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- One Way


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मुझे बचपन से घूमने-फिरने का शौक रहा है। डैडी अक्सर आउटडोर शूटिंग पर जाते थे। मगर वह हम लोगों को शूटिंग पर नहीं ले जाते थे। अलबत्ता जब हमारे हमारे स्कूलों में छुट्टियां होती तो सारे परिवार के साथ वह घूमने का प्रोग्राम जरूर बनाते। कभी हम ऊटी, शिमला जाते तो कभी मसूरी दार्जिलिंग जैसी जगहों पर पयर्टन करते। कई बार हम विदेश ट्रिप पर भी गए। बचपन में यह शौक महज घूमने-फिरने,खाने-पीने और मौज-मस्ती करने तक सीमित रहता था। मगर थोड़ी बड़ी और समझदार होने के बाद मुझमें दूसरे देशों की संस्कृति, भाषा, रहन-सहन आदि जानने-समझने की ललक भी बढ़ी। मेरी पहली विदेश यात्रा का मुझे ध्यान नहीं। मगर पहली बार जिस महानगर ने मुझे आकर्षित किया-वह था लंदन। लंदन की शालीनता और सादगीपन मुझे बहुत अच्छा लगा। मुझे थोड़ा-थोड़ा याद आता है, जब मैं अपने डैडी के साथ शॉपिंग के लिए गई हुई थी, वहां के भव्य और शानदार माल मुझे बहुत लुभावने लगे। एक छत के नीचे दुनिया की सारी चीजें मिल जाती थीं। आज बीस साल बाद हमारे देश में माल देखने को मिल रहे हैं। इसी से लगता है कि विकास की रेस में हम उनसे कितने पीछे हैं। मगर इससे हमारी देश की महानता पर कोई फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि जो शांति, सुकून और रिश्तों की गरमाहट हमारे देश में है वह अन्य किसी देश में नहीं मिलेगी।
जहां तक पसंदीदा पर्यटन स्थल की बात है तो मुझे कश्मीर से खूबसूरत जगह कोई नहीं लगती। मगर वहां का माहौल अभी पूरी तरह ठीक नहीं हुआ है। फिलहाल घूमने-फिरने के लिए केरल, ऊटी, महाबलेश्वर, नैनीताल, शिमला आदि अच्छे पर्यटन स्थल हमारे देश में भी हैं। विदेशों में मुझे सबसे खूबसूरत यूरोप लगता है। चार साल पहले एक तेलुगु फिल्म की शूटिंग के सिलसिले में मैं वहां अलग-अलग लोकेशनों पर गई थी। शूटिंग की व्यस्तता की वजह से हम बहुत ज्यादा घूम तो नहीं पाए थे, मगर जितना भी घूमें, वहां की प्राकृतिक सुंदरता ने मेरा मन हर लिया। वहां की हरी-भरी और बर्फ से ढकी पहाडि़यों की लयबद्ध श्रृंखलाएं, नदी, झील, झरने आदि किसी को भी मस्त कर दें।
ऐसा लगता है प्रकृति ने यहां के लिए विशेष नियामतें बख्शी हैं। अगर मुझे छुट्टी मिले तो मैं साल में एकबार यूरोप के टूर पर जरूर जाऊं। फिलहाल इस साल मेरी बहुत इच्छा है कि मैं इस्त्राइल जाऊं। इसकी कई वजहें हैं, पहली बात, वहां के लोगों की संस्कृति, तहजीब वहां के आर्किटेक्ट, वहां की कलाएं, वहां के शिक्षित समाज आदि के बारे में काफी तारीफ मैंने सुन रखी है। मैं वहां के लोगों से मिलना और उनसे दोस्ती करना चाहती हूं। कुछ सीखना और समझना भी चाहती हूं। दूसरी बात, मेरा जन्म चूंकि पच्चीस दिसंबर को हुआ है लिहाजा मेरा एक सपना है कि मैं वहां जाकर उस जगह को देखना चाहती हूं जहां यीशू को सूली पर लटकाया गया था। यीशू के प्रति मेरे दिल में गहरी आस्था और श्रद्धा है।