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भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिगों में श्री त्र्यंबकेश्वर का दसवां स्थान है। महाराष्ट्र में नासिक शहर से 35 किमी दूर गौतमी नदी के तट पर स्थित यह दिव्य स्थान ब्रह्मगिरि से सटा है। समुद्रतट से ढाई हजार फुट की ऊंचाई पर बसे त्रयंबक शहर में तीर्थयात्री पूरे साल आते रहते हैं। त्र्यंबकेश्वर जाने से पहले श्रद्धालु नासिक में गोदावरी के घाट पर स्नान करते हैं। यहां मां के निमित्त पिंडदान किया जाता है। अत: कई यात्री श्राद्ध के बाद मंदिर जाते हैं।
नासिक से मंदिर तक 35 किमी की यात्रा सुंदर पड़ावों से होकर गुजरती है। शांत वातावरण और हरे-भरे क्षेत्र से जाते हुए ताजगी का अनुभव होता है। नासिक और आसपास अंगूर की खेती होने से जगह-जगह अंगूर की बेलें लगी दिखती हैं। इसके बाद पहाडि़यां दिखाने लगती हैं और फिर ब्रह्म पर्वत। त्र्यंबकेश्वर मंदिर भव्य वातावरण सबका मन मोह लेता है।
अभिषेक शिव का
प्राय: सभी शिवमंदिरों में शिवलिंग पर अरघा (जलहरि) होता है, परंतु त्र्यंबकेश्वर में ऐसा नहीं है। यहां एक गढ्डे में तीन पिंडियां हैं, जो क्रमश: ब्रह्मा, विष्णु और महेश हैं। यही त्र्यंबकेश्वर हैं। इनमें शिवलिंग पर प्राकृतिक रूप से निकलने वाला जल सदा बहता रहता है। प्रकृति की ओर से शिव का अभिषेक निरंतर होता रहता है।
इस मंदिर में प्रवेश से पहले यात्री कुशावर्त कुंड में स्नान करते हैं। कथा यह है कि एक बार इस क्षेत्र में अकाल पड़ा और लोग घबरा कर भागने लगे तो ऋषि गौतम तप करने लगे, जिससे प्रसन्न होकर वरुण देवता प्रकट हुए और एक गढ्डा खुदवाया। उसमें जल भर आया। बाद में एक बार गौतम के शिष्य वहां जल लेने गए तो अन्य ऋषियों की पत्नियां भी वहां आ गई और पहले जल लेने का हठ करने लगीं। गौतम की पत्नी ने हस्तक्षेप कर शिष्यों को पहले जल भरने की व्यवस्था की। इससे नाराज ऋषि पत्नियों ने अपने पतियों को भड़काया तो ऋषियों ने गणपति की आराधना कर गौतम के अनिष्ट का वर मांगा। गणेश जी ने उन्हें ऐसा वर न मांगने की सलाह दी, परंतु ऋषि नहीं माने। कुछ दिनों बाद गौतम एक बीमार गाय को हटाने लगे तो वह मर गई। मुनि को गोहत्या का पाप लगा। दुखी मुनि वह स्थान छोड़ कर फिर तप करने लगे। उनके तप से शिव प्रसन्न हुए और वर मांगने को कहा।
गौतम ने शिवजी से गंगा देकर संसार का उपकार करने का वर मांगा। इसके बाद गौतम ने गंगा से अपने को गोहत्या के पाप से मुक्त करने की प्रार्थना की। गंगा जी ने गौतम को पवित्र करके स्वर्ग चले जाने की इच्छा जताई, परंतु शिवजी ने उन्हें पृथ्वी पर रहने को कहा। इस पर गंगा ने उनसे प्रार्थना की कि आप भी पार्वती सहित पृथ्वी पर निवास करें। संसार के उपकार हेतु शिवजी ने यह बात मान ली। फिर गंगा गौतमी नाम से प्रसिद्ध हुई और लिंग त्रयंबक नाम से।
गोदान करने से गौतमी गंगा गोदावरी कहलाई। गंगाद्वार से निकल कर गोदावरी थोड़ी दूर बाद लुप्त हो जाती है और फिर पर्वत की तहलटी में प्रकट होती हैं। नदी फिर लुप्त न हो, इसलिए गौतम ने दूर्वा को चारों दिशाओं में फेंक कर जल को कुशावर्त में बहने को बाध्य कर दिया। कुशावर्त के पास ही गंगासागर तालाब है। निवृर्ति नाथ की समाधि व गोरक्षा गुफा भी समीप ही हैं।
हर सोमवार के दिन भगवान त्र्यंबकेश्वर की पालकी गाजे-बाजे के साथ कुशावर्त ले जाई जाती है और फिर वहां से वापस लाई जाती है। इसी क्षेत्र में अहिल्या नाम की एक छोटी नदी गोदावरी में मिलती है। इस संगम स्थल पर निसंतान लोग संतान प्राप्ति की कामना करते हैं।
अभिषेक का शुल्क
श्री त्र्यंबकेश्वर में अभिषेक और महाभिषेक के लिए पंडितों की भी व्यवस्था है। पंद्रह रुपये प्रति व्यक्ति प्रवेश शुल्क लगता है, जिससे बिना पंक्ति में लगे मंदिर में पंडित जी के साथ प्रवेश कर सकते हैं। अभिषेक के लिए यहां पंडित जी को 151 रुपये देने होते हैं और महाभिषेक के लिए 251 रुपये।
सिंहस्थ कुंभ
ऐसी मान्यता है कि देवासुर संग्राम के दौरान समुद्रमंथन से जो अमृतकुंभ निकला उसकी कुछ बूंदें उज्जैन, हरिद्वार और प्रयाग क्षेत्र के साथ-साथ त्र्यंबकेश्वर में भी पड़ी थीं। इसीलिए हर बारह साल बाद जब गुरु सिंह राशि में होते हैं तब त्र्यंबकेश्वर में भी कुंभ मेला लगता है।
कैसे पहुंचें
त्र्यंबकेश्वर जाने के लिए नासिक पहुंचा जाता है जो भारत के हर क्षेत्र से रेल तथा सड़क मार्ग से भलीभांति जुड़ा है। हवाई मार्ग से जाने के लिए औरंगाबाद तथा पूर्ण हवाई अड्डे समीप हैं।