बादलों का देश चेरापूंजी

  • SocialTwist Tell-a-Friend

हम उस रास्ते पर दौड रहे थे जिसकी कल्पना से भी रोमांच हो जाता था। छोटी बच्ची थी तब किताबों में पढा था सबसे अधिक वर्षा वाला स्थान। वर्ष में अस्सी इंच बारिश? मैं तो अपने जन्म स्थान हरदा और इंदौर की वर्षा से हादसे में आ जाती थी। पांच-छह साल की बच्ची के पैर झट ही घुटनों तक पानी में डूब जाते थे। इंदौर की बारिश दस-दस दिन लगातार चलती थी। घर के चारों ओर नदी का सा नजारा खडा हो जाता। शुरुआती बारिश में तो भीगना, खेलना, दौडना खूब भाता लेकिन बाद में भीगते हुए स्कूल जाना बडा दु:खदाई लगता। स्कूल से आना तो अच्छा लगता, किंतु जाते समय मन ही मन मनौती करती कि खूब तेज हो जाए बारिश और छुट्टी हो जाए स्कूल की। उस समय चेरापूंजी का नाम सुनना बडा सुखद लगता जहां वर्षा थमती ही नहीं।

आज सचमुच चेरापूंजी के नोहकलिकाई झरने को देखते हुए मैं बचपन के उन दिनों में खो जाती हूं जब कल्पना में चेरापूंजी देखा करती थी। उस समय मैने कभी नहीं सोचा था कि मैं कभी चेरापूंजी पहुंच जाऊंगी। नदी भी अच्छी लगती थी, बारिश की फुहारें भी अच्छी लगती थी। अब भी लगती है, किंतु तेज वर्षा से घबराती थी।

जिंदगी की कितनी ही वर्षा ऋतुएं बीतने के बाद आज संयोग बना चेरापूंजी आने का। असल में जब हमने अपने कहानी-लेखन महाविद्यालय का शिविर शिलांग में रखना तय किया तब चेरापूंजी का कार्यक्रम नहीं था। पर्यटन के लिए शिलांग के आसपास का भ्रमण ही था। शिलांग पहुंचकर जब पता चला कि चेरापूंजी यहां से मात्र 56 किमी. है और एक दिन में जाकर आ सकते हैं तब शिविर में आए सारे सदस्य प्रसन्नता से भर चेरापूंजी देखने के लिए अति उत्सुक हो उठे।

शिलांग की ओर

सुबह आठ बजे शिलांग से हमारा दल विकेश, अरुण, विजया, रीतू, विजय, अकेला भाई, शशि, पुष्पा, माया, हरि, प्रसिद्ध लेखक प्रबोध कुमार गोविल, गंभीर पालनी, प्रजापति चरणदास आदि एक सूमो और एक कार में रवाना हुए। प्रसन्नता से सबकी बांछें खिली थीं। जैसे कोई किला फतह करने जा रहे हों। छोटी सी बात पर भी ठहाके लग रहे थे। बिना जरूरत भी एक-दूसरे को छेड रहे थे। न जाने कहां खो गया था उम्र का अंतर। गंभीर सिंह जी की गंभीर मुद्रा से सब थोडा आतंकित होते और फिर ठहाकों में खो जाते। पिकनिक मूड में गंभीरता और गुस्सा- दोनों ही नहीं सुहाता। जी तो करता है ऐसे लोगों को यहीं कहीं रास्ते में छोड जाएं और सचमुच जब विकेश का मनोबल डिगने लगा तो हमने उन्हें राह में छोड दिया रेडियो टावर की बिल्डिंग में। वापसी में उन्हें साथ लेना ही पडा।

शिलांग से चेरापूंजी की चढाई अधिक नहीं है। हल्की चढाई, दोनों ओर पहाड। दो पहाडों के बीच की घाटियों में भरे थे अनानास के पेड और अनजानी वनस्पतियां। अनेक तरह की फर्न, सुंदर पत्तियों वाले इन पौधों को घर ले जाने का मन ललक उठा। पहाड बद्री-केदार के पहाडों जैसे ऊंचे नहीं थे। डरावने भी नहीं। इन्हीं में फूट रहे थे अनेकों झरने। दूर से उनकी पतली धाराएं दिख रही थीं। खूब थे चीड और एरोकेरिया के वृक्ष। देवदार कहीं नहीं था। इस पूर्वी हिमालय में देवदार कहीं नहीं दिखा। यह देवतरू तो बस उत्तर हिमालय की ऊंचाइयों में रहता है। मैं इसे यहां कहां ढूंढ रही थी।

चेरापूंजी की ऊंचाई 1300 मीटर है। यह घाटी कई तरह की वनस्पतियों से समृद्ध है। कई तरह की फर्न, कई स्थानीय फल, चेसनट, अनानास बहुतायत से होते हैं। यहां कुछ विशेष फूल देखने को मिले। नागफन और ढक्कन वाले फूल तो बहुत ही विशेष थे। सर्प की तरह लम्बी जिह्वा बाहर फेंकता यह फूल यहां की वनस्पतियों में विशेष आकर्षण का केंद्र है। दूसरा ढक्कन वाला फूल जिसमें जैसे ही कोई कीट घुसता है वह ऊपर से अपना ढक्कन गिरा देता है। इन फूलों के कपों में कई कीडे बन्द थे।

