शिल्प में दर्ज अतीत सुनहरे दौर का

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भारत के इतिहास में कई राजवंशों ने अपने स्थापत्य शिल्प की अमिट छाप आने वाली सहस्राब्दियों के लिए छोड़ी है। दक्षिण भारत का विजयनगर साम्राज्य ऐसा ही एक बड़ा राज्य रहा है, जिसके अमूल्य निर्माण आज भी हमारी सभ्यता की महत्वपूर्ण धरोहर हैं। राजा कृष्णदेव राय विजयनगर साम्राज्य के सबसे लोकप्रिय शासक थे। राजा कृष्णदेव राय के राज्याभिषेक के पांच सौ वर्ष पूरे हो चुके हैं। उस दौर के पुरातात्विक महत्व के चिन्ह हमें राजा कृष्णदेव राय ही नहीं, पूरे विजयनगर साम्राज्य के गौरवशाली अतीत में झांकने के लिए प्रेरित करते हैं। उनके बनवाए वास्तुशिल्प दक्षिण भारत में कई जगह मौजूद हैं। जो आज देश-विदेश के पर्यटकों को बरबस आकर्षित करते हैं।

रोम से अधिक गरिमा

विजयनगर साम्राज्य के स्मृतिचिन्हों की खोज में निकलें तो शुरुआत उनके राजधानी शहर विजयनगर से ही करनी होगी। अब इसे हंपी कहते हैं। कर्नाटक राज्य में तुंगभद्रा नदी के तट पर स्थित इस शहर को सातवीं शताब्दी में पंपातीर्थ और पंपापुरा कहा जाता था। यह नाम स्थानीय नदी पंपा के आधार पर पड़ा था। बाद में राजा संगम के पुत्र हरिहर एवं बुक्का ने विजयनगर साम्राज्य की स्थापना की। पहले उन्होंने इसे हस्तिनावती नाम दिया, पर कुछ वर्ष बाद अपने गुरुधर्माचार्य विद्यारण्य की प्रेरणा से नाम बदलकर विजयनगर कर दिया। विजयनगर साम्राज्य के शासकों ने 1336 से 1646 तक शासन किया। इस बीच दक्षिण भारत में वास्तुशिल्प के कई अनूठे प्रतिमान स्थापित किए गए।

1509 में राजा कृष्णदेव राय ने सत्ता संभाली। इसी दौर में विजयनगर का वैभव पराकाष्ठा पर पहुंचा। उन दिनों इसकी गरिमा विश्र्व में रोम के महान राज्य से भी अधिक महान मानी गई। सत्ता का केंद्र राजधानी विजयनगर थी। जो स्थान राजधानी की धुरी था, वही आज हंपी के रूप में जाना जाता है। कई महत्वपूर्ण निर्माण वहीं हुए थे। आज भी 60 वर्गमील के क्षेत्र में विजयनगर व उसके उपनगरों के अवशेष हंपी के चारों ओर मौजूद हैं। हंपी के ध्वंसावशेष आज भारतीय वास्तु एवं शिल्पकला की महान उपलब्धियों में गिने जाते हैं।

भव्यता का आभास है बस

हंपी की भौगोलिक स्थिति इसे अनोखा स्वरूप प्रदान करती है। यहां घाटियों और टीलों के बीच वास्तुशिल्प के छोटे-बड़े एक हजार के करीब उत्कृष्ट नमूने मौजूद हैं। इनके महत्व का अनुमान इस बात से लगता है कि इनमें से 56 चीजें यूनेस्को द्वारा संरक्षित हैं। यूनेस्को ने उन्हें विश्व स्मारक का दर्जा दिया है। करीब 650 धरोहर कर्नाटक राज्य के संरक्षण में हैं। इनके अलावा लगभग 300 छोटे-छोटे स्मारक यहां और हैं। हंपी विश्व स्तर पर देश के पांच सबसे लोकप्रिय पर्यटन स्थलों में से है।

