प्रकृति की गोद में परंपरा की दौड़

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1. रामदेवरा मेला, रामदेवरा गांव, पोखरण, जैसलमेर: बाबा रामदेव एक तंवर राजपूत थे जिन्होंने सन 1458 में समाधि ली थी। उनकी समाधि पर लगने वाले इस मेले में हिंदुओं व मुसलमानों की समान आस्था है। 1931 में बीकानेर के महाराजा गंगा सिंह ने समाधि पर मंदिर बनवा दिया था। कहा जाता है कि रामदेव की चमत्कारिक शक्तियों की चर्चा दूर-दूर तक थी। उन चर्चाओं को सुनकर मक्का से पांच पीर उन्हें परखने पहुंचे और उनसे अभिभूत होकर लौटे। उसके बाद मुसलमान उन्हें राम शाह पीर कहकर उनका मान करने लगे। मेले में आने वाले श्रद्धालु समाधि पर चावल, नारियल और चूरमे का चढ़ावा चढ़ाते हैं और लकड़ी के घोड़े समर्पित करते हैं। हर मजहब से जुड़े लोग मेले में आते हैं और पूरी रात-रात भर भजन व गीत के कार्यक्रम चलते हैं।

2. अरणामुला बोट रेस, अरणामुला, चेंग्गानूर, केरल: अरणामुला वल्लमकली (नौका दौड़) केरल की पारंपरिक नौका दौड़ों की शानदार श्रृंखला की एक कड़ी। पंपा नदी में सांप नौकाओं की यह दौड़ रोमांचित कर देने वाली होती है। यह दौड़ अरणामुला पार्थसार्थी मंदिर से जुड़ी है। पुराने समय में इस मंदिर में ओणम के चढ़ावे की सामग्री सर्प नौकाओं से आया करती थी। उसी परंपरा को याद करने के लिए यह दौड़ होती है। अरणामुला चेंग्गानूर स्टेशन से महज 10 किलोमीटर दूर है। अरणामुला बोट रेस से दो दिन पहले अल्लपुझा के पय्यपड़ गांव में पय्यपड़ बोट रेस होती है। मुख्य रेस से दो दिन पहले से ही इसके आयोजन शुरू हो जाते हैं। रेस के साथ-साथ लोककलाओं के भी कई आयोजन इस मौके पर होते हैं। केरल की नौका दौड़ें इस त्योहारी सीजन का चरम आकर्षण होती हैं, एक न भूलने वाला अनुभव।

3. नाइट ऑफ थाउजैंड फायर्स, ओबरवेजेल, जर्मनी: राइन इन फ्लेम्स के पूरे आयोजन का चरम। राइन खड्ड में ओबरवेजेल के आसपास शानदार आतिशबाजी, सेंट गोर से गुजरते जहाजों से गूंजता अद्भुत संगीत, चारों तरफ रोशनी का नजारा। फिर सेंट गोर व सेंट गोरशाउसेन शहरों में बेमिसाल जश्न। इसे पूरे आयोजन की सबसे रोमांटिक रात कहा जाता है। राइन नदी पर जगमगाती रोशनी के बीच स्थानीय वाइन का सुरूर। जर्मनी के देशज रूप को महसूस करने का सबसे शानदार मौका।

4. लंदन टैटू कनवेंशन, टौबेको डॉक, लंदन: टैटू गुदवाने का शौक आजकल खास व आम, दोनों तरह के लोगों में बड़ा आम है। लेकिन टैटू गुदवाने के शौक से ज्यादा अहम है उसे गोदने की कला। इसी लोकप्रिय कला का जश्न मनाने के लिए टौबेको डॉक पर तीन दिन का कनवेंशन होता है जिसमें दुनियाभर के डेढ़ सौ से ज्यादा जाने-माने टैटू कलाकार हिस्सा लेते हैं। इसके अलावा नामी-गिरामी डीजे व संगीतकार भी यहां जमा होते हैं। आप चाहें तो किसी आर्टिस्ट से टैटू बनवा सकते हैं या फिर बस आराम से बैठकर माहौल का मजा ले सकते हैं। कलाकारों के लिए अलग-अलग वर्गो में टैटू प्रतियोगिताएं भी होती हैं जैसे सर्वश्रेष्ठ ग्रे, सर्वश्रेष्ठ छोटा टैटू, सर्वश्रेष्ठ बड़ा टैटू, वगैरह-वगैरह। इस आयोजन का यह चौथा साल है और पिछले साल बीस हजार दर्शकों ने इसमें अपनी उपस्थिति दर्ज कराई थी। संगीत की लहरें इस पूरे माहौल को और भी रंगीन बनाती हैं। टैटू पसंद करते हों तो न छोड़ने वाला आयोजन।

5.बंदर भगवान का जन्मदिन, हांगकांग व सिंगापुर: बंदर देवता के नाम पर हमारे हनुमान जी के सिवाय भी दुनिया में कोई और है, यह सुनकर अचरज होगा। लेकिन हकीकत यही है कि सिंगापुर और हांगकांग में हर साल बौद्ध परंपरा के चीनी समुदाय द्वारा बंदर देवता का जन्मदिन मनाया जाता है। यह हनुमान नहीं हैं लेकिन बहुत मुमकिन है कि वह उनसे प्रेरित रहा हो। यह इसलिए भी लगता है क्योंकि यह उस बंदर के लिए मनाया जाता है जिसने सैकड़ों साल पहले तंग वंश के एक राजा द्वारा भारत से बुद्ध के ग्रंथ लाने के लिए भेजे गए एक यात्री की मदद की थी। इसका पहला उल्लेख मिंग वंश (1368-1644 ई.) के दौरान लिखे गए एक ग्रंथ से मिलता है। इस मौके पर शानदार रंगारंग झांकियां निकाली जाती है। दोनों ही जगहों पर यह भगवान काफी लोकप्रिय हैं।

6. डाइविंग बुद्धा फेस्टिवल, फेच्चाबुन, थाईलैंड: मध्य थाईलैंड में यह प्राचीन बौद्ध उत्सव बड़ी रंगारंग झांकियों, सांस्कृतिक कार्यक्रमों और बुद्ध की मूर्ति को गोता खिलाने की बड़ी अजीबोगरीब रस्म के साथ मनाया जाता है। बुद्ध की मूर्ति के साथ विशाल जुलूस निकाला जाता है, प्रांत का गवर्नर फिर मूर्ति को सिर पर उठाकर पकड़े नदी में गोता लगाता है। वह चार दिशाओं में चार बात गोता लगाता है क्योंकि मान्यताओं के अनुसार इससे समूचे इलाके में संपन्नता व खुशहाली फैलती है। मूर्ति को गोता खिलाने के बाद खान-पान के साथ-साथ संगीत व नृत्य का आयोजन होता है। इस आयोजन के मूल में भी एक रोचक कहानी है जो बुद्ध की मूर्ति के मिलने, खोने और फिर मिलने से जुड़ी है।

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