धर्म-संस्कृति व त्योहार , से जुड़े परिणाम

श्रद्धा की त्रिवेणी रिवालसर की ओर

श्रद्धा की त्रिवेणी रिवालसर की ओर

हिमालय प्रदेश की खूबसूरत गोद में पसरी एक झील है पद्मसंभव। लेकिन कोई कहे कि पद्मसंभव झील चलें तो पता नहीं चलेगा, हां कहा जाए कि रिवालसर चलें तो बनेगी बात। पद्मसंभव व रिवालसर अब एक-दूसरे का पर्याय हैं। रिवाल गांव अब कस्बा हो चुका है, सर यानी जलस्त्रोत, मिलाकर कहें तो रिवालसर। कभी हर बरस कुछ इंच बर्फ ओढ़ने वाला रिवालसर हिमाचल में मंडी से 15 किमी. पहले, नेरचौक कस्बे से बाएं जाती सड़क पर नौ किमी. फासले पर है। बीच में कई छोटी-छोटी सुंदर जगहें हैं। एक जगह पड़ती है कलखड़। यहां से दाएं जाती सड़क सीधे रिवाल... आगे पड़ें

चलो गंगाधाम

चलो गंगाधाम

अक्षय तृतीया का दिन उत्तरकाशी के लिए विशेष महत्व रखता है। इस तिथि को प्रत्येक वर्ष उत्तराखण्ड के चार में से दो धाम गंगोत्री और यमनोत्री के पट यात्रियों के लिए खुल जाते हैं। इसी के साथ चारधाम यात्रा का शुभारंभ हो जाता है। अक्षय तृतीया को गंगाजी डोली में सवार होकर अपने शीतकाल के निवास मुखिमठ से गंगोत्री स्थित गंगा मंदिर पहुंचकर वहां अपना ग्रीष्मकालीन निवास स्थापित कर लेती हैं। मुखिमठ को आम भाषा में लोग मुखबा के नाम से जानते हैं। ऐसी मान्यता है कि मुखबा गंगाजी का मायका है जहां वह साल के छह... आगे पड़ें

महोबा के गली-कूचों में आज भी जिंदा हैं आल्हा-ऊदल

महोबा के गली-कूचों में आज भी जिंदा हैं आल्हा-ऊदल

आल्हा और वीर भूमि महोबा एक दूसरे के पर्याय हैं। यहां की सुबह आल्हा से शुरू होती है और उन्हीं से खत्म। यहां नवजात बच्चों के नामकरण भी आल्हखंड के नायकों के नाम पर रखे जाते हैं। कोई भी सामाजिक संस्कार आल्हा की पंक्तियों के बिना पूर्ण नहीं होता। यहां का अपराध जगत भी बहुत कुछ आल्ह खंड से प्रभावित होता है। कुछ वषरें पहले एक व्यक्ति ने किसी आल्हा गायक को गाते सुना कि ‘जाके बैरी सम्मुख ठाड़े, ताके जीवन को धिक्कार’ तो उसने रात में ही जाकर अपने दुश्मन को गोली मार दी। आल्हा का व्यक्तित्व ही कुछ ऐसा... आगे पड़ें

सोमनाथ – सबसे प्रमुख ज्योतिर्लिग

सोमनाथ - सबसे प्रमुख ज्योतिर्लिग

सोमनाथ का बारह ज्योतिर्लिगों में सबसे प्रमुख स्थान है। भारत के पश्चिम में सौराष्ट्र (गुजरात) के समुद्र तट पर ऐतिहासिक प्रभास तीर्थ स्थित है। यहीं प्रसिद्ध व दर्शनीय सोमनाथ मंदिर है। इस मंदिर की छटा देखते ही बनती है। यहां सुबह और शाम अलग-अलग रूपों में सोमनाथ के भाव, भक्ति और श्रद्धापूर्वक दर्शन होते हैं। यहां समुद्र अपनी गूंज और ऊंची-ऊंची लहरों के साथ सदैव शिव के चरण वंदन करता प्रतीत होता है। समुद्र तट पर लोग फोटो खिंचवाने के अलावा ऊंट, घोड़ा आदि की सवारी करते और लहरों के बीच स्नान का लुत्फ... आगे पड़ें

