धर्म-संस्कृति व त्योहार , से जुड़े परिणाम

जयपुर में फागुन की मस्ती और हाथियों का उत्सव

जयपुर में फागुन की मस्ती और हाथियों का उत्सव

मेलों और त्योहारों के रंगों में रंगी भारतभूमि के हर राज्य में कई महोत्सव मनाए जाते हैं। फागुन के आते ही पूरे देश में होली से जुड़े रंग-रंगीले आयोजनों का सिलसिला शुरू हो जाता है। राजस्थान की राजधानी जयपुर में इस मौके पर अनूठा आयोजन होता है- गज महोत्सव। यह महोत्सव यहां चौगान स्टेडियम में होता है। मस्तानी चाल से चलते सजे-धजे हाथियों का काफिला जब चौड़ा रास्ता, त्रिपोलिया व गणगौरी बाजार से होते हुए निकलता है इसका वैभव देखने वालों की भीड़ जमा हो जाती है। हाथियों इसके अलावा लोकनर्तक,सजे हुए ऊंट,... आगे पड़ें

सांस्कृतिक विविधता की भूमि है गुजरात

सांस्कृतिक विविधता की भूमि है गुजरात

उत्तर में पाकिस्तान, पश्चिम में सागर और पूरब-पश्चिम में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र और राजस्थान से घिरे गुजरात की धरती अपनी सांस्कृतिक धरोहरों को बखूबी संजोए हुए है। यह राज्य अपने मंदिरों, समुद्रतटों, कला-शिल्प और वन्य विहारों के कारण दुनिया भर में जाना जाता है। गुजरात की सबसे खास बात यह है कि यहां परंपरा और आधुनिकता का जो अद्भुत संगम दिखाई पड़ता है वह देश के किसी अन्य राज्य में नहीं मिलता। शुरुआत अहमदाबाद से गुजरात की यात्रा का सबसे सहज तरीका यह है कि आप शुरुआत अहमदाबाद से ही करें। शहर के म्यूजियम,... आगे पड़ें

खजुराहो : पत्थरों पर छवियां जीवन की

खजुराहो : पत्थरों पर छवियां जीवन की

पाषाण पर उकेरे गए जीवन के विभिन्न आयामों को प्रदर्शित करते खजुराहो के गगनचुंबी देवालय आज विश्व भर में विख्यात हैं। मध्यकालीन भारत के चंदेल राजाओं द्वारा बनवाए गए मध्य प्रदेश में यह मंदिर अपने निर्माण के एक हजार वर्ष पूरे कर चुके हैं। मंदिरों की उत्कृष्ट वास्तुकला, उनकी भित्तियों पर जड़ी सर्वोत्तम मूर्तिकला तथा सुव्यस्थित शिल्पकला  के कारण इन भव्य मंदिरों का नाम आज यूनेस्को की विश्व विरासत की सूची में भी दर्ज है। मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले में स्थित खजुराहो के मंदिरों की दीवारों पर बनी... आगे पड़ें

तीन लोक से न्यारी काशी

तीन लोक से न्यारी काशी

अब देश के सभी प्रमुख महानगरों से रेल और सड़क ही नहीं, हवाई मार्ग से भी सीधे जुडे़ बनारस के भीतर अगर आप घूमना चाहते हैं तो ऑटो या साइकिल रिक्शे से बेहतर साधन नहीं हो सकता। जिन कारणों से भारतीय लोकमानस में काशी के नाम से प्रतिष्ठित बाबा विश्वनाथ की इस नगरी को तीनों लोकों से न्यारी माना जाता है, उनमें यह भी एक है। कहते हैं, अटरम-शटरम जितना कम, काशीसेवन उतना आसान। हाल में काशी गया तो स्टेशन से ही रवींद्रपुरी के लिए ऑटो लिया। पहुंचने पर ऑटो वाले ने चालीस रुपये मांगे। पता चला कि मेरे जरिए ही उसकी बोहनी... आगे पड़ें

