धर्म-संस्कृति व त्योहार , से जुड़े परिणाम

रोशनी के उत्सव का महीना

रोशनी के उत्सव का महीना

गंगा महोत्सव, वाराणसी गंगा एक नदी और एक संस्कृति, दोनों ही रूपों में हमेशा से भारतीय जनमानस की चेतना का केंद्र रही है। इसी गंगा का महोत्सव मनाने के लिए भला वाराणसी के घाट से बेहतर जगह क्या हो सकती है। पांच दिन चलने वाला यह उत्सव भारतीय शास्त्रीय संगीत व नृत्य का अद्भुत आयोजन होता है। हर साल इस महोत्सव का समापन कार्तिक पूर्णिमा पर होता है जब वाराणसी में देव दीपावली मनाई जाती है। गंगा की लहरों में उतरते दीपक और पृष्ठभूमि में गूंजती स्वरलहरियां, इससे सुंदर नजारा और कुछ नहीं हो सकता। इस आयोजन... आगे पड़ें

पुष्कर-स्नान का लाभ और मेले का मजा

पुष्कर-स्नान का लाभ और मेले का मजा

देश के हिंदू तीर्थस्थानों में पुष्कर का अलग ही महत्व है। यह महत्व इसलिए बढ़ जाता है कि यह अपने आप में दुनिया में अकेली जगह है जहां ब्रह्मा की पूजा की जाती है। लेकिन इस धार्मिक महत्व के अलावा भी इस जगह में लोगों को आकर्षित करने वाली खूबसूरती है। अजमेर से नाग पर्वत पार करके पुष्कर पहुंचना होता है। इस पर्वत पर एक पंचकुंड है और अगस्त्य मुनि की गुफा भी बताई जाती है। यह भी माना जाता है कि महाकवि कालिदास ने इसी स्थान को अपने महाकाव्य अभिज्ञान शाकुंतलम के रचनास्थल के रूप में चुना था। पुष्कर में एक... आगे पड़ें

देलवाड़ा मंदिर : शिल्प-सौंदर्य का बेजोड़ खजाना

देलवाड़ा मंदिर : शिल्प-सौंदर्य का बेजोड़ खजाना

समुद्र तल से लगभग साढ़े पांच हजार फुट ऊंचाई पर स्थित राजस्थान की मरूधरा के एक मात्र हिल स्टेशन माउंट आबू पर जाने वाले पर्यटकों, विशेषकर स्थापत्य शिल्पकला में रुचि रखने वाले सैलानियों के लिए इस पर्वतीय पर्यटन स्थल पर सर्वाधिक आकर्षण का केंद्र वहां मौजूद देलवाड़ा के प्राचीन जैन मंदिर है। 11वीं से 13वीं सदी के बीच बने संगमरमर के ये नक्काशीदार जैन मंदिर स्थापत्य कला के उत्कृष्ट नमूने है। पांच मंदिरों के इस समूह में विमल वासाही टेंपल सबसे पुराना है। इन मंदिरों की अद्भुत कारीगरी देखने योग्य है।... आगे पड़ें

गया: पितरों की स्मृति का तीर्थ

गया: पितरों की स्मृति का तीर्थ

पुरातन प्रज्ञा के प्रदेश-बिहार’ की राजधानी पटना से तकरीबन 92 कि.मी. दूरी पर स्थित और मोक्ष तोया फल्गु के किनारे शोभायमान गया भारत का प्राचीन, ऐतिहासिक व समुचन तीर्थ है। पांचवां धाम, मोक्ष स्थली, पिंडदान भूमि, विष्णुधाम, प्राच्य युगीन तीर्थ, स्वर्गारोहण्य द्वार आदि कितने ही नामों से संबोधित गया नगरी में हर साल पितृपक्ष के दौरान विशाल मेला लगता है। श्राद्ध, पिंडदान व तर्पण जैसे धार्मिक कर्म भारत में कई जगह किए जाने का विधान है पर पितरों के नाम पर विशाल मेले का आयोजन गया में ही होता है जिसे श्रद्धालु... आगे पड़ें

