श्रीलंका का दिल है कैंडी

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कैंडी  का अहसास बाकी श्रीलंका से अलग है। कोलंबो, गॉल, जाफना या त्रिंकोमाली- ज्यादातर बडे शहर समुद्र के किनारे हैं और इसलिए समुद्री उमस और लहरें आपका पीछा नहीं छोडतीं। कैंडी इस द्वीप देश का हिल स्टेशन सरीखा है, इसलिए यहां की आबोहवा बिलकुल अलग है। उसमें एक दिलकश रोमानियत है। कैंडी का सिंहली नाम महा नुवारा है, यानी महान शहर। कैंडी दरअसल उसके तमिल नाम का अंग्रेजी अपभ्रंश है। वैसे श्रीलंका का असली हिल स्टेशन तो नुवारा एलिया है जो छह हजार फुट से ज्यादा ऊंचाई पर स्थित है। कैंडी से यह नजदीक ही है। अक्सर कैंडी घूमने जाने वाले सैलानी नुवारा एलिया भी साथ ही घूम लेते हैं।

कभी राजधानी थी कैंडी

कैंडी ऊंचाई पर स्थित है, इसलिए सामरिक रूप से दो तरफ की घाटियों पर निगरानी कर सकता है। इसीलिए यह पहले राजाओं और बाद में पुर्तगाली, डच व ब्रिटिश औपनिवेशिक शासकों के लिए सत्ता के महत्वपूर्ण केंद्र के रूप में रहा। लिहाजा जैसे अंग्रेजों ने भारत में अपने शासन में रानीखेत, लैंसडाऊन, कसौली जैसे स्थान विकसित किए, वैसा ही विकास श्रीलंका में कैंडी व नुवारा एलिया का भी हुआ। यही वजह है कि दोनों ही शहरों में ज्यादातर पुरानी इमारतों में औपनिवेशिक झलक देखने को मिलती है। श्रीलंका में क्रिकेट भी अंग्रेजों की ही देन है और कैंडी के क्रिकेट स्टेडियम की खूबसूरती को हमने टीवी पर बहुत देखा है। लेकिन कैंडी की खूबसूरती उसके आगे भी बहुत है। कैंडी घाटी में पहाडियों के ऊपर बसा कैंडी लंबे समय तक देश की राजधानी रहा। श्रीलंका पर शासन करने वाली राजशाही यहीं से पूरे द्वीप देश पर नियंत्रण करती रही। कैंडी राजनीतिक सत्ता के अलावा या यूं कहे तो उसकी बदौलत ही देश की धार्मिक आस्था का भी केंद्र रहा। इसलिए कई लोग कैंडी को राजधानी कोलंबो से भी कई मायने में ज्यादा महत्वपूर्ण मानते हैं।

बुद्ध का दांत

श्रीलंका के लिए कैंडी का बहुत बडा धार्मिक महत्व भी है। यहां गौतम बुद्ध का एक दांत रखा है, इसलिए दुनियाभर के बौद्धों के लिए यह बेहद महत्वपूर्ण स्थान है। श्रीलंकाई मिथकों के अनुसार बुद्ध के देहत्याग के बाद जब उनका अंतिम संस्कार कुशीनगर (आज के उत्तर प्रदेश में) में हुआ तो अरहत खेमा ने उनकी चिता से उनका एक दांत निकाल कर राजा ब्रह्मादत्त को दे दिया था। उसके बाद वह दांत पहले कई साल भारत में रहा। उसके मूल में यह बात रही कि जिसके पास गौतम बुद्ध का प्रतीकस्वरूप वह दांत होता था, उसके पास देश पर शासन करने का अधिकार होता था। उस दौर में दांत के लिए कई लडाइयां लडी गईं। इन्हीं के परिणामस्वरूप वह दांत बचता-बचाता, छिपता-छिपाता श्रीलंका में पहुंच गया। यह सन 301 से 328 के बीच की बात है।

हालांकि श्रीलंका में भी उसने कई स्थान देखे- अनुराधापुर, पोलोनारुवा, दम्बादेनिया, यापाहुवा, कुरुनेगाला, रत्नपुर आदि। वहां से वह कैंडी पहुंचा, जहां उसके लिए भव्य मंदिर राजमहल परिसर में बनाया गया। सन 1603 में पुर्तगालियों के आक्रमण के समय इसे दुबारा ले जाया गया, लेकिन बाद में फिर यह कैंडी पहुंच गया। तब से ये यहीं है। हर साल जुलाई-अगस्त में अब यह दांत कैंडी पेराहेरा नाम से होने वाले शानदार जलसे में कैंडी में घूमता है। यह जलसा सजे-धजे हाथियों की परेड के लिए भी दुनिया भर में बहुत प्रसिद्ध है। मजेदार बात यह है कि अब किसी को वह दांत देखने को नहींमिलता क्योंकि दांत एक सुंदर से नक्काशीदार सांचे में रखा हुआ है। सभी को उसी के दर्शन होते हैं। श्रीलंका के दो प्रमुख बौद्ध मतों के मठ भी कैंडी में हैं। सिंहलियों के पारंपरिक संगीत व नृत्य की परंपरा भी कैंडी में सुरक्षित है। यही वजह है कि 1998 में यूनेस्को ने कैंडी को विश्व विरासत की सूची में शामिल किया।

