धर्म-संस्कृति व त्योहार , से जुड़े परिणाम

लद्दाख: हिमालय पार की धरती

लद्दाख: हिमालय पार की धरती

लद्दाख हिमालयी दर्रो की धरती है। उत्तर में काराकोरम पर्वत श्रंखला और दक्षिण में हिमालय से घिरे इस इलाके में आबादी का घनत्व बहुत कम है। इसकी दुर्गमता का आलम यह है कि इसके पूर्व में दुनिया की छत कहा जाने वाला तिब्बत, उत्तर में मध्य एशिया, पश्चिम में कश्मीर और दक्षिण में लाहौल-स्पीति घाटियां हैं। अपने अनूठे प्राकृतिक सौंदर्य के लिए लद्दाख बेमिसाल है। यहॉ बौद्ध संस्कृति की स्थापना दूसरी सदी में ही हो गई थी। इसीलिए इसे मिनी तिब्बत भी कहा जाता है। लद्दाख की ऊंचाई कारगिल में 9000 फुट से लेकर काराकोरम... आगे पड़ें

दक्षिणेश्वर: जहां रामकृष्ण हुए परमहंस

दक्षिणेश्वर: जहां रामकृष्ण हुए परमहंस

कोलकाता में हुगली के पूर्वी तट पर स्थित मां काली व शिव का प्रसिद्ध मंदिर है दक्षिणेश्वर। कोलकाता आने वाले प्रत्येक सैलानी की इच्छा यहां दर्शन करने की अवश्य होती है। यह मंदिर लगभग बीस एकड़ में फैला है। वास्तव में यह मंदिरों का समूह है, जिसमें प्रमुख है-काली मां का मंदिर, जिन्हें भवतारिणी भी कहते हैं। मंदिर में स्थापित मां काली की प्रतिमा की आराधना करते-करते रामकृष्ण ने ‘परमहंस’ अवस्था प्राप्त कर ली थी। इसी प्रतिमा में उन्होंने मां के स्वरूप का साक्षात्कार कर, जीवन धन्य कर लिया था। पर्यटक... आगे पड़ें

पालमपुर : हिमाचल का चाय बागान

पालमपुर : हिमाचल का चाय बागान

पालमपुर हिमाचल प्रदेश की मनोरम वादियों में बसा एक छोटा सा पर्वतीय स्थल है। हिमाचल प्रदेश की इस छोटी सी सैरगाह को धौलाधार पर्वतमाला के साये में फैली कांगड़ा घाटी का सुंदरतम स्थान कहा जाता है। समुद्र तल से 1205 मीटर की ऊंचाई पर स्थित पालमपुर सर्दी हो या गर्मी, हर मौसम में सैलानियों को आकर्षित करता है। कहते हैं पालमपुर के नाम की उत्पत्ति स्थानीय बोली के ‘पुलम’ शब्द से हुई थी। जिसका अर्थ ”पर्याप्त जल” होता है। वास्तव में इस क्षेत्र में जल की कोई कमी नही है। हर ओर जल के सोते, झरने या नदियां... आगे पड़ें

ब्रज की होली: लट्ठ कोड़े पड़ें दनादन

ब्रज की होली: लट्ठ कोड़े पड़ें दनादन

रंगों का त्योहार होली यों तो पूरे देश में उत्साह से मनाया जाता है लेकिन कान्हा की नगरी मथुरा में इसका अंदाज ही कुछ अलग है। होली के हुरियारों पर कहीं डंडों की मार पड़ती है तो कहीं कोड़ों से पीटा जाता है। गुलाल और रंगों के साथ ही कीचड़ के थपेड़े हुरियारों को झेलने पड़ते हैं। लेकिन इस मार में ही अजब सा प्यार है। यही कारण है कि बृज की होली का खुमार पूरे देश में चढ़ता है और हर साल लाखों लोग इस त्योहार को मनाने यहां आते हैं। होली के त्योहार की शुरुआत मंदिरों में बसंत पंचमी से हो जाती है। मंदिरों में... आगे पड़ें

