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आमतौर पर जब हिल स्टेशनों का जिक्र होता है तो मसूरी, शिमला नैनीताल, ऊटी, कोडाईकनाल, माउंट आबू, श्रीनगर, पहलगाम, डलहौजी के नामों के बीच शिलांग का नाम कम ही आता है। कारण इसका सुदूर उत्तरपूर्व में स्थित होना है जहां शेष भारत से बहुत ही कम पर्यटक पहुंच पाते हैं। इसकी स्काटलैंड जैसी बसावट व वातावरण के चलते इसे स्काटलैंड ऑफ ईस्ट भी कहा जाता है।
गुवाहाटी सिक्किम को छोड अन्य सभी उत्तर पूर्वी राज्यों त्रिपुरा, मिजोरम अरुणाचल, प्रदेश, मणिपुर, मेघालय नगालैंड का प्रवेश द्वार है। लेकिन यहां से मेघालय की राजधानी शिलांग जितनी करीब है अन्य राज्यों की नहीं। शिलांग कभी वृहत्तर असम की राजधानी था, फिर मेघालय के केंद्र शासित पन्देश बनने व 1972 के बाद से नए मेघालय राज्य की स्वाभाविक राजधानी बन गया।
गुवाहाटी रेलवे स्टेशन के एक ओर स्थित पल्टन बाजार ही वह स्थान है जहां से शिलंाग का सफर आरंभ होता है। यहां से दस किलोमीटर दूर जोरहाट राजमार्ग संख्या 37 जहां पूर्वी व दक्षिण पूर्व असम और आगे अरुणाचल पन्देश, नगालैंड के लिए चला गया है तो यहीं से राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 40 शिलांग होते हुए असम के कछार क्षेत्र से मणिपुर, मिजोरम व त्रिपुरा के लिए निकलता है। गुवाहाटी से शिलांग तक की मात्र सौ किलोमीटर की दूरी तय करने पर इतना कुछ बदल जाता है कि यकीन नहीं आता। गुवाहाटी में आप जहां अपने को पहाडियों से घिरा पाते हैं तो शिलांग में पहाडियों के बीच। पहनावे, कुदरत के नजारे, जलवायु, इमारतों की शली, खानपान और भाषा सब बदल जाते है जो सब एक नएपन का अहसास दिलाते हैं।
उत्तर पूर्व की कठिन भौगोलिक परिस्थितियों के कारण इस क्षेत्र में रेल का कम विस्तार होने से परिवहन तंत्र सडक पर ही निर्भर है। मेघालय भी इसका अपवाद नहीं है इसलिए यहां का हर राजमार्ग वाहनों के दबाव से जूझता लगता है। शिलांग से गुजरने वाले दो लेन के राजमार्ग की स्थिति आज यह है कि कहीं बीच में कोई वाहन खराब या दुर्घटनाग्रस्त हुआ नहीं कि कई किमी लंबी कतार लग जाती हैं और घंटों तब जाम में फंसा रहना पड सकता है। यदि जाम न लगे तो सामान्य तौर पर बस या टैक्सी से शिलांग का सफर साढे तीन से चार घंटे में पूरा हो जाता है। हालांकि इसे चार लेन में परिवर्तित किया जा रहा है।
जोरहाट से थोडा चलकर मेघालय की सीमा आरंभ हो जाती है और पहाडी मार्ग आरंभ हो जाता है। पहले बर्नीहाट और फिर बाद नोंगपो पडता है जो कि इस मार्ग का मध्य बिन्दु है। टेढे-मेढे पहाडी रास्तों के बाद लगभग ढाई से तीन घंटे की दूरी पर बरापानी आता है जहां से एक रास्ता स्थानीय हवाई अड्डे उमराई की ओर चला गया। यहां से 30 मिनट बाद आप शिलांग के केंद्र पुलिस बाजार में होते हैं।
मेघालय एक पहाडी राज्य है जिसके तीन ओर असम की सीमा व दक्षिण व दक्षिण पश्चिम में बांग्लादेश है। यह तीन अलग-अलग क्षेत्रों गारो, खासी, जन्तिया पहाडियों से मिल कर बना है। राज्य के दक्षिण पूर्व का वह भाग जो असम के कछार क्षेत्र से लगा है जन्तिया हिल्स कहलाता है। मध्य भाग खासी हिल्स व पश्चिमी क्षेत्र गारो हिल्स कहलाता है। एक राज्य होने के बावजूद इन क्षेत्रों की लोकपरंपराएं, भाषा व मान्यताएं भी भिन्न हैं। राज्य की 85 प्रतिशत आबादी जनजातीय है जिनमें से 70 फीसदी ईसाई धर्मावलंबी है किन्तु बावजूद इसके इनके समाजों की अपनी मूल परंपराएं भी बरकरार हैं।