विजयनगर के शासकों द्वारा किले, महल और कई मंदिरों का निर्माण कराया गया। उनकी वास्तुशैली चालुक्य, होयसाल, पांड्य और चोल शैलियों का मिश्रण थी। उस शैली में ही उन्होंने अपने ढंग से नए सूत्र गढ़ कर नई विशिष्टताओं को जन्म दिया और स्थापत्य के अनेक प्रतिमान स्थापित किए। हालांकि समय के प्रहार व आक्त्रांताओं के विध्वंस के कारण बाद में इन गौरवशाली संरचनाओं को बहुत क्षति पहुंची। दुखद बात है कि उनके द्वारा बनवाया गया कोई राजप्रासाद या दुर्ग अपने वास्तविक रूप में शेष नहीं है। उत्खनन से महलों के जो अवशेष उजागर हुए वे महलों की भव्यता का सिर्फ आभास ही देते हैं।

महलों में याली की मूर्तियां

विजयनगर के महलों का वर्णन उस दौर के कवियों और वहां आने वाले यात्रियों के वृत्तांतों से मिलता है। आज उन महलों के खंडहर यात्रियों में उत्सुकता जगाते हैं। हंपी में लगभग एक किमी का क्षेत्र ऐसा है जहां 30 से अधिक राजमहल थे। भग्नावशेषों से मालूम होता है कि यहां महलों का पूरा परिसर एक चारदीवारी में होने के बजाय हर महल अलग चारदीवारी से घिरा होता था। सभी महल उत्तर या पूर्वाभिमुख थे। इनका निर्माण ऊंचे विशाल चबूतरे पर ग्रेनाइट पत्थर से हुआ था। प्रवेशद्वार मंदिर के मंडपों के समान सजे होते थे। दीवारें और स्तंभ सुंदर आकृतियों से सुशोभित थे।

इनके साथ हर जगह याली की मूर्तियां दिखती हैं। याली की आकृति में एक अश्र्व अपने आगे के पैर ऊपर करके ऐसे खड़ा है जैसे युद्ध क्षेत्र में हो। उस पर एक सवार भी है। इन आकृतियों की बहुलता देख लगता है जैसे कोई राजचिन्ह रही हों। बाद में नायक राजाओं ने भी अपने स्थापत्य में इसे अपनाया। महलों में तहखाने भी थे। परिसर में जलकुंड भी हैं। इनके छोर पर बनी नंदी की मूर्ति के मुख से इनमें जल आता था। रानियों के लिए बने स्नानागार भी दर्शनीय हैं। राजकीय इमारतों के क्षेत्र में कमल महल, जनानखाना, राजकोषागार और अस्तबल आदि केअवशेष कुछ अज्छी अवस्था में हैं। पुराने बाजारों के भव्य परिसर देख लगता है कि यहां समृद्ध बाजार रहे होंगे। हंपी के इन अद्भुत स्मारकों को देखते हुए मैं तो ऐसे खो गया कि गाइड की आवाज ऐसी लगने लगी, गोया खंडहर खुद अपनी कहानी बयान कर रहे हों।

मंदिरों का विशिष्ट वास्तुशिल्प

विजयनगर के धर्मपरायण राजाओं ने कई भव्य  एवं कलात्मक देवालयों का भी निर्माण कराया था। उन्होंने नए निर्माण के अलावा पूर्व में बने मंदिरों को और भव्य बनाने के लिए उनमें कई नए लक्षणों का समावेश भी किया। उनके संरक्षण के कारण ही उस दौर के कई मंदिर आज अज्छी अवस्था में हैं। उस समय ग्रेनाइट हर तरह के निर्माण का प्रमुख माध्यम था। अधिकतर मंदिर पत्थरों की कलात्मक चारदीवारी से घिरे होते थे। छोटे मंदिरों में गर्भगृह और ओसारा बना होता था। मध्यम आकार के मंदिरों में दालान, अंतराल और गर्भगृह के साथ मंडप एवं रंगमंडप भी बने होते थे। बड़े मंदिरों में पिरामिड जैसे ऊंचे शिखर बने होते थे। इन पर कलश स्थापित होता था।

