केरल – शांति और ईश्वर का निवास

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महानगर की भाग-दौड और कोलाहल से दूर केरल में हमारा पहला पडाव था एर्नाकुलम। कोच्चि से सटे इस छोटे लेकिन बेहद अहम् शहर में फैमिली फ्रेंड वासु के यहां ठहरना हुआ। केरल की विशुद्ध संस्कृति से रू-ब-रू होने का यह पहला मौका था। डोसा, सांबर, कडाला कढी (काले चने की तरीदार सब्जी), स्वीट डिश के तौर पर पायसम (चावल, दूध और नारियल से बनी खीर), उबला हुआ मीठा केला और उसके बाद गरमा-गरम कॉफी.. पारंपरिक माहौल के बीच मलयाली खाने ने सफर की सारी थकान जैसे छूमंतर कर दी और केरल में हमारा पहला ही दिन ऊर्जादायक साबित हुआ। पेट-पूजा के बाद कोच्चि दर्शन का मन हुआ तो मौसम की तपिश व उमस भी आडे नहीं आई और जोश से भरे हम निकल पडे पुराने कोच्चि शहर की ओर. स्थानीय लोग इसे फोर्ट कोच्चि भी कहते हैं। पुर्तगाली शैली के खूबसूरत घर, नारियल के पेड और हिप्पी संस्कृति की झलक लिए कोच्चि के बीचों-बीच से गुजरते पहुंचे कोच्चि पोर्ट।

कोच्चि में देखने के लिए ऐतिहासिक महत्व की कई जगह हैं, जैसे सेंट फ्रांसिस चर्च, मत्तनचेरी पैलेस म्यूजियम और ज्यूइश चर्च। ये सब देखने के बाद हम आ पहुंचे वास्को-दा-गामा चौराहे पर। मछुआरों के इस शहर में आकर यहां स्थानीय मछुआरों को चायनीज फिशिंग नेट्स यानी चीनी जाल की मदद से मछली पकडते देखना अलग ही अनुभव रहा। चीनी जाल केरल के मछुआरों की रोजी-रोटी का मुख्य साधन हैं। ये जाल काफी पुराने और तकनीकी हैं। माना जाता है कि चीन के शासक कुबलई खान के दरबार से जेंग हे नाम का एक चीनी यात्री इन्हें कोच्चि लेकर आया था।

इसके बाद हमने रुख किया नजदीक ही लगे फुटपाथ बाजार का। इस बाजार में आकर लगा जैसे हम दिल्ली के जनपथ मार्केट में आ गए हों। यहां ऐसी कई चीजें मिल जाएंगी जो आपको केरल की याद दिलाती रहेंगीकेरल में आपको भाषाई समस्या आडे नहीं आएगी क्योंकि यहां लोगों का अंग्रेजी ज्ञान अच्छा है और आम लोग भी अंग्रेजी या काम-चलाऊ हिंदी में बातचीत कर लेते हैं। फोर्ट कोच्चि के अलावा यहां से करीब 25 किलोमीटर दूर वायपिन आयलैंड जरूर जाएं। यहां चेरई बीच है। ये बीच काफी साफ-सुथरा और तैराकी के लिए माकूल है। अगर आप घूम-फिर कर थक गए हैं तो यहां पर कुछ देर सुस्ता लें।

हमारा अगला और प्रमुख पडाव था मुन्नार। प्रमुख इसलिए क्योंकि मेरे जहन में जब-जब भी केरल की तस्वीर उभरी है, बैकवॉटर्स के बाद दूसरा और सबसे खूबसूरत नजारा मुन्नार का ही रहा है। केरल के इडुक्की जिले में है मुन्नार। यह जाना-माना हिल स्टेशन है और हाल ही में इसे एशिया में जापान के टोक्यो के बाद सबसे अच्छे पर्यटन केंद्र का दर्जा मिला है। कुदरती खूबसूरती, दूर-दूर तक फैले चाय के बागान और लुभावना मौसम. यही है मुन्नार की खासियत। मुन्नार में कदम रखते ही आप शर्तिया बेहद तरो-ताजा महसूस करेंगे। बेहतर होगा कि मुन्नार की सैर के लिए टैक्सी करने की बजाय आप ऑटो-रिक्शा को ही चुनें। इससे बचत तो होगी ही, आप खुद को कुदरत के ज्यादा करीब भी महसूस करेंगे। हमारे ड्राइवर मणि ने हमें 800 रुपए में न सिफर् पूरा दिन ऑटो-रिक्शा में घुमाया बल्कि स्थानीय जडी-बूटियों और जीव-जंतुओं से जुडी कई दिलचस्प जानकारियां भी हमें दीं। मुन्नार में कई तरह के फल-फूल पाए जाते हैं, और यहां का एक खास फल है – पैशन फ्रूट। यह फल काफी सस्ता होता है और आसानी से हर जगह मिल जाता है। मुन्नार में ही मुझे पहली बार काजू, कॉफी और इलायची के पौधे देखने को मिले। मणि ने बताया कि काजू का फल आप खा भी सकते हैं, तो मौका न गंवाते हुए मैंने इसे चख लिया। बेहद खूबसूरत दिखने वाले काजू के फल का स्वाद मुझे काफी कसैला लगा, लेकिन स्थानीय शहद चखने के बाद मुंह का स्वाद एक बार फिर बदल गया।