बुद्ध के दांत का यह मंदिर आज श्रीलंका में देशी-विदेशी सैलानियों द्वारा देखे जाने वाले स्थानों की सूची में सबसे ऊपर है, यानी श्रीलंका का सबसे पहला टूरिस्ट स्पॉट है यह। पारंपरिक रूप से बुद्ध के दांत का मंदिर राजा के महल के परिसर में ही होता था। इस समय मंदिर के साथ मौजूद महल का हिस्सा पुरातत्व संग्रहालय बना हुआ है। झील के सामने पहाडी पर बना रानी का महल आजकल राष्ट्रीय संग्रहालय है। झील के दक्षिणी छोर पर 18वीं सदी में बना खूबसूरत मलवत्ते विहार है और 17वीं सदी का असगिरिया विहार निकट ही पहाडी पर है जिसमें कई पुरानी पांडुलिपियां सुरक्षित रखी हैं।

बोगम्बारा झील

कैंडी की खूबसूरती शहर के बीच में बनी एक झील से भी है। हालांकि यह बोगम्बारा झील प्राकृतिक नहीं। इसे कैंडी के आखिरी राजा ने 19वीं सदी के शुरुआती सालों में बनवाया था। झील का एक छोर बुद्ध के दांत के मंदिर, जिसे स्थानीय भाषा में दालादा मालिगावा कहते हैं, के साथ लगता हुआ है। इससे मंदिर की रौनक और बढ गई है। झील के बीच में एक छोटा सा महल है जो संभवतया राजा ने गरमियों में सुकून के कुछ पल बिताने के लिए बनाया होगा। झील के चारों तरफ पैदल टहलने का रास्ता बना है। पेडों के साये में झील के किनारे टहलने का अहसास कुछ-कुछ हमारे नैनीताल की नैनी झील सरीखा है, हालांकि कई पेड आपको उलटे लटके चमगादडों से भरे मिलेंगे लेकिन वे आपको डराते नहीं। इसी झील के किनारे कैंडी के कुछ सबसे शानदार होटल हैं, जिनमें से कई डच व ब्रिटिश काल के हैं। इनमें से कई ने उस दौर की यादों को बखूबी सहेजा हुआ है, जिन्हें देखने सैलानी पहुंचते हैं। मुख्य बाजार भी साथ ही है।

शहर में जंगल और मंगल

कैंडी पहुंचना भी अपने आपमें बहुत मनोहारी है। यूं तो कैंडी को अंग्रेजों ने अपने समय में ही रेल लाइन से जोड दिया था, लेकिन कोलंबो से सडक के रास्ते कैंडी जाने की बात ही कुछ और है। स्पाइस गार्डन, पिन्नावाला हाथी शरणगाह से होकर महावेली नदी के साथ-साथ आप कैंडी पहुंचते हैं। कैंडी से अगर नुवारा एलिया जाएं तो कैंडी यूनिवर्सिटी के खूबसूरत कैंपस से होते हुए आप चाय बागानों की दुनिया में प्रवेश कर जाते हैं। श्रीलंका जिस चाय के लिए दुनियाभर में मशहूर है, उसके तमाम बागान नुवारा एलिया के रास्ते में हैं। आप ताजी चाय की चुस्कियों के साथ रास्ता तय कर सकते हैं। बात लंका की हो तो रामायण का जिक्र आना स्वाभाविक है। रामायण से जुडी कई घटनाओं के स्थान श्रीलंका में चिन्हित किए गए हैं।

कैंडी से नुवारा एलिया के रास्ते में हनुमान का एक प्रसिद्ध मंदिर पडता है। वहीं नुवारा एलिया में सीता मंदिर है। कहा जाता है कि यह सीता मंदिर उसी जगह है, जहां अशोक वाटिका हुआ करती थी। मंदिर के निकट चट्टानों में हनुमान के पांवों के निशान तक खोज डाले गए हैं। कैंडी की एक और खासियत वहां की हरियाली है। पेरादेनिया गार्र्डस में दूसरे विश्व युद्ध के दौरान माउंटबेटन का मुख्यालय हुआ करता था। यह श्रीलंका का सबसे बडा बोटोनिकल गार्डन तो है ही, भारत में भी इतनी विविधता वाला बोटोनिकल गार्डन बमुश्किल ही देखने को मिलेगा। नाना प्रकार के पेड, पौधे, लताएं, औषधियां, फूल, बोंसाई- कई दुर्लभ तो कई अत्यंत हैरतअंगेज। मैंने यहां कई ऐऐसे पेड देखें जिनके बारे में कल्पना तक रोमांचित करती थी। एक जमाने में यह शाही उद्यान हुआ करता था। महावेली नदी के किनारे स्थित 147 एकड में फैले इस बोटोनिकल गार्डन में ऑर्किड की तीन सौ से ज्यादा किस्में हैं।

इसी तरह यह ताड के आसमान छूते पेडों के लिए भी प्रसिद्ध है। हर साल 12 लाख से ज्यादा लोग इसे देखने आते हैं। इस बाग का मूल तो 14वींसदी से ही है, लेकिन दो सौ साल पहले अंग्रेजों के समय में इसे इसकी विविधता मिली। लेकिन यहां की आबोहवा इस तरह की प्रकृति के पनपने के लिए ज्यादा जिम्मेदार है। कैंडी शहर के बीच में एक अन्य जंगल मंदिर के उत्तर में है जिसे उदावत्ता केले (जंगल) कहा जाता है। यहां भी कई दुर्लभ वृक्ष देखने को मिल जाते हैं। कैंडी में कई देवालय व विहार देखने लायक हैं, जिनमें एक विष्णु मंदिर भी है।

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