कुछ मंदिर बिना शिखर के भी बनाए गए। कई मंजिले भव्य गोपुरम उनके अतिरिक्त आकर्षण थे। इन्हें राय गोपुरम कहा जाता था। उतंग गोपुरम पर देवी-देवताओं की बड़ी-बड़ी आकृतियां बनी होती थीं। इनमें श्रीरंगम मंदिर, मल्लिकार्जुन मंदिर और चेन्नाकेशव मंदिर के गोपुरम उल्लेखनीय हैं। बड़े मंदिरों में प्रदक्षिणा पथ, महामंडप, कल्याण मंडप बनाए जाते थे। यह मंडप 5-6 फुट ऊंचे चबूतरे पर बनाए जाते थे। जिनके चारों ओर सीढि़यां व सुंदर प्रवेशद्वार बने होते थे। मंडपों में शिल्पांकित स्तंभ इनकी अद्वितीय विशेषता रहे हैं। द्वार एवं स्तंभों पर याली की बड़ी-बड़ी आकृतियां इनकी शोभा बढ़ाती थीं। सुंदर व उत्कृष्ट नक्काशी इसकी एक और विशिष्टता है। इनमें भित्तियों और स्तंभों पर तरह-तरह की मोहक छवियां कठोर पत्थरों पर बड़ी कुशलता से तराशी हुई हैं। बड़े मंदिर के परिसर में सरोवर भी होता था। इसे पुष्करणी कहा जाता था। ज्यामितीय डिजाइन के कारण यह देखने में भी मोहक लगते हैं।

पत्थर के पहियों वाला रथ

हंपी का मंदिर वास्तुशिल्प विश्र्वविख्यात है। इनमें सर्वप्रमुख विट्ठल मंदिर है। यह विजयनगर शैली का उत्कृष्ट मंदिर है। भगवान विष्णु को समर्पित यह मंदिर का़फी अज्छी अवस्था में है। मंदिर में विष्णु के वराह एवं अन्य अवतारों की प्रतिमाएं मौजूद हैं। इसके हॉल में 56 स्तंभ हैं। इन्हें थपथपाने से संगीत की स्वरलहरियां सुनाई पड़ती हैं। यहां कुछ स्तंभों पर नरसिंह भगवान के विभिन्न रूप उकेरे गए हैं। मंदिर के सामने एक शिलारथ है। पत्थर के पहियों से ही चलने वाला यह रथ हंपी की खास पहचान है। विट्ठल मंदिर से कुछ दूरी पर सूले बाजार के छोर पर अज्युत राय मंदिर है। इस मंदिर में की गई नक्काशी भी देखने योग्य है। वहीं विरूपाक्ष मंदिर का 52 मीटर ऊंचा गोपुरम इसे अलग ही गौरव प्रदान करता है। इसे पंपापति मंदिर भी कहा जाता है।

थोड़ी दूर स्थित हेमकूट पर्वत से विरूपाक्ष मंदिर समेत हंपी का विहंगम नजारा लेना भी अनूठा अनुभव है। हेमकूट पर्वत के पास ही भगवान विष्णु के नरसिंह स्वरूप की विशाल मूर्ति है। करीब सात मीटर ऊंची यह मूर्ति एक ही चट्टान को तराशकर बनाई गई है। इसके ऊपर सात मुख वाले सर्प का छत्र है। यहां विजयनगर के राजाओं का एक निजी मंदिर भी था। यह मंदिर हजार रामा मंदिर कहलाता है। यह मंदिर यूं तो गोपुरमरहित है, पर इसके प्राकार की दीवारें चित्रवल्लियों से सजी हैं। यहां रामायण की कथा का अंकन देखते ही बनता है। इसमें भगवान राम के कुल एक हजार छोटे-छोटे चित्र उकेरे गए हैं। निकट ही प्रसन्न विरूपाक्ष मंदिर है। यह मंदिर भूतल से नीचे बना है। मातंगा पर्वत पर वीरभद्र मंदिर है।

