हिमालय की गोद में माता के द्वार

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शक्ति की उपासना की परंपरा हमारे देश में उतनी ही पुरानी है, जितनी कि संस्कृति। शक्ति को यहां माता कहा गया है। देवताओं को भी जब-जब शक्ति की जरूरत पड़ी उन्होंने देवी के रूप में ही उसका आह्वान किया। शक्ति की देवी के उन्हीं रूपों को मानव आज तक पूज रहा है। चैत्र एवं आश्विन माह में ऋतु परिवर्तन की बेला में नौ-नौ दिन तक शक्ति की आराधना का परम पवित्र पर्व नवरात्र चलता है। इस दौरान घर-घर में मां दुर्गा की विशिष्ट पूजा होती है और स्थानीय देवालय तो देवी स्तुति से गूंजते रहते हैं। देवी के अधिकतर भक्त किसी न किसी शक्तिपीठ पर दर्शन के लिए अवश्य जाते हैं। पुराणों के अनुसार उपपीठों के दर्शन-पूजन का भी अपना अलग महत्व है। उत्तर भारत में फैली हिमालय की उपत्यकाओं में शक्तिपीठों व उपपीठों की पूरी श्रृंखला है। आज दूर-दूर से इन स्थानों पर लोग मां दुर्गा के विभिन्न रूपों के दर्शन-पूजन के लिए आते हैं।

माता वैष्णो का धाम

मां वैष्णो देवी के धाम में नवरात्र के दौरान सबसे अधिक भक्त पहुंचते हैं। यह यात्रा जम्मू से 52 किमी दूर कटरा से शुरू होती है। श्रद्धालु 14 किमी का पहाड़ी मार्ग तय कर त्रिकूट पहाड़ पर पहंुचते हैं। जहां एक गुफा में पिंडी के रूप में मां वैष्णो देवी के दर्शन होते हैं। वैसे तो ऊंची चढ़ाई वाली यह यात्रा अधिकतर लोग पैदल तय करते हैं, लेकिन अब घोड़े और पालकियां भी मिलती हैं। यह मार्ग अत्यंत सुंदर तथा सुविधाजनक है। जगह-जगह विश्राम स्थल बने हैं। मार्ग में बाण गंगा, चरण पादुका, अर्द्धकुमारी, हाथी मत्था, सांझी छत आदि कई अन्य पवित्र स्थान भी हैं। जय माता दी बोलते-बोलते पूरी चढ़ाई आठ-दस घंटे में तय हो जाती है। ढलान के साथ ही सीढि़यां भी बनी हैं। इसलिए यात्रियों को असुविधा नहीं होती। मां वैष्णो देवी के बाद लोग भैरों घाटी में भैरों मंदिर के दर्शन करने के बाद वापसी यात्रा शुरू करते हैं। ठहरने के लिए कटरा में तथा ऊपर भवन के निकट बहुत सी धर्मशालाएं हैं। कश्मीर में श्रीनगर से 26 किमी दूर क्षीर भवानी मंदिर में भी नवरात्रों में श्रद्धालु उमड़ पड़ते हैं। यह योगमाया को समर्पित विशाल मंदिर है। पर्वतीय स्थलों पर स्थित देवीतीर्थो की यात्रा में प्रकृति का सौंदर्य भी खूब प्रभावित करता है।

नैना देवी मंदिर

हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले में नैना देवी सिद्ध शक्तिपीठ है। मान्यता है कि यहां सती के नयन गिरे थे। यहां के अन्य पवित्र स्थलों में हवन कुंड, ब्रह्मकपाली कुंड तथा प्राचीन गुफा है। हिमाचल प्रदेश में और भी अनेक स्थल हैं, जहां नवरात्रों में भारी संख्या में लोग पहुंचते है। ऊना जिले में चिंतपूर्णी मंदिर स्थित है। माना जाता है कि देवी यहां पहुंचने वाले भक्तों की सभी चिंताएं हर लेती हैं। देवी को यहां छिन्नमस्तिका भी कहा जाता है। चिंतपूर्णी पहुंचने के लिए नैना देवी से बस मिल जाती है। होशियारपुर से भी यहां आने के लिए बस मिल सकती है। जबकि नैनादेवी जाने के लिए आनंदपुर साहिब रेलवे स्टेशन से तथा नंगल से बस ली जा सकती है।

