भारत के आर्टिकल्स

आज मैं ऊपर, आसमां नीचे..

आज मैं ऊपर, आसमां नीचे..

रोमांच की तलाश इंसान को कहां-कहां नहीं ले जाती, फिर नीमराना फोर्ट तो दिल्ली से महज सवा सौ किलोमीटर की दूरी पर है। इस साल जनवरी में जब से फ्लांइंग फोक्स के बारे में सुना था, तब से उसमें हाथ आजमाने का बहुत मन था क्योंकि वह न केवल भारत... आगे पढ़े

फिर चलें लद्दाख

फिर चलें लद्दाख

कई रोमांचप्रेमी ऐसे हैं जो हर साल जून-जुलाई-अगस्त में लद्दाख जाने को सालाना तीर्थयात्रा की तर्ज पर लेते हैं। लेकिन आप रोमांचप्रेमी न हों तो भी लद्दाख की खूबसूरती देखने लायक है। मौसम और माहौल तैयार है, बस आपके आने की देरी है।... आगे पढ़े

देवीधुरा : पत्थरों से बरसती हैं नेमतें

देवीधुरा : पत्थरों से बरसती हैं नेमतें

उत्तराखंड की संस्कृति यहां के लोक पर्व और मेलों में स्पंदित होती है। यूं तो राज्य में जगह-जगह साल भर मेलों का आयोजन चलता रहता है, लेकिन कुछ मेले ऐसे हैं जो अपनी अलग ही पहचान बनाए हुए हैं। कुमांऊ के देवीधुरा नामक स्थान पर लगने... आगे पढ़े

हणोगी माता

हणोगी माता

हिमाचल प्रदेश के अलग-अलग शोभा वाले अनेक मंदिरों में से एक है हणोगी माता मंदिर। राष्ट्रीय राजमार्ग 21 पर मंडी और कुल्लू के बीच बने पंडोह बांध से कुछ आगे चलकर व्यास नदी के दूसरी ओर यह एक पर्वत पर शोभायमान है जिसका सौंदर्य देखते... आगे पढ़े

श्रद्धा की त्रिवेणी रिवालसर की ओर

श्रद्धा की त्रिवेणी रिवालसर की ओर

हिमालय प्रदेश की खूबसूरत गोद में पसरी एक झील है पद्मसंभव। लेकिन कोई कहे कि पद्मसंभव झील चलें तो पता नहीं चलेगा, हां कहा जाए कि रिवालसर चलें तो बनेगी बात। पद्मसंभव व रिवालसर अब एक-दूसरे का पर्याय हैं। रिवाल गांव अब कस्बा हो चुका... आगे पढ़े

थोड़ा और एडवेंचर आसपास

थोड़ा और एडवेंचर आसपास

दिल्ली से सटी अरावली पहाडि़यों में ट्रेकिंग, कैपिंग और रॉक क्लाइबिंग करने के लिए अनेक उपयुक्त स्थान हैं। सितंबर से अप्रैल तक यहां ऐसी गतिविधियों का सुखद अनुभव किया जा सकता है। हम जिक्र कर रहे हैं हरियाणा के सोहना कस्बे के समीप... आगे पढ़े

चलो गंगाधाम

चलो गंगाधाम

अक्षय तृतीया का दिन उत्तरकाशी के लिए विशेष महत्व रखता है। इस तिथि को प्रत्येक वर्ष उत्तराखण्ड के चार में से दो धाम गंगोत्री और यमनोत्री के पट यात्रियों के लिए खुल जाते हैं। इसी के साथ चारधाम यात्रा का शुभारंभ हो जाता है। अक्षय... आगे पढ़े

महोबा के गली-कूचों में आज भी जिंदा हैं आल्हा-ऊदल

महोबा के गली-कूचों में आज भी जिंदा हैं आल्हा-ऊदल

आल्हा और वीर भूमि महोबा एक दूसरे के पर्याय हैं। यहां की सुबह आल्हा से शुरू होती है और उन्हीं से खत्म। यहां नवजात बच्चों के नामकरण भी आल्हखंड के नायकों के नाम पर रखे जाते हैं। कोई भी सामाजिक संस्कार आल्हा की पंक्तियों के बिना... आगे पढ़े

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