पंचप्रयाग : गंगा की धारा के साथ धर्म भी और पर्यटन भी

पंचप्रयाग : गंगा की धारा के साथ धर्म भी और पर्यटन भी

जब हम प्रयाग की बात करते हैं तो जेहन में सीधे इलाहाबाद में संगम का ध्यान आता है। लेकिन इलाहाबाद के अलावा भी भारत में ऐसे कई संगम हैं जो उतने ही धार्मिक व पौराणिक महत्व के हैं। प्रयाग, नदियों के संगम को कहते हैं और इसे पवित्र माना जाता है। इलाहाबाद में गंगा-यमुना-सरस्वती का संगम होने के कारण इसे प्रयाग कहा जाता है। इसी कारण इसे एक पवित्र तीर्थ स्थल के रूप में युगों-युगों से मान्यता मिली हुई है। भगवान शिव ने स्वर्ग-सरिता गंगा को धरती पर उतारने के लिए अपनी जटाओं का सहारा दिया, तो वह असंख्य धाराओं... आगे पड़ें

सिक्किम : कंचनजंघा की गोद में बसा स्वर्ग

सिक्किम : कंचनजंघा की गोद में बसा स्वर्ग

छोटा सा लेकिन प्राकृतिक दृष्टि से बेहद खूबसूरत राज्य सिक्किम हिमालय के ठीक पूर्वी छोर पर स्थित है। हिमालय से इसकी नजदीकी इतनी ज्यादा है कि इस पर दुनिया की तीसरी सबसे ऊंची चोटी कंचनजंघा (8598 मीटर) की छत्रछाया मानी जाती है। सिक्किम कंचनजंघा को देवता की तरह पूजता है। यहां समुद्र तल से 224 मीटर से लेकर 8590 मीटर तक की ऊंचाई वाले स्थान है। बर्फीली चोटियां हैं तो घने जंगल भी। धान के लहलहाते खेत हैं और उछलती-कूदती नदियां भी। इसलिए यहां वनस्पति, फल-फूलों, वन्य प्राणियों आदि की जो जैव-विविधता देखने को मिलती... आगे पड़ें

त्र्यंबकेश्वर : एक तीर्थ में तीनों देवों के दर्शन

त्र्यंबकेश्वर : एक तीर्थ में तीनों देवों के दर्शन

भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिगों में श्री त्र्यंबकेश्वर का दसवां स्थान है। महाराष्ट्र में नासिक शहर से 35 किमी दूर गौतमी नदी के तट पर स्थित यह दिव्य स्थान ब्रह्मगिरि से सटा है। समुद्रतट से ढाई हजार फुट की ऊंचाई पर बसे त्रयंबक शहर में तीर्थयात्री पूरे साल आते रहते हैं। त्र्यंबकेश्वर जाने से पहले श्रद्धालु नासिक में गोदावरी के घाट पर स्नान करते हैं। यहां मां के निमित्त पिंडदान किया जाता है। अत: कई यात्री श्राद्ध के बाद मंदिर जाते हैं। नासिक से मंदिर तक 35 किमी की यात्रा सुंदर पड़ावों से होकर... आगे पड़ें

वाराणसी: आस्था, विश्वास और पर्यटन का केन्द्र

वाराणसी: आस्था, विश्वास और पर्यटन का केन्द्र

वाराणसी माटी-पाथर का बना महज एक शहर नहीं अपितु आस्था विश्वास और मान्यताओं की ऐसी केन्द्र भूमि है जहां तर्को के सभी मिथक टूट जाते हैं। जीवंत रहती है तो सिर्फ समर्पण भरी आस्था। अपने अनेक नामों से जानी जाने वाली वाराणसी दुनिया की प्राचीनतम नगरियों में से एक है। तिथियों के वंदनवार में सिमटी वर्ष, महीने और सदियां गुजर गयीं किन्तु वाराणसी जहां की तहां बनी रही। वाराणसी मौज मस्ती और अपने फन का अलग शहर है। इसका एक नाम काशी है तो दूसरा बनारस भी। आदि काल के पन्नों का नाम वृहच्चरण था और आगे आने पर महाजनपद... आगे पड़ें

Page 4 of 19« First...«23456»10...Last »

खोज विकल्प

English Hindi

आपके आस-पास

Jagran Yatra