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धार्मिक पर्यटन

हरिपुरधार चलें इस बार

हरिपुरधार चलें इस बार

वैसे तो हरिपुरधार जाने के चार रास्ते हैं किंतु हम नाहन से रेणुका होकर जाएंगे। रेणुका में आपने रात्रि विश्राम किया हो तो अगली सुबह नाश्ता कर हरिपुरधार के लिए रवाना हो सकते हैं। पहले संगडाह (26 किमी) जाना होगा। यहां तक सड़क की हालत... आगे पढ़े

पत्थरों में छलकता सौंदर्य भोरमदेव

पत्थरों में छलकता सौंदर्य भोरमदेव

छत्तीसगढ़ स्थापत्य कला के अनेक उदाहरण अपने आंचल में समेटे हुए हैं। यहां के प्राचीन मंदिरों का सौंदर्य किसी भी दृष्टि से खजुराहो और कोणार्क से कम नहीं है। यहां के मंदिरों का शिल्प जीवंत है। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से लगभग... आगे पढ़े

अनसूइया - जहां एकाकार होती है भक्ति और प्रकृति

अनसूइया – जहां एकाकार होती है भक्ति और प्रकृति

मनमोहक दृश्यावलियों के बीच उत्तराखंड के तीर्थ हमेशा से ही श्रद्धालुओं और घुमक्कड़ों को अपनी ओर खींचते रहे हैं। यही वजह है कि उत्तराखंड में प्रकृति और धर्म का अद्भुत समावेश देखने को मिलता है। कोलाहल से दूर प्रकृति के बीच हिमालय... आगे पढ़े

सांची: बौद्ध कला की बेमिसाल कृतियां

सांची: बौद्ध कला की बेमिसाल कृतियां

सांची के स्तूप दूर से देखने में भले मामूली अर्ध गोलाकार संरचनाएं लगें लेकिन इसकी भव्यता, विशिष्टता व बारीकियों का पता सांची आकर देखने पर ही लगता है। इसीलिए देश-दुनिया से बड़ी संख्या में बौद्ध मतावलंबी, पर्यटक, शोधार्थी, अध्येता... आगे पढ़े

बुंदेलखंड की अयोध्या है ओरछा

बुंदेलखंड की अयोध्या है ओरछा

ओरछा को दूसरी अयोध्या के रूप में मान्यता प्राप्त है। यहां पर रामराजा अपने बाल रूप में विराजमान हैं। यह जनश्रुति है कि श्रीराम दिन में यहां तो रात्रि में अयोध्या विश्राम करते हैं। शयन आरती के पश्चात उनकी ज्योति हनुमानजी को... आगे पढ़े

हिमालय से एकाकार  कराता है चोपता तुंगनाथ

हिमालय से एकाकार कराता है चोपता तुंगनाथ

उत्तराखंड की हसीन वादियां किसी भी पर्यटक को अपने मोहपाश में बांध लेने के लिए काफी है। कलकल बहते झरने, पशु-पक्षी ,तरह-तरह के फूल, कुहरे की चादर में लिपटी ऊंची पहाडि़या और मीलों तक फैले घास के मैदान, ये नजारे किसी भी पर्यटक को स्वप्निल... आगे पढ़े

शबरिमला: ब्रह्मचारी अय्यप्पन  का वास

शबरिमला: ब्रह्मचारी अय्यप्पन का वास

केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम से 175 किमी. की दूरी पर पंपा है, और वहीं से चार-पांच किमी. की दूरी पर पश्चिम घाट से सह्यपर्वत श्रृंखलाओं के घने जंगलों के बीच, समुद्र की सतह से लगभग 1000 मीटर की ऊंचाई पर शबरिमला मंदिर है। ‘मला’ मलयालम... आगे पढ़े

पुष्कर-स्नान का लाभ और मेले का मजा

पुष्कर-स्नान का लाभ और मेले का मजा

देश के हिंदू तीर्थस्थानों में पुष्कर का अलग ही महत्व है। यह महत्व इसलिए बढ़ जाता है कि यह अपने आप में दुनिया में अकेली जगह है जहां ब्रह्मा की पूजा की जाती है। लेकिन इस धार्मिक महत्व के अलावा भी इस जगह में लोगों को आकर्षित करने... आगे पढ़े

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