ओम् को साकार करता शिवधाम ओंकारेश्वर : मध्य प्रदेश की आस्था का प्रतीक

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समूची सृष्टि ओंकार से ही उत्पन्न हुई है, इस सत्य से साक्षात्कार के लिए ओंकारेश्वर से श्रेष्ठ स्थल नहीं हो सकता है। प्रकृति ने स्वयं इस भूखंड पर अपनी तूलिका से ओम् उकेरा है। नर्मदा नदी के प्रवाह ने यहां एक मील लंबे और डेढ़ मील चौड़े पर्वतखंड को ओम् की आकृति प्रदान की है। मध्य प्रदेश में मांधाता पर्वत पर प्रतिष्ठित ओंकारेश्वर द्वादश ज्योतिर्लिगों में एक है।

राजा मांधाता का शिव से साक्षात्कार

पुराणों के अनुसार इक्ष्वाकुवंशी राजा मांधाता ने कठिन तप के बाद शिव का साक्षात्कार किया और उनसे हमेशा के लिए इस पर्वत पर निवास की याचना की। मांधाता की इच्छापूर्ति के लिए शिव स्वयं ज्योतिर्लिग रूप में प्रकट हुए, जो दो रूपों में बंट गया। प्रणव के सदाशिव ओंकार नाम से विख्यात हुए और पार्थिव लिंग की शिवज्योति को अमलेश्वर या ममलेश्वर की संज्ञा मिली। नर्मदा के दक्षिणी तट पर ममलेश्वर और उत्तरी तट पर ओंकारेश्वर मंदिर है। तीर्थयात्रा दोनों शिवलिंगों के पूजन के बाद ही संपन्न मानी जाती है। इसीलिए दोनों को मिला कर ओंकारममलेश्वर कहा जाता है।

त्रिदेवों का आवास

इस तीर्थ के तीन भागों को त्रिदेवों का आवास मानकर ब्रह्मपुरी, विष्णुपुरी और शिवपुरी का अभिधान किया गया है।

नर्मदा का उत्तरी तट शिवपुरी है तो दक्षिण तट विष्णुपुरी व दक्षिण पूर्वी भाग ब्रह्मपुरी के नाम से चर्चित है। ममलेश्वर मंदिर राजपूतकालीन शिल्पकला के विकास की पराकाष्ठा का जीवंत प्रमाण है। केंद्रीय पुरातत्व विभाग के संरक्षण में यहां नर्मदा के डूबक्षेत्र में पाए गए कई भग्नावशेष संरक्षित हैं। ओंकारेश्वर का पंचस्तरीय मंदिर परमारकालीन शिल्प के वैभव को प्रदर्शित करता है। यहां पहले तल पर महाकालेश्वर, दूसरे पर ओंकारेश्वर, तीसरे पर सिद्धनाथ, चौथे पर केदारनाथ और पांचवें पर गुप्तेश्वर विराजते हैं। ओंकारेश्वर शिवलिंग के चारों ओर बने कुंड में सदैव जल भरा रहता है, जिसे नर्मदा जल माना गया है। मान्यता है कि कुंड में चाहे जितना जल डालें उसका स्तर समान बना रहता है।

जीवनशैली है सहज

इंदौर से 77 किमी दूर स्थित दस हजार की आबादी वाले इस कस्बे का हर कण शिवत्व से स्पंदित होता है। शिवसाधकों का जमावड़ा, पूजासामग्री से सजी दुकानें, संकरी गलियों में गुंजित ‘ú नर्मदे हर’ का परस्पर अभिवादन ही इस कस्बे की सहज जीवनशैली के अंग हैं। घाटों पर लगी रंग-बिरंगी नावों की कतारें शिव के दर्शन और मां नर्मदा की अभ्यर्थना का विशेष उपालंब बन जाती हैं। यहां के नागर, चक्रतीर्थ, तीन धारा, भैरव, संगम कोटितीर्थ और पिछली धारा घाटों के बीच नाव से नर्मदा परिक्रमा करने के 100 से 150 रुपये लगते हैं।

ओंकार पर्वत की परिक्रमा

यहां की यात्रा ओंकार पर्वत की परिक्रमा के बिना संपन्न नहीं मानी जाती। उतार-चढ़ाव से भरा 7 मील का यह परिक्रमा पथ इस स्थल के गौरवशाली अतीत का गवाह है।

अवंतिका की दक्षिणी सीमा के इस क्षेत्र में की गई खुदाइयों ने इसे 700 ई.पू. प्राचीन प्रमाणित किया है। यह स्थल आजकल देशी-विदेशी साधकों की तपस्थली है। जर्मनी, इजराइल, अमेरिका, स्पेन और बेल्जियम से आए सैलानियों ने यहां स्थित कुटियों में शरण ली हुई है। परिक्रमा मार्ग के चप्पे-चप्पे पर मंदिर इस तरह बने हैं कि लोकमानस ने यहां तैंतीस करोड़ देवताओं का आवास मान लिया है।

पथ पर अधूरा बना सिद्धेश्वर मंदिर स्थापत्य कला का अप्रतिम प्रमाण है। इसके अलावा गौरी सोमनाथ मंदिर और राजा मुचकुंद का किला भी दर्शनीय है। यहां ऋण से मुक्ति दिलाने वाले ऋणमुक्तेश्वर हैं तो अतुलित शक्ति के धाम आड़े हनुमान जी, विकराल भैरव और धनधान्य से संपन्न करने वाली अन्नपूर्णा भी यहीं हैं। ब्रह्मपुरी में ब्रह्म का विशाल मंदिर है तो विष्णुपुरी में फकीर गोदड़शाह का अखाड़ा भी है। यहां आदि शंकराचार्य की गुफा भी है। निकट ही सिद्धवर कूट में जैनतीर्थ है तो शिवपुरी में गुरुनानक द्वारा स्थापित गुरुद्वारा भी। यहां से 6 किमी दूर 10वीं सदी में निर्मित सप्तमातृका मंदिर भी दर्शनीय है।    सुरम्य रमणीक स्थलों में नर्मदा-कावेरी प्रमुख है। यह दक्षिण भारत की कावेरी नहीं, यक्षराज कुबेर की तप साधना से जुड़ी वह नदी है जो नर्मदा से मिलकर स्वर्ग का सोपान बन गई है। इसे गुप्त कावेरी भी कहते हैं।

कब जाएं

क्योंकि यह मध्य प्रदेश में है अतः यहां मौसम न तो बहुत ठंडा होता है और न ही बहुत गर्म। इसलिए यहां साल में कभी भी आया जा सकता है। वैसे सबसे उपयुक्त समय जुलाई से नवंबर के बीच होता है। जुलाई-अगस्त में यहां श्रद्धालुओं की भीड़ भी होती है।

कैसे पहुंचें

मध्य प्रदेश में स्तित ओंकारेश्वर से निकटतम हवाई अड्डा इंदौर है। इंदौर से ओंकारेश्वर तक सड़क मार्ग से तय कर सकते हैं। रेलमार्ग से पहुंचने के लिए ओंकारेश्वर रोड स्टेशन है जो खंडवा मार्ग पर है और शहर से 7 किलोमीटर के फासले पर है। रेलवे स्टेशन से बसें और सवारी गाडि़यां मिल जाती है जो गंतव्य तक पहुंचा देती है।

कहां ठहरें

ओंकारेश्वर में ठहरने के लिए धर्मशालाएं और यात्री आवास उपलब्ध हैं, पर मध्यप्रदेश पर्यटन विभाग का पर्यटक परिसर सर्वोत्तम स्थान है।

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