वाराणसी: आस्था, विश्वास और पर्यटन का केन्द्र

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वाराणसी माटी-पाथर का बना महज एक शहर नहीं अपितु आस्था विश्वास और मान्यताओं की ऐसी केन्द्र भूमि है जहां तर्को के सभी मिथक टूट जाते हैं। जीवंत रहती है तो सिर्फ समर्पण भरी आस्था। अपने अनेक नामों से जानी जाने वाली वाराणसी दुनिया की प्राचीनतम नगरियों में से एक है। तिथियों के वंदनवार में सिमटी वर्ष, महीने और सदियां गुजर गयीं किन्तु वाराणसी जहां की तहां बनी रही। वाराणसी मौज मस्ती और अपने फन का अलग शहर है। इसका एक नाम काशी है तो दूसरा बनारस भी। आदि काल के पन्नों का नाम वृहच्चरण था और आगे आने पर महाजनपद के नाम से जाना गया। राजा कन्नार के जमाने में इसे बनारस की संज्ञा मिली। काशी इसका प्राचीनतम नाम है जिसका उल्लेख महाभारत काल से मिलता है। घाटों के लिए प्रसिद्ध गंगा नदी किनारे बसी इस नगरी का प्रचलित नाम वाराणसी है जो अस्सी तथा वरुणा दो उप नदियों के नाम के प्रथमाक्षरों को संयोजित कर बनाया गया है। इन दोनों उप नदियों के घिरी है प्राचीन बनारस की सरहदें।

मान्यता है कि भगवान शिव के त्रिशूल पर बसी काशी देवाधिदेव महादेव को अत्यंत प्रिय है। इसलिए यह नगरी धर्म, कर्म, मोक्ष की नगरी मानी जाती है। गंगा के मुहाने पर बसे इस शहर की छटा को निखारने वाले सौ से अधिक पक्के घाट पूरी नगरी को धनुषाकार का स्वरूप प्रदान करते हैं। काशी को यह गौरव प्राप्त है कि यह नगरी विद्या, साधना व कला तीनों का अधिष्ठान रही है।

काशी के घाट

वाराणसी प्राचीन नगरी होने के कारण पर्यटन की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। यहां के पक्के घाट अत्यंत दर्शनीय हैं। घाटों की बनावट नक्काशी तथा पत्थर इतिहास के गवाह से अपने प्राचीनतम होने का उदाहरण तो प्रस्तुत करते ही हैं यह भी दर्शाते हैं कि वे पूरी दुनिया में अनूठी अनुभूति है। धार्मिक महत्ता के साथ-साथ काशी अपने प्राचीनतम एवं मनोरम घाटों के लिए विश्व प्रसिद्ध है। ये घाट देशी-विदेशी पर्यटकों के लिए भी आकर्षण का केन्द्र हैं। प्रात:काल सूर्योदय के समय इन घाटों की छटा देखने योग्य होती है।

दशाश्वमेध घाट

गंगा के किनारे काशी के हर घाट का अपना अलग वैशिष्टय है। किन्तु सबसे महत्वपूर्ण घाट दशाश्वमेध घाट है। सन् 1735 में इस घाट को सर्वप्रथम वाजीराव पेशवा ने बनवाया। प्रशस्त पत्थरों से निर्मित यह घाट पंचतीर्थो में एक है।

मणिकर्णिका घाट

इस घाट पर मणिकर्णिका कुंड अवस्थित है। पौराणिक गाथाओं से जुड़े इस घाट का धर्मप्राण जनता में परणोपरान्त अंतिम संस्कार की दृष्टि से अत्यधिक महत्व है। यह घाट भी पंचतीर्थो में एक है। मान्यता है कि यहां की चिता कभी नहीं बुझती। यहां पक्का घाट सन् 1303 में बनवाया गया।

पंचगंगा घाट

कार्तिक पूर्णिमा के दिन रात में इस घाट की छटा निराली होती है। पुराणों के मुताबिक यहां यमुना, सरस्वती, किरण व धूतपाया नदियों का गुप्त संगम होता है जिसके कारण इसे पंचगंगा घाट की संज्ञा है। इसी घाट पर स्वामी रामानंद ने कबीर को दीक्षित किया था।

हरिश्चन्द्र घाट

यह घाट काशी के प्राचीनतम घाटों में से एक है। जनश्रुति के मुताबिक यहीं सत्यवादी राजा हरिश्चन्द्र की सत्य परीक्षा हुई थी। घाट पर महाराजा हरिश्चन्द्र की प्राचीन प्रतिमा बनी है। हिन्दू मरणोपरान्त इस घाट पर दाह संस्कार करते हैं। कहा जाता है कि राजा हरिश्चन्द्र को इसी घाट पर अपने पुत्र रोहिताष के शव के लिए काशी के डोम राजा का कर अदा करना पड़ा था।

