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धर्म-संस्कृति व त्योहार , से जुड़े परिणाम
हिमालय की गोद में बसे सिक्किम राज्य को प्रकृति के रहस्यमय सौंदर्य की भूमि या फूलों का प्रदेश कहना गलत नहीं होगा। वास्तव में यहां के नैसर्गिक सौंदर्य में जो आकर्षण है, वह अन्यत्र दुर्लभ है। नदियां, झीलें, बौद्ध मठ और स्तूप तथा हिमालय के बेहद लुभावने दृश्यों को देखने के अनेक स्थान, ये सभी हर प्रकृतिप्रेमी को बाहें फैलाए आमंत्रित करते हैं। विश्व की तीसरी सबसे ऊंची पर्वतचोटी कंचनजंगा (28156 फुट) यहां की सुंदरता में चार चांद लगाती है। सूर्य की सुनहली किरणों की आभा में नई-नवेली दुलहन की तरह दिखने... आगे पड़ें
उफनती नदियों, हिमाच्छादित चोटियों, मनमोहक झीलों, वनस्पतियों और वन्य जीवों से परिपूर्ण हिमालय को देव भूमि कहा जाता है। यहां की ठंडी हवा और हिमालय की छटा स्वर्गिक सुख प्रदान करती है। छह जिलों-देहरादून, उत्तरकाशी, चमोली, रुद्र प्रयाग, पौड़ी, टिहरी से मिलकर बना गढ़वाल, भक्तों के लिए देव भूमि है। एडवेंचर के शौकीन, मौज-मस्ती करने वाले और तीर्थाटन करने वाले सैनानियों के लिए यह एक बेहतरीन स्थल है। बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री जैसे पवित्र धाम भी यहीं स्थित हैं। गंगा और यमुना जैसी पवित्र... आगे पड़ें
देशभर में होने वाली शक्ति उपासना में दुर्गापूजा का एक अहम स्थान है। सारे देश में जगह-जगह विशेषकर बंगाल में व्यापक रूप से मनाये जाने वाले इस पर्व पर जैसे आस्था का सागर ही उमड़ आता है। इसीलिए प्रतिवर्ष पूजा के समय हर ओर आस्था का एक वैभवशाली रूप देखने को मिलता है। इसके साथ ही दुर्गापूजा हर किसी के लिए अनूठे उल्लास, असीम उत्साह और तरंगित उमंगों का पर्व है। देवी दुर्गा का उदय हमारी संस्कृति में दुर्गा अनेक शक्तियों के संचय की प्रतीक हैं। शक्ति की देवी दुर्गा के उदय की कथा हमें यही बताती है कि सभी... आगे पड़ें
भारत के इतिहास में कई राजवंशों ने अपने स्थापत्य शिल्प की अमिट छाप आने वाली सहस्राब्दियों के लिए छोड़ी है। दक्षिण भारत का विजयनगर साम्राज्य ऐसा ही एक बड़ा राज्य रहा है, जिसके अमूल्य निर्माण आज भी हमारी सभ्यता की महत्वपूर्ण धरोहर हैं। राजा कृष्णदेव राय विजयनगर साम्राज्य के सबसे लोकप्रिय शासक थे। राजा कृष्णदेव राय के राज्याभिषेक के पांच सौ वर्ष पूरे हो चुके हैं। उस दौर के पुरातात्विक महत्व के चिन्ह हमें राजा कृष्णदेव राय ही नहीं, पूरे विजयनगर साम्राज्य के गौरवशाली अतीत में झांकने के लिए... आगे पड़ें
जयपुर के समीप स्थित आमेर का किला कछवाहा राजपूतों के गौरवशाली इतिहास का गवाह है। आमेर की घाटी में मीणाओं को फतह कर उन्होंने जब आमेर नगरी बसाई तो वहीं एक पहाड़ी पर उन्होंने भव्य किले का निर्माण कराया था। वही किला आज आमेर फोर्ट के नाम से विख्यात है। जयपुर आने वाले सैलानी इस किले को देखे बिना अपनी यात्रा पूरी नहीं मानते। आमेर घाटी को फूलों की घाटी कहा जाता है। घाटी में प्रवेश करते ही दूर से विशाल दुर्ग की प्राचीर, उसके गुंबद, बुर्ज और प्रवेशद्वार नजर आने लगते हैं। जिस पहाड़ी पर आमेर दुर्ग स्थित... आगे पड़ें
दुनिया के इतिहास में अगर ऐसा सम्राट ढूंढा जाए जिसे शौर्य और शांति दोनों के लिए जाना जाता हो तो वह अशोक हैं। जिन लोगों के कारण भारतभूमि स्वयं को गौरवान्वित अनुभव करती है उनमें अशोक भी एक हैं और इसीलिए दुनिया के महान सम्राटों में उनकी गिनती की जाती है। भारत के गौरव को बढ़ाने के लिए उन्होंने शांति का संदेश तो दूर-दूर तक फैलाया ही, इसे मूर्त रूप भी दिया। यह मूर्तमान स्वरूप हम आज भी देख सकते हैं भोपाल से करीब 46 किमी दूर सांची स्तूप के रूप में। शांति में आस्था का प्रतीक ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी यानी... आगे पड़ें
प्राचीन किले, महल, इमारतें आदि दर्शनीय स्थलों के अतिरिक्त राजस्थान में वर्ष भर चलते रहने वाले कई त्योहारों, महोत्सवों और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के चलते देशी और विदेशी पर्यटकों का आना-जाना हमेशा बना रहता है। इनमें एक महत्वपूर्ण उत्सव है ‘नागौर उत्सव’, जो मरुभूमि में वसंत ऋतु के आगमन पर आयोजित किया जाता है। इस मौके पर बहुत बड़ा पशु मेला भी यहां लगता है। नृत्य और संगीत से सराबोर शाम, हस्तशिल्प मेला, ऊंटों की दौड़ और उनकी सजावट की प्रतिस्पर्धा, नागौरी बैलों और घोड़ों की दौड़, कई अन्य खेल प्रतिस्पर्धाएं,... आगे पड़ें
राजस्थान को महलों, किलों और हवेलियों की धरती होने के साथ-साथ मेलों और उत्सवों की धरती होने का गौरव भी हासिल है। मरुभूमि के इस अंचल को प्रकृति ने भले ही चटख रंगों से नहीं संवारा, लेकिन मरुवासियों ने इसे अपनी संस्कृति के रंगों से ऐसा सजा लिया है कि दुनिया देखते नहीं थकती है। इन रंगों की छटा यहां के मेलों और उत्सवों में नजर आती है। लोक के ऐसे ही रंगों से सजा एक शानदार आयोजन है पुष्कर मेला। जैसा कि नाम से ही विदित होता है, यह मेला राजस्थान की मंदिर नगरी पुष्कर से जुड़ा है। वैसे तो वर्ष भर पुष्कर में... आगे पड़ें
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