उदयपुर: एक खूबसूरत अहसास

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खूबसूरत झीलों, आलीशान महलों और मनोरम उद्यानों का शहर उदयपुर रोमानियत भरा ऐतिहासिक शहर है। यहां की फिजाओं में आज भी वीर राणाओं की शौर्य गाथाएं गूंजती हैं। सूर्यवंशी सिसोदिया राजाओं का मेवाड़ पर 1200 वर्षों तक शासन रहा। 16वीं सदी के मध्य तक इनकी राजधानी चित्तौड़गढ़ थी। 1557 में मुगल सेनाओं के आक्रमण से चित्तौड़गढ़ तहस-नहस हो गया तो राणा उदयसिंह ने 1559 में आयड़ नदी के किनारे उदयपुर शहर बसाकर, उसे मेवाड़ की राजधानी बनाया। उनके पुत्र महाराणा प्रताप जैसे योद्धाओं के गौरवशाली इतिहास की यह धरती अरावली की पहाडि़यों के मध्य है। उस समय नगर की सुरक्षा के लिए चारों ओर मजबूत चारदीवारी बनवाई गई थी। इसके 11 भव्य द्वार थे। समय बदलने के साथ शहर का स्वरूप बदलने लगा। लेकिन आज भी उस दीवार का कुछ भाग और सूरजपाल, किशनपोल, चांदपोल, उदयपोल, हाथीपोल जैसे शेष बचे द्वार उस दौर के गवाह हैं।

इतिहास को समझने के लिए पर्यटकों को सिटी पैलेस निमंत्रण देता है। यह आलीशान महल उस दौर की बहुत सी अनमोल विरासतों को संजोए है। सिटी पैलेस अलग-अलग समय में बनवाए गए चार बड़े और कुछ छोटे महलों का एक समूह है। पिछौला झील के किनारे स्थित इस राजमहल का एक भाग संग्रहालय के रूप में सैलानियों के लिए खुला है। महल के एक हिस्से में आज भी यहां के पूर्व राजाओं का परिवार रहता है और अन्य भागों को हैरीटेज होटलों का रूप दे दिया गया है।

सिटी पैलेस में प्रवेश के लिए दो द्वार हैं। पहले द्वार-बड़ी पोल का निर्माण 1600 ई. में हुआ था। दूसरे द्वार-त्रिपोलिया गेट का निर्माण 1725 में किया गया था। महल के अंदर पर्यटक गणेश ड्योड़ी से प्रवेश करते हैं। मुख्य द्वार के ऊपर सूर्यवंशीय राणाओं का प्रतीक सूर्य लगा है। पहले यह सूर्य सोने से निर्मित था, जिसे बाद में बदलकर उसकी अनुकृति लगा दी गई। मूल सूर्य संग्रहालय के अंदर लगा है। प्रवेश करते ही सामने ‘राय आंगन’ है। यह महल का सबसे पुराना हिस्सा है। इसे उदयसिंह द्वारा 1565 में बनवाया गया था। राय आंगन की दीवारों पर राणा प्रताप द्वारा लड़े गए युद्धों के चित्र बने हैं। ”मोर चौक” कांच और टाइल्स की कला का अद्भुत उदाहरण है। यहां दीवारों पर बनी मोरों की विभिन्न मुद्राएं अलग-अलग मौसम का प्रतीक हैं।

इसी तरह ‘माणिक महल’ में कांच और चीनी मिट्टी की बनी सुंदर आकृतियां देखने योग्य हैं। ऊपरी मंजिल पर एक वाटिका में घने पेड़ भी लगे हैं, जिन्हें देख आश्चर्य होता है। दरअसल यह महल के मध्य एक ऊंचे टीले पर स्थित वाटिका है। महल का यह हिस्सा ऊंचे टीले के चारों ओर बना है। जनाना महल राज परिवार की स्ति्रयों के लिए बना खास महल था। वहीं मोती महल में सैलानी शीशे की सुंदर कारीगरी देखते हैं। महल के अन्य हिस्से में शीशमहल, दरबार हाल, शंभूनिवास आदि हैं। ऊपर बना सूरज गोखड़ा एक प्रकार की बालकनी है। जहां बैठ कर महाराणा जनता को संबोधित करते थे। सिटी पैलेस में स्थित दीर्घाओं में चित्र आदि के अलावा अस्त्र शस्त्र, राजसी प्रतीक और महाराणाओं की विरासत प्रदर्शित है। इनमें महाराणा प्रताप का जिरह बख्तर और ऐतिहासिक भाला विशेष आकर्षित करते हैं।

शहर के सौंदर्य को दोगुना करती यहां की झीलों में सबसे प्रमुख पिछौला झील है। करीब चार किलोमीटर लंबी इस झील का नाम पिछौला गांव पर पड़ा था। झील के मध्य है जगनिवास महल। यह महल 1730 में ग्रीष्म निवास के रूप में महाराणा जगतसिंह ने बनवाया था। पानी पर तैरता प्रतीत होता यह सफेद जलमहल बेहद सुंदर है। आज यह राजसी शान-शौकत वाला लेक पैलेस होटल बन गया है। यहां नाव से ही जाया जा सकता है।

