

- Round Trip
- One Way


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कई दिनों से दिल्ली से बाहर जाने की योजना बना रहे थे लेकिन काम की व्यस्तता के चलते यह संभव नहीं हो पा रहा था। बचपन से वाइल्ड लाइफ का शौक था तो सोचा कि क्यों न इस बार जिम कार्बेट जाया जाए। आफिस में बॉस को किसी तरह से छुट्टी के लिए राजी किया और घर आकर जब पत्नी को बॉस को इमोशनल फूल बनाने की खबर दी तो वह खुशी से उछल पडीं। 2006 में लद्दाख में खारदूंगला पास के आगे पेगोंग लेक तक की बाइकिंग के बाद यह दूसरा बाइक टूर था। 27 दिसंबर की तडके हम दिल्ली से जिम कार्बेट के लिए रवाना हुए, लेकिन जिस जोशखरोश से निकले थे कोहरे ने हमारी रफ्तार रफूचक्कर कर दी। हापुड से गजरौला के बीच का सफर वाकई थकाऊ था। ऊपर से कोहरा और सामने खराब सडक। कई बार तो लगा कि अब गिरे। किसी तरह सुबह 8 बजे गजरौला पहुंचे। तब तक पेट में चूहे दौडने लगे थे इसलिए सीधे पहुंच गए वहां के प्रसिद्ध भजन ढाबा पर। वहां हमने छक कर नाश्ते का लुत्फ उठाया और चल पडे आगे के सफर पर।
गजरौला से मुरादाबाद बाईपास तक रोड वाकई बहुत बढिया है सो बाइक सरपट दौडती चली गई। मुरादाबाद बाईपास से रामनगर तक का सफर थोडा कष्टदायक रहा क्योंकि एक तो सिंगल वे और ऊपर से सडक किनारे बसे गांव वालों के ट्रैक्टर, जो बीच सडक पर चलने के आदी हैं, बार-बार हमारी स्पीड को कम कर देते थे। खैर हम 12 बजे रामनगर पहुंच गए। कार्बेट पार्क रामनगर से लगभग 20 किलोमीटर आगे है। हमारा रिजॉर्ट पार्क के नजदीक ढिकुली में था, जिसकी बुकिंग हमने पहले ही करवा दी थी।
उस दिन कुछ खास कार्यक्रम था नहीं तो हम ठंड होने के बावजूद पहले कोसी के किनारे घूमने गए। दो-तीन घंटे वहां बिताने के बाद हम कार्बेट म्यूजियम निकल गए, जो बमुश्किल 2 किमी दूर धांगडी गेट के नजदीक था। वहां से हम नीचे रामनगर घूमने चले गए। लौटते-लौटते देर शाम हो गई। दिल्ली से ठान कर निकला था कि जंगल में छुट्टा घूमता शेर जरूर देखूंगा तो पूरी रात सपने में मुझे शेर दिखाई देते रहे। रात की गहराइयों के बीच अचानक मुझे जबरदस्त दहाड सुनाई दी और उसके बाद तो जो कुत्तों ने भौंकना शुरू किया तो दो घंटे तक थमे नहीं। पहले लगा कि मैं सपना देख रहा हूं, मैंने तुरंत अपनी पत्नी को जगाया और पूछा कि उन्हें कोई दहाड सुनाई दी तो उन्होंने डपटते हुए कहा, आपका दिमाग खराब हो गया है। हालांकि मैंने उन्हें विश्वास दिलाने की भरसक कोशिश की, लेकिन मैं कामयाब नहीं हो पाया।
सुबह होते ही बैरा चाय देने पहुंच गया। मैंने उससे पूछा कि तुम कहां रहते है तो वह बोला सर्वेट क्वाटर्र में। मैंने उससे पूछा रात को तुमने दहाड सुनी, तो वह बोला कि नींद में पता ही नहीं चला होगा, हां उसने यह जरूर कहा कि सुबह उसने चीतल का झुंड देखा था, जो टाइगर के डर से उस तरफ आ गया था। उसने यह भी कहा कि सुबह लंगूर भी चीख कर कॉल दे रहे थे। ऐसे में हो सकता है कि टाइगर रात में आसपास ही होगा। उसकी बात सुनकर मुझे बहुत चैन मिला।
आज टाइगर साइटिंग का दिन था तो हम फटाफट तैयार हो गए। बुकिंग 12 बजे की थी। लिहाजा पहले कालाढुंगी और कार्बेट फॉल घूमने का सुझाव आया। कालाढुंगी तीस किमी. दूर है, जबकि कार्बेट फॉल रास्ते में पडता है। कालाढुंगी में जिम कार्बेट साहब का म्यूजियम है, जहां उनकी निजी जिंदगी से जुडी कुछ अहम चीजें रखी हैं। लौटते-लौटते साढे बारह बज गए।
