श्रद्धा की रोमांचक यात्रा अमरनाथ

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आस्था एवं साहस की बुलंदियों का पर्याय है अमरनाथ यात्रा। समुद्रतल से 14500 फुट की ऊंचाई पर विशाल प्राकृतिक गुफा के रूप में अवस्थित है यह तीर्थ। इसी गुफा में भगवान शिव हिमलिंग के रूप में आकार लेते हैं। हर वर्ष सावन माह में इस हिम शिवलिंग के दर्शन के लिए श्रद्धालुओं का तांता लग जाता है। अमरनाथ का संबंध अमरत्व प्राप्त करने की कथा से है। मान्यता है कि एक बार देवी पार्वती ने भगवान शिव से अमरकथा सुनाने का आग्रह किया। कथा वह ऐसे स्थान पर सुनाना चाहते थे जहां अन्य कोई उसे न सुन सके। इसके लिए उन्होंने अपने त्रिशूल से एक पर्वत में वार कार गुफा का रूप दिया और वहीं बैठकर अमरकथा सुनानी शुरू की। शिव-पार्वती के प्रस्थान के बाद वह पवित्र गुफा अमरेश्वर या अमरनाथ कहलाने लगी। हर साल सावन में वहां शिव अपने भक्तों को प्रतीक रूप में दर्शन देते हैं। वहां प्राकृतिक रूप से बर्फ का शिवलिंग स्वयं ही बनता है, जो सावन की पूर्णिमा को पूर्णता को उपलब्ध होता है।

छड़ी मुबारक यात्रा

अमरनाथ यात्रा को छड़ी मुबारक यात्रा भी कहते हैं। कथा है कि सबसे पहले महर्षि भृगु ने यहां श्रावण पूर्णिमा को पवित्र हिमलिंग के दर्शन किए थे। उन्होंने उसी दिन अपने एक शिष्य को प्रहरी के रूप में छड़ी सहित यहां भेजा था। इसलिए आज भी यहां छड़ी लाने की परंपरा है। उसके बाद हर वर्ष सावन में ऋषि-मुनि, साधु-संत यहां छड़ी लेकर आने लगे। अमरनाथ यात्रा के दो मार्ग हैं। एक पहलगाम से शुरू होता है तो दूसरा सोनमर्ग की ओर से। दूसरा मार्ग छोटा तो है पर खतरनाक होने के कारण इधर से कम ही यात्री जाते हैं। पहलगाम का मार्ग बेहतर है। पहलगाम से अमरनाथ गुफा की दूरी 56 किमी है। 16 किमी दूर चंदनबाड़ी तक यात्री जीप आदि से पहुंच सकते हैं। आगे की यात्रा पैदल तय करनी होती है। आप चाहें तो पहलगाम से घोड़े आदि की व्यवस्था कर सकते हैं।

दुर्गम पिस्सु घाटी

चंदनबाड़ी प्राकृतिक छटा से भरपूर सुंदर स्थल है। इसका प्राचीन नाम स्थानु आश्रम था। एक बार भगवान शिव ने यहां तप किया था। पहाड़ों के बीच बहती लिछर नदी का दृश्य यहां से बहुत सुंदर नजर आता है। इसी नदी के सहारे यात्रा आगे बढ़ती है। दो किमी आगे पिस्सु घाटी नामक दुर्गम स्थान आता है। इसका वास्तविक नाम पौषाख्य पर्वत था। यहां कभी देवासुर संग्राम हुआ था। इससे आगे कुछ हिमनद आते हैं, जिन्हें पार करलोग शेषनाग पहुंचते हैं। यहां एक पवित्र झील है। इसका प्राचीन नाक शिश्रमनाग था। यात्रा का पहला रात्रि पड़ाव यहीं है।

पंजतरणी की ओर

रात्रि विश्राम के बाद यात्री पंजतरणी की ओर बढ़ते हैं। करीब 3 किमी की कठिन चढ़ाई के बाद महागुनस नामक स्थान आता है। यह इस यात्रा का सबसे ऊंचा प्वाइंट है। अधिक ऊंचाई के कारण यहां प्राय: बर्फ का साम्राज्य नजर आता है। कुछ लोगों को यहां सांस लेने में कठिनाई होती है। वैसे यहां बिखरा नैसर्गिक सौंदर्य उन्हें बड़ी राहत देता है। नीचे की ढलानों पर दूर तक तीर्थयात्रियों की कतार का दृश्य भी यहां से अनोखा नजर आता है। ऊंचे-नीचे पथरीले रास्ते पर बढ़ते हुए श्रद्धालु शाम से पहले पंजतरणी पहुंचते हैं। यहां रात्रि आवास की व्यवस्था है। यहां बहती नदी की पांच धाराओं के कारण इसका नाम पंचतरणी पड़ा था।

अमरनाथ गुफा

यहां से पवित्र अमरनाथ गुफा की दूरी छह किमी रह जाती है,जिसके लिए यात्री सुबह जल्दी चल पड़ते हैं। लगभग तीन घंटे में गुफा के निकट पहुंचते  हैं। जहां भक्तों की कतार लगी होती है। विशाल गुफा के रूप में अपनी मंजिल सामने देख उनकी थकान मिट जाती है। गुफा में प्रवेश कर श्रद्धालुओं को पारदर्शी हिमलिंग के दर्शन होते हैं। तब उन्हें अपनी कठिन यात्रा रूपी साधना पूरी होने का अहसास होता है। पवित्र शिवलिंग के साथ ही दो हिमपिंड और नजर आते हैं। ये पार्वती एवं गणेश माने जाते हैं। अमरनाथ गुफा लगभग 30 फुट चौड़ी एवं 15 फुट से अधिक ऊंची है। गुफा की गहराई 50 फुट के करीब है। गुफा की छत से गिरने वाली जल बूंदों के जमने से यहां हिमलिंग बनता है। यह स्वनिर्मित शिवलिंग चंद्रमा के आकार के साथ बढ़ते हुए सावन की पूर्णिमा को अपनी पूर्णता प्राप्त करता है। इसलिए पूर्णिमा के दिन इसके दर्शन की अधिक महत्ता है। गुफा के एक हिस्से में सफेद रेत निकलती है। जिसे अमर विभूति मान कर मस्तक से लगाया जाता है। अपने आराध्य के समक्ष खड़े भक्तों की श्रद्धा देख लगता है मानों शिव ने उन्हें साक्षात दर्शन दिए हों।

हर वर्ष करीब डेढ़ लाख यात्री अमरनाथ यात्रा में शामिल होते हैं। मार्ग में सीमित सुविधाओं के कारण यात्रियों की संख्या पर नियंत्रण के लिए कुछ वर्षो से पंजीकरण जरूरी कर दिया गया है। यात्रा आरंभ होने से पूर्व ही पंजीकरण केंद्र घोषित कर दिए जाते हैं। यात्रियों को मार्ग में सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए बहुत सी समाजसेवी एवं धार्मिक संस्थाएं लंगर तथा शिविर लगाती है। जिससे यह यात्रा काफी सरल महसूस होती है। किंतु फिर भी अमरनाथ यात्रा के लिए पूरी तैयारी से जाना चाहिए। अत्यधिक ऊंचाई तक पहुंचने पर मौसम के प्रतिकूल प्रभाव से बचने के लिए तो ऊनी वस्त्र एवं दवाइयों का विशेष ध्यान रखना चाहिए। यहां तक संभव हो यात्रियों को अपने समूह के साथ ही चलना चाहिए।

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