मानसून महल

झील के मध्य जगमंदिर नामक एक ओर छोटा सा महल है। इसकी वास्तुकला में मुगल शैली का काफी प्रभाव है। अंदर अनेक जगह उस दौर की चित्रकला के भी प्रमाण हैं। फतहसागर, रंगसागर, स्वरूप सागर व दूध तलाई झीलें पिछौला झील से जुड़ी हैं। ये झीलें ही उदयपुर के मौसम को खुशगवार बनाती हैं। इसलिए आज उदयपुर अच्छे मानसून के बाद सैलानियों की पसंदीदा सैरगाह है। अरावली की पहाडि़यों से घिरी एक ओर बड़ी झील है फतह सागर। इसके मध्य में भी एक बगीचा है जिसे एक समय में रानियों के साथ विलास के लिए इस्तेमाल किया जाता था। इसे अब नेहरू गार्डन कहा जाता है।

फतह सागर के सामने ‘मोती मगरी’ नामक पहाड़ी पर देश के महानतम योद्धाओं में से एक और हल्दीघाटी की ऐतिहासिक लड़ाई के नायक महाराणा प्रताप का स्मारक है। इसे महाराणा फतह सिंह ने बनवाया था। यहां महाराणा प्रताप की भव्य प्रतिमा है। स्मारक परिसर में ही एक छोटा सा खंडहर है जो पन्ना धाय का आवास था। सहेलियों की बाड़ी भी उदयपुर का एक बेहद खूबसूरत स्थल है। यह राज परिवार की स्ति्रयों के आमोद-प्रमोद के लिए बनवाई गई शानदार वाटिका है। सुंदर बगीचों के मध्य बनी छतरियां, बीच में सरोवर, संगमरमर के बने खूबसूरत हाथी और पानी में खिले कमल वाटिका की शोभा बढ़ाते हैं। चारों तरफ बने बगीचे में कई तरह के दुर्लभ वनस्पति मिल जाएंगे, जिनमें विशालकाय पत्तों वाली मनी प्लांट की ऊंची बेल शामिल हैं।

महाराजाओं के लिए जिस मानसून महल का निर्माण किया गया था वह सज्जनगढ़ पैलेस शहर के दूसरे छोर पर पहाड़ी पर स्थित है। आज यहां एक वन अभयारण्य बनाया गया है। महाराणा सज्जन सिंह द्वारा बनवाया गया गुलाब बाग गुलाब के फूल की विभिन्न किस्मों के लिए जाना जाता है। बाग में एक पुस्तकालय है जिसमें कुछ दुर्लभ पांडुलिपियां व पुस्तकें संग्रहीत हैं। कहा जाता है कि स्वामी दयानंद सरस्वती ने यहीं पर सत्यार्थ प्रकाश की रचना भी की थी। यहां एक छोटा सा चिडि़याघर है और एक खिलौना ट्रेन भी। साढ़े तीन सौ वर्ष पुराना जगदीश मंदिर सिटी पैलेस के निकट ही है। इंडो-आर्यन शैली में बना यह मंदिर उदयपुर का सबसे बड़ा मंदिर है। जिसका निर्माण 1651 में महाराणा जगतसिंह ने करवाया था। मंदिर के गर्भगृह में विष्णु की काले पत्थर की प्रतिमा सुशोभित है। मंदिर प्रांगण में विष्णु वाहन गरुड़ की प्रतिमा भी है। राजस्थान की धरती पारंपरिक लोक कलाओं के मामले में भी काफी समृद्ध है। उदयपुर स्थित भारतीय लोककला मंडल में पर्यटकों का ऐसी लोक कलाओं से परिचय होता है। पर्यटकों के लिए यहां लोक नृत्य और कठपुतली शो का आयोजन भी होता है। देश के पश्चिमी क्षेत्र की लोक कला व शिल्पकला के साथ वहां के ग्रामीण जीवन की झांकी देखनी हो तो शिल्पग्राम से बेहतर कोई स्थान नहीं हो सकता।

हल्दीघाटी

1576 में मुगलों व महाराणा प्रताप के मध्य हुए भयंकर युद्ध की साक्षी। यह स्थान शहर से 40 किमी दूर है।

एकलिंगजी

मेवाड़ के राणाओं के कुलदेवता शिव का मंदिर। शहर से 22 किमी दूर। मंदिर ऊंची चारदीवारी से घिरा है जिसके अंदर छोटे-छोटे 108 मंदिर मौजूद है। ये मंदिर भगवान शिव को समर्पित हैं। मुख्य मंदिर के सुंदर मंडप में शिव की चतुर्मुखी काले संगमरमर की बनी प्रतिमा विराजमान है।

