ट्रेकिंग की तैयारी भी कम अहम नहीं

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टे्रकिंग करना एक साहसिक कार्य है और जोखिम भरा भी। दुर्गम इलाकों में पैदल चलते हुए किसी एक स्थान से दूसरे स्थान तक घंटों, दिनों, सप्ताह या कुछ सप्ताहों में अथवा इससे भी अधिक समय में पहुंचना ट्रेकिंग कहलाता है। ऐसी गतिविधि के लिए योजना बनाना और कार्यक्रम को सफल करना कितना महत्वपूर्ण है इसका अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है। किसी ट्रेकिंग कार्यक्रम के आयोजन और सफलता के लिए कार्यक्रम की अवधि, अवधि तथा सदस्य संख्या के अनुसार राशन व खाद्य पदार्थो की मात्रा ऊंचाई वाले इलाकों में खाने-पीने की कुछ चीजें, ईधन, कुली,  चूल्हा, बर्तन, पूरे रूट की जानकारी, प्रत्येक व्यक्ति का व्यक्तिगत सामान, आवश्यक हो तो कुछ उपकरण, दवाइयां और अनुमानित खर्च आदि अहम बातें हैं जिन पर ध्यान देना होता है। इसके अतिरिक्त ट्रेकिंग के दौरान क्या करें, क्या न करें की जानकारी जरूरी है।

क्या करें, क्या न करें

पहला चरण: सबसे पहले ट्रेकिंग करने का क्षेत्र निर्धारित करके पूरे मार्ग की जानकारी इकट्ठी की जाती है। किस-किस दिन कितना दूर चलना होगा और कितनी चढ़ाई चढ़नी होगी, इसी अनुसार पड़ाव निर्धारित करने होते हैं। विशेष कर ज्यादा ऊंचाई वाले इलाकों में समय अधिक लगता है, यद्यपि नीचे लौटते समय कम समय लगता है।

दूसरा चरण: राशन कितना लिया जाए यह एक मुख्य मुद्दा है। लोगों की खुराक के आधार पर राशन खरीदा जा सकता है। दलिया बहुत पौष्टिक आहार होता है जिसका ट्रेकर्स और पर्वतारोही प्राय: अधिक प्रयोग करते है। बॉर्नवीटा और कॉफी कुछ मात्रा में साथ रखना उचित है। ट्रेकिंग कार्यक्रम का आयोजन करने वाले अपने राशन में बदलाव ला सकते हैं। थोड़े ड्राई फ्रूटस (मेवे) साथ रखने चाहिए। ज्यादा ऊंचाई में कुछ समय तक खाना अच्छा नहीं लगता। ऐसी स्थिति में आचार बड़ा सहायक होता है।

तीसरा चरण: खाना बनाने के लिए बर्तन, चूल्हा व ईधन पानी के लिए जरीकेन और यहां तक कि चूल्हा जलाने के लिए माचिस और सब्जी काटने के लिए चाकू तक को ध्यान में रखकर साथ ले जाने की आवश्यकता होती है। एक और ध्यान देने योग्य बात यह है कि ईधन के नाम पर गैस या मिट्टी का तेल लेकर यात्रा करना वर्जित है। ऐसे में ट्रेकिंग क्षेत्र के समीप पहुंचकर ही ईंधन का प्रबंध करना चाहिए। यहीं नहीं कुली, खच्चर, गाइड, बर्तन और चूल्हे का प्रबंध भी वहीं किया जाए तो सुविधा रहती है। ट्रेकिंग की लोकप्रियता को देखते हुए स्थानीय लोगों ने हर आवश्यक वस्तु का प्रबंध करने का व्यवसाय चला दिया है। ट्रेवल एजेंसियां भी सभी जरूरी चीजें मुहैया करा देती हैं।

चौथा चरण: ट्रेकिंग के दौरान कई जगह कैंप लगाने पड़ते है। सदस्यों की संख्या को देखते हुए टेंटों का इंतजाम करना चाहिए। दल के नेता को हर प्रकार से चौकस रहते हुए आवश्यक दवाएं भी साथ रखनी चाहिए। व्यक्तिगत सामान में मौसमी कपड़ों के अलावा सिर से लेकर पैर तक का ध्यान रखते हुए बंदर टोपी, चश्मा, दस्ताने, मजबूत व आरामदायक जूते जो बिल्कुल नए न हो, जुराबें, पानी की बोतल, कैमरा, फिल्में, टॉर्च, सूई-धागा, अपनी दवाइयां, वाटर प्रूफ रकसैक, स्लीपिंग बैग, बारिश से बचने के लिए प्लास्टिक शीट, कुछ ड्राई फ्रूट्स और टॉफियां, ग्लूकोस आदि रखा जाना चाहिए।

