सिक्किम : कंचनजंघा की गोद में बसा स्वर्ग

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छोटा सा लेकिन प्राकृतिक दृष्टि से बेहद खूबसूरत राज्य सिक्किम हिमालय के ठीक पूर्वी छोर पर स्थित है। हिमालय से इसकी नजदीकी इतनी ज्यादा है कि इस पर दुनिया की तीसरी सबसे ऊंची चोटी कंचनजंघा (8598 मीटर) की छत्रछाया मानी जाती है। सिक्किम कंचनजंघा को देवता की तरह पूजता है। यहां समुद्र तल से 224 मीटर से लेकर 8590 मीटर तक की ऊंचाई वाले स्थान है। बर्फीली चोटियां हैं तो घने जंगल भी। धान के लहलहाते खेत हैं और उछलती-कूदती नदियां भी। इसलिए यहां वनस्पति, फल-फूलों, वन्य प्राणियों आदि की जो जैव-विविधता देखने को मिलती है, वह बड़ी दुर्लभ है। राज्य चार जिलों में बंटा हुआ है और चारों के नाम चार दिशाओं पर रखे गए हैं। राजधानी गंगटोक की आबादी 50 हजार के आसपास है। शहर के देवराली इलाके में स्थित रोपवे पर्यटकों के लिए अतिरिक्त आकर्षण है।

वन्य प्राणी

दुनिया में कहीं भी इतने छोटे इलाके में इतनी तरह के जीव-जंतु देखने को नहीं मिलेंगे। यहां पंछियों की पांच सौ से ज्यादा किस्में हैं जिनमें दस फुट के डैने वाले विशालकाय दाढ़ी वाले गिद्ध से लेकर कुछ इंच बड़ी फुदकी तक सब शामिल हैं। इसके अलावा सिक्किम में 600 से ज्यादा किस्म की तितलियां है जिनमें से कई लुप्तप्राय हैं। जंगलों में बार्किग डियर मिलेंगे तो उनके साथ रेड पांडा भी जो राज्य का राजकीय पशु है। ऊंचाई वाले इलाकों में नीली भेड़ जिसे भराल कहा जाता है, तिब्बती जंगली खच्चर यानी कयांग और हिमालयन काला भालू मिल जाता है।

वनस्पति: सिक्किम का स्थानीय नाम डेनजोंग का अर्थ होता है चावल की घाटी। जाहिर है, चावल यहां की मुख्य फसल है। लेकिन सिक्किम जिस चीज के लिए जाना जाता है, वह है यहां के विश्व प्रसिद्ध ऑर्किड जिनकी राज्य में 450 से ज्यादा किस्म हैं। डेंड्रोबियम फैमिली का नोबल ऑर्किड यहां का राजकीय फूल है। इसके अतिरिक्त यहां दस हजार फुट की ऊंचाई पर मिलने वाले रोडोडेंड्रोन की लगभग 36 किस्म पाई जाती है। यूं तो सिक्किम में इतनी सांस्कृतिक बहुलता और प्राकृतिक विविधता है कि पर्यटन का मजा उठाने वालों के लिए नजारों की कोई कमी नहीं है। सुकून तलाशने वालों के लिए शांति है और रोमांच खोजने वालों के लिए बेशुमार चुनौतियां।

राफ्टिंग

रोमांच के शौकीन लोगों के लिए इससे बेहतर कुछ नहीं हो सकता। तीस्ता का प्रवाह मानो एक आमंत्रण सा देता है। नदी की तेज धार में उफनते पानी के बीच लाइफ जैकट पहनकर छोटी सी डोंगी को खेने का अनुभव बिना महसूस किए समझा नहीं जा सकता। तीस्ता व रांगित, दोनों ही नदियां राफ्टिंग के लिए उपयुक्त हैं। तीस्ता में शुरुआत माखा से की जा सकती है और यहां से नदी की धार में आप सिरवानी व मामरिंग होते हुए रांगपो तक जा सकते हैं। वहीं रागिंत नदी में सिकिप से शुरुआत करके जोरथांग व माजितार के रास्ते मेल्लि तक जाया जा सकता है। ज्यादा दिलेर व अनुभवी लोगों के लिए कयाकिंग का विकल्प भी है। राफ्टिंग व कयाकिंग के लिए अक्टूबर से दिसंबर तक का समय सबसे ज्यादा मुफीद है जब नदियां अपने पूरे यौवन पर होती हैं।