मस्ती का महीना

मस्ती का महीना

खजुराहो डांस फेस्टिवल, खजुराहो, मध्य प्रदेश खजुराहो के मंदिर इतने खूबसूरत हैं कि नृत्य और संगीत मानो यहां के पत्थरों में सब तरफबिखरा पड़ा है। यूं तो हर प्राचीन इमारत का अपना समृद्ध इतिहास होता है लेकिन खजुराहो के मंदिरों जैसे रहस्यमय आवरण में लिपटे पन्ने बहुत कम को ही नसीब होते हैं। खजुराहो डांस फेस्टिवल इसी विरासत को सहेजने की एक सालाना कोशिश है जिसमें देश के सबसे बेहतरीन शास्त्रीय नर्तक रोशनी में नहाए मंदिरों की पृष्ठभूमि में अपने नृत्य का जादू बिखेरते हैं। कत्थक, भरतनाट्यम, कुचीपड़ी,... आगे पड़ें

पत्थरों में छलकता सौंदर्य भोरमदेव

पत्थरों में छलकता सौंदर्य भोरमदेव

छत्तीसगढ़ स्थापत्य कला के अनेक उदाहरण अपने आंचल में समेटे हुए हैं। यहां के प्राचीन मंदिरों का सौंदर्य किसी भी दृष्टि से खजुराहो और कोणार्क से कम नहीं है। यहां के मंदिरों का शिल्प जीवंत है। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से लगभग 116 किलोमीटर उत्तर दिशा की ओर सकरी नामक नदी के सुरम्य तट पर बसा कवर्धा नामक स्थल नैसर्गिक सुंदरता और प्राचीन सभ्यता को अपने भीतर समेटे हुए है। इस स्थान को कबीरधाम जिले का मुख्यालय होने का गौरव प्राप्त है। प्राचीन इतिहास की गौरवशाली परंपरा को प्रदर्शित करता हुआ कवर्धा... आगे पड़ें

अनसूइया – जहां एकाकार होती है भक्ति और प्रकृति

अनसूइया - जहां एकाकार होती है भक्ति और प्रकृति

मनमोहक दृश्यावलियों के बीच उत्तराखंड के तीर्थ हमेशा से ही श्रद्धालुओं और घुमक्कड़ों को अपनी ओर खींचते रहे हैं। यही वजह है कि उत्तराखंड में प्रकृति और धर्म का अद्भुत समावेश देखने को मिलता है। कोलाहल से दूर प्रकृति के बीच हिमालय के उत्तुंग शिखरों पर स्थित इन स्थानों तक पहुंचने में आस्था की असल परीक्षा तो होती ही है साथ ही आम पर्यटकों के लिए भी ये यात्रा किसी रोमांच से कम नहीं होती। चमोली जिले में स्थित अनसूइया देवी का मंदिर एक ऐसा ही स्थान है जहां पर भक्ति और प्राकृतिक सौम्यता एकाकार हो उठती... आगे पड़ें

हर तरफ मेलों का समां

हर तरफ मेलों का समां

ताज महोत्सव सूरजकुंड मेले की ही तरह ताज महोत्सव भी शिल्प, कला, संगीत व स्वाद के मिश्रण का आयोजन है। बसंद के आते-आते ताज नगरी आगरा में सारे रंग बिखर जाते हैं। महोत्सव ताजमहल के ठीक निकट शिल्पग्राम में होता है। महोत्सव की शुरुआत मुगल साम्राज्य के वैभव की पूरी छटा बिखेरने के साथ होती है। यहां आपको आगरा के संगमरमर का, सहारनपुर के लकड़ी का, मुरादाबाद के पीतल का, भदोही के कालीनों का, खुर्जा के मिट्टी का, लखनऊ के चिकन का, बनारस के सिल्क का.. काम देखने को मिलेगा। उत्तर प्रदेश के हर इलाके के खास पकवान चखने... आगे पड़ें

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