पूरब और पश्चिम का मेल है ताईवान

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चीन से 160 किमी के फासले पर स्थित छोटा सा द्वीप ताईवान पीसी हार्डवेयर और साउंड का‌र्ड्स से लेकर स्कैनर्स तक में काम आने वाली सेमी कंडक्टर चिप्स के बेतहाशा उत्पादन के कारण आज विश्व भर में रिपब्लिक ऑफ कंप्यूटर्स के नाम से ही जाना जाता है। समृद्धि, सुरुचि और सौंदर्य ताईवान के जर्रे-जर्रे पर चस्पा है। मानवीय श्रम से सिरजे स्वर्ग जैसे ताईवान में पूरब की सांस्कृतिक धरोहर के साथ पश्चिम की विलासितापूर्ण यांत्रिक जीवनशैली का भी अद्भुत समन्वय नजर आता है।

दक्षिण पैसिफिक समुद्री तट पर कर्क रेखा पर बसा यह देश भौगोलिक विविधताओं से भरपूर है। उत्तरी ताईवान का पर्वतीय सौंदर्य चमत्कृत करने वाला है, तो दक्षिणी ताईवान अपने पारदर्शी नीलम-मरकत की छवि वाले लहराते समुद्र और सुरम्य प्राकृतिक तटों के लिए प्रख्यात है। दर्शनीय स्थलों के तौर पर राजधानी ताइपेई,  मंदिरों के शहर ताइनान और ताइचुंग हैं तो वैभवशाली औद्योगिक शहर काओशिंग भी। पुली व केंटिंग जैसे समुद्रतटीय शहर और एमी व अटियाल जनजातियों का सांस्कृतिक दर्पण हुआलियन क्षेत्र ऐसे आकर्षण हैं जिन्हें देखने सैलानियों का सैलाब उमड़ता रहता है। इनमें ज्यादातर एशियाई मूल के लोग होते हैं।

छत वाली खाड़ी

द्वीप के उतार-चढ़ाव की गाथा कहने वाले गाइड के फलसफे की शुरुआत ही यहीं से होती है ‘इल्हा फारमोसा, इल्हा फारमोसा’ यानी बेइंतहा खूबसूरत द्वीप। हाल तक दुनिया ताईवान को फारमोसा के नाम से जानती रही।

‘ताईवान’ नाम तो 15वीं सदी में चीन के मिंग दरबार के चेंग हो ने इसे दिया, जिसका शाब्दिक अर्थ है छत वाली खाड़ी।    राजधानी ताइपेई विश्व भर के सैलानियों के आकर्षण का केंद्र है। पेरिस व न्यूयार्क की तर्ज के कैफे, डिस्कोज, छह लेन वाली सड़कों पर दौड़ती कारें, यातायात की व्यवस्थित  प्रणाली, क ंक्रीट व फाइबर की ऊंची इमारतों वाला यह शहर सोना नहीं जानता। ताईपेई के गौर का विषय है 530 कमरों वाली पुरानी चीनी शैली में निर्मित ग्रांड होटल। इसे केंद्र मानकर  शहर की सैर का मंसूबा बांधें तो पूर्व में आधा किमी दूरी पर है मार्टियर्स श्राइन। यह विशाल स्मारक चीन के साथ हुए युद्ध में शहीद सैनिकों को समर्पित है। राष्ट्रनायकों के प्रति लोगों की श्रद्धा देखनी हो तो च्यांगकाई शेक मेमोरियल हॉल जाएं। यहां ताईवान के पहले राष्ट्रपति च्यांगकाइ शेक की विराट कांस्य प्रतिमा व मोमबुत है। शहर के पूर्वी हिस्से में ताईवान व चीन दोनों के राष्ट्रपिता डॉ. सेन का स्मारक है।

परंपरा का मोह

ग्रांड होटल के दक्षिण स्थित नेशनल पैलेस म्यूजियम की वीथिकाओं में चीनी कलाकारों की सदियों पुरानी साढ़े चार हजार कांस्य कलाकृतियों व 24 हजार पोर्सलीन कृतियों के अलावा हजारों चित्र, केलीग्राफी के नमूने, बेजोड़ आकृतियां, लाखों दुर्लभ ग्रंथ, ऐतिहासिक दस्तावेज तथा डायरियां प्रदर्शित हैं। यहां किंग और मिंग शासकों को मिले तोहफे भी संकलित हैं।

समृद्धि के शिखर पर पहुंचकर भी अपनी परंपराओं के प्रति यहां के लोगों की  आस्था बरकरार है। परंपरा के प्रति विशेष आग्रह के चलते ताइपेई में तरह-तरह के मंदिर हैं। कहीं औषधियों के देवता हैं तो कहीं मैचमेकर भगवान, कहीं इम्तिहान पास कराने वाले आराध्य तो कहीं व्यापार में सफलता दिलाने वाले देव विराजते हैं तो कुछ ऐसे भी हैं जो समुद्री तूफानों और विपदाओं से बचाने के लिए पूजे जाते हैं। यहां भी मंदिरों के बाहर चढ़ावे की दुकानें होती हैं। स्वच्छता के प्रति सजगता के कारण इन मंदिरों के प्रांगण हमेशा स्वच्छ रहते हैं। मन्नत पूरी होने पर अतिसंभ्रात वर्ग के लोग भी अपने हाथों से मंदिर की सफाई कर कृतज्ञता ज्ञापन करते हैं। संगमरमर का शहर संपन्नता से परिपूर्ण ताईवान के नैसर्गिक सौंदर्य को अगर निहारना हो तो पूरब का रुख करना जरूरी है। हुआलियन क्षेत्र, टोराको गार्ज नेशनल पार्क और साउथ ईस्ट कोस्ट की यात्रा में एक अलग ही तरह का अनुभव मिलता है। ताइपेई से हुआलियन तक की 90 किमी की रेल यात्रा तीन घंटे में 22 पुलों और 16 सुरंगों से गुजरकर संपन्न होती है। हुआलियन के लिए घरेलू उड़ानें भी उपलब्ध हैं।