भीमाकाली मंदिर परंपरा की शक्ति

भीमाकाली मंदिर परंपरा की शक्ति

समुद्र तल से 2165 मीटर की ऊंचाई पर बसे सराहन गांव को प्रकृति ने पर्वतों की तलहटी में अत्यंत सुंदर ढंग से सुसज्जित किया है। सराहन को किन्नौर का प्रवेश द्वार भी कहा जाता है। यहां से 7 किलोमीटर नीचे सभी बाधाओं पर विजय पाकर लांघती और आगे बढ़ती सतलुज नदी है। इस नदी के दाहिनी ओर हिमाच्छादित श्रीखण्ड पर्वत श्रृंखला है। समुद्र तल से पर्वत की ऊंचाई 18500 फुट से अधिक है। माना जाता है कि यह पर्वत देवी लक्ष्मी के माता-पिता का निवास स्थान है। ठीक इस पर्वत के सामने सराहन के अमूल्य सांस्कृतिक वैभव का प्रतीक भीमाकाली... आगे पड़ें

कन्याकुमारी सागरतट पर एक शहर

कन्याकुमारी सागरतट पर एक शहर

भारत के मस्तक पर मुकुट के समान सजे हिमालय के धवल शिखरों को निकट से देखने के बाद हर सैलानी के मन में भारतभूमि के अंतिम छोर को देखने की इच्छा भी उभरने लगती है। शायद इसीलिए हम भी कश्मीर की यात्रा के बाद से ही बिलकुल दक्षिण में स्थित कन्याकुमारी की यात्रा के लिए उत्सुक थे। लेकिन कन्याकुमारी घूमने का मौका हमें कुछ वर्ष बाद मिला। यात्रा का कार्यक्रम तय करते समय हमारा ध्यान रेलवे टाइमटेबल में हिमसागर एक्सप्रेस पर गया। जम्मू-तवी से कन्याकुमारी तक ले जाने वाली यह ट्रेन हमारे देश की सबसे लंबी दूरी... आगे पड़ें

आस्था का सर्वोच्च शिखर: अमरनाथ

आस्था का सर्वोच्च शिखर: अमरनाथ

तारीख 20 जुलाई, समय शाम सात बजे, ऊंचाई समुद्र तल से 3978 मीटर, उजाला अभी भी फैला हुआ है। चारों ओर बर्फ का श्वेत धवल साम्राज्य है। हम लोग एक लंबी, संकरी घाटी के एक से दूसरे सिरे की ओर बढ़ रहे हैं। आज वह चिर प्रतीक्षित क्षण आ पहुंचा जिसके लिए पिछले चार-पांच वर्षो से कोशिश के बावजूद अभी तक सफलता नहीं मिल सकी थी। हम लोग भारत में भगवान शिव के सबसे ऊंचे प्राकृतिक मंदिर के सामने खड़े थे। मैं महादेव शिव के बर्फानी बाबा रूप में अमरनाथ मंदिर के सामने खड़े होकर उसकी प्राकृतिक भव्यता, गुफा विशालता, भक्तों के सैलाब,... आगे पड़ें

इकमरा उत्सव जहां जीवंत हो उठता है भुवनेश्वर

इकमरा उत्सव जहां जीवंत हो उठता है भुवनेश्वर

जाड़े का मौसम आते ही संगीत, नृत्य तथा कई अन्य सांस्कृतिक गतिविधियों के चलते उड़ीसा का पूरा माहौल नई ऊर्जा व उत्साह से भर उठता है। गर्मियों की लू और बारिश की फुहारों के बाद जब साफ-सुथरा आकाश जाड़े के सुहाने मौसम का स्वागत करता है तो उड़ीसा भी अतिथियों के स्वागत के लिए तैयार हो जाता है। इस मौसम में दुनिया के कोने-कोने से लोग यहां की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को देखने, समझने व उसका आनंद लेने के लिए आते हैं, जो विभिन्न उत्सवों के जरिये ललित कलाओं के रूप में सामने होती है। कोणार्क फेस्टिवल हो या पुरी... आगे पड़ें

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