केदार घाट

काशी के मंदिरों में केदारेश्वर का प्रसिद्ध मंदिर है जो इसी घाट के ऊपर अवस्थित है। इस कारण भी यह घाट अपने सौंदर्य के लिए प्रसिद्ध है।

तुलसी घाट

यह घाट अत्यंत प्राचीन है तथा इसे लोलार्क घाट के नाम से भी जाना जाता है। इसी घाट पर गोस्वामी तुलसी दास ने रामचरित मानस के कई अंशों की रचना की थी। इस कारण यह घाट तुलसी घाट के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

राजघाट

यह घाट काशी के काशी रेलवे स्टेशन के पास है तथा पूर्वी छोर का पहला पश घाट है। यहां रैदास का मंदिर आकर्षण का केन्द्र है। पास में मालवीय पुल इस घाट की छटा को और निखारते है। इस घाट का निर्माण पेशवा के नायक राजा विनायक राव द्वारा कराया गया।

सिंधिया घाट

यह घाट अपनी अनूठी शिल्प कला व बनावट के लिए दर्शनीय है। इसे सिंधिया नरेश ने बनवाया था जो मणिकर्णिका घाट के पा‌र्श्व में अवस्थित है।

अस्सी घाट

नगर के दक्षिण छोर पर स्थित यह घाट काशी के घाटों की श्रृंखला का अंतिम घाट माना जाता है जो दो उप नदियों का संगम स्थल है। यहां भगवान जगन्नाथ का प्रसिद्ध मंदिर है। रथयात्रा के अवसर पर निकलने वाले रथ पर इसी मंदिर की मूर्ति को रखकर सवारी निकालने की परम्परा रही है।

इन प्रमुख घाटों के अलावा भी अनेक ऐसे घाट हैं जिनका धार्मिक, पौराणिक व स्थापत्य कला की दृष्टि से महत्व है। इनमें गायघाट, बूंदी पर कोटा घाट, रामघाट, गंगा महल घाट, चौसट्टी घाट व खिड़कियां घाट आदि है।

काशी विश्वनाथ मंदिर

बाबा विश्वनाथ का प्रसिद्ध मंदिर काशी विश्वनाथ मंदिर अत्यंत प्राचीन है। इसका नवनिर्माण सन् 1775 में महारानी अहिल्याबाई ने करवाया। बाद के ब्रिटिश काल में मंदिर में नौबतखाना बनवाया गया। मंदिर के शिखर स्वर्ण मंडित हैं जिन पर महाराजा रणजीत सिंह ने सोना चढ़वाया। सन् 1828 में चंपा जी ने ज्ञानवापी का मंडप बनवाया। नेपाल के राजा ने उन्नीसवीं सदी के आरम्भ में मंदिर के बाहर अवस्थित नंदी की पुन: स्थापना की। मंदिर में भगवान शिव का ज्योर्तिलिंग स्थित है। काशी के इस मंदिर की कला अत्यंत प्राचीन है। आश्चर्य तो यह है कि सातवीं सदी में चीनी यात्री ह्वेन सांग काशी में सौ फीट ऊंची जिस कांसे की प्रतिमा को देखा था वह और कुछ नहीं विश्वनाथ की प्रतिमा थी। सातवीं सदी में बना विश्वनाथ मंदिर बारहवीं सदी में भी जस का तस बना रहा।

सारनाथ

वाराणसी शहर से दस किलोमीटर दूर सारनाथ क्षेत्र बौद्ध तीर्थ के रूप में विख्यात है। यह पर्यटन के रूप में भी मशहूर है। सारनाथ में भगवान बुद्ध की प्रस्तर प्रतिमा अवस्थित है जो एक भव्य मंदिर की परिधि में है। यहां भगवान बुद्ध ने वट वृक्ष के नीचे बैठकर अपने पांच शिष्यों को अहिंसा का उपदेश दिया था। भगवान बुद्ध की उपदेश स्थली अत्यंत सुंदर व मनोरम है। यहां पर अशोक का चतुर्भूज सिंह स्तंभ व ऐतिहासिक महत्व का धमैक स्तूप अवस्थित है।

जैन मंदिर यहां का दर्शनीय स्थल है। बौद्ध मंदिर, चौखंडी स्तूप और संग्रहालय देखने योग्य है। यहां प्राचीन मूर्तियओं के अवशेष न शिलाखण्ड संरक्षित हैं। यहां सारंगनाथ महादेव का मंदिर भी है जो सावन मास के आकर्षण का केन्द्र बन जाता है। इसके अलावा यहां तिब्बती संस्थान (विश्वविद्यालय स्तर) भी है।

