अमेरिका से जुड़ी हैं संजय दत्त की यादें

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कभी शूटिंग के सिलसिले में तो कभी स्टेज शो के लिए हम कलाकारों को दुनिया देखने का मौका अमूमन मिल ही जाता है। मैं भी देश-विदेश के कई शहर घूम चुका हूं। मेरे जीवन में यूएसए अर्थात अमेरिका से जुड़ी ढेरों यादें सिमटी हैं। मेरी मॉम नरगिस दत्त लंबे अरसे तक न्यूयार्क में जिंदगी और मौत का सामना करती रहीं। उस वक्त पापा और मैं दोनों उनके साथ थे। फिर मेरी बेटी त्रिशाला भी अपने ननिहाल में ही रहती है, उससे मिलने मुझे अकसर अमेरिका जाना होता है। त्रिशाला की मां लंबी बीमारी से ग्रस्त थी और उस दौरान वह अमेरिका में ही रही। दो साल पूर्व फिल्म ‘कांटे’ की शूटिंग के लिए भी हम दो महीने तक लॉस एंजेलिस में रहे। लॉस एंजेलिस दुनिया के सबसे खूबसूरत शहरों में एक माना जाता है। प्रकृति की सुंदरता भी इस शहर में भरपूर देखी जा सकती है। कैलिफोर्निया ने भी मुझे बेहद आकर्षित किया। हॉलीवुड जिसकी दीवानी पूरी दुनिया है, वहां तो हम जाते ही हैं। वॉशिंगटन शहर भी अपने आप में अनूठा है।

स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी

स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी जब तक आप न देखें तब तक आपको यह नहीं महसूस होगा कि आपने अमेरिका देखा है। न्यू जर्सी और बोस्टन जैसे हर शहर की रचना, वहां के शॉपिंग कांप्लेक्स, सरकारी इमारतें, स्थानीय जनजीवन हर चीज से आप कुछ न कुछ सीखते हैं। प्राकृतिक सुंदरता इस देश को सहज रूप से ही मिली हुई है। इनके अलावा यहां गौर करने लायक एक बात यह भी है कि इस देश ने सुंदरता के कुछ नए समीकरण भी तैयार किए हैं, कुछ चीजों की तो इसने नए सिरे से रचना ही की है। भगवान ने उन्हें सुंदरता दी है तो उन्होंने भी अपनी मेहनत, लगन और बुद्धि से उसे चार चांद लगा दिए हैं।

मेहनत करने वालों का देश

मेहनत करने के मामले में अमेरिकावासी हमसे काफी आगे हैं। यहां का कोई संग्रहालय हो, पर्यटन स्थल हो या फिर ऐतिहासिक धरोहर, देखकर ऐसा लगता है कि हर जगह को इतिहास की धरोहर मानकर उसका जतन कैसे करें, यह बात न केवल हमें बल्कि पूरी दुनिया को उनसे सीखनी होगी। इसके विपरीत अपने देश में ज्यादातर ऐतिहासिक धरोहरों के सिर्फ चित्र बचे हैं। हम अपने समृद्ध इतिहास की अनूठी संपदा का जतन नहीं कर पाते। सफाई के मामले में तो अमेरिका का नाम शिखर पर है ही, वहां ट्रैफिक की समस्याएं भी नहीं होती हैं। हर चीज मानो अपनी-अपनी जगह पर रखी है। अनुशासन के मामले में तो यह देश हमसे कोसों आगे है। खूबसूरती और आधुनिकता का सरताज माने जाने वाले देश अमेरिका के लोग भी काफी सुलझे हुए हैं। यहां के फिल्मोद्योग ने हमारे फिल्म उद्योग को काफी विस्तार भी दिया है।

अमेरिका पहुंचकर दुख केवल इस बात का होता है कि यहां पारंपरिक रूप से कोई निश्चित संस्कृति या सभ्यता नहीं है। पश्चिमी सभ्यता को ही इन्होंने पूरी तरह अपना लिया है। 15-16 साल की बच्चियां भी यहां मां बन जाती हैं और 9-10 साल के बच्चे गर्लफ्रेंड व बॉयफ्रेंड की दुनिया में खो जाते हैं। यह बातें मन को कचोटती है। मैं चाहता हूं कि भारत भी इतनी तरक्की करे कि अनुशासन, पर्यावरण संतुलन और मेहनत जैसे मामलों में हम उन्हें पछाड़ दें। मुझे अमेरिका इसलिए भी पसंद है क्योंकि यहां की लाइफ बड़ी फास्ट है, ठीक मुंबई की तरह। मैं खुद रेस्टलेस इंसान हूं। मेरे लिए मुंबई या यूएसए जैसी जगह ही अच्छी है, वर्ना मेरा दम घुट जाएगा।

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