महाराष्ट्र के अष्टविनायक

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सभी देवों में प्रथम पूज्य भगवान गणेश की पूजा वैसे तो पूरे देश में होती है, पर महाराष्ट्र में इनकी मान्यता कुछ अधिक ही है। राजधानी मुंबई में स्थित सिद्धिविनायक के दर्शन के लिए कई नामी-गिरामी लोग कतार में खड़े देखे जा सकते हैं। इसके अलावा भी गणेशजी के कई प्रसिद्ध मंदिर महाराष्ट्र में हैं, जहां वह अपनी पत्नियों ऋद्धि व सिद्धि के साथ पूजे जाते हैं। ऐसे ही मंदिरों की श्रृंखला है अष्टविनायक।

आठ मंदिरों की श्रृंखला

आठ मंदिरों की यह श्रृंखला मुंबई के पास रायगढ़ व पुणे में फैली है। इस श्रृंखला के प्रथम गणपति रायगढ़ जिले के महाड गांव में हैं। मुंबई-पुणे रेलमार्ग के कर्जत स्टेशन से यहां तक टैक्सी या बस से पहुंच सकते हैं। माना जाता है कि श्री वरदविनायक नामक इस मंदिर में माघी चतुर्थी के दिन नारियल का प्रसाद चढ़ाने से पुत्र की प्राप्ति होती है।  दूसरे गणपति श्री मोरेश्वर पुणे से 56 किमी दूर मोरगांव में हैं। किलेनुमा दिखने वाले इस मंदिर के चार द्वार हैं और हर द्वार पर अलग-अलग देवों की मूर्तियां हैं। गणेशजी का यह अकेला मंदिर है जहां मूर्ति के सामने नंदी प्रतिमा भी विराजमान है। श्री चिंतामणि पुणे के ही थेयुर कस्बे में हैं। इस मंदिर में स्थित गणेशजी की स्वयंभू प्रतिमा पूरबमुखी है। किंवदंती है कि एक लालची राजकुमार गणराजा ने कपिलमुनि का चिंतामणि रत्न छीन लिया। गणेशजी ने यहीं उससे युद्ध कर  रत्न कपिलमुनि को लौटाया।

मधु-कैटभ नामक राक्षसों को मारने में भगवान महाविष्णु की मदद करने वाले गणपति को श्री सिद्धिविनायक नाम से जाना जाता है। अहमदनगर जिले में भीमा नदी के किनारे स्थित सिद्धटेक में पहाड़ की चोटी पर स्थित इस मंदिर में गणेश की उत्तरमुखी स्वयंभू प्रतिमा तीन फुट ऊंची है। पुणे-सोलापुर रेलमार्ग के दौंड स्टेशन से यहां तक आसानी से पहुंचा जा सकता है। कहते हैं कि इस मंदिर की प्रदक्षिणा से हर मनोकामना सिद्ध होती है।

रायगढ़ जनपद के पाली ग्राम स्थित श्री बल्लालेश्र्वर गणपति अपने भक्त के नाम से जाने जाते हैं। बालभक्त बल्लाल के तप से प्रसन्न होकर गणेशजी ने यहां रहना स्वीकार किया। चूंकि गणपति ने अपने नन्हे भक्त को ब्राह्मण के रूप में दर्शन दिए थे, इसलिए यहां की पाषाण प्रतिमा ब्राह्मण रूप में है। पुणे से 111 किमी दूर स्थित पाली के लिए पुणे व मुंबई से बस सेवाएं उपलब्ध हैं। विघ्नासुर को हराने के कारण श्री विघ्नेश्र्वर नाम से विख्यात अष्टविनायक श्रृंखला के छठवें गणपति पुणे से 85 किमी दूर ओझर कस्बे में स्थित हैं। इनके दर्शन से हर विघ्न का नाश होता है। ऋद्धि-सिद्धि के साथ गणेश प्रतिमा के चारों ओर सूर्य, शिव, विष्णु व देवी  प्रतिमाएं इसे पंचायतन रूप देती हैं।

किंवदंतियों के अनुसार स्वयं मां पार्वती द्वारा बनाकर गुफा में रखी गई गणेश प्रतिमा लेनयाद्रि की बौद्ध गुफाओं में स्थित है। यहां स्थित मूर्ति को गर्भस्थ गणपति के रूप में देखा जाता है। पुणे से 94 किमी दूर पहाड़ों पर स्थित यह मंदिर एक ही पत्थर से निर्मित है।

कैसे पहुंचें

श्री महागणपति नामक आठवें गणपति का मंदिर पुणे से 50 किमी दूर राजनगांव में है। सड़क मार्ग से यहां आसानी से पहुंचा जा सकता है। यह मंदिर इस तरह बनाया गया है कि सूर्य की किरणें सीधे गणेश प्रतिमा पर पड़ती हैं।

मुंबई के प्रमुख रेलवे स्टेशनों तथा पुणे स्टेशन के निकट ऐसे कई ट्रेवल एजेंट हैं जो अष्टविनायक दर्शन के टूर पैकेज चलाते हैं। अगर बस से जाया जाए दो हजार रुपये में एक व्यक्ति का तीन दिन का टूर बुक होता है। इसमें बस किराये के अलावा ठहरने व खाने की व्यवस्था भी होती है। चाहें तो टैक्सी रिजर्व करके भी वहां जा सकते हैं। गणेश चतुर्थी के अवसर पर अगस्त-सितंबर माह में इन मंदिरों पर भारी भीड़ होती है।

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