भारत माता मन्दिर

श्री भारत माता मन्दिर राष्ट्र रत्न श्री शिव प्रसाद गुप्त की राष्ट्रीय चेतना का मूर्तरूप है और भारतीय कला की उत्कृष्ट निधि भी। मूर्ति शिल्पी श्री दुर्गा प्रसाद 1918 ई. में मूर्ति बनाने का कार्य आरम्भ किया और लगभग छ: वर्षोमें यह कार्य सम्पन्न हुआ।    इस मन्दिर का सुन्दर भू-चित्र संगमरमर का बना है। इसकी लम्बाई 31 फुट 2 इंच तथा चौड़ाई 30 फूट 2 इंच है। मानचित्र के बनाने में संगमरमर के 11&11 इंच के सात सौ बासठ टुकड़े तथा कुछ छोटे-छोटे लगे थे। इस मानचित्र में उत्तर में पामीर पर्वत शिखरों से लेकर दक्षिण में लंका या सिंहल द्वीप के दक्षिणी छोर डुवुण्डुर तडुव (डण्ड्रा) तक पूर्व में मीलमीन तथा चीन की प्रसिद्ध प्राचीन दीवारें कहकहा से लेकर पश्चिम में हरात तक का समस्त भू-भाग दिखाया गया है।

रामनगर की रामलीला

यद्यपि समस्त भारत में प्रतिवर्ष रामलीलाएं होती हैं तथापि विधिवत तुलसीकृत रामायण के अनुसार जैसी रामलीला रामनगर में होती है वैसी कहीं नहीं होती। रामनगर की रामलीला लगभग पूरे दो सौ वर्ष पुरानी है।

तीर्थ यात्राएं व स्नान

काशी में तीन तीर्थ प्रधान हैं- प्रयाग, पंचनद, मणिकर्णिका। इनमें स्नान करने से मनुष्य भव-बन्धन से मुक्त होता है। पंचभौतिक शरीर को शुद्ध करने के लिए पंचतीर्थ में स्नान करें, ये हैं- अस्सी संगम, दशाश्वमेध, वरना संगम, पंचगंगा और मणिकर्णिका। इनके साथ गौरी-कुण्ड (केदारघाट) और पिलपिलातीर्थ (त्रिलोचन घाट) में स्नान करने से सप्ततीर्थ स्नान का फल मिलता है।

पंचकोसी यात्रा

काशी में पंचकोसी यात्रा का अत्यंत धार्मिक महत्व है। मोक्षदायिनी गंगा एवं काशी के हृदयस्थली मणिकर्णिका से शुरू होता है। काशी की पंचकोसी परिक्रमा मणिकर्णिका से अस्सी तक घाट-घाट ही यात्रा करने का विधान है जो 25 कोसों में फैली देवालयों, पौराणिक, ऐतिहासिक एवं धार्मिक संगम का अनूठा स्वरूप वर्तमान में फैलाये हुए आस्था के प्रतीक में विद्यमान है। पंचकोसी में पांच पड़ाव स्थल पांच-पांच कोसों की दूरी पर स्थित है। जिसे कन्दवा, भीमचण्डी, रामेश्वर. शिवपुर एवं कपिलधारा के नाम से जाना जाता है। हर पड़ाव स्थलों पर विशाल मंदिर एवं तीर्थयात्रियों के ठहरने के लिए धर्मशालायें स्थित हैं।

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय

वाराणसी शिक्षण संस्थाओं के लिए भी मशहूर है। यहां तीन विश्वविद्यालय  सहित अनेक उच्च शिक्षण संस्थान हैं जिनका अपना महत्व है। इनमें काशी हिन्दू विश्वविद्यालय विस्तृत भूभाग में स्थित है। इसे महामना मदन मोहन मालवीय ने अपने संकल्प शक्ति के बल पर स्थापित किया। मनोरम वातावरण में विश्वविद्यालय परिसर का सौंदर्य देखने योग्य है। परिसर में नया काशी विश्वनाथ मंदिर भी है जो अपनी स्थापत्य कला के लिए ख्यात है। इसी प्रकार यहां सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय तथा महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ विश्वविद्यालय प्राचीन व ऐतिहासिक है।

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    One Response to “वाराणसी: आस्था, विश्वास और पर्यटन का केन्द्र”

      admin के द्वारा
      June 11, 2010

      वाराणसी: आस्था, विश्वास और पर्यटन का केन्द्र है और यहा के घाट वाकई में बहुत सुंदर है

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