नोहकलिकाई झरना

चेरापूंजी का सबसे आकर्षक स्थान है नोहकलिकाई झरना। हजारों फीट ऊपर से गिरता यह दूधिया झरना अपने में एक मार्मिक कथा समेटे हुए है। लिकाई नाम की एक स्त्री जब एक दिन अपने काम पर से लौटी तो उसने अपने बच्चे के लिए पति से पूछताछ की। पति ने कहा कि बच्चे को काट कर खाने के लिए पका लिया है। सुनते ही लिकाई सदमे से भर गई और झरने में कूद पडी। तभी से झरने का नाम नोहकलिकाई पडा। खटाखट कैमरे चमक उठे थे और कूदता, गिरता झरना छोटी सी फिल्मों में कैद हो रहा था।

चेरापूंजी तो सुंदर झरनों और विशिष्ट वनस्पतियों से भरा हुआ स्थान है। विश्व में सबसे अधिक बारिश के कारण पहचाना जाने वाला यह स्थान समुद्र तट से 1300 मीटर की ऊंचाई पर है। अधिक वर्षा के कारण ही अनेक झरनों नदियों और वनस्पतियों ने इसे सजाया है। यहां की खासी जाति का मुख्य व्यवसाय इन्हीं जंगलों और नदियों की उपज है। मांस, मछली और वन की उपज नटस, अनानास बांस, अन्य जडी-बूटियां इनकी जीविका हैं। ये लोग सौंदर्य प्रेमी होते हैं। कलात्मक कपडों, शालों अन्य सजावटी वस्तुओं का निर्माण करते हैं, व्यवसाय भी करते। इनके घर सुंदर बने होते हैं और उन्हें ये सजा संवारकर रखते हैं। पक्षी तितली अन्य कीट पतंग इनके सजावटी सामानों में मिल जाते हें। अपनी धरती और रीति-रिवाजों के प्रति ये बहुत आस्थावान हैं। चेरापूंजी के पास ही यहां सबसे पुराना संस्थान रामकृष्ण मिशन चल रहा है। यहां के विद्यार्थी हिन्दी, अंग्रेजी, खासी, बंगला भाषाओं के ज्ञाता हैं। यहां शाल, स्वेटर कलात्मक वस्तुएं, जडी-बूटियों से दवा निर्माण आदि कार्य कुशलता से हो रहे हैं। यहां का पुस्तकालय ज्ञान पिपासुओं के लिए अच्छी खुराक है। पूरा संस्थान अपनी भव्यता, शांति और सफाई के लिए दर्शनीय है।

मौसमाई फाल्स और मौसमाई गुफाएं देखना बहुत ही रोमांचक हैं। प्रकृति की अपनी विशिष्ट रचना है ये गुफाएं। पत्थरों ने गुफा के अंदर कई आकार लिए हैं। कहीं हाथी, घोडा, हिरण तो कहीं किसी फूल पक्षी की आकृति तो कहीं दृष्टि बांध लेती है स्वनिर्मित मूर्तियां। कहीं सहस्त्राफन सर्प बना दिखता है तो कहीं शिवलिंग। गुफा में वैसे घुटनों तक पानी भरा होता है। नवंबर माह में यह सूखी थी, कहीं-कहीं पानी था। पत्थरों की ऊंची-नीची, चिकनी और तीखी, कहीं सकरी और कहीं चौडी आकृतियों पर चलना, चढना हमें किसी और तिलस्मी दुनिया का ज्ञान करा रहा था। यहां सरकार ने अब प्रकाश की अच्छी व्यवस्था कर दी है। यात्री यहां हमारे सिवाय कोई नहीं था।

माउलंग सीम पीक

यह स्थान यात्रियों के लिए रहस्य रोमांच साहस और सौंदर्य से भरा हुआ है। दूर एक हजार मीटर ऊंचाई से गिरता झरना, घने वृक्षों से घिरा जंगल, बादलों के पास बसा बांग्लादेश यहां से दिखाई देता है। यहां सरकार ने सुंदर बाग का निर्माण कर दिया है। यात्रियों के बैठने, घूमने और देखने की सुविधा है। इसी बाग में कई तरह के फूल फर्न और कीट पतंगों से हमारी पहचान होती है। नागफन और कीडा पकड कीट खाऊ फूल हम यहां देखते हैं। कई तरह के आकार और रंगों वाली पत्तियों को हम देर तक निहारते रहते हैं। हमारे मन में उतर आता है बालक सा भोलापन जिज्ञासा। बाग में पडे झूलों पर बैठ हम गीत गा उठते हैं, खिलखिलाते हैं। फिर दौड पडते है जैसे बचपन लौट आया है जैसे।

इस पूर्वी प्रदेश में शाम जल्दी होती है। हम सब लौट पड हैं। रास्ते में दिखते हैं शिलाओं के बडे प्रतीक जो यहां के मूल निवासियों के पूर्वजों की यादगार हैं। एक शिला यहां के मुखिया की है उसके सिर पर ताज रखा है। नश्वर को अमर करने के ये रिवाज सारे विश्व में कई तरह से फैले हैं। गाऊटी, उमगोट, नदियों, मोसमाई, नोहकलिकाई और कई तरह के झरनों से घिरे चेरापूंजी के मुख्य बाजार से हम लौट रहें है। बच्चे हमें हाथ हिलाकर विदा दे रहें हैं। सबसे अधिक बारिश वाले स्थान से हम सूखे लौट आए हैं। नवंबर में यहां सूखा रहता है, बादल घिरते हैं पर धूप भी खिलती है।

VN:F [1.9.1_1087]
Rating: 7.4/10 (20 votes cast)
बादलों का देश चेरापूंजी, 7.4 out of 10 based on 20 ratings



Leave a Reply

    3 Responses to “बादलों का देश चेरापूंजी”

    * Following fields are required

    उत्तर दर्ज करें

     (To type in english, unckeck the checkbox.)

आपके आस-पास

Jagran Yatra