मान्यता है कि रामायण में वर्णित किष्किंधा नगरी की जगह ही आज हंपी अवस्थित है। उस काल में हनुमान जी एवं सुग्रीव के साथ भगवान राम इस पर्वत पर ही रहे थे। यह वस्तुत: रामायण में वर्णित ऋष्यमूक पर्वत है।

विजयनगर से बाहर

विजयनगर के शासकों द्वारा हंपी से परे बनवाई गई अन्य कौशलयुक्त संरचनाएं केवल मंदिरों के रूप में ही हैं। इनमें शृंगेरी का विद्याशंकर मंदिर सर्वप्रमुख है। इसका निर्माण विजयनगर साम्राज्य के संस्थापक राजा हरिहर और बुक्का ने अपने गुरु धर्माचार्य विद्यारण्य की स्मृति में करवाया था। विजयनगर की स्थापना के कुछ ही वर्षो बाद इस मंदिर का निर्माण शुरू हो गया था। माना जाता है कि यह 1338 में आरंभ होकर 1356 में पूरा हुआ। यह मंदिर लाल ग्रेनाइट से निर्मित है। विजयनगर साम्राज्य में बने मंदिरों में यह सबसे बड़ा है।

मंदिर नगरी कांचीपुरम में कई मंदिर हैं। उनमें वरदराज मंदिर प्रमुख है। इसका गोपुरम लगभग 90 फुट ऊंचा है। मंदिर में भगवान वरदराज अर्थात विष्णु की विशाल और मनोहारी प्रतिमा है। चतुर्भुजी प्रतिमा के हाथों में चक्त्र, शंख, गदा और पद्म है। प्रतिमा भव्य आभूषण और अलंकरणों से सुशोभित है। मुख्य मंदिर के बराबर ही लक्ष्मी मंदिर है। मंदिर के मंडप में 96 अलंकृत स्तंभों पर भगवान विष्णु के अवतारों के अलावा महाभारत एवं रामायण के प्रसंग भी उकेरे गए हैं। कांचीपुरम में ही एकांबरनाथ मंदिर है। जिसका विस्तार राजा कृष्णदेव राय ने करवाया था। इसका गोपुरम उनके बनवाए भव्य और विशाल गोपुरम में से एक है।

सबसे उंचा गोपुरम

तमिलनाडु में त्रिचिरापल्ली शहर के निकट श्रीरंगम नामक स्थान पर श्रीरंगनाथ मंदिर स्थित है। इसका निर्माण भी विजयनगर साम्राज्य के दौर में हुआ था। यह मंदिर भगवान विष्णु के 108 दिव्यदेशम मंदिरों में सर्वोपरि माना जाता है। आंध्र प्रदेश के तिरुपति मंदिर के बाद यह दूसरा वैष्णव मंदिर है जहां सबसे अधिक श्रद्धालु आते हैं। करीब ढाई किमी के दायरे में फैला यह मंदिर सात प्राकारों से घिरा है। मंदिर में छोटे-बड़े कुल 21 गोपुरम हैं। मंदिर का मुख्यद्वार दक्षिण में स्थित है। इस द्वार पर 13 मंजिला 235 फुट ऊंचा गोपुरम बना है। इसका नाम राजा गोपुरम है और यह देश का सबसे ऊंचा गोपुरम है। मंदिर परिसर में अनेक मंदिर हैं। इनमें मुख्य मंदिर श्रीरंगनाथ स्वामी अर्थात् भगवान विष्णु का है। श्रीरंगम मंदिर त्रिचिरापल्ली से दो किमी दूर है।