कालाढुंगी बेहद खूबसूरत जगह है, जिम कार्बेट इसी गांव में आकर बसे थे। यहां से नैनीताल मात्र तीस किमी. दूर है। रिजॉर्ट पहुंचने पर सफारी जिप्सी हमारा इंतजार कर रही थी। बताया गया कि उन्होंने वहां की नंबर एक साइट बिजरानी में साइटिंग की व्यवस्था कराई है। नंबर एक के बारे में पूछने पर बताया कि वहां ग्रासलैंड ज्यादा है और टाइगर इस दौरान ठंड से बचने के लिए उसी तरफ आते हैं। बिजरानी पहुंचते ही हमें एक गाइड दिया गया, जो चार घंटे घुमाने के ढाई सौ रुपये लेता है। हम अंदर जंगल के लिए रवाना हो गए। हमने वहां कई तरह के जानवर और हिरनों की कई प्रजातियां देखीं। अंदर हमने दो टस्कर हाथी देखे, जिनके लंबे-लंबे दांत थे। मैंने जमकर फोटोग्राफी की। इस बीच गाइड ने टाइगर को ट्रैक करना शुरू कर दिया। गाइड ने बताया कि पार्क में तकरीबन 150 के आसपास ही टाइगर हैं, जिनमें से हाल ही में कुछ मर चुके हैं। कई जगह हमें उनके पंजों के निशान भी दिखे, लेकिन टाइगर का दर्शन न मिलने से मैं उदास था।
तीसरे दिन हमें दिल्ली लौटना था। मेरे दिमाग में तो टाइगर का फितूर सवार था। तभी मुझे हल्द्वानी के अपने एक पुराने मित्र की याद आई। मैंने उसे ऐसे ही फोन लगा दिया। मैंने उसे बताया कि मैं कार्बेट आया हुआ हूं। उसने पूछा टाइगर देखा या नहीं। उसके यह शब्द तीर की तरह चुभ गए। मैंने धीरे से कहा, नहीं। तो वह बोला फिकर नॉट, मैं हूं न। बोला, अगर आज रुक जाओ तो कुछ करता हूं। उसने पार्क के अंदर गैरल रेस्ट हाऊस में हमारे एक दिन रुकने का इंतजाम करा दिया।
सीजन में जंगल के अंदर रेस्ट हाउस में रुकने के लिए बहुत मारामारी रहती है। कई दिन पहले बुकिंग करानी होती है। मैं खुश हो गया। अब मुझे पत्नी को मनाना था। मैंने उन्हें दोस्त से हुई बातचीत को विस्तार से बताया और कहा कि फटाफट तैयार हो जाओ, नीचे जाना है कार्बेट आफिस, जंगल के अंदर जाने के लिए कुछ औपचारिकताएं पूरी करनी होंगी। जब मैंने रिजॉर्ट वालों को बताया कि हमारा अंदर रहने का जुगाड हो गया है तो उन्होंने भी आश्चर्य जताया कि इतनी जल्दी व्यवस्था कैसे हो गई। नीचे रामनगर जाकर हमने सारी औपचारिकताएं पूरी कीं, लेकिन अब एक और दिक्कत थी। पार्क में बाइक ले जाने की अनुमति नहीं थी। हमें किसी ने सलाह दी कि आप अंदर के लिए सफारी ले लो। काफी मगजमारी के बाद 900 रुपये प्रति दिन और पेट्रोल के खर्च पर एक जिप्सी वाला तैयार हुआ।
यात्रा के दौरान पता चला कि पार्क के बगल में व्यस्त हाइवे होने से अक्सर जानवर वाहनों से टकरा कर घायल हो जाते हैं या मर जाते हैं। साथ ही रिजॉर्ट वाले वहां अक्सर रात को प्रोगाम आयोजित करते रहते हैं जिसमें जमकर आतिशबाजी होती है और डीजे बजता है, जो जानवरों के लिए खतरनाक साबित होता है।
धांगडी गेट से लगभग 25 किमी. अंदर जाकर पडता है गैरल रेस्ट हाउस। गैरल, धिकाला रेंज में आता है, जो वाइल्ड लाइफ के शौकीनों के बीच काफी पॉपुलर है। बिजरानी के मुकाबले धिकाला रेंज का जंगल काफी घना है। यहां हमारा सबसे पहले सामना हुआ जंगली सुअरों के झुंड से, जो हमें देखते ही जंगल में गुम हो गया। इस रेंज में वन्य जीवों की कई प्रजातियां भी मिलती हैं। कुत्ते की तरह भौंकने वाला बार्किंग डियर, चीतल, सांभर, जंगली बिल्ली तो यहां आसानी से दिखाई दे जाते हैं।
