धर्म-संस्कृति व त्योहार , से जुड़े परिणाम

पर्यटन उत्सवों में उड़ीसा की संस्कृति की झलक

पर्यटन उत्सवों में उड़ीसा की संस्कृति की झलक

उड़ीसा में कहावत है, ‘बारामासे तेरा पर्व’ यानी बारह महीनों मे तेरह पर्व। यह कहावत यहां के सांस्कृतिक परिवेश को व्यक्त करती है। पर्वो के अलावा यहां कुछ अन्य उत्सवों का आयोजन भी होता है। राज्य की सांस्कृतिक विरासत से लोगों को परिचित कराने के इरादे से खास तौर से तैयार किए गए ये उत्सव खूब लोकप्रिय हुए हैं। इनमें से ज्यादातर उड़ीसा के पर्यटन विभाग की ओर से आयोजित किए जाते हैं। इसमें भारत सरकार के पर्यटन मंत्रालय, क्षेत्रीय सांस्कृतिक केंद्रों तथा अन्य संगठनों का भी सहयोग होता है। कोणार्कउत्सव... आगे पड़ें

आस्था की नगरी अमृतसर

आस्था की नगरी अमृतसर

अमृतसर एक धार्मिक एवं ऐतिहासिक शहर है। इस शहर को गुरुग्रंथ साहिब में ‘सिफली दा घर’ कहा गया है, जिसका अर्थ है ऐसा पवित्र स्थान जहां परमेश्वर की कृपा बरसती है। संसार भर के सिक्खों के लिए पवित्रतम धर्मस्थल स्वर्णमंदिर की इस नगरी का नाम इतिहास में सुनहरे अक्षरों में दर्ज है। यह शहर आज 425 वर्ष पुराना है। इस लंबे इतिहास में इस शहर पर आक्रांताओं की कुदृष्टि भी कई बार पड़ी, लेकिन फिर भी इसका गौरव कभी कम नहीं हुआ। इसीलिए आज आस्था की नगरी अमृतसर का धर्मवैभव देश-विदेश से हजारों अनुयायियों को रोज अपनी... आगे पड़ें

असम में देखें प्रकृति का सुंदर रूप

असम में देखें प्रकृति का सुंदर रूप

विभिन्न प्रकार की प्राकृतिक संपदा से भरपूर पूर्वोत्तर भारत के हरे-भरे आंचल में बसे असम राज्य का सौंदर्य देखते ही बनता है। चारों ओर हरियाली ही हरियाली, चाय के बेशुमार बागान, घने जंगल और तरह-तरह के बांसों के झुरमुट राज्य की सुंदरता में रंग भरते प्रतीत होते हैं। प्रांत के बीचोबीच बहता विशाल ब्रह्मपुत्र नदी यहां अपने-आप में पर्यटकों के लिए एक विशेष आकर्षण है। अधिकतर भूमि समतल न होने से स्थानीय लोग अपने राज्य को असम कहना पसंद करते हैं। उत्तर और पूर्व में इसकी सीमाएं भूटान और अरुणाचल प्रदेश से... आगे पड़ें

सांगला जहां देवता निवास करते हैं

सांगला जहां देवता निवास करते हैं

आज आखिरकार हम लोग शिमला पहुंच गए, पिछले एक माह से इस कार्यक्रम के बार-बार बनने और स्थगित होने से मैं परेशान हो गया था। सांगला क्षेत्र में पहली बार मैं 1997 में आया था। तब हम रोहतांग से ग्राम्फू, बाताल, चंद्रताल, कुंजुमदर्रा, काजा किब्बर, किन्नौर आदि होते हुए सांगला पहुंचे थे, लेकिन उस समय सांगला में हो रही तेज बारिश के कारण अगले ही दिन घाटी से पलायन कर नारकंडा चले गए थे। हमारे यहां से गुजरने के चौथे दिन ही वांगटू पर बादल फटने की दुर्घटना हुई थी और वहां बड़े क्षेत्र में भीषण तबाही मच गई थी। वांगटू से... आगे पड़ें