ट्रेकिंग के दौरान ऊंचाई का विशेष महत्व है। विशेषज्ञों ने समुद्र तल से एवरेस्ट तक की ऊंचाई को तीन भागों में बांटा है। समुद्र तल से दस हजार फुट तक की ऊंचाई वाले क्षेत्र को जन जीवन क्षेत्र (जोन ऑफ लाईफ) कहते हैं। दस से बीस हजार तक की ऊंचाई वाले क्षेत्र को आक्सीजन क्षेत्र (जोन आफ आक्सीजन) और बीस हजार से ऊपर के क्षेत्र को जीवन रहित क्षेत्र (जोन ऑफ डेथ) कहलाता है। एक अच्छे ट्रेकर को इस तथ्य का ज्ञान होना चाहिए। ट्रेकिंग दल में यदि एक सदस्य डाक्टर हो तो अच्छा रहता है।

पहले अनुकूलित हो लीजिए

किसी भी इलाके में पहुंचकर ट्रेकिंग शुरू करने से पहले एक-दो रुक कर अपने आपको एक्लीमेटाइज करना चाहिए। पर्वत और बर्फ के नाम से ही कई लोग ठंड की कल्पना करने लगते हैं। अनेक ट्रेकर अच्छे मौसम में भी बहुत कपड़े पहन कर चलते हैं। परिणामत: अधिक पसीना आता है और थकान बढ़ जाती है। चलना मुश्किल हो जाता है। ऐसा न करे। लेकिन गरमी लगने पर अचानक खुले में कपड़े न उतारें। पसीना आने से शरीर में पानी की कमी आती है, और डीहाइड्रेशन की संभावना बढ़ती है। ज्यादा ऊंचाई में सांस लेने में कुछ समय दिक्कत आती है और जिसका सिर में बहुत दर्द होता है। जिसका मुख्य कारण आक्सीजन की कमी होता है। अत: पानी और ग्लूकोज का पर्याप्त सेवन अवश्य करें। पहाड़ों में पेट खराब हो जाना आम बात है। घर से निकलने से पहले हैजे का टीका लगवाने में कोई बुराई नहीं है।

एक निश्चित पड़ाव पर पहुंचकर कैंप लगाना होता है। जरूरी है कि दिन की रोशनी का लाभ लिया जाए। टेंट लगाकर और भोजन की व्यवस्था करके आसपास के ऊंचे क्षेत्रों पर चढ़कर कुछ समय बिताना चाहिए। जब आप नीचे उतरकर कैंप में आते हैं तो ऊंचाई का असर बहुत कम हो जाता है। कैंप लगाने के लिए सुरक्षित स्थान ढूंढना अनुभव की बात है। स्थान ऐसा हो जहां हवा कम से कम लगती हो। पानी समीप होना चाहिए। यह स्थान भूस्खलन या हिमस्खलन क्षेत्र में न हो। ध्यान रहे कैंप हटाते समय वहां पूर्ण सफाई कर दी जाए। टैंटों के भीतर धू्म्रपान करना, मोमबत्ती जलाना या अगरबत्ती जलाना उचित नहीं। ट्रेकिंग के दौरान प्राकृतिक व अप्राकृतिक, दोनों प्रकार के खतरों से बचना चाहिए। नदी के सूखे किनारों को सुरक्षित समझकर कभी वहां कैंप न लगाया जाए। पर्वत के ऊपरी भागों में भारी वर्षा से चंद मिनटों में नदी में बाढ़ आ जाती है जो सब कुछ बहाकर ले जाती है। हिमखंडों से निकलने वाले नालों के समीप भी ठहरना ठीक नहीं। ये सारी जानकारियां पहाड़ों में तीर्थयात्रा करने वालों के लिए भी लाभप्रद हैं। पानी हमेशा साथ रहना चाहिए। रास्ता भटक जाने पर आग जलाकर धुएं से संकेत दिया जा सकता है। वहीं तारामंडल और कंपास का ज्ञान भी काम आता है।

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