श्रीनगर एक शहर सपने सा

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बचपन से सुनते आए थे कि कश्मीर जन्नत है! जब बड़े होने लगे तो जन्नत में आग लग गई। लंबे अरसे बाद जब आग थमती सी दिखी तो जम्मू से टैक्सी में सवार हुए और चल दिए। टैक्सी बनिहाल दर्रे और पटनी टॉप को पार करती बढ़ती गई। जवाहर टनल तक पहुंचते-पहुंचते रात हो चुकी थी। यह सुरंग नायाब है। काफी रास्ता बीतने पर अचानक टैक्सी घुप्प अंधकार में समा गई। सियाह पर्दे में ढकी इस जमीन को टैक्सी की रोशनी से टटोलते हम श्रीनगर की ओर बढ़ते रहे। जम्मू से टैक्सी में सवार होने के 10 घंटे बाद श्रीनगर की चौखट यानी बादामी बाग कैंटूनमेंट पहुंचते ही गाड़ी की हेडलाइट बंद कर अंदर की रोशनी जलाकर 100 मीटर दूर खड़े गार्डो की ओर आगे बढ़े। मुझसे पूछताछ करके आगे जाने की इजाजत दी गई। टैक्सी अब लाल चौक के करीब श्रीनगर के पहले फ्लाईओवर से जुड़े होटल तक पहुंच गई।

चश्मेशाही का पानी

सुबह तड़के पहली अजान के साथ आंख खुली। तय किया कि शालीमार व निशात बाग सबसे पहले देखे जाएं। शालीमार का रास्ता डल झील के किनारे से गुजरता है। पहली नजर में डल झील के शिकारे और हाउसबोट के पीछे दूर नीली सिलेटी धुंध से झांकती पहाडि़यों ने ऐसा समा बांधा कि अनायास कैमरा उठ गया। शालीमार बाग में घुसते ही लाल रंग के फूलों ने बहुत आकर्षित किया। ऊंची दीवारों से लटकती हरी बेलें    और लाल रंग के फूलों को देखकर लगा कि बनाने वाले ने जन्नत की खूबसूरती में चार चांद लगाने की कोशिश की होगी। शालीमार बाग खास मुगल शैली में सीढ़ीदार चरणों में बना है। इसके पीछे पहाड़ होने के कारण इसकी खूबसूरती काफी बढ़ जाती है। इसके बाद मैं निशात बाग पहुंच गया। यहां भी सब कुछ शालीमार बाग जैसा ही था बस छोटे स्तर पर और पीछे पहाड़ भी नहीं थे। हां, दो बारादरियां जरूर थीं जो कश्मीरी वास्तु के आधार पर बनी थीं। निशात के बाद हमने चश्मेशाही का रुख किया। यह पानी का वह सोता है जिसके बारे में कहा जाता था कि जवाहर लाल नेहरू यहीं का पानी पीते थे। चश्मेशाही से थोड़ा आगे परी महल है। ये मुगल शैली का बाग है। जगह शहर से थोड़ा दूर होने के कारण खाली-खाली सी दिखती है। लोग कहते हैं कि यहां रूहें आती हैं।

श्रीनगर आइए, डल के आसपास घूमिए और हाउसबोट में न रहिए ऐसा नहीं हो सकता। एक रात मैंने भी हाउसबोट में बिताई। पानी पर संपन्न घर के ठाठ की कल्पना कभी आपने की हो तो यहां आइएगा। लंदन व एम्सटरडम में भी लोग नाव पर रहते हैं लेकिन हाउसबोट की बात ही कुछ और है।

सूफी संतों की दरगाहें

श्रीनगर में धर्मस्थलों का अलग महत्व है। कश्मीर में मसजिद हों या मंदिर, दरगाह हो या गिरजाघर सभी का वास्तु पैगोडा शैली से मिलता-जुलता है। ईटों से बनी जामा मसजिद में मुगल शैली के गुंबद नहीं हैं और न यह बाकी मसजिदों या दरगाहों में ही पाए जाते हैं। सभी धार्मिक स्थलों में समरकंदी गुंबद के बजाय गिरजाघर के स्पायर जैसा शीर्ष होता है और फिर पैगोडानुमा ढलुआ छतें होती हैं, साथ ही सभी की छतें हरे रंग से रंगी होती हैं। शहर में बनी दरगाहों में खानका-ए-मौला और दस्तगीर साहब सबसे महत्वपूर्ण हैं। खानका-ए-मौला अली हमदानी की दरगाह है। इस दरगाह में सिर्फ मुसलमान पुरुष  जा सकते हैं, स्त्रियों व गैर मुसलमानों को अंदर जाने की इजाजत नहीं है। ऐसी पाबंदियां दस्तगीर साहब में नहीं हैं। यहां से कोई 100 कदम की दूरी पर रोजबल है। कश्मीर के ईसाइयों का मानना है कि असल में ईसा यहीं दफन हैं। वास्तु के शौकीनों के लिए शहर के पुराने इलाके में बडशाह का मकबरा है। बडशाह असल में कश्मीर के लोकप्रिय राजा जैनुल आबेदीन को कहा जाता है। एक कंपाउंड में राजघराने की कब्रों के बीच ये मकबरा वास्तु का शानदार नमूना है।