इस क्षेत्र अधिपत्य करने के बाद अंग्रेजों ने चेरापूंजी को जिला मुख्यालय बनाया किंतु अत्यधिक वर्षा होने के कारण वे इसे 55 किमी. दूर शिलांग ले आए जो उनके स्काटलैंड जैसी बनावट लिए था। बाद में शिलांग को वृहत्तर असम की राजधानी बना दिया गया। आजाद भारत में असम में यह एक स्वायत्त क्षेत्र बना दिया गया। किन्तु लगातार मांग के बाद 1972 में जब मेघालय अलग राज्य बना तो शिलांग उसकी स्वाभाविक राजधानी बन गया। शिलांग खासी पहाडियों का दिल है। समुद्र तल से लगभग 1200 से 1900 मीटर के मध्य बसा शिलांग उनके लिए एक आदर्श स्थान है जो कुछ दिन सुकून के साथ बिताना चाहते हैं। स्वच्छ वातावरण, मनोरम नजारे, ठंडी जलवायु और शान्त माहौल आस-पास अनेक दर्शनीय स्थलों की उपलब्धता। जहां अन्य हिल स्टेशनों में वाहन योग्य मार्गाें का अभाव है वहीं इस नगर में हर ओर जाने के लिए अच्छी सडकें हैं। इसलिए इसका चारों ओर विस्तार हुआ है। राज्य की राजधानी होने के कारण यहां पर हर आधुनिक सुविधा उपलब्ध है।
हर हिल स्टेशन की पहचान उसके चुनिंदा पर्यटन आकर्षणों से होती हैं। शिंलाग में भी कुछ पार्क है, तो संगन्हालय, व्यू प्वाइन्ट, उपासना स्थल, हस्तशिल्प केन्दन्, बाजार, झरने, झील आदि भी है जबकि आसपास के स्थलों में दक्षिण चेरापूंजी सबसे पन्मुख है जिसकी सैर के बाद ही शिलांग की यात्रा पूर्ण समझी जाती है। लगभग ढाई लाख की आबादी वाले शिलांग शहर को एक नजर में देखना हो तो शिलांग पीक से बेहतर कोई विकल्प नहीं। यह नगर के सिटी सेंटर यानि पुलिस बाजार से 10 किमी की दूरी पर है। समुदन् तल से इसकी ऊँचाई 1900 मीटर है। नगर की अपेक्षा यहां पर ठंडक का अहसास होता है। यदि मौसम साफ हो तो दूर भूटान व अरुणाचल की बर्फीली चोटियां देखी जा सकती हैं। शिलांग नगर में दो अच्छे पिकनिक स्थल लेडी हेडारी पार्क व वार्ड्स लेक हैं जिनमें जिनमें दो बेहद छोटी झीलें है। लेडी हेडारी पार्क के तहत एक मिनी जू है। दूसरी झील वार्ड्स लेक है जो राजभवन के निकट है। नगर के एक छोर पर गोल्फ मैदान है जो एक पनकृतिक मैदान है। चारों ओर फैली हरियाली इसे चार चांद लगाती है। यहां दो संगन्हालय है इनमें से एक तितलियों का संगन्हालय है तो दूसरा राज्य संगन्हालय। राज्य संगन्हालय में यहां के जनजातीय समाज की झलक देखी जा सकती है। उनके परिधान, अस्त्र-शस्त्र, बर्तन, संगीत उपकरण, कला व हस्तशिल्प को लेकर वीथिकाएं बनी हैं। नगर के आस-पास बिशप, ऐलीफेंट, व बीडन फाल्स हैं किन्तु इनमें ऐलीफेंट फाल सबसे आकर्षक है जहां पानी तीन स्तरों से नीचे गिरकर बेहद आकर्षक लगता है। नगर का कैथोलिक चर्च कैथेड्रल आफ मैरी भी दर्शनीय स्थान है। पुलिस बाजार नगर का दिल है। सुबह से शाम तक यहां पर रौनक बनी रहती है। समीप में अन्तर्राज्यीय बस अड्डा है व टैक्सी स्टैंड है। सायंकाल में बिजली की रोशनी में पुलिस बाजार बेहद आकर्षक लगता है।
शिंलाग का एक और आकर्षण विशाल बरापानी झील है जिसका स्थानीय नाम उमियाम है। लगभग 10 वर्ग किमी क्षेत्रफल में फैली यह कृत्रिम झील दक्षिण खासी की पहाडियों से आने वाली उमियाम नदी के पानी को रोक कर बनी है जिसके एक छोर पर बिजलीघर है जो शिलंाग को बिजली की आपूर्ति करता है। यह झील गुवाहाटी से आते समय मुख्य मार्ग पर शिलांग से 16 किमी पहले है। यहां पर एक पार्क में बडी संख्या में पर्यटकों का जमावडा लगा रहता है। इस झील की सैर का अपना अलग ही रोमंाच है। इसमें जाने के लिए मोटर नौकाएं चलती हैं। जलक्रीडा के अनेक साधन यहां पर मौजूद हैं। झील के किनारे कुछ रिजॉर्ट भी बने हैं। चारों ओर पसरी हरियाली किसी को भी अभिभूत कर देती है।