कांगड़े वाली देवी

नगरकोट कांगड़े वाली बज्रेश्वरी देवी के दर्शन किए बिना तो देवी दर्शन यात्रा अधूरी ही रहती है। कांगड़ा स्थित इस  शक्तिपीठ के बारे में मान्यता है कि यहां सती के वक्ष गिरे थे और यहां वज्रप्रहार से देवी ने राक्षसों का अंत भी किया था, इसलिए वजे्रश्वरी कहा गया। यहां वीरभद्र मंदिर, कृपालेश्वर  महादेव, कुरुक्षेत्र कुंड, गुप्तगंगा आदि भी दर्शनीय हैं। हिमाचल का ज्वाला जी मंदिर भी शक्तिपीठ है। ऐसी मान्यता है कि यहां सती की जिह्वा गिरी थी। उस स्थान पर सदैव एक ज्वाला प्राकृतिक रूप से प्रज्वलित रहती है। इसलिए इसे ज्वाला जी कहा जाता है। यहां नौ स्थानों पर ज्योति प्रकट हुई हैं। उन्हें देवी के नौ रूप कहा गया है। यहां अंबिकेश्वर महादेव, गोरख टिब्बी, लाल शिवालय व टेढ़ा मंदिर भी दर्शनीय हैं। यहां पांडवों ने भी शक्ति की आराधना की थी।

उधर पालमपुर के निकट बाणगंगा के तट पर है चामुंडा  नंदिकेश्वर सिद्धपीठ। यहां भक्तों को मां चामुंडा के दर्शन होते हैं। चंड-मुंड राक्षसों का वध करने के कारण देवी को चामुंडा कहा जाने लगा। प्रकृति के सुरम्य वातावरण में स्थित यह मंदिर 700 वर्ष पुराना बताया जाता है। इन तीर्थो पर जाने के लिए पठानकोट से बस या छोटी रेलगाड़ी से पहुंचा जा सकता है। इन सभी स्थानों पर ठहरने के लिए धर्मशालाएं व छोटे होटल भी हैं।

स्थाणेश्वर की भद्रकाली

स्वर्ण मंदिर के लिए विख्यात अमृतसर में दुग्र्याणा तीर्थ भी है। यहां भवानी दुर्गा का भव्य मंदिर है। इसका निर्माण 16वीं शताब्दी में हुआ था। सोने की पत्तल से मढ़े हुए गुंबद वाला यह मंदिर एक सरोवर के मध्य स्थित है। नवरात्र महापर्व पर यहां तीर्थयात्रियों का तांता लग जाता है। इसी तरह जालंधर के देवी तालाब मंदिर में भी देवी के भक्तों की भारी भीड़ जुटती है। चंडीगढ़ के निकट मनीमाजरा में मनसा देवी तथा कालका में कालिका देवी के मंदिरों की भी बड़ी मान्यता है। मनसा देवी मंदिर पर चैत्र  नवरात्रों में भव्य मेला भी लगता है।

कुरुक्षेत्र के निकट स्थाणेश्वर स्थित भद्रकाली मंदिर प्रमुख शक्तिपीठों में है। मान्यता है कि यहां सती का टखना गिरा था। यहां स्थित देवी कूप पर लोग मन्नत मांगते हैं और पूरी होने पर लकड़ी का घोड़ा चढ़ाते हैं। देश की राजधानी दिल्ली में भी मां दुर्गा के दो भव्य तीर्थ हैं- झंडे वाली देवी का मंदिर तथा छतरपुर मंदिर। दिल्ली के अलावा अन्य जगहों से भी तमाम लोग यहां रोज आते हैं।

