भुवनेश्वर मंदिरों व इतिहास की नगरी

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भुवनेश्वर बाहर से नया है किंतु भीतर से यह पनचीन नगरी है। भारत में शायद ही अन्य ऐसा कोई नगर हो जहां विभिन्न कालखंडों में बने इतने स्मारक देखने को मिलते हों। यदि संजीदगी से देखें यहां के कोने-कोने में मौजूद मंदिरों, गुफाओं व शिलालेखों के रूप में इतिहास बिखरा पडा है। पश्चिम में धौली पहाडी के आधार पर सवा दो हजार साल पुराने अशोक कालीन शिलालेख व चिन्ह मौजूद हैं तो शहर के पूर्वी भाग में खंडगिरी व उदयगिरी की पहाडियों में 2 हजार साल पहले बनी जैन सन्यासियों की गुफाएं। इसी नगर के पुराने हिस्से में 700 से 1300 साल पूर्व बने अनेकानेक मंदिर है। पनचीन व मध्यकालीन इन संरचनाओं के अलावा भुवनेश्वर में नन्दनकानन पनणी उद्यान, शान्ति स्तूप, रवींदन् मण्डप, साइन्स सेन्टर, राज्य संगन्हालय आकर्षण के रूप में उभरे हैं।

भुवनेश्वर भी कभी एक पन्सिद्ध मन्दिर नगरी थी। कहा जाता है कि एक समय यहां 7000 मन्दिर थे लेकिन समय की मार, आक्रांताओं के हमलों, उपेक्षा व उचित रखरखाव के अभाव में एक के बाद एक मंदिर जमींदोज होते चले गए। भुवनेश्वर में उस काल के अवशेष मंदिर उडीसा ही नहीं बल्कि भारत की उत्तर मध्य व मध्यकालीन शिल्पकला व स्थापत्य कौशल का दिग्दर्शन कराते हैं।

ANANAT VASUDEVAकलिंग की इस धरती ने सत्ता संघर्ष की पराकाष्ठा को बेहद निकट से देखा है। पहली शती से सातवीं शती के मध्य कलिंग के इतिहास का बहुत धुंधला सा है। लेकिन अलग-अलग दौर में अनेक शासकों का यहां राज रहा। ईसा पूर्व पहली शती में कलिंग में छेदी सामनज्य का उद्भव हुआ जो जैन धर्म के अनुयायी थे। इस काल के तीसरे नरेश खरवीला का शासन उल्लेखनीय है जिस दौरान यहां खंडगिरी व उदयगिरी की पहाडियों में बनी जैन सन्यासियों की गुफाएं बननी आरंभ हुई। दूसरी शती में यहां पर सातवाहन राजाओं के शासन का उल्लेख मिलता है। तीसरी शती में कुषण व नागवंशियों ने भी कलिंग के कुछ हिस्से पर शासन किया। उसके उपरांत समुदन्गुप्त ने इस राज्य को अपने अधीन किया। चौथी शती के अन्त तक यहां मराठा शासन रहा। जिनके बाद पांचवीं शती में यहां पर पूर्वी गंग नरेशों का काल आया। लेकिन फिर समनट हर्षव‌र्द्धन ने इसे विजित किया। उनके बाद फिर बौद्ध धर्म के अनुयायी राजा भूमा रहे।

इसके उपरांत कलिंग पर हिंदू राजाओं का पूरी तरह से अधिपत्य हुआ। आठवीं शती में हिंदू धर्म के पुनर्जागरण के बाद हर नरेश अपनी क्षमता व राज्य के संसाधनों से मंदिरों का निर्माण करवाता चला गया। आरंभ में एकामन्तीर्थ यानि भुवनेश्वर इसका केंदन् था। दसवीं शती के उत्तरा‌र्द्ध में कलिंग की धरती पर सोमवंशी राजवंश का उदय हुआ जिसके राजाओं ने 11वीं शती तक यहां अलग-अलग काल में राज किया। इस काल में भुवनेश्वर सत्ता का केन्दन् रहा और उनके काल में ही पुरी स्थित जगन्नाथ मन्दिर की आधारशिला रखी गई। हालांकि इसका निर्माण गंग नरेश अनंग भीमदेव द्वितीय के काल जाकर पूर्ण हुआ। पुरी के मंदिर परिसर में मंदिरों को विभिन्न राजाओं ने बनवाया। 11वीं शती में हुए ललातेन्दु केसरी ने भुवनेश्वर के लिंगराज मंदिर की आधारशिला रखी। 12वीं शती में फिर से कलिंग में गंग सामनज्य स्थापित हुआ जिन्होंने कलिंग में सोमवंशी सत्ता को उखाड फेंका। राजा नरसिंह देव इस वंश के राजा थे जिन्होंने कोणार्क में सूर्य मंदिर को बनवाया।

