हिम्मत का इम्तिहान लेती दो तीर्थयात्राएं

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कैलाश-मानसरोवर यात्रा
शिव के निवास कहने जाने वाले कैलाश पर्वत की यात्रा न केवल तीर्थयात्रियों के लिए बल्कि ट्रैकिंग के शौकीनों के लिए भी एक चरम उपलब्धि मानी जाती है। कैलाश का सफर बस व पैदल ट्रैक का मिला-जुला रास्ता है। सफर बेहद मुश्किल है। नाभीढांग से लिपुलेख दर्रा पार करते हुए 5334 मीटर की ऊंचाई पार करनी होती है। मौसम हर कदम पर कड़ा इम्तिहान लेता है। अमरनाथ की यात्रा इसके आगे कुछ भी नहीं। लेकिन कैलाश-मानसरोवर का चीन की सीमा में होना, इसे भारतीयों के लिए खर्च के लिहाज से मुश्किल बनाता है। मुख्य यात्रा भारत सरकार के तत्वावधान में होती है। लेकिन अब कई निजी टूर ऑपरेटर नेपाल के रास्ते यात्रियों को ले जाने लगे हैं।  सरकारी स्तर पर औपचारिकताएं पूरी करने में लगने वाले समय के चलते इसके लिए काफी पहले आवेदन लिए जाते हैं। जैसे, इस साल की यात्रा के लिए जनवरी में विज्ञापन निकला और मार्च में ही आवेदन लेने का काम पूरा हो चुका था। खर्च के मामले में सरकारी यात्रा पर प्रति व्यक्ति खर्च कम से कम 50 हजार रुपये तक का हो जाता है। सरकारी यात्रा में पैदल ट्रैक काफी होता है लेकिन निजी ऑपरेटर कैलाश पर्वत की परिक्रमा को छोड़ बाकी रास्ता जीप में सफर कराते हैं। लेकिन उस पर खर्चा साठ हजार रुपये से ज्यादा को हो जाता है।थोड़ा और खर्च करें (लगभग एक लाख रुपये) तो जीप के बजाय हेलीकॉप्टर से भी सफर किया जा सकता है।

अमरनाथ यात्रा
अमरनाथ यात्रा  के लिए औपचारिकताएं कैलाश यात्रा जितनी दुष्कर नहीं हैं। यात्रा दो महीने चलती है । पहले यह यात्रा केवल श्रावण के महीने में एक माह के लिए होती थी। लेकिन कुछ सालों से यह यात्रा दो महीने की होने लगी है। बर्फ से बने  प्राकृतिक शिवलिंग के दर्शन के लिए यह यात्रा होती है। शिवलिंग के जल्दी पिघल जाने के पिछले अनुभवों को ध्यान में रखते हुए इस बार उसे दरवाजे के पीछे बंद रखा जाता है ।  हालांकि यात्रा को दो महीने किए जाने का विरोध भी इस दलील के साथ होता रहा है कि इससे श्रावण के महीने में असली यात्रा के समय श्रद्धालुओं की संख्या कम हो जाती है। यात्रा के लिए पहले पंजीकरण कराना होता है। यह पंजीकरण जम्मू पहुंचने के बाद भी कराया जा सकता है और अमरनाथ श्राइन बोर्ड की वेबसाइट पर ऑनलाइन भी।  चूंकि एक दिन यात्रा पर निकलने यात्रियों की संख्या सीमित होती है, इसलिए पंजीकरण अनिवार्य होता है। बर्फीले मौसम, 39 सौ मीटर (लगभग 13 हजार फुट) तक की ऊंचाई पर चढ़ाई और बाकी तकलीफों के कारण यात्रा कष्टसाध्य है। श्राइन बोर्ड और अन्य संस्थाएं रास्ते में भोजन के लंगर, ठहरने के लिए टेंटों व चिकित्सा सुविधाओं का इंतजाम करते हैं। बुजुर्ग व बीमार यात्रियों के लिए घोड़ों व पिट्ठुओं के भी इंतजाम हैं। अब तो बालटाल से हेलीकॉप्टर सेवा भी गुफा तक शुरू हो गई है।

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