आंध्र में सहस्रलिंग

आंध्र प्रदेश के श्रीसेलम में ऋषभगिरि पर्वत पर मल्लिकार्जुन मंदिर है। कृष्णा नदी के दक्षिणी तट पर स्थित इस पहाड़ को श्रीशैल भी कहा जाता है। मल्लिकार्जुन मंदिर द्वादश ज्योतिर्लिगों में है। द्रविड़ शैली में बना यह मंदिर विजयनगर साम्राज्य के राजा हरिहर राय द्वारा बनवाया गया था। दो विशाल प्राकारों से घिरे इस मंदिर के चार भव्य गोपुरम हैं। अग्रभाग में मुखमंडप की सुंदर नक्काशी देखने योग्य है। गर्भगृह में पाषाण के अरघे में छोटा सा पावन शिवलिंग है। मंदिर परिसर में सहस्रलिंग के दर्शन भी होते हैं। यहां एक शिवलिंग पर 1001 लघु शिवलिंग बने हैं। पौराणिक आख्यानों के अनुसार भगवान राम जब मल्लिकार्जुन के दर्शनार्थ आए थे तो यहां उन्होंने अनुष्ठान कर सहस्रलिंग की स्थापना की थी। श्रीसेलम हैदराबाद से लगभग 200 किमी दूर है।

हैदराबाद से बंगलौर मार्ग पर हिंदुपुर से कुछ दूर लेपाक्षी गांव है। यहां विजयनगर साम्राज्य का बनवाया वीरभद्र मंदिर है। यह मंदिर शिल्पकला के प्रति उनके लगाव का शानदार उदाहरण है। इस मंदिर में उस दौर के अत्यंत सुंदर भित्तिशिल्प मौजूद हैं। इनमें भगवान राम एवं भगवान कृष्ण के जीवन से जुड़े प्रसंगों का शिल्पांकन अद्भुत है। यहां कल्याण और नाट्य मंडप के स्तंभों पर भी ख़्ाूबसूरत शिल्प देखने को मिलता है। लेपाक्षी मंदिर का एक आकर्षण नंदी की विशाल प्रतिमा है। नंदी की यह प्रतिमा 30 फुट लंबी और 20 फुट ऊंची है।

तिरुपति के श्री वेंकटेश्र्वर मंदिर को भव्य स्वरूप प्रदान करने का श्रेय राजा कृष्णदेव राय को जाता है। यहां हॉल में राजा कृष्णदेव राय एवं उनकी दो रानियों की धातु की प्रतिमाएं स्थापित हैं। वहीं उनके वंशज राजा अज्युत राय और उनकी रानियों की प्रतिमाएं भी हैं। तीन प्राकारों से घिरे शानदार गोपुरम वाले इस मंदिर के गर्भगृह में वेंकटेश्वर भगवान की सवा दो मीटर ऊंची काले पाषाण की प्रतिमा है। जो अमूल्य रत्नों से सुशोभित है। इनके दोनों ओर श्रीदेवी एवं भूदेवी विराजमान हैं। गर्भगृह के शिखर पर स्वर्णमंडित आनंद निलयम विमान है। मुख्य मंदिर के सामने ध्वज स्तंभ है और पास ही पुष्करणी सरोवर है।

जुड़े नए आयाम

दक्षिण भारत में कई मंदिर पहले के राजाओं द्वारा बनवाए हुए भी हैं। बाद में विजयनगर के राजाओं ने अपनी शैली की कुछ संरचनाएं जोड़कर उन्हें अधिक भव्य बना दिया। कलाहस्ती के शिवमंदिर का भव्य गोपुरम ऐसा ही एक आकर्षण है। इस गोपुरम का निर्माण राजा कृष्णदेव राय ने करवाया था। उन्होंने बेलूर के चेन्नाकेशव मंदिर में भी रायगोपुरम बनवाया। भगवान कृष्ण को समर्पित इस मंदिर में उनके द्वारा बनवाया गया शिल्पांकित स्तंभ भी पाषाण कला का सुंदर उदाहरण है। कांचीपुरम के एकांबरनाथ मंदिर में उस दौर में बना गोपुरम मीलों दूर से सैलानियों को अपनी ओर आकर्षित करता है। इनके अलावा मणिपाल के इंद्राणी मंदिर, कुम्ता के महाल्सा नारायण मंदिर, कोलार के सोमेश्र्वर मंदिर, शिराली के महागणपति महामाया मंदिर, अंकोला के आर्यदुर्ग मंदिर, गोकरण के महाबालेश्र्वर मंदिर में भी विजयनगर साम्राज्य द्वारा जुड़वाए गए उस दौर की मूर्तिकला एवं नक्काशी कला के सैकड़ों उदाहरण आज चमत्कृत करते हैं। 1646 में विजयनगर साम्राज्य के अंत के साथ ही उस अद्भुत स्थापत्यकला के एक स्वर्णिम युग का अंत हो गया। लेकिन उन शासकों की कल्पना के अनुरूप उस काल के महान कौशलयुक्त शिल्पियों ने वास्तव में रोचक और अद्वितीय संरचनाओं को स्वरूप प्रदान किया। यह संरचनाएं आज हमारे देश ही नहीं विश्र्व के लिए भी अमूल्य धरोहर हैं।