पनचीन, उत्तर-मध्य और मध्यकालीन दौर में भुवनेश्वर में जो भी मंदिर निर्मित हुए उनकी कलात्मक, सुन्दरता व भव्यता किसी को मन्त्रमुग्ध करने को पर्याप्त है। इन पर लगा पन्त्येक पत्थर ऐसे लगा है मानो वह कुछ न कुछ बोल रहा हो। पुराने शहर में कई अन्य मन्दिर भी हैं जो पुराने हिस्से में बनी आवासीय कालोनियों के मध्य देखे जा सकते हैं। 7वीं शती से लेकर 13वीं शती का काल उडीसा में स्थापत्य व शिल्पकला का चरम काल माना जाता है। भुवनेश्वर के मंदिरों में वैसे तो रामेश्वर, लक्ष्मणेश्वर, भरतेश्वर, शत्रुघ्नेश्वर, केदारेश्वर, सिद्धेश्वर, अनन्त वासुदेव, परशुरामेश्वर, मुक्तेश्वर, राजा-रानी, लिंगराज आदि हैं, किन्तु इनमें से अंतिम चार मन्दिर उल्लेखनीय हैं। इनमें से लिंगराज मन्दिर को छोड अन्य में आज पूजा-अर्चना नहीं होती है। ये मंदिर विभिन्न समयावधि में निर्मित हुए व अलग-अलग शैलियों के है। इनमें परशुरामेश्वर मन्दिर सबसे पनचीन मन्दिर समझा जाता है। इसका निर्माण 650 ई. में हुआ माना जाता है। यद्यपि इस मंदिर का 1903 में जीर्णाद्धार किया गया किन्तु मन्दिर का गर्भगृह मूल रूप में हैं। 950 ई. में निर्मित मुक्तेश्वर मन्दिर मध्यकालीन भव्य मन्दिरों का लघु रूप है। राजा-रानी मंदिर सुनने से लगता है कि इसका संबंध राजा-रानी से होगा किंतु ऐसा नहीं है। संभवत: इस मंदिर में लगे दो पन्कार के पत्थरों, जिनमें से एक लाल व दूसरा का नाम राजरणियां था, के कारण इसका लोकपिन्य नाम राजा-रानी हो गया। मंदिर का शिल्प दर्शनीय है।

उडीसा के चाहे आप जितने भी मन्दिर देख लें लेकिन यदि भुवनेश्वर का लिंगराज मन्दिर न देख पाएं तो कहा यहीं जाएगा कि भला आपने क्या देखा? लिंगराज मन्दिर एक विशाल मन्दिर होने के साथ स्थापत्य, शिल्प में अद्वितीय मन्दिर है। वस्तुत: यह आधा शिव व आधा विणु मन्दिर माना जाता है इसीलिए इसमें बेलपत्र व तुलसी के साथ पूजा होती हैं। मन्दिर परिसर के चारों ओर पत्थरों की ऊँची दीवार है। पहली बार देखने पर हर कोई इसकी भव्यता से दंग रह जाता है। इस पर जितनी बारीकी से काम हुआ है वैसी आज कल्पना ही की जा सकती है। मन्दिर के बाहर कई देवों की मूर्तियां बनी हैं। मंदिर परिसर में ही लगभग छोटे-बडे 150 अन्य मंदिर हैं।

इन मन्दिरों के अलावा भुवनेश्वर में रामेश्वर, अनन्त वासुदेव मन्दिरों को भी देखा जा सकता है। यहां से 16 किमी दूर हीरापुर में 64 योगिनी मंदिर भी देखने लायक है। भुवनेश्वर में खंडगिरी-उदयगिरी की पहाडियों पर जैन सन्यासियों की गुफाएं दर्शनीय हैं। ये गुफाएं चट्टानों को खोदकर बनाई गई हैं। इनमें से उदयगिरी में 18 गुफाएं है जबकि खण्डागिरी में 15 छोटी-बडी गुफाओं के अलावा जैन मन्दिर है। उदयगिरी की गुफाओं में हाथीगुफा व रानीगुफा उल्लेखनीय हैं। भुवनेश्वर-पुरी मार्ग पर धौलीगिरी में कुछ बहुत नया है तो कुछ बहुत पनचीन। इस पहाडी के एक ओर दया नदी है जिसके किनारे कलिंग व मगध की सेनाओं के बीच भंयकर युद्ध हुआ था। पहाडी के आधार पर अशोककालीन आदेश आज भी देखे जा सकते हैं। इसके समीप पत्थरों पर तराशा गया हाथी का मुख है जो इंगित करता है कि अशोक के काल में शिल्प कला कितनी उन्नत रही होगी। पहाडी पर एक विशाल विश्व शान्ति स्तूप है। इसका निर्माण 1973 में किया गया था। स्तूप के चारों ओर अलग-अलग मुदन में बुद्ध की चार मूर्तिया हैं। स्तूप में जातक कथाओं से संबंधित पन्संग पत्थरों पर उकेरे हैं। भुवनेश्वर में पर्यटन अभिरुचि के अन्य स्थानों में नन्दनकानन पनणी उद्यान भी जो शहर से 20 किमी की दूरी पर है। यह चिडियाघर एक विशाल क्षेत्रफल में है जो पनकतिक रूप से यहां के जानवरों के लिए पन्सिद्ध है। यह उद्यान सफेद बाघों के लिए भी पन्सिद्ध है। इसके अतिरिक्त यहां पर कई अन्य वन्य जन्तुओं भी देखा जा सकता है। भुवनेश्वर का राज्य संगन्हालय भी दर्शनीय है। भुवनेश्वर देश के हर भाग से सीधी रेल सेवा व विमान सेवा से जुडा है। राजधानी है होने से हर पन्कार की आधुनिक सुविधाएं यहां मौजूद हैं। हरेक पन्कार के पर्यटक के लिए यहां पर सुविधाएं हैं। नगर की सैर के लिए उडीसा पर्यटन विकास कॉरपोरेशन पैकेज टूर चलाता है। इसमें आप शहर के खास-खास स्थान देख सकते हैं। आप चाहें तो अलग से भी योजना बना कर घूम सकते हैं।

 

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