मार्बलसिटी नाम से प्रसिद्ध हुआलियन सिटी का हवाई अड्डा संगमरमर से निर्मित है। शहर के फुटपाथ से लेकर कूड़ेदान तक संगमरमर से बने हैं। नब्बे फीसदी पहाड़ी से घिरे हुआलियन शहर के साढ़े तीन लाख निवासियों में से डेढ़ लाख सिर्फ एमी जनजाति के हैं जिनके  रहन-सहन और तौर-तरीकों में हमारे देश की उत्तर-पूर्वी जनजातियों की झलक दिखती है। ताईवानी मुद्रा में 19.50 एंटी डॉलर खर्च कर एमी जनजाति के सांस्कृतिक गांव की सैर हो सकती है। हुआलियन की सैर पर निकले लोगों का असली मुकाम है टोराको गार्ज। शहर से 15 किमी दूर स्थित इस पार्क के लिए टैक्सी मिलती है। पपीते के बागों और गन्ने के खेतों से गुजरती सड़क संगमरमर की चट्टानों वाले टाइल्यूज दर्रे पर पहंुचती है।

एमी भाषा में टाइल्यूज का अर्थ ही है सुंदर। ऊंचे पहाड़ों, गहरी कंदराओं और प्राकृतिक झरनों वाली इस घाटी की चकरा देने वाली ऊंची चट्टानें रास्ते को दुर्गम बना देती हैं। इस राष्ट्रीय उद्यान में 108 प्रजातियों की तितलियां, 122 तरह के पक्षी, 14 प्रजातियों के एम्फीलियन, 25 प्रजातियों के सरीसृप और 28 से भी अधिक नस्लों के स्तनधारी जंतु पाए जाते हैं। ठोस संगमरमर से बना 984 फीट ऊंचा पहाड़ इसका सुदृढ़ प्रहरी है। विश्व के प्राकृतिक चमत्कारों में से एक है टोराको गार्ज और यहीं है स्वेलोज ग्रेटो यानी अबाबीलों के कोटर। प्रकृति ने अपनी सहज प्रक्रिया से इन चट्टानों में ऐसे गोलाकार आले गढ़े हैं जिनमें रंग-बिरंगे हजारों पंछियों का बसेरा है। दर्रो में बनी सुरंगों के रास्ते पार करते समय कभी-कभी तो आसमान भी नजर से ओझल हो जाएगा।

नौ मोड़ों वाली सुरंग के बाहर त्यूमूचिआओं पुल दिखेगा। जिसे पार करते ही दूर पहाड़ी पर सात मंजिला पगोडा है। यहां गर्म पानी के स्त्रोत हैं और हैं शीतल जल के निरंतर बहते झरने।

रूढि़यां भी हैं कई

उपहार लेने व देने के शौकीन ताईवानी को भूलकर भी चाकू, कैंची, रुमाल, तौलिए और घड़ी भेंट में देने की गलती न कीजिएगा ये मैत्री में खलल डालने के लिए काफी हैं। शुभ-अशुभ में यकीन करने वाले ताईवान के होटलों में तीसरी के बाद सीधे पांचवीं मंजिल आ जाती है। असल में चार अंक को यहां अपशकुनी मानते हैं। व्हीकल क्रेजी होने के बावजूद ताईवानी हॉर्न बजाने से बचते हैं। खास बात यह है कि स्वभाषी होने पर गौरवान्वित ताईवानी अंग्रेजी जानते हुए भी बोलने से कतराते हैं।

सच पूछें तो पूरब की परंपरा और पश्चिम की कार्यकुशलता का सामंजस्य है ताईवान। यहां आकर हर पल ऐसा लगता है जैसे बाहें पसारकर ताईवान सैलानियों से कह रहा हो पू कोची, पू कोची यानी आपका स्वागत है।

मौसम

ताइवान में मुख्यत: दो मौसम होते हैं मई से अक्टूबर तक गर्मी और नवंबर से मार्च तक सर्दी। ताइवान की बरसात बहुत नाजुक मिजाज है। अगस्त-सितंबर के महीनों में ताईवान आंधी-तूफान के सिलसिलों से भी गुजरता है। इसलिए यहां जाने का सही समय अक्टूबर से शुरू होता है।

कहां ठहरें

यहां सस्ते और महंगे सभी तरह के होटल मौजूद हैं। जिनकी कीमत भारतीय मुद्रा में सात सौ रुपये प्रतिदिन से लेकर आठ हजार रुपये प्रतिदिन बैठती है।

कैसे जाएं

ताईवान जाने के लिए चाइना एयरलाइंस, कैथे पैसेफिक, थाई एयरलाइंस और एयर इंडिया की अंतरराष्ट्रीय उड़ानें उपलब्ध हैं। जिनका किराया आने और जाने का प्रति व्यक्ति 32 हजार से 35 हजार रुपये के बीच बैठता है।

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