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एक बरस के मौसम चार.. ना-ना .. एक दिवस के मौसम चार। जी हां, वैसे तो यह बात भारतीय वांग्मय में भी मानी गई है कि प्रतिदिन हम छहों ऋतुओं का अनुभव लेते हैं, परंतु यह बात अनुभूति के स्तर की अधिक और भौतिक रूप में स्पष्ट होने वाली बहुत कम है। अगर इसे आप मूर्त रूप में देखना चाहते हैं तो चले आएं ऑस्ट्रेलिया के मेलबर्न शहर में। यहां एक ही दिन में जाडा, गर्मी, बरसात और वसंत .. चारों मौसमों को आते-जाते आप देख सकते हैं। कभी-कभी तो पांचवां मौसम यानी कि आंधी-तूफान भी इन चार मौसमों के साथ दिख जाता है। इसीलिए इसे कहा ही जाता है सिटी ऑफ फोर सीजंस यानी चार मौसमों का शहर।
जिस वक्त हम सिडनी से मेलबर्न पहुंचे, दिन के ढाई बज रहे थे। साफ आसमान, शांत धरती, हल्की हवा और धूप भी बहुत तेज नहीं.. लगभग बसंत जैसा माहौल था। ऑस्ट्रेलिया में इसे बुद्धिजीवियों का शहर माना जाता है। इस बात का अहसास मेलबर्न लगातार कराता रहा। बिलकुल शालीन तरीके से आते-जाते और एक-दूसरे से मिलते-जुलते लोग, खानपान का ढंग और हर तरह से शांति। इस अकेले शहर में कई विश्वविद्यालय हैं। इनमें प्रमुख पांच हैं- मेलबर्न यूनिवर्सिटी, स्विनबर्न यूनिवर्सिटी, मोनाश यूनिवर्सिटी, विक्टोरिया यूनिवर्सिटी और आरएमआईटी।
शहर घूमने की शुरुआत हमने फिलिप आइलैंड चॉकलेट फैक्टरी से की। इसके बाद हमें कोआला कंजर्वेशन सेंटर जाना था। हम वहां से निकले तो दोपहर के करीब का वक्त था। वहां के समय के मुताबिक 11 बज गए थे और धूप चढ गई थी। मेलबर्न से करीब तीन घंटे की दूरी पर अपोलो बे होटल है। समुद्रतट पर मौजूद इस होटल तक हमें तो हेलीकॉप्टर व फेरी से सैर कराने के लिए ले जाया गया था, लेकिन प्रकृति का अकूत सौंदर्य भी यहां से देखने लायक है। हमने हेलीकॉप्टर से उडते हुए आसमान से सागर का नजारा लिया। इस सैर के बाद हम मेलबर्न लौटे और शहर के प्रसिद्ध बाजार ओक्स ऑन मार्केट भी गए। न सिर्फ शॉपिंग, थिएटर और खाने-पीने, बल्कि तमाम वैधानिक और वित्तीय गतिविधियों का केंद्र भी यही है।
अगले दिन हमें मेलबर्न की पहचान बन चुके यूरेका स्काईडेक ऑन लेवल 88 जाना था। 88 मंजिलों के इस भवन के ऊपरी तल से पूरे शहर का नजारा लिया जा सकता है। यहां से देखने पर पूरा शहर साफ तौर पर दिखाई देता है। इसी दिन हमने मेलबर्न का ऐतिहासिक क्रिकेट ग्राउंड भी देखा, जो तमाम ऐतिहासिक मैचों का गवाह रहा है। कोई भी खेलप्रेमी व्यक्ति ऑस्ट्रेलिया आने पर सबसे पहले यही देखना चाहता है। अंतिम दिन हमें इमीग्रेशन म्यूजियम ले जाया गया। दरअसल भारत की ही तरह ऑस्ट्रेलिया भी तमाम संस्कृतियों और नस्ली राष्ट्रीयताओं से मिलकर बना एक राष्ट्र है। इस मामले में भारत और ऑस्ट्रेलिया बिलकुल एक जैसे हैं कि वहां भी कई देशों से लोग आए और बसे। जो कोई भी जहां कहीं से भी वहां आया, वह वहीं का होकर रह गया। इनमें भारतीयों की संख्या भी कम नहीं है।
राजनीतिक सक्रियता जरूरी : शब्बीर
इमीग्रेशन म्यूजियम में ही हमारी मुलाकात शब्बीर वाहिद से हुई। भारतीय मूल के ही शब्बीर करीब बीस साल पहले वहां गए और अब वह वहीं के हो कर रह गए हैं। ऑस्ट्रेलिया सरकार के लिए वह कूटनीतिक सलाहकार का कार्य करते हैं। वह कहते हैं कि हम भारतीय यहां हर तरह से सुखी और संपन्न हैं, लेकिन यहां की राजनीति में हमारा कोई दखल नहीं है। यहां के किसी भी सदन में एक भी भारतीय नहीं है। भारतीयों को इसके लिए प्रयास करना चाहिए। भारतीय छात्रों पर पिछले दिनों हुए हमलों के बाबत उनका कहना था कि आम ऑस्ट्रेलियाई शांत और शालीन है। लेकिन जैसे हर जगह कुछ अराजक तत्व होते हैं, यहां भी हैं। वे ऐसे काम तो करते हैं लूटमार के लिए, लेकिन उन्हें किसी तरह नस्ली रुख दे देते हैं। इंजीनियरिंग के एक छात्र सेलविन ने भी वाहिद की बात का समर्थन किया। सेलविन मूलत: पटियाला के रहने वाले हैं और पिछले चार सालों से वहां मोनाश यूनिवर्सिटी में इंजीनियरिंग की पढाई कर रहे हैं।