ट्रैकिंग

सिक्किम में रोमांच राफ्टिंग के अलावा ट्रैकिंग का भी है। दरअसल राज्य तेजी से ट्रैकिंग का नया बेस बनता जा रहा है। मन व शरीर साथ दे तो ट्रैकिंग के जरिये शायद आप धरती के इस खूबसूरत हिस्से को ज्यादा नजदीकी से देख-समझ सकेंगे। कभी स्तूपों व मठों से गुजरते हुए तो कभी प्रकृति की अद्भुत छटा को निहारते हुए, कभी अचानक ही मिल गए हिरण के पीछे भागते हुए तो कभी किसी ग्रामीण से कंचनजंघा के बारे में दंतकथाएं सुनते हुए आप खुद को एक अलग ही रहस्यमय दुनिया में महसूस करेंगे। यूं तो ट्रैकिंग का असली मजा ही खुद रास्ते खोजने व बनाने का है लेकिन फिर भी सुहूलियत के लिए यहां कई स्थापित ट्रैक है। मार्च से मई और फिर अक्टूबर से  दिसंबर के बीच पेमायांग्शे से रालंग तक मोनेस्टिक ट्रैक होता है। इसी तरह मार्च-मई में नया बाजार से पेमायांग्शे तक रोडोडेंड्रोन ट्रैक होता है। कंचनजंघा ट्रैक मध्य मार्च से मध्य जून तक और फिर अक्टूबर से दिसंबर तक युकसोम से शुरू होता है और राठोंग ग्लेशियर तक जाता है। बौद्ध धर्म में रुचि रखने वालों के लिए अक्टूबर से दिसंबर तक रूमटेक से युकसोम तक कोरोनेशन ट्रैक होता है। डोगंरी से होने वाली याक सफारी, उत्तर व पश्चिम सिक्किम में माउंटेन बाइकिंग और युनथांग व जोरथांग में हैंग ग्लाइडिंग सिक्किम में रोमांच तलाशने वालों के लिए अन्य आकर्षण हैं। एक बात और, सिक्किम में हेलीकॉप्टर सेवा खाली बागडोगरा से लाने-ले जाने के लिए ही नहीं है बल्कि वह कंचनजंघा समेत हिमालय के पर्वतों का आकाश से विहंगम दृश्य भी कराती है। ध्यान रखने की एक बात और है, तीन तरफ की सीमाएं तीन देशों से लगी होने से इस राज्य के कई इलाके ऐसे हैं जहां जाने के लिए परमिट की जरूरत होती है। राज्य के जिस कोने में निकल जाइए, बौद्ध मठ आपको हर जगह मिलेंगे क्योंकि यह यहां का प्रमुख धर्म है। तिब्बत के बाद बौद्ध धर्म की सबसे विशाल थाती यहीं मिलेगी। रूमटेक जैसे मठ दुनियाभर में विख्यात हैं। यहां के पहाड़ बेहद खूबसूरत हैं। 12-15 हजार फुट की ऊंचाई पर कई विशालकाय झीलें हैं। इसके अलावा यहां की जैव विविधता दुर्लभ है।

इतिहास

सिक्किम 1975 में जनमत के द्वारा स्वाधीन भारत में शामिल हुआ। सिक्किम का ज्ञात इतिहास 17वीं सदी के बाद मिलता है जब 1642 ईस्वीं में प्रथम चोग्याल राजा का राज्याभिषेक किया गया। चोग्याल तिब्बती शब्द है, जिसका अर्थ है ‘जो धर्मानुसार शासन चलाए’।

