पर प्राकृतिक रूप से है। इसे देखकर लगता है जैसे गणेश जी यहां पर आराम की मुद्रा में दार्इं ओर झुककर बैठे हों। यहां पर अनसूइया नामक एक छोटा सा गांव है जहां पर भव्य मंदिर है। मंदिर नागर शैली में बना है। ऐसा कहा जाता है जब अत्रि मुनि यहां से कुछ ही दूरी पर तपस्या कर रहे थे तो उनकी पत्नी अनसूइया ने पतिव्रत धर्म का पालन करते हुए इस स्थान पर अपना निवास बनाया था। कविंदती है कि देवी अनसूइया की महिमा जब तीनों लोकों में गाए जाने लगी तो अनसूइया के पतिव्रत धर्म की परीक्षा लेने के लिए पार्वती, लक्ष्मी और सरस्वती ने ब्रह्मा, विष्णु और महेश को मजबूर कर दिया।
पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के अनुसार तब ये त्रिदेव देवी अनसूइया की परीक्षा लेने साधुवेश में उनके आश्रम पहुंचे और उन्होंने भोजन की इच्छा जाहिर की। लेकिन उन्होंने अनुसूइया के सामने शर्त रखी कि वह उन्हें गोद में बैठाकर ऊपर से निर्व होकर आलिंगन के साथ भोजन कराएंगी। इस पर अनसूइया संशय में पड़ गई। उन्होंने आंखें बंद अपने पति का स्मरण किया तो सामने खड़े साधुओं के रूप में उन्हें ब्रह्मा, विष्णु और महेश खड़े दिखलाई दिए। अनुसूइया ने मन ही मन अपने पति का स्मरण किया और ये त्रिदेव छह महीने के शिशु बन गए। तब माता अनसूइया ने त्रिदेवों को उनकी शर्त के अनुरूप ही भोजन कराया। इस प्रकार त्रिदेव बाल्यरूप का आनंद लेने लगे। उधर तीनों देवियां पतियों के वियोग में दुखी हो गई। तब नारद जी कहने पर वे अनसूइया के समक्ष अपने पतियों को मूल रूप में लाने की प्रार्थना करने लगीं। अपने सतीत्व के बल पर अनसूइया ने तीनों देवों को फिर से पूर्व में ला दिया। तभी से वह मां सती अनसूइया के नाम से प्रसिद्ध हुई।
अनसूइया की भव्य पाषाण मूर्ति
मंदिर के गर्भ गृह में अनसूइया की भव्य पाषाण मूर्ति विराजमान है, जिसके ऊपर चांदी का छत्र रखा है। मंदिर परिसर में शिव, पार्वती, भैरव, गणेश और वनदेवताओं की मूर्तियां विराजमान हैं। मंदिर से कुछ ही दूरी पर अनसूइया पुत्र भगवान दत्तात्रेय की त्रिमुखी पाषाण मू्र्ति स्थापित है। अब यहां पर एक छोटा सा मंदिर बनाया गया है। मंदिर से कुछ ही दूरी पर महर्षि अत्रि की गुफा और जल प्रपात का विहंगम दृश्य श्रदलुओं और साहसिक पर्यटन के शौकीनों के लिए आकर्षण का केंद्र है क्योंकि गुफा तक पहुंचने के लिए सांकल पकड़कर रॉक क्लाइबिंग भी करनी पड़ती है। गुफा में महर्षि अत्रि की पाषाण मूर्ति है।
मनमोहक दृश्य
गुफा के बाहर अमृत गंगा और जल प्रपात का दृश्य मन मोह लेता है। यहां का जलप्रपात शायद देश का अकेला ऐसा जल प्रपात है जिसकी परिक्रमा की जाती है। साथ ही अमृतगंगा को बिना लांघे ही उसकी परिक्रमा की जाती है। ठहरने के लिए यहां पर एक छोटा लॉज उपलब्ध है। आधुनिक पर्यटन की चकाचौंध से दूर यह इलाका इको-फ्रैंडली पर्यटन का नायाब उदाहरण भी है। यहां भवन पारंपरिक पत्थर और लकडि़यों के बने हैं। हर साल दिसंबर के महीने में अनसूइया पुत्र दत्तात्रेय जयंती के मौके पर यहां एक मेले का आयोजन किया जाता है। मेले में आसपास के गांव के लोग अपनी-अपनी डोली लेकर पहुंचते हैं। वैसे पूरे साल भर यहां की यात्रा की जाती है। इसी स्थान से पंचकेदारों में से एक केदार रुद्रनाथ के लिए भी रास्ता जाता है। यहां से रूद्रनाथ की दूरी तकरीबन 7-8 किलोमीटर है। प्रकृति के बीच शांत और भक्तिमय माहौल में श्रद्धालु और पर्यटक अपनी सुधबुध खो बैठता है।
कैसे पहुंचे
यहां पहुंचने के लिए आपको सबसे पहले देश के किसी भी कोने से ऋषिकेश पहुंचना होगा। ऋषिकेश तक आप बस या ट्रेन से पहुंच सकते हैं। निकट ही जौलीग्रांट हवाई अड्डा भी है जहां पर आप हवाई मार्ग से पहुंच सकते है। ऋषिकेश से तकरीबन 217 किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद गोपेश्वर पहुंचा जाता है। गोपेश्वर में रहने-खाने के लिए सस्ते और साफ-सुथरे होटल आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं।
गोपेश्वर से 13 किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद मंडल नामक स्थान आता है। बस या टैक्सी से आप आसानी से मंडल पहुंच सकते हैं और मंडल से तकरीबन 5-6 किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई चढ़ने के बाद आप अनसूइया देवी मंदिर मे पहुंच सकते हैं। पहाड़ का मौसम है इसलिए हरदम गर्म कपड़े साथ होने चाहिए। साथ ही हल्की-फुल्की दवाइयां भी अपने साथ होनी जरूरी है।