विजयनगर साम्राज्य की स्थापत्यकला का अनोखा संसार दक्षिण भारत में कई जगह फैला है। वहां का मौसम अक्टूबर से मार्च तक पर्यटन के अनुकूल रहता है। सभी स्थापत्य शिल्प एक ही यात्रा में देख पाना सरल नहीं है। इसलिए इन्हें आप अन्य  शहरों की यात्रा के साथ जोड़ कर देख सकते हैं।

हंपी

कैसे जाएं : हंपी का निकटतम हवाई अड्डा बेलारी में है। रेल से जाना हो तो बंगलौर या गुंटाकल होकर हॉसपेट तक रेल संपर्क है। आगे बस या टैक्सी से आधे घंटे में पहुंच सकते हैं। हंपी के लिए बंगलौर, मैसूर, हैदराबाद, गोवा से हासपेट की बस लेकर पहुंच सकते हैं।  हॉसपेट से हंपी मात्र 13 किमी तथा बेलारी से 74 किमी दूर है।

कहां ठहरें : हंपी में ठहरने के लिए शंाति गेस्टहाउस, मौर्य विजयनगर होटल के अलावा होम स्टे सुविधा है।

श्रृंगेरी

उडुपि से 85 किमी दूर तथा बंगलौर से 335 किमी है। वहां ठहरने के लिए गवर्नमेंट गेस्ट हाउस और मंदिर परिसर में व्यवस्था हो जाती है।

कांचीपुरम

चेन्नई से 71 किमी दूरी पर है। अशोक ट्रेवलर्स लॉज, श्रीकृष्ण लॉज, राजा लॉज, श्रीरामा लॉज तथा होटल तमिलनाडु ठहरने के उपयुक्त स्थान हैं। चेन्नई से साइटसीन टूर द्वारा भी यहां आया जा सकता है।

श्रीरंगम

त्रिचिरापल्ली से श्रीरंगम सि़र्फ दो किमी दूर है। यह रेल, बस एवं हवाई मार्ग द्वारा अनेक शहरों से जुड़ा है। वहां ठहरने के लिए होटल गुरू, होटल आनंद, होटल एरिस्टो, होटल लक्ष्मी और होटल तमिलनाडु बेहतर स्थान हैं।

श्रीसेलम

श्रीसेलम हैदराबाद से 200 किमी दूर है। नांदयाल तक रेलमार्ग द्वारा जाकर आगे की यात्रा बस से करनी होती है। ठहरने की व्यवस्था मंदिर की धर्मशाला या गेस्ट हाउस में हो सकती है।

लेपाक्षी

लेपाक्षी पहुंचने के लिए बैंगलूरू से 100 किमी दूर हिंदुपुर पहुंचना होगा। वहां से लेपाक्षी 17 किमी दूर है। ठहरने के लिए लेपाक्षी रेस्ट हाउस तथा धर्मशाला आदि हैं।

तिरुपति

यह स्थान रेल, बस एवं हवाई मार्ग द्वारा कई शहरों से जुड़ा है। तिरुपति से तिरुमाला जाने के लिए लिंक बस सेवा तथा टैक्सी मिलती हैं। तिरुपति में ठहरने के लिए गोपीकृष्ण डीलक्स होटल, वसंतविहार लॉज, भीमाज होटल, विष्णुप्रिया होटल तथा मौर्य होटल प्रमुख हैं।

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