गुलमर्ग, सोनमर्ग व पहलगाम

श्रीनगर से कुल 55 किमी दूर गुलमर्ग है। अगर गिनीज बुक ऑफ व‌र्ल्ड रिकार्ड में सबसे ज्यादा    फिल्म शूटिंग वाले स्थान का मुकाबला हो तो गुलमर्ग शर्तिया सबको हरा देगा। गुलमर्ग का गोल्फ कोर्स और उसके बीचोबीच बना गिरजाघर ही यहां के मुख्य आकर्षण हैं। श्रीनगर से करीब 90 किमी दूर लेह के रास्ते में है सोनमर्ग। बड़े फैले हुए पहाड़ी ढलान और यहां से पांच किमी दूर थजवास ग्लेशियर सोनमर्ग के मुख्य आकर्षण हैं। अनंतनाग से एक या डेढ़ घंटे की दूरी पर है पहलगाम। इसके आसपास कई पिकनिक स्पॉट हैं, पर सबसे जानी-पहचानी जगह चंदनबाड़ी है। जहां से अमरनाथ की गुफा के लिए ट्रैक शुरू होता है।

नियमित हवाई उडानें

श्रीनगर पहुंचना कोई मुश्किल नहीं है। दिल्ली व चंडीगढ़ के अलावा कई शहरों से यहां के लिए सीधी उड़ाने हैं। सड़क से भी यह देश के प्रमुख महानगरों से जुड़ा हुआ है। रेलमार्ग से जम्मू तक पहुंचा जा सकता है। आगे की दूरी सड़कमार्ग से ही तय करनी होगी। ठहरने के लिए यहां सभी तरह के होटल हैं। होटलो के अलावा यहां आने पर लोग हाउसबोट में रहना ज्यादा पसंद करते हैं। कश्मीरी भोजन में अकसर इलायची, दलाचीनी, लौंग व केसर की प्रधानता होती है।

खाने के शौकीनों ने कश्मीर भले न देखा हो, पर उन्हें 36 व्यंजन वाले वाजवान के बारे में जरूर पता है। कश्मीरी आमतौर पर चावल ही खाते हैं। मटन, चिकन और मछली की भी प्रधानता देखी जाती है। चिकन-पालक और मछली-कमलककड़ी की सब्जी आम तौर पर यहां बहुत लोकप्रिय हैं।

वाजवान अकसर शादियों में या बड़े समारोहों में ही परोसा जाता है। इसके अलावा अच्छी तरह बारीक गुंथा हुआ मटन रिस्ता नाम के पकवान के रूप में मिलता है और मटर के ये गोले ग्रेबी में डालकर दिए जाते हैं। परंपरागत वाजवान में आखिरी व्यंजन गुश्ताबा होता है और यह भी रिस्ते की तरह की मटन बॉल होती है। शाकाहारियों के लिए यहां दम आलू और चमन नाम की दो सब्जियां मिल सकती हैं। रोटी पसंद करने वाले शीरमाल का मजा ले सकते हैं। बकरखानी भी एक किस्म की पेस्ट्रीनुमा कश्मीरी ब्रेड होती है, जो अकसर सुबह के नाश्ते में ही खाई जाती है। पेयों में दो खास कश्मीरी पेय-कहवा और नूनचाय हैं। नूनचाय असल में गुलाबी रंग की नमकीन चाय होती है और जिन्हें इसका स्वाद नहीं है, उनके लिए इसे पीना थोड़ा मुश्किल हो सकता है। वे लोग मीठे कहवा से काम चला सकते हैं। श्रीनगर में रेजिडेंसी रोड पर मुगल दरबार, अहदूस और ग्रैंड रेस्तरां में आपको इच्छा वाजवान मिल सकता है। सस्ते रेस्तरां और बेकरीज के लिए आप डल गेट या शेरवानी रोड का रुख कर सकते हैं।

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