अगर आप प्रकृति प्रेमी हैं और पहाडों के हसीं मौसम का जमकर लुत्फ उठाना चाहते हैं तो कम-से-कम 4-5 दिन मुन्नार में जरूर ठहरें। मुन्नार में चारों तरफ हरियाली की चादर बिछी है तो यहाँ की साफ-सुथरी सडकों पर आपको कभी-कभार झूमते-इठलाते हाथी भी दिखाई दे जाते हैं। अब यह नजारा किसी शहर में तो मुमकिन नहीं है। वैसे भी मुन्नार में आकर अगर आप हाथी के साथ जंगल की सफारी पर नहीं गए तो अपनी यात्रा अधूरी समझिए। मुन्नार शहर से दो किलोमीटर की दूरी पर है टाटा टी म्यूजियम। टी म्यूजियम में आप चाय-पत्ती तैयार किए जाने की पूरी प्रक्रिया शुरू से आखिर तक देख सकते हैं। इतना ही नहीं, अपनी आंखों के सामने तैयार की गई चाय की चुस्कियां भी ले सकते हैं। मुन्नार की एक और खासियत है- वो है यहां उगने वाला नीलकुरुंजी नाम का एक खूबसूरत फूल। लेकिन इसे देखने के लिए आपको भी मेरी तरह वर्ष 2018 तक इंतजार करना होगा क्योंकि ये फूल 12 साल में सिफर् एक ही बार खिलता है।

अगले दिन बारी थी केरल की एक और खासियत से रू-ब-रू होने की, सो अल-सुबह हम रवाना हो गए कोल्लम के लिए। 250 किलोमीटर का यह सफर हमने राज्य परिवहन की बस में तय किया। इस सफर के दौरान एक चीज बहुतायत में दिखी, और वो थे कटहल के पेड। पूरे केरल में इसकी पैदावार काफी अच्छी है। करीब 10 घंटे के सफर के बाद हम कोल्लम पहुंचे। कोल्लम से हमने अष्टमुडी में अपने रिजॉर्ट का रुख किया जो वहां से करीब 15 किलोमीटर दूर था। सफर की थकान मिटाने और कुछ देर फुर्सत से सुस्ताने के लिए आयुर्वेदिक मसाज से अच्छा विकल्प भला क्या हो सकता था, सो हमने फौरन एक आयुर्वेदिक थेरेपिस्ट से संपर्क किया और हमारे अगले 2 घंटे सुकून और ताजगी से भरे थे. आयुर्वेदिक मसाज के एक सेशन की शुरुआती कीमत है करीब 500 रुपये जो तेल और उसकी क्वालिटी के साथ हजारों रुपये तक पहुंच सकती है। आप सादे आयुर्वेदिक तेल से मसाज की सुविधा चाहते हैं या खास किस्म के खुशबूदार तेलों के साथ, यह पूरी तरह से आप पर निर्भर है।

मसाज के अलावा केरल अपने बैकवॉटर्स के लिए दुनिया भर में मशहूर है। अष्टमुडी में अगर आप बैकवॉटर्स का असल लुत्फ उठाना चाहते हैं तो केरल टूरिज्म की नौका यात्रा बेहतर विकल्प है। महज 400 रुपये में आप 5 घंटे तक केरल की असली खूबसूरती को निहार सकते हैं, वो भी बेहद करीब से। कोल्लम बस स्टैंड से चलने वाली सरकारी बस सैलानियों को मुनरो आयलैंड तक ले जाती है, और इसी आयलैंड से आगाज होता है एक बेहद रोमांचक सफर का। बस से उतरकर आप एक छोटी नौका में सवार होते हैं और बैकवॉटर्स में धीरे-धीरे सरकती यह नौका अलग ही दुनिया में ले जाती है।