गुरु पद्मसंभव

गंगटोक से 75 किलोमीटर दूर दक्षिणी सिक्किम में नाम्ची से स्थित साम्द्रुप्शे में महान बौद्ध गुरु पद्मसंभव की 135 फुट ऊंची विराट प्रतिमा स्थापित की गई है जिसे देखकर पर्यटकों को दांतों तले अंगुलियां दबाने पर मजबूर होते हैं। साम्द्रुप्शे का अर्थ होता हैं मनोकामना पूरी करने वाली पहाड़ी। यह गुरु पद्मसंभव की दुनिया में सबसे बड़ी प्रतिमा है। उन्हें पिछले 1200 सालों से सिक्किम का संरक्षक संत भी माना जाता है। प्रसिद्ध बौद्ध गुरु दलाई लामा ने 22 अक्टूबर 1997 को इस प्रतिमा का शिलान्यास किया था। करीब साढ़े चार करोड़ रुपये की लागत से बनी इस प्रतिमा को फरवरी 2004 में लोगों के लिए खोल दिया गया। गुरु पद्मसंभव का जन्मदिन तिब्बती कैलेंडर के छठे महीने की दसवीं तिथि को मनाया जाता है। 8वीं सदी में वह सिक्किम आए थे तब उन्होंने राज्य की चार पवित्र गुफाओं में साधना की थी और फिर तिब्बती बौद्ध धर्म के न्यिंगमापा संप्रदाय की स्थापना की थी।

क्षेत्रफल

7096 वर्ग किमी। सिक्किम की पश्चिमी सीमा नेपाल, उत्तरी तिब्बत और पूर्वी सीमा भूटान से लगती है। दक्षिण में है बंगाल।

आबादी

5, 70,000

समुद्र तल से ऊंचाई (गंगटोक की)

5,500 फुट

मौसम

गर्मियों में तापमान 13 से 21 डिग्री से. के बीच और सर्दियों में 5 से 13 डिग्री से. के बीच रहता है। (यहां हम राजधानी गंगटोक की बात कर रहे हैं, ऊंचाई वाले इलाकों पर तापमान और गिर जाता है।)    कब जाएं: वैसे तो सिक्किम के ज्यादातर हिस्से में मौसम पूरे साल मदमस्त करने वाला रहता है लेकिन यहां जाने का सबसे बढि़या समय गर्मियों से पहले मार्च से मई और फिर बारिश के बाद अक्टूबर से मध्य दिसंबर के बीच होता है।

कहां ठहरें

गंगटोक और सिक्किम के अन्य प्रमुख पर्यटक स्थानों पर सभी किस्म के होटल उपलब्ध हैं-महंगे भी और किफायती भी। लेकिन टूरिस्ट सीजन में पहले से बुकिंग करा लेना बेहतर होगा। राजधानी गंगटोक में द रॉयल प्लाजा एक भव्य पांच सितारा होटल है। यहां से पर्यटक मनोहारी धान के खेत, बेगवती नदी, ढलवे वन क्षेत्र और कंचनजंघा रेंज की हिम अच्छादित चोटियों का दीदार कर सकते हैं। यहां आपको आधुनिक सुविधाओं के साथ-साथ पारंपरिक सिक्किमी संस्कृति की महक भी बखूबी मिलेगी। ट्रैकिंग के शौकीनों के लिए भी तमाम सुविधाएं हैं।

हवाई मार्ग

सिक्किम में कोई हवाई अड्डा नहीं है और सबसे नजदीकी एयरपोर्ट पश्चिम बंगाल में बागडोगरा है जो गंगटोक से 124 किलोमीटर दूर है। लेकिन हवा में उड़ने के शौकीन लोगों के लिए निराशा की कोई बात नहीं है क्योंकि बागडोगरा से गंगटोक तक के लिए एक हेलीकॉप्टर सेवा है। यह हेलीकॉप्टर दिन में पांच बार उड़ता है। पांच सवारियों की क्षमता वाला हेलीकॉप्टर गंगटोक पहुंचने में महज आधा घंटा लेता है और इसका किराया भी कोई ज्यादा नहीं महज लगभग डेढ़ हजार रुपये। बागडोगरा के लिए दिल्ली, कोलकाता व गुवाहाटी से सीधी उड़ानें हैं।

रेल मार्ग

अफसोस कि सिक्किम रेल मार्ग से भी सीधा जुड़ा नहीं है। सबसे निकट के रेलवे स्टेशन सिलीगुड़ी (114 किमी) व न्यू जलपाईगुड़ी (125 किमी) हैं जो दिल्ली, कोलकाता व गुवाहाटी से दैनिक ट्रेनों से जुड़े हैं।

सड़क मार्ग

रहा सड़क मार्ग का सवाल तो वो सिक्किम में काफी बढि़या हैं। बागडोगरा, न्यू जलपाईगुड़ी व सिलीगुड़ी से राजधानी गंगटोक के लिए सीधी बसें हैं। बागडोगरा से गंगटोक पहुंचने में लगभग चार घंटे लग जाते हैं।

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