धिकाला पहुंचने के बाद हमें फिर गाइड लेना पडा। पूरा दिन घूमने के बाद हमें फिर टाइगर के दर्शन नहीं हुए। आखिरकार हम गैरल लौट गए। गैरल रामगंगा नदी के किनारे पर बना है और काफी ऊंचाई पर है। जंगल में रात बिताने का असली अनुभव यहां लिया जा सकता है। गर्मियों में यहां काफी सुकून मिलता है और यहां अच्छी बर्ड वाचिंग हो जाती है। जंगली जानवरों से सुरक्षा के लिए पार्क के सभी रेस्ट हाउसों में फैंसिंग रहती है। शाम छह बजे से रात नौ बजे तक ही जनरेटर से बिजली सप्लाई की जाती है। इस दौरान हमें अहसास हुआ कि जनरेटर की गूंज जानवरों को कितनी आहत करती होगी। सुबह कुछ घंटों के लिए सौर ऊर्जा इस्तेमाल की जाती है। अगले दिन तडके ही उठ गए। निकलते ही हमें फिर टाइगर के फुट प्रिंट्स दिखाई दिए। आगे हमें पेडों की टहनियों से दातून करते लंगूर दिखे। इसके बाद तरह-तरह के जानवर देखते हम धिकाला पहुंचे। इस बार हमारा टारगेट था धिकाला का ग्रासलैंड, जहां अक्सर टाइगर धूप सेकने के लिए पहुंच जाते हैं और यहां शिकार भी करते हैं। दो दिन के अनुभव के बाद हम बेहद चौकन्ने थे और इस दौरान सिर्फ फुसफुसा रहे थे ताकि जानवरों को हमारी आहट न हो। आखिरकार हमें पंजों के ताजा निशान दिखे, जो धिकाला के नजदीक ही वॉच टावर की ओर जा रहे थे। हम चुपके-चुपके उन्हें फॉलो करते हुए एक टूटे टॉवर के नजदीक रामगंगा नदी के किनारे पहुंचे। गाइड ने कहा कि टाइगर कहीं आसपास ही है। हमारी बेचैनी और उम्मीदें बढती जा रही थीं। खैर टॉवर पर जब चढे तो खुशी का ठिकाना न रहा। उगते सूरज के रंग का काली बडी धारियों वाला लगभग 12 फुट लंबा एक टाइगर हमारे बिल्कुल सामने था। जनाब घास के मैदान में बैठे आराम फरमा रहे थे। गाइड ने फोटो खींचने से मना कर दिया क्योंकि इससे बाघ चौकस हो जाता। काफी देर उसे निहारने के बाद वह अचानक कहीं गायब हो गया। मुझे भरोसा हो गया कि वह सिर्फ मेरे लिए आया था। लेकिन बेहद नजदीक से देखने की प्यास अभी बाकी थी। गाइड को तुरंत मैने बतौर इनाम 500 रुपये दिए। वह भी इस लालच में कि वह और बाघ दिखाएगा।
टाइगर का इलाका
इस दौरान गाइड ने हमें बताया कि हर टाइगर का अपना इलाका होता है और टाइगर जानबूझ कर पेडों पर अपने पंजों के निशान मारता है ताकि दूसरे टाइगर को उसके क्षेत्र में घुसने से पहले उसकी ताकत का अंदाजा हो सके। हम गैरल की और वापस लौटने लगे। कुछ दूर आगे जाने पर हमें पहाडी पहाडी नाले के नजदीक फिर कॉल का अहसास हुआ। पेडों पर बैठे लंगूर जोर-जोर से चीख रहे थे। हमें अंदाजा हो गया कि टाइगर कहीं आसपास ही है। हमने गाडी रोक दी। लगभग पौन घंटे इंतजार करने के बाद हमें नजदीक ही टाइगर की जबरदस्त दहाड सुनाई दी। दहाड की गूंज इतनी डरावनी थी कि पूरा जंगल हिल उठा, पेड पर बैठा लंगूर भी नीचे आ गिरा। तभी अचानक हमारे बिल्कुल करीब 10-15 गज की दूरी पर झाडियों में से एक टाइगर बाहर निकला, लेकिन वह पिछले टाइगर से लगभग तीन फुट छोटा था। इसकी लंबाई रही होगी तकरीबन नौ फुट, बहुत ही खूबसूरत। मैंने जिंदगी में इतनी नजदीक से पहली बार टाइगर देखा था। शान से वह आगे बढा तो अचानक हमारी गाडी को देख रुक गया। वह हमारी गाडी के सामने था। हमने शरीर को हिलाना बंद कर दिया। जंगल में शांति छा गई। अचानक उसने छलांग लगाई और घने जंगल में गुम हो गया। मेरी कार्बेट यात्रा सफल हो गई। मैं बहुत खुश था, आखिरकार मेरी मनचाही मुराद जो पूरी हो गई थी। अब मैं भी दोस्तों को शान से बता सकता था कि मेरा टाइगर से एनकांउटर हुआ था और वह भी बेहद नजदीक से।