बीकानेर की करणी माता

शौर्य और वीरता की भूमि के रूप में प्रतिष्ठित राजस्थान में भी कई शक्तिपीठ हैं। माउंट आबू में अर्बुदा देवी मंदिर के दर्शन के लिए बहुत लोग पहुंचते हैं। सैकड़ों सीढ़ी चढ़कर लोग माता के दर्शन करते हैं। इस मंदिर में देवी का स्वरूप इस तरह विद्यमान है, मानो अधर में हों। इसलिए इसे अधर देवी मंदिर भी कहा जाता है। बीकानेर के करणी माता मंदिर में भी नवरात्रों का मेला विशेष आकर्षण है। इस मंदिर में चूहों को भी पूजा जाता है। यहां सैकड़ों की तादाद में चूहे होते हैं, लेकिन उनसे कोई परेशानी नहीं होती। नागौर के दधिमथी देवी मंदिर के प्रति भी लोगों की बहुत श्रद्धा है।

माता मनसा देवी

तीर्थो का द्वार कहे जाने वाले हरिद्वार में मनसा देवी तथा चंडी देवी में यूं तो वर्ष भर भीड़ रहती है, किंतु नवरात्रों में यहां आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या बहुत बढ़ जाती है। हर की पैड़ी पर गंगा स्नान कर लोग गंगा के दोनों तरफ फैली पहाडि़यों पर स्थित मंदिरों के दर्शन करने जाते हैं। मंदिरों तक जाने के लिए उड़नखटोले यानी रोपवे ट्राली की व्यवस्था है। मनसा देवी मंदिर में मंशा अर्थात कामनाएं पूरी होने के लिए पवित्र संकल्प के साथ धागा बांधने की परंपरा है। उत्तरांचल में ही टनकपुर से कुछ दूर पहाड़ों में पूर्णगिरि पर भी देवी दुर्गा का वास है। वासंती नवरात्रों में यहां भव्य मेला लगता है। लोग दिन-रात कठिन चढ़ाई कर कामना पूर्ण करने वाली देवी के दर्शन करते हैं। यहां पहुंचने के लिए टनकपुर से जीप-टैक्सी आदि मिलती है। यात्रियों के ठहरने की व्यवस्था मार्ग में भी की गई है। इन दिनों अल्मोड़ा से कुछ दूर कौशिकी देवी, नैनीताल का नैनी मंदिर तथा काशीपुर का उकिनी देवी मंदिर भी श्रद्धालुओं के आकर्षण के केंद्र बने रहते हैं। उत्तर प्रदेश में सहारनपुर से 40 किमी दूर शाकंभरी देवी नामक शक्तिपीठ है। मान्यता है कि यहां सती का शीश गिरा था। दुर्गाष्टमी पर देवी के दर्शनों की बहुत मान्यता है। इसलिए उस दिन यहां अत्यधिक भीड़ रहती है। पास ही भ्रामरी देवी, भीमा देवी एवं शीताक्षी देवी मंदिर भी दर्शनीय हैं।

काशी का दुर्गाकुंड

उत्तर प्रदेश की पवित्र नगरी वाराणसी वैसे तो भगवान विश्वनाथ के मंदिर के लिए जानी जाती है, किंतु नवरात्रों में यहां के दुर्गाकुंड स्थित मंदिर पर तीर्थयात्रियों की भीड़ रहती है। मंदिर के आसपास बंदरों की बहुलता के कारण लोग इसे बंदरों वाला मंदिर भी कहते हैं। नागर शैली में बने इस दुर्गा मंदिर का निर्माण 18वीं सदी में हुआ था। वाराणसी में सिद्धेश्वरी, राजेश्वरी, मां संकटा तथा मां अन्नपूर्णा के मंदिर भी हैं। उधर मिर्जापुर से लगभग 10 किमी दूर विंध्याचल में विंध्यवासिनी देवी वास करती हैं। इस मंदिर की मान्यता भी पूरे उत्तर भारत में है। देवी के विशाल मंदिर के समक्ष हर वर्ष एक विशाल मेला लगता है। मध्य प्रदेश में मैहर का मां शारदा का मंदिर उज्जैन का हरिसिद्धि देवी मंदिर तथा ओंकारेश्वर के नर्मदा तट पर शक्ति के सप्तरूपों के मंदिर, छत्तीसगढ़ में रतनपुर का महामाया मंदिर, डोगरगढ़ का बम्लेश्वरी देवी मंदिर, दंतेवाड़ा का दंतेश्वरी मंदिर भी नवरात्रों में भव्य तीर्थो का रूप ले लेते हैं।

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