धर्म-संस्कृति व त्योहार , से जुड़े परिणाम

नवाबी तहजीब का शहर है भोपाल

नवाबी तहजीब का शहर है भोपाल

कहावत है-ताल तो भोपाल ताल, बाकी सब तलैयां। भोपाल पहुंचने और दो बड़ी झीलों को देखने पर लगता है कि बात तो बिलकुल सही है। पूरा शहर दो मानवनिर्मित झीलों की बदौलत अपना अस्तित्व बनाए हुए है। ताल की कहानी बड़ी रोचक है। कहा जाता है कि राजा भोज एक बार सख्त बीमार पड़ गए। वैद्यों ने हाथ खड़े कर दिए तो एक ज्योतिषी ने कहा कि अगर राजा एक ऐसा ताल बनवाएं, जिसमें सात नदियों का पानी गिरता हो तो उनकी जान बच सकती है। राजा ने अपने मंत्रियों को ऐसी जगह ढूंढने का आदेश दिया और वह जगह वहीं मिली जहां अब भोपाल है। पर यहां... आगे पड़ें

यात्रा का विराट वैभव जगन्नाथ रथयात्रा

यात्रा का विराट वैभव जगन्नाथ रथयात्रा

सागरतट पर बसे पुरी शहर में होने वाले जगन्नाथ रथयात्रा उत्सव के दौरान आस्था का जो विराट वैभव देखने को मिलता है, वह और कहीं भी दुर्लभ है। देश-विदेश से लाखों लोग इस पर्व के साक्षी बनने हर वर्ष यहां आते हैं। देश के चार पवित्र धामों में एक पुरी के 800 वर्ष पुराने मुख्य मंदिर में योगेश्वर श्रीकृष्ण जगन्नाथ के रूप में विराजते हैं। साथ ही यहां बलभद्र एवं सुभद्रा भी हैं। सुभद्रा के आग्रह पर एक बार दोनों भाई बड़े स्नेह से उन्हें द्वारका भ्रमण के लिए ले गए थे। उसी की याद में हर साल आषाढ़ माह में शुक्ल पक्ष... आगे पड़ें

ऋषियों की तपोभूमि में विष्णु के पांच धाम

ऋषियों की तपोभूमि में विष्णु के पांच धाम

प्रकृति के अलौकिक सौंदर्य से परिपूर्ण हिमालय की चोटियां ऋषियों एवं योगियों की तपस्थली रही हैं। यहां स्थित देवालयों में बद्रीकाश्रम का महत्व सबसे अधिक है। आदि शंकराचार्य ने संपूर्ण भारत को एक सूत्र में बांधने के लिए जिन चार धामों की स्थापना की थी, उनमें यह एक है। भगवान विष्णु के इस पावन धाम की यात्रा पांच मंदिरों के दर्शन के बाद ही पूरी मानी जाती है। ये हैं आदिबद्री, वृद्धबद्री, भविष्यबद्री, योगध्यानबद्री तथा विशालबद्री। पहला पड़ाव आदिबद्री हरिद्वार या ऋषिकेश से जब बद्रीनाथ मार्ग पर बढ़ते... आगे पड़ें

आस्था का रोमांचक सफर गंगोत्री

आस्था का रोमांचक सफर गंगोत्री

उत्तरांचल में ट्रेकिंग करें या पर्वत शिखरों पर आरोहण के लिए जाएं,  आधारस्थल के रूप में गंगोत्री आदर्श है। यही नहीं, उत्तराखंड के चार धामों में से गंगोत्री एक है। भोजपत्र के वृक्षों के जंगल भी यहीं मिलते हैं। समुद्रतल से 10 हजार फुट से अधिक ऊंचाई पर स्थित गंगोत्री आने वाले ट्रेकर्स की संख्या लगातार बढ़ी है। ट्रेकिंग रूट्स इस सुंदर व पवित्र स्थान के ही चारों ओर बेबी शिवलिंग, सुदर्शन पर्वत की चोटियां, खर्चकुंड, केदार डोम, भृगुपंथ, थलय सागर, गंगोत्री पर्वत की तीनों चोटियां, रुद्रगेरा आदि जगहें... आगे पड़ें