लाहौल जहां पर्वतों पर झुकता है आसमान

लाहौल जहां पर्वतों पर झुकता है आसमान

लाहौल को चीनी यात्री ह्वेनसांग ने ‘लू यू लो’ और महापंडित राहुल सांकृत्यायन ने ‘देवताओं का देश’ कहकर पुकारा था। तिब्बती भाषा में लाहौल को ‘दक्षिण देश’ कहा जाता है। वैसे गरझा और ल्हो-युल भी लाहौल के नाम हैं। 2,225 वर्ग मील में फैली लाहौल घाटी देश के पश्चिमोत्तर भाग में कुल्लू, चंबा और लद्दाख की सीमाओं का संगम  है। इसकी आबादी करीब 35 हजार है। जहां हिमाचल प्रदेश की औसत आबादी पचास व्यक्ति प्रति किमी. है, वहीं लाहौल घाटी की दो व्यक्ति प्रति किमी. है। चारों तरफ से दर्रा, हिमखंडों और आसमान छूते... आगे पड़ें

नटराज और काली की लीलाभूमि चिदंबरम

नटराज और काली की लीलाभूमि चिदंबरम

चिदंबरम से सबसे पहले मेरा परिचय एक फिल्म के माध्यम से हुआ था। मलयालम के मशहूर फिल्मकार अरविंदन ने ‘चिदंबरम’ नाम से एक फिल्म बनाई थी। इस फिल्म का कथानक स्त्री-पुरुष संबंधों में विश्वासघात पर केंद्रित है। हालांकि इस फिल्म में चिदंबरम की ऐतिहासिक-सांस्कृतिक विरासत को खास अभिव्यक्ति मिल सकी थी और न ही वहां के स्थानीय जनजीवन के किसी पक्ष को। बस फिल्म के अंत में जब नायक पर अपराध बोध हावी हो जाता है तब उसे चिदंबरम की याद आती है। अपनी भावप्रवणता और कथ्य की गहराई के कारण यह फिल्म दर्शकों और समीक्षकों... आगे पड़ें

डलहौजी: सपनों का हिमलोक

डलहौजी: सपनों का हिमलोक

हिमाचल प्रदेश का छोटा सा शहर डलहौजी कुदरत के खूबसूरत नजारों के लिए दुनिया भर में जाना जाता है। घास के मैदान के रूप में जाना जाने वाला खजियार प्राकृतिक सौंदर्य के साथ ही धार्मिक आस्था की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। जबकि धार्मिक आस्था, कला, शिल्प, परंपराओं और प्राकृतिक सौंदर्य को अपने आंचल में समेटे चंबा हिमाचल की सभ्यता और संस्कृति का जीवंत प्रतीक है। गर्मी के मौसम में दैनिक जीवन की भागमभाग और प्रदूषण से जब ज्यादा ही उकताहट और बेचैनी होने लगती है तो पर्वतों की हसीन वादियां पुकारने लगती हैं।... आगे पड़ें

उड़ीसा : जहां विराजते हैं जगत के नाथ

उड़ीसा : जहां विराजते हैं जगत के नाथ

उड़ीसा का नाम लेते ही आंखों के सामने दूर-दूर तक फैले सागर और पत्थरों में उकेरे देवस्थलों की एक अद्भुत और बहुरंगी छटा तैर जाती है। रंगीन चित्रों के इस दृश्य में क्या नहीं होता-कोणार्क का अप्रतिम सूर्य मंदिर, पुरी की विशाल रथ यात्रा, भाव और भक्ति को समेटे ओडिसी नृत्य से लुभाती बालाएं, खंडगिरि-उदयगिरि की प्राचीन गुफाएं, अपनी कलाबाजियों से अलौकिक आनंद की अनुभूति कराता सागर तट और भारतीय के इतिहास  के सबसे महत्वपूर्ण मोड़ का साक्षी धौली। प्रकृति ने तो उड़ीसा को अपना खजाना खुले हाथों से लुटाया... आगे पड़ें

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