एक पर्व के रूप अनेक

एक पर्व  के रूप अनेक

विविधता में एकता की हमारी संस्कृति को दर्शाने वाला बहुरंगी पर्व है मकर संक्रांति। इस पर्व का रूप देश के सभी भागों में अलग-अलग है, पर सभी जगह इसका उद्देश्य सूर्य की उपासना ही है। सूर्य हमारे ऋतुचक्र की धुरी हैं, जो हर माह एक से दूसरी राशि में प्रवेश करते हैं। इस क्रम में जब वह धनु से मकर राशि में जाते हैं, तब उनकी दिशा भी बदलती है और वह दक्षिणायन से उत्तरायण होते हैं। संक्रमण की इस वेला को अत्यंत पावन माना जाता है, जो हर वर्ष 14 जनवरी को आती है तथा इसे मकर संक्रांति कहा जाता है। मकर संक्रांति पर सूर्य... आगे पड़ें

बुद्ध के पथ पर

बुद्ध के पथ पर

बौद्ध धर्म के उदय की भूमि भारत में बौद्ध तीर्थस्थलों और ऐतिहासिक धरोहरों का एक विशाल परिपथ है। इनमें कुछ स्थान गौतम बुद्ध के जीवन की घटनाओं से संबद्ध हैं तो कुछ उनके धर्म उपदेश और प्रसार से जुड़े हुए हैं। इनके अलावा कई प्रसिद्ध स्तूप, विहार,  मठ एवं गुफाएं भी इस परिपथ का हिस्सा हैं। यहां आने वाले अधिकतर विदेशी पर्यटकों के लिए इस परिपथ का आरंभ आम तौर पर कोलकाता से होता है। इसकी एक वजह वहां अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे का होना तो है ही, वस्तुत: पश्चिम बंगाल में कलिम्पोंग और पूर्वोत्तर भारत के राज्यों... आगे पड़ें

नए-पुराने का अनूठा संगम है जालंधर

नए-पुराने का अनूठा संगम है जालंधर

हिंदू पुराणों, दंत कथाओं, स्मृति ग्रंथों व इतिहासकारों की और कई अन्य पौराणिक-ऐतिहासिक रचनाओं में जालंधर को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। पुराणों के अनुसार सतीत्व की प्रतिमूर्ति मां वृंदा के पति दैत्यराज जलंधर के नाम पर इस शहर का नाम पड़ा। रावी, ब्यास व सतलुज का पानी कभी इसी शहर से होकर गुजरता था। सैकड़ों वर्षो तक यह भूमि जल के अंदर रही। भूगोल के जानकारों के अनुसार इसीलिए इसका नाम जालंधर पड़ा। बहुत कम लोग जानते हैं कि कभी बौद्ध धर्म का प्रमुख केंद्र रहा यह शहर पंजाब की राजधानी भी रह चुका है।... आगे पड़ें

आस्था का प्रमुख केन्द्र श्री गोरक्षनाथ मंदिर

आस्था का प्रमुख केन्द्र श्री गोरक्षनाथ मंदिर

हिन्दू धर्म, दर्शन, अध्यात्म और साधना के अंतर्गत विभिन्न संप्रदायों और मत-मतांतरों में नाथ संप्रदाय का प्रमुख स्थान है। श्री गोरक्षनाथ मंदिर इस संप्रदाय का प्रमुख केन्द्र है। संपूर्ण देश में फैले नाथ संप्रदाय के विभिन्न मंदिरों तथा मठों की देख रेख यहीं से होती है। गोरक्षनाथ मंदिर गोरखपुर में अनवरत योग साधना का क्रम प्राचीन काल से चलता रहा है। गोरखपुर में गोरक्षनाथ मंदिर का निर्माण उसी पवित्र स्थान पर हुआ है, जहां ज्वाला देवी के स्थान से परिभ्रमण करते हुए आकर गुरु गोरक्षनाथ जी ने तपस्या... आगे पड़ें

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