धर्म-संस्कृति व त्योहार , से जुड़े परिणाम

अलग-अलग रंग हैं दशहरे के

अलग-अलग रंग हैं दशहरे के

शरद ऋतु के आगमन के साथ ही समूचे भारत   में दशहरे की तैयारियां शुरू हो जाती हैं। उत्तर भारत में दशहरा सामाजिक-सांस्कृतिक उत्सव के रूप में मनाया जाता है। इसके सबसे लोकप्रिय तत्व रामलीला का उदय बनारस से माना जाता है। बनारस के निकट रामनगर की रामलीला अपनी अलग शैली के लिए विख्यात है। दशहरे से एक माह पूर्व शुरू होने वाली इस लीला का मंचन एक जगह न होकर नगर के विभिन्न स्थानों पर होता है। इसे घटित लीला कहते हैं। चित्रकूट की लीला शैली झांकी लीला कहलाती है। बड़े शहरों में यह तड़क-भड़क वाले आयोजन में बदल... आगे पड़ें

मथुरा जहां बहती है अध्यात्म की धारा

मथुरा जहां बहती है अध्यात्म की धारा

ब्रजभूमि का हृदय माना जाने वाला शहर मथुरा भगवान श्रीकृष्ण का जन्मस्थल होने के कारण तो महत्वपूर्ण है ही, यह  व्यापार और कला का भी प्रमुख केंद्र रहा है। एक समय में यह बौद्ध धर्म के प्रचार का एक बड़ा केंद्र बना था। दिल्ली से 145 किमी और आगरा 58 किमी की दूरी पर मौजूद यह शहर हिंदू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त सप्तपुरियों में से एक है। भगवान श्रीकृष्ण की जन्मभूमि होने के कारण रोज यहां हजारों श्रद्धालु देश-विदेश से आते हैं। सैकड़ों दिव्य व भव्य मंदिरों को अपनी परिधि में समेटे इस शहर के कण-कण... आगे पड़ें

कालजयी कालिंजर

कालजयी कालिंजर

कालिंजर को कालजयी यूं ही नहीं कहा जाता है। इसने कालखंड के प्रत्येक प्रसंग को, चाहे वो प्रागैतिहासिक काल के पेबुल उपकरण हों, पौराणिक घटनाएं हों या 1857 का विद्रोह हो, सबको बहुत ही खूबसूरती से अपने आंचल में समा रखा है। वेदों में उल्लेख के आधार पर जहां इसे विश्व का प्राचीनतम किला माना गया है, वहीं इसके विस्तार और विन्यास को देखते हुए आधुनिक एलेक्जेंड्रिया से भी श्रेष्ठ। वेदों में इसे रविचित्र और सूर्य का निवास माना गया है। पद्म पुराण में इसकी गिनती नवऊखल अर्थात सात पवित्र स्थलों में की गई है। मत्स्य... आगे पड़ें

चलो बुलावा आया है..

चलो बुलावा आया है..

नवरात्र में देवी के स्थानों की यात्रा भारत के धार्मिक पर्यटन का अभिन्न हिस्सा है। शिवपुराण की कथा के अनुसार शिव एक प्रसंग के बाद सती पार्वती के शव को लेकर तीनों लोकों में भ्रमण कर रहे थे, तो भगवान विष्णु ने उनका मोह दूर करने के लिए सुदर्शन चक्र से सती के शव को काट-काट कर गिरा दिया। जिन-जिन स्थानों पर सती के अंग गिरे, वे शक्ति पीठों के रूप में प्रतिष्ठित हुए। कुल 51 शक्तिपीठों में देवी के जिन नौ प्रमुख मंदिरों की खास महत्ता है, उनमें वैष्णो देवी के अलावा नैना देवी, चिंतपूर्णी, ज्वालाजी, बज्रेश्वरी देवी,... आगे पड़ें

मिट्टी में नहाएं या बनाएं रेत के महल

मिट्टी में नहाएं या बनाएं रेत के महल

आनायुत्तू, वदक्कुमनाथा मंदिर, त्रिशूर केरल की प्रकृति के साथ-साथ वहां की धार्मिक रीति में हाथियों की बड़ी भूमिका है। हर साल मलयालम महीने करकीदकम के पहले दिन मनाया जाने वाला यह पर्व दरअसल हाथियों का महाभोज है। इस दिन बड़ी संख्या में कतारबद्ध खड़े हाथियों को विशेष रूप से तैयार किया हुआ भोजन कराया जाता है। इस विशेष भोजन में खासे औषिधीय तत्व भी होते हैं। इन्हें हाथियों की सेहत के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। इसी महीने को आयुर्वेद में तमाम चिकित्सा थेरेपी के लिए भी काफी अहम माना जाता है। इसलिए... आगे पड़ें

फिर चलें लद्दाख

फिर चलें लद्दाख

कई रोमांचप्रेमी ऐसे हैं जो हर साल जून-जुलाई-अगस्त में लद्दाख जाने को सालाना तीर्थयात्रा की तर्ज पर लेते हैं। लेकिन आप रोमांचप्रेमी न हों तो भी लद्दाख की खूबसूरती देखने लायक है। मौसम और माहौल तैयार है, बस आपके आने की देरी है। लद्दाख हिमालयी दर्रो की धरती है। अपने अनूठे प्राकृतिक सौंदर्य के लिए लद्दाख दुनिया में बेमिसाल है। यहं बौद्ध संस्कृति की स्थापना दूसरी सदी में ही हो गई थी। इसी के चलते इसे मिनी तिब्बत भी कहा जाता है। लद्दाख की ऊंचाई कारगिल में 9000 फुट से काराकोरम में 25000 फुट तक है। मेले व... आगे पड़ें

देवीधुरा : पत्थरों से बरसती हैं नेमतें

देवीधुरा : पत्थरों से बरसती हैं नेमतें

उत्तराखंड की संस्कृति यहां के लोक पर्व और मेलों में स्पंदित होती है। यूं तो राज्य में जगह-जगह साल भर मेलों का आयोजन चलता रहता है, लेकिन कुछ मेले ऐसे हैं जो अपनी अलग ही पहचान बनाए हुए हैं। कुमांऊ के देवीधुरा नामक स्थान पर लगने वाला बगवाल मेला इन्हीं में एक है, जो हर साल रक्षा बंधन के दिन मनाया जाता है। इस अनूठे मेले की खास विशेषता ये है कि इसमें पत्थरों का रोमांचकारी युद्ध होता है, जिसे देखने के लिए दूर-दूर से लोग जुटते हैं। चंपावत जिला मुख्यालय से करीब 60 किलोमीटर दूर अल्मोड़ा-लोहाघाट मार्ग पर... आगे पड़ें

हणोगी माता

हणोगी माता

हिमाचल प्रदेश के अलग-अलग शोभा वाले अनेक मंदिरों में से एक है हणोगी माता मंदिर। राष्ट्रीय राजमार्ग 21 पर मंडी और कुल्लू के बीच बने पंडोह बांध से कुछ आगे चलकर व्यास नदी के दूसरी ओर यह एक पर्वत पर शोभायमान है जिसका सौंदर्य देखते ही बनता है। देवी के तीन रूप हणोगी नामक स्थान पर स्थित इस मंदिर में देवी तीन रूपों में विद्यमान है। कहा जाता है प्राचीन काल में यहां अभय राम गुरु रहा करते थे जो तांत्रिक विद्या में निपुण थे। वह अपनी शक्तियों द्वारा तुंगाधार पर्वत श्रृंखला से तुंगा माता को हणोगी में लाए।... आगे पड़ें

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