नौका यात्रा के दौरान हमें केरल के खालिस ग्रामीण जीवन और यहां की जैवीय विविधता को करीब से महसूस करने का मौका मिला। पानी की संकरी सडक पर गुजरते हुए हम मुनरो गांव की तरफ बढ रहे थे। हमारे साथ नौका में कुछ विदेशी मेहमान भी सवार थे। नौका चलाने वाले मल्लाह चिदंबरम ने हमें मुनरो गांव के अंदर चलने को कहा। कुछ दूर पैदल चलकर हम मछुआरों की बस्ती में जा पहुंचे जहां हमने कारीगरों को नौकाएं बनाते हुए देखा। इसके बाद चिदंबरम हमें नारियल के पेडों के झुरमुट में ले गया जहां हमने ताडी बनाते हुए देखी। नारियल के फूल से तैयार ताजा ताडी उतरते देख हमारा मन इसे पीने को हुआ तो गांव वालों को भी जैसे मेहमानवाजी का मौका मिल गया और उन्होंने झट से हमारे सामने ताडी से भरे गिलास पेश कर दिए।

बैकवॉटर्स से गुजरते हुए हमने आस-पास रोज-एप्पल और अनानास के कई पौधे देखे। रोज-एप्पल एक स्थानीय फल है जो खाने में रसीला और कुछ-कुछ सेब जैसा स्वाद लिए हुए होता है। अगर आप खुशकिस्मत हैं तो नौका की सवारी के दौरान आपको कई ऐसी चीजें देखने को मिल सकती हैं जिन्हें आपने पहले कभी नहीं देखा होगा। कोल्लम से 5 किलोमीटर की दूरी पर है थंगासेरी लाइट-हाउस। 144 फुट ऊंचा ये लाइट हाउस एशिया का दूसरा सबसे ऊंचा लाइट हाउस है जो शाम के समय सैलानियों के लिए खुला रहता है।कभी पुर्तगाली, डच और ब्रिटिश शासन के अधीन रह चुके थंगासेरी में चर्च और पुर्तगाली किले के कुछ अवशेष हैं जिन्हें देखकर आप इतिहास की गलियों में खो जाएंगे। स्थानीय भाषा में थंगासेरी का मतलब है- सोने का गांव। यहां किसी जमाने में लोग मुद्रा के तौर पर सोने का इस्तेमाल किया करते थे। इस लाइट हाउस की सबसे ऊपरी मंजिल से थंगासेरी और कोल्लम का खूबसूरत नजारा मेरी आंखों में अभी तक बसा हुआ है। कोल्लम के मुख्य बाजार में चारों तरफ खास तरह की सजावट और चहल-पहल देखने को मिली। पूछने पर पता चला कि यहां पारंपरिक त्योहार विशू धूमधाम से मनाया जा रहा था। विशू केरल का बडा त्योहार है और इस दौरान यहां पूरे 10 दिन तक कई तरह के सांस्कृतिक आयोजन होते हैं। लेकिन इस उत्सव का जो खास आकर्षण है वो है सजे-संवरे हाथियों की झांकी और पारंपरिक कथकली नृत्य। इसी उत्सव का हिस्सा बनने के लिए हम पहुंचे कोल्लम के कृष्ण आश्रम मंदिर। कहा जाता है कि यह मंदिर 1000 साल से भी ज्यादा पुराना है। जब भी केरल जाएं, कथकली को अपनी कार्यक्रम-सूची में जरूर शामिल करें।

लौटकर हम चल पडे तिरुवनंतपुरम की ओर। केरल में सात दिन के प्रवास के दौरान हमने स्थानीय बसों में घुमक्कडी का खूब मजा लिया। तिरुवनंतपुरम हमारा आखिरी पडाव था। यह एक छोटा लेकिन घूमने लायक शहर है। वक्त की कमी के चलते हम शहर से कुछ ही दूरी पर स्थित शंखमुखम बीच ही जा सके.. तिरुवनंतपुरम से करीब 54 किलोमीटर दूर है वरकला का खूबसूरत समुद्र तट, जिसे देखने की हसरत दिल में ही रह गई। फिलहाल केरल की हसीन यादों को अपने दिलो-दिमाग और कैमरे में कैदकर ताजातरीन मूड के साथ मैं लौट आई हूं अपने ठिकाने पर।

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