ओम् को साकार करता शिवधाम ओंकारेश्वर : मध्य प्रदेश की आस्था का प्रतीक

ओम् को साकार करता शिवधाम ओंकारेश्वर : मध्य प्रदेश की आस्था का प्रतीक

समूची सृष्टि ओंकार से ही उत्पन्न हुई है, इस सत्य से साक्षात्कार के लिए ओंकारेश्वर से श्रेष्ठ स्थल नहीं हो सकता है। प्रकृति ने स्वयं इस भूखंड पर अपनी तूलिका से ओम् उकेरा है। नर्मदा नदी के प्रवाह ने यहां एक मील लंबे और डेढ़ मील चौड़े पर्वतखंड को ओम् की आकृति प्रदान की है। मध्य प्रदेश में मांधाता पर्वत पर प्रतिष्ठित ओंकारेश्वर द्वादश ज्योतिर्लिगों में एक है। राजा मांधाता का शिव से साक्षात्कार पुराणों के अनुसार इक्ष्वाकुवंशी राजा मांधाता ने कठिन तप के बाद शिव का साक्षात्कार किया और उनसे... आगे पड़ें

शहर मंदिरों का

शहर मंदिरों का

वाराणसी में अनेक दर्शनीय धार्मिक व तीर्थ स्थल हैं। इनमें काशी विश्वनाथ मंदिर, अन्नपूर्णा मंदिर, ढुंढिराज गणेश, काल भैरव, दुर्गा जी का मंदिर, संकटमोचन, तुलसी मानस मंदिर, नया विश्वनाथ मंदिर, भारतमाता मंदिर, संकठा देवी मंदिर व विशालाक्षी मंदिर प्रमुख हैं। विश्वनाथ मंदिर इन मंदिरों में वाराणसी के अधिष्ठाता भगवान शिव को समर्पित काशी विश्वनाथ मंदिर की अत्यधिक महत्ता है। वर्तमान विश्वनाथ मंदिर को इंदौर की महारानी अहिल्याबाई ने अठारहवीं शती में बनवाया था। सन 1835 में मंदिर के शिखरों को महाराजा... आगे पड़ें

बनारस : हर घाट का निराला है ठाठ

बनारस : हर घाट का निराला है ठाठ

सहस्त्राब्दियों से सुख-दुख झेलती काशी ने कभी मोक्ष तीर्थ तो कभी आनंद कानन के रूप में इतिहास के  इति और आरंभ से साक्षात्कार किया। वाराणसी और बनारस के नाम से विख्यात इस नगर को ईस्वी पूर्व 1200 में सहोल के पुत्र काश्य ने बसाया था। कथा प्रचलित है कि भगवान शिव के त्रिशूल पर बसी काशी का प्रलय में भी विनाश नहीं हो सकता है।धर्म-कर्म-मोक्ष व देवी देवताओं की वैदिक नगरी काशी सर्व विद्या की भी राजधानी मानी जाती है। यहां द्वादश ज्योतिर्लिगों में विश्वनाथ तथा 51 शक्तिपीठों में से एक विशालाक्षी स्थित है। इस... आगे पड़ें

हिमालय की गोद में माता के द्वार

हिमालय की गोद में माता के द्वार

शक्ति की उपासना की परंपरा हमारे देश में उतनी ही पुरानी है, जितनी कि संस्कृति। शक्ति को यहां माता कहा गया है। देवताओं को भी जब-जब शक्ति की जरूरत पड़ी उन्होंने देवी के रूप में ही उसका आह्वान किया। शक्ति की देवी के उन्हीं रूपों को मानव आज तक पूज रहा है। चैत्र एवं आश्विन माह में ऋतु परिवर्तन की बेला में नौ-नौ दिन तक शक्ति की आराधना का परम पवित्र पर्व नवरात्र चलता है। इस दौरान घर-घर में मां दुर्गा की विशिष्ट पूजा होती है और स्थानीय देवालय तो देवी स्तुति से गूंजते रहते हैं। देवी के अधिकतर भक्त किसी... आगे पड़ें

Page 7 of 19« First...«56789»10...Last »

खोज विकल्प

English Hindi

आपके आस-पास

Jagran Yatra