नाथद्वारा

वैष्णव मत का विख्यात श्रीनाथ यानी कृष्ण मंदिर। उदयपुर से 48 किमी दूर। इस मंदिर का निर्माण 17वीं शताब्दी के अंत में हुआ था। मंदिर के गर्भगृह में भगवान की श्याम वर्णी पाषाण प्रतिमा विराजमान है। यह प्रतिमा महाराणा राजसिंह द्वारा मथुरा से लाकर स्थापित की गई थी। ब्रजभूमि के बाहर देश में कृष्ण के सबसे पूजनीय स्थानों में से एक।

जयसमंद

उदयपुर से 48 किमी दूर यह विशाल झील 17वीं सदी में महाराणा जय सिंह द्वारा बनवाई गई थी। यहां राज परिवार की स्ति्रयों के लिए ग्रीष्म ऋतु में रहने के एक महल का निर्माण भी किया गया था। यह एशिया की दूसरी सबसे बड़ी मानव निर्मित झील है।

राजसमंद

यह झील उदयपुर से 66 किमी दूर कांकरोली में स्थित है। इसे महाराणा राज सिंह ने 1660 में बनवाया था। यहां से चारभुजाजी मंदिर भी निकट ही है। उदयपुर की यात्रा के साथ ही पर्यटक रणकपुर के प्रसिद्ध जैन मंदिर (96 किमी दूर), कुम्भलगढ़ (84 किमी) और चित्तौड़गढ़ (116 किमी) देखने का कार्यक्रम भी बना सकते हैं।

कैसे जाएं

रेलमार्ग

उदयपुर के लिए दिल्ली, जयपुर, व अहमदाबाद से सीधी दैनिक ट्रेनें हैं।

सड़क मार्ग

उदयपुर दिल्ली (670 किमी), मुंबई (739 किमी), आगरा (630 किमी), अहमदाबाद (262 किमी), माउंट आबू (185 किमी) आदि शहरों से सीधी बस सेवा से भी जुड़ा है।

वायुमार्ग

उदयपुर के लिए दिल्ली व मुंबई से रोजाना उड़ानें उपलब्ध हैं।

कहां ठहरें

उदयपुर में देश की सबसे महंगी (1.30 लाख रु. रोजाना के कोहिनूर सूट) से लेकर सबसे सस्ती होटलें (सौ रुपये रोजाना) तक मौजूद हैं। उदय विलास, शिव निवास व लेक पैलेस में ठहरना सबके बूते की बात नहीं। लेकिन स्टेशन से सूरजपोल के रास्ते में बीसियों होटल हैं जहां कम खर्च में आराम से रुका जा सकता है।

कब जाएं

उदयपुर की स्थानीय संस्कृति के रंग देखने का अवसर पर्यटकों को मेवाड़ उत्सव व गणगौर उत्सव के समय मिलता है। वसंत के आगमन पर होने वाले मेवाड़ उत्सव पर शोभा यात्रा निकलती है। इसमें यहां के लोकनृत्य, लोकगीत व आतिशबाजी का नजारा मिलता है। चैत्र मास की तीज पर गौरी की पूजा के गणगौर पर्व में सजेधजे हाथी और घोड़ों के जुलूस के साथ शंकर भगवान की प्रतिमा भी ले जाई जाती है। इस दिन महिलाएं पारंपरिक वेशभूषा में नजर आती हैं। बारिश अच्छी हो तो सावन के महीने में यहां की रौनक कुछ और ही होती है। सावन के हर सोमवार और फिर हरियाली अमावस्या पर फतहसागर की पाल पर लगने वाला मेला शहरवासियों की जान होता है। वैसे मौसम व प्राकृतिक खूबसूरती के लिहाज से देखा जाए तो उदयपुर जाने का उपयुक्त समय सितंबर से मार्च के बीच है।

खरीदारी

उदयपुर में ऐसा बहुत कुछ है। जो लोग यादगार के रूप में साथ ले जाना चाहेंगे। मेवाड़ राजपूत शैली के लघु चित्र, कशीदाकारी की वस्तुएं, नाथद्वारा की पिछवाईयां, संगमरमर पर पच्चीकारी वाले शिल्प, कठपुतली, बांधनी के कपड़े व साडि़यां और चांदी के आभूषण आदि के अलावा भी अनेक कलात्मक हस्तशिल्प यहां मिलते हैं। उदयपुर के चारों तरफ की पहाडि़यों में मार्बल की बेइंतहा खाने व कटिंग मशीने हैं। देश के कोने-कोने में यहां से मार्बल घर-दफ्तर बनाने के लिए जाता है। इसीलिए यहां मार्बल की सजावटी वस्तुओं का भी खासा बाजार है। जगदीश चौक, चेतक सर्किल, हाथीपोल, घंटाघर, शिल्पग्राम आदि स्थान खरीदारी के उपयुक्त हैं। उदयपुर देशी-विदेशी सैलानयों में खासा लोकप्रिय है, इसलिए जाहिर है कि खरीदारी में उस तरह की सौदेबाजी करनी होती है, जैसी बाकी सभी पर्यटन स्थलों पर होती है।

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