बनारस : हर घाट का निराला है ठाठ

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सहस्त्राब्दियों से सुख-दुख झेलती काशी ने कभी मोक्ष तीर्थ तो कभी आनंद कानन के रूप में इतिहास के  इति और आरंभ से साक्षात्कार किया। वाराणसी और बनारस के नाम से विख्यात इस नगर को ईस्वी पूर्व 1200 में सहोल के पुत्र काश्य ने बसाया था।

कथा प्रचलित है कि भगवान शिव के त्रिशूल पर बसी काशी का प्रलय में भी विनाश नहीं हो सकता है।धर्म-कर्म-मोक्ष व देवी देवताओं की वैदिक नगरी काशी सर्व विद्या की भी राजधानी मानी जाती है। यहां द्वादश ज्योतिर्लिगों में विश्वनाथ तथा 51 शक्तिपीठों में से एक विशालाक्षी स्थित है। इस नगर में कई ऐसे स्थान हैं जहां सैलानी रोमांचित हो उठते हैं। यह नगर गंगा के किनारे बसा है और इस नदी के तट पर बने धनुषाकार श्रृंखलाबद्ध घाट यहां के मूल आकर्षण हैं। इनमें कुछ घाटों का धार्मिक व अध्यात्मिक महत्व है; कुछ अपनी प्राचीनता तो कुछ ऐतिहासिकता व कुछ कला के लिहाज से खासियत रखते हैं।

अस्सीघाट: नगर के दक्षिणी छोर पर गंगा व असि नदी के संगम पर स्थित श्रद्धालुओं की आस्था व आकर्षण का प्रमुख केन्द्र है। यहीं भगवान जगन्नाथ का प्रसिद्ध मंदिर है।

तुलसी घाट: यहां गोस्वामी तुलसी दास ने श्रीरामचरित मानस के कई अंशों की रचना की थी। पहले इसका नाम लोलार्क घाट था।

हरिश्चंद्र घाट: सत्य प्रिय राजा हरिश्चंद्र के नाम पर यह घाट वाराणसी के प्राचीनतम घाटों में एक है। इस घाट पर हिन्दू मरणोपरांत दाहसंस्कार करते हैं।

केदार घाट: इस घाट का नाम केदारेश्वर महादेव मंदिर के नाम पर पडा है। यहां समीप में ही स्वामी करपात्री आश्रम व गौरी कुंड स्थित है।

दशाश्वमेध घाट: यह घाट गोदौलिया से गंगा जाने वाले मार्ग के अंतिम छोर पर पड़ता है। प्राचीन ग्रंथो के मुताबिक राजा दिवोदास द्वारा यहां दस अश्वमेध यज्ञ कराने के कारण इसका नाम दशाश्वमेध घाट पड़ा। एक अन्य मत के अनुसार नागवंशीय राजा वीरसेन ने चक्रवर्ती बनने की आकांक्षा में इस स्थान पर दस बार अश्वमेध कराया था। इसी घाट के बगल मे राजेन्द्र प्रसाद घाट है जो देश के प्रथम राष्ट्रपति डा.राजेन्द्र प्रसाद की स्मृति में बनाया गया है।

मणिकर्णिका घाट: पौराणिक मान्यताओं से जुड़े इस घाट का धर्मप्राण जनता में मरणोपरांत अंतिम संस्कार के लिहाज से अत्यधिक महत्व है। इस घाट की गणना काशी के पंचतीर्थो में की जाती है।

पंचगंगा घाट: पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यहां गंगा, यमुना, सरस्वती, किरण व धूतपापा नदियां गुप्त रूप से मिलती हैं। इसी घाट की सीढि़यों पर गुरू रामानंद से संत कबीर ने दीक्षा ली थी।

राजघाट: यह घाट काशी रेलवे स्टेशन से सटे मालवीय सेतु(डफरिन पुल) के पा‌र्श्व में है। यहां संत रविदास का भव्य मंदिर भी है।

आदिकेशव घाट: यह घाट वरूणा व गंगा के संगम पर स्थित है। यहां संगमेश्वर व ब्रह्मेश्वर मंदिर दर्शनीय हैं। इसके अलावा गायघाट, लालघाट, सिंधिया घाट आदि काशी के सौंदर्य को उद्भाषित करते है। नौकायन द्वारा काशी के घाटों का नजारा बरबस ही आकर्षित करता है।

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