भारत के किसी भी हिस्से से यहां आने के लिये सबसे पहले गुवाहाटी आना होता हैं जो देश के हर भाग से सीधी रेल व विमान सेवा से जुडा है। जहां से ज्यादातर लोग सडक मार्ग से ही शिलांग जाते हैं। गुवाहाटी से हेलीकाप्टर सेवा भी चलती है। वैसे उमरोइ में हवाई अड्डा है किन्तु ज्यादातर लोग गुवाहाटी तक विमान से व वहां से सडक मार्ग से ही शिलंाग आते हैं। नगर में रहने के लिए अनेक होटल हैं किन्तु यदि पहले से बुकिंग कर आए तो सुविधा होती है। यहां बनने वाला हस्तशिल्प आपको हर दर्शनीय स्थल में मिल जाएगा तो नगर के बाजार में भी इसे खरीद सकते हैं। शिलंाग आने के लिये सबसे उपयुक्त समय अक्टूबर से मई है किन्तु वर्षाकाल के दौरान भी बडी संख्या में पर्यटक यहां से चेरापूंजी जाते हैं। इस समय यहां के पन्सिद्ध पन्पातों व झरनों की रौनक देखने योग्य होती है। शिंलाग में भाषा खासी व अंगन्ेजी है। हिंदी लिखना तो नहीं किन्तु सभी लोग हिन्दी बोलना जरूर जानते हैं। हालांकि स्थानों के नाम खासी भाषा में होने से उनको याद रखना बेहद कठिन होता हैं।
उत्तर पूर्वी राज्यों के पन्ति शेष भारत के लोगों में यह भनन्ति है कि यह बेहद अशान्त इलाका है और यहां बहुत खतरा है। लेकिन यहां पर बंगाल व उत्तर पूर्वी राज्यों के पर्यटकों की बडी संख्या इस मिथक को तोडती लगती है। अब तो देश के बाकी इलाकों से भी लोग यहां आने लगे हैं क्योंकि ज्यादा घूमने वालों को पारंपरिक हिल स्टेशन ऊबाऊ लगने लगे हैं।
सात बहनों के कई रूप
पूर्वोत्तर के सात राज्यों को सेवन सिस्टर्स (सात बहनें) कहा जाता है। इन सातों राज्यों में कई पर्यटन स्थल हैं जहां अभी देश के बाकी हिस्सों, खास तौर पर उत्तर भारत से काफी कम संख्या में सैलानी जाते हैं। असम में काजीरंगा व मानस नेशनल पार्को के अलावा ब्रह्मपुत्र नदी में माजुली द्वीप और मैनचेस्टर ऑफ ईस्ट कहे जाने वाला सुवालकाची गांव है जिसे दुनिया का सबसे बडा बुनकर गांव माना जाता है। अरुणाचल प्रदेश तो देश के सबसे खूबसूरत राज्यों में माना जाता है। तवांग जिला समुद्र तल से दस हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित है। प्राकृतिक सुंदरता के अलावा अपनी बौद्ध मठ के लिए दुनियाभर में प्रसिद्ध है।
नगालैंड मुख्य रूप से जनजातीय बहुल है लेकिन अपनी संस्कृति के लिए जाना जाता है। कई बडी नदियां, तीन-चार हजार मीटर की ऊंचाई वाली चोटियां इसे रोमांचक पर्यटन के शौकीनों के लिए आकर्षक बनाती हैं। मिजोरम को नीले पहाडों की धरती और पूर्वोत्तर का गीतपंछी (सोंगबर्ड ऑफ द नॉर्थईस्ट) भी कहा जाता है। खुली धरती और धान के खेतों की चित्रकारी। त्रिपुरा को राजधानी अगरतला के नीर महल के अलावा त्रिपुरारी देवी व भुवनेश्वरी देवी के मंदिरों, बौद्ध मठों, रॉक कार्विग, महलों व झीलों के लिए जाना जाता है। वहीं मणिपुर अपनी शास्त्रीय नृत्य कला के अलावा प्राकृतिक खूबसूरती के लिए घूमा जा सकता है। यहां झीलें हैं, झरने हैं, कांगला फोर्ट हैं, गोविंददेवी जी मंदिर है। सिंगदा में देश का सबसे ऊंचा मिट्टी का बांध है। मेघालय की गारो, खासी व जयंतिया पहाडियां अपनी गुफाओं के लिए दुनियाभर में प्रसिद्ध हैं। भारत का सबसे समृद्ध गुफा तंत्र इन पहाडियों में विद्यमान है। इनमें से एक तो 22 किलोमीटर लंबी है जो उपमहाद्वीप में सबसे लंबी है। दरअसल यहां चार किलोमीटर से ज्यादा लंबी कई गुफाएं हैं। बाकी अपने जमीन छूते बादलों और झरनों के लिए तो मेघालय को जाना ही जाता है।