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भारत में किसी पौराणिक स्थल पर आम तौर पर जिस संख्या में पर्यटक आते हैं, पुष्कर में आने वाले पर्यटकों की संख्या उससे कहीं ज्यादा है। इनमें बडी संख्या विदेशी सैलानियों की है, जिन्हें पुष्कर खास तौर पर पसंद है। हर साल कार्तिक महीने में लगने वाले पुष्कर ऊंट मेले ने तो इस जगह को दुनिया भर में अलग ही पहचान दे दी है।
मेले के समय पुष्कर में कई संस्कृतियों का मिलन सा देखने को मिलता है। एक तरफ तो मेला देखने के लिए विदेशी सैलानी पडी संख्या में पहुंचते हैं, तो दूसरी तरफ राजस्थान व आसपास के तमाम इलाकों से आदिवासी और ग्रामीण लोग अपने-अपने पशुओं के साथ मेले में शरीक होने आते हैं। मेला रेत के विशाल मैदान में लगाया जाता है। आम मेलों की ही तरह ढेर सारी कतार की कतार दुकानें, खाने-पीने के स्टाल, सर्कस, झूले और न जाने क्या-क्या। ऊंट मेला और रेगिस्तान की नजदीकी है इसलिए ऊंट तो हर तरफ देखने को मिलते ही हैं। लेकिन कालांतर में इसका स्वरूप एक विशाल पशु मेले का हो गया है, इसलिए लोग ऊंट के अलावा घोडे, हाथी, और बाकी मवेशी भी बेचने के लिए आते हैं। सैलानियों को इनपर सवारी का लुत्फ मिलता है सो अलग। लोक संस्कृति व लोक संगीत का शानदार नजारा देखने को मिलता है।
गंगा महोत्सव, वाराणसी
गंगा एक नदी और एक संस्कृति, दोनों ही रूपों में हमेशा से भारतीय जनमानस की चेतना का केंद्र रही है। इसी गंगा का महोत्सव मनाने के लिए भला वाराणसी के घाट से बेहतर जगह क्या हो सकती है। पांच दिन चलने वाला यह उत्सव भारतीय शास्त्रीय संगीत व नृत्य का अद्भुत आयोजन होता है। हर साल इस महोत्सव का समापन कार्तिक पूर्णिमा पर होता है जब वाराणसी में देव दीपावली मनाई जाती है। गंगा की लहरों में उतरते दीपक और पृष्ठभूमि में गूंजती स्वरलहरियां, इससे सुंदर नजारा और कुछ नहीं हो सकता। इस आयोजन का महत्व इसी से साबित हो जाता है कि देश के तमाम शीर्षस्थ शास्त्रीय गायक व वादक यहां मौजूद रहते हैं। बनारस को देखने का यह सबसे बढिया समय है।
लखनऊ महोत्सव, लखनऊ
जब देश के शास्त्रीय संगीत की अनमोल विरासत की बात हो तो लखनऊ महोत्सव उसे सहेजने की महत्वपूर्ण कडी है। हर साल इन दिनों होने वाला यह आयोजन अवध की अनूठी संस्कृति से पहचान कराता है। रंगबिरंगे जुलूस, नाटक और नृत्य-संगीत। लखनऊ घराना वैसे भी अपनी परंपरा को लेकर बहुत प्रख्यात रहा है। ऐसे में कत्थक, सारंगी व सितार का आनंद उठाना हो या गजलों, कव्वाली व ठुमरी में खो जाना हो, लखनऊ महोत्सव हर लुत्फ देता है। ऊपर से लखनवी दावतों की तो महक ही सब जगह फैली रहती है। परंपरा के शौकीनों के लिए इक्कों की रेस, पतंगबाजी व मुर्गो की लडाई भी साथ-साथ चलती रहती है। अवध को जानना हो तो इस महोत्सव में जरूर जाइए।
एलोरा फेस्टिवल, एलोरा गुफाएं, औरंगाबाद
महाराष्ट्र में औरंगाबाद से लगभग तीस किलोमीटर दूर एलोरा गुफाओं की पृष्ठभूमि में होने वाला नृत्य व संगीत का शानदार आयोजन। यह सालाना जलसा महाराष्ट्र पर्यटन विकास निगम की मेजबानी में होता है। सदियों के इतिहास व संस्कृति के साथ-साथ बेमिसाल कला व शिल्प अपने में समेटे हुए ये प्राचीन गुफाएं आज भी कई प्रतिभाओं को निखरने का मौका देती हैं। गुफाओं की अद्भुत संरचना एक अलग ही माहौल में अनुभव करनी हो तो इस समय यहां जरूर जाइएगा।
पुरी बीच फेस्टिवल, पुरी, उडीसा
पुरी में स्वर्गद्वार के निकट समुद्र तट पर हर साल होने वाला यह समारोह उडिया संस्कृति का जश्न है। देश के कई हिस्सों में होने वाले फेस्टिवल की तरह है मुख्य जश्न देश के शास्त्रीय व लोक नृत्यों का होता है। समुद्र की लहरों की ध्वनि के बीच पैरों की थाप और संगीत की धुनें एक मादक असर करती हैं। इसके अलावा समारोह उडीसा के पारंपरिक भोजन और हस्तकलाओं का भी है। एक और चीज जो यहां की खास है, वो है रेत की कलाकारी यानी सैंड आर्ट जिसके नामी कलाकार सुदर्शन पटनायक पुरी तट को अपने कैनवास के तौर पर इस्तेमाल करते रहे हैं। माहौल को थोडा और रंगीन बनाने के लिए फैशन शो और रॉक शो का आयोजन भी होने लगा है।
चंडीगढ कार्निवल, चंडीगढ
शहरों के कार्निवल की फेहरिस्त में एक नाम चंडीगढ कार्निवल का भी जुड गया है। हर साल नवंबर के महीने में दो दिन का यह जलसा होता है। आम तौर पर यह सेक्टर 10 में लेजर वैली में होता है। चंडीगढ प्रशासन द्वारा आयोजित होने वाला यह समारोह शहर और आसपास के इलाके की प्रतिभाओं को मंच तो उपलब्ध कराता ही है, आम लोगों को अपने शहर से जुडे होने का अहसास भी कराता है। खाना-पीना, संगीत, प्रतियोगिताएं वगैरह तो होती ही हैं, कार्निवल का स्वरूप देने के लिए एक परेड भी होने लगी है। कई झांकियां शहर की सडकों पर निकलती हैं। गिद्दा, भांगडा आदि का आयोजन लोगों को झूमने पर मजबूर कर देता है। इसे यकीनन चंडीगढ का सबसे खूबसूरत जलसा कहा जा सकता है।