खजुराहो : पत्थरों पर छवियां जीवन की

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पाषाण पर उकेरे गए जीवन के विभिन्न आयामों को प्रदर्शित करते खजुराहो के गगनचुंबी देवालय आज विश्व भर में विख्यात हैं। मध्यकालीन भारत के चंदेल राजाओं द्वारा बनवाए गए मध्य प्रदेश में यह मंदिर अपने निर्माण के एक हजार वर्ष पूरे कर चुके हैं। मंदिरों की उत्कृष्ट वास्तुकला, उनकी भित्तियों पर जड़ी सर्वोत्तम मूर्तिकला तथा सुव्यस्थित शिल्पकला  के कारण इन भव्य मंदिरों का नाम आज यूनेस्को की विश्व विरासत की सूची में भी दर्ज है। मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले में स्थित खजुराहो के मंदिरों की दीवारों पर बनी कामक्रीणारत मूर्तियों के लिए भी जाना जाता है।

पश्चिमी, पूर्वी व दक्षिणी समूहों के मंदिर

भौगोलिक स्थिति के आधार पर मंदिरों को पश्चिमी, पूर्वी व दक्षिणी समूहों में बांटा गया है। इसमें पश्चिमी मंदिर समूह में यहां के महत्वपूर्ण मंदिर हैं। खजुराहो का सबसे प्राचीन मंदिर मतंगेश्वर मंदिर है। जिसे राजा हर्षवर्मन ने 920 ई में बनवाया था। इन मंदिरों में यही एकमात्र मंदिर है, जिसमें आज भी पूजा अर्चना होती है। पिरामिड शैली में बने इस एक ही शिखर वाले मंदिर की शिल्प रचना साधारण है। गर्भगृह में एक मीटर व्यास का ढाई मीटर ऊंचा शिवलिंग है। मतंगेश्वर मंदिर के सामने ही मंदिरों का मुख्य परिसर है। जिनकी देखरेख पुरातत्व विभाग द्वारा की जाती है। लक्ष्मण मंदिर पंचायतन शैली में बना है। इसके चारों कोनों पर एक-एक उप मंदिर है। मुख्य द्वार पर रथ पर सवार सूर्यदेव की प्रतिमा बनी है। बाहरी दीवारों पर मूर्तिकला का भव्य प्रदर्शन है। अधिकतर मूर्तियां उस काल के जीवन और परपंराओं को दर्शाती हैं, जिनमें नृत्य, संगीत, युद्ध, शिकार जैसे दृश्यों के बीच विष्णु, शिव, अग्निदेव आदि के साथ ही गंधर्व, नायिका, देवदासी, तांत्रिक, पुरोहित आदि की मूतियां हैं। इनके मध्य ही कुछ मैथुन मूर्तियां भी हैं।

विश्वनाथ मंदिर

खजुराहो का विश्वनाथ मंदिर भी पंचायतन शैली में बना है, पर इसके उपमंदिरों में दो ही शेष हैं। 90 फुट ऊंचा व 45 फुट चौड़ा यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। गर्भगृह की दीवारों पर शिव के कई रूप चित्रित हैं। मंदिर के सामने मंडप में शिव के वाहन नंदी की प्रतिमा है। इस मंदिर के निकट ही पार्वती मंदिर है। चित्रगुप्त मंदिर के गर्भगृह में सात घोड़ों के रथ पर सवार सूर्य भगवान की प्रतिमा है। निकट ही चित्रगुप्त की प्रतिमा भी है। मंदिर की बाहरी दीवारों पर अन्य मूर्तियों के मध्य उमा-महेश्वर, लक्ष्मी-नारायण व विष्णु के विराट रूप की मूर्तियां हैं। जनजीवन की मूर्तियों में श्रमिकों की मूर्तियां मंदिर निर्माण के दौर को दर्शाती हैं। कुछ मूर्तियों में नायक-नायिका आलिंगन के विभिन्न रूपों में चित्रित हैं। इसके निकट ही जगदम्बी मंदिर है। जीर्णोद्धार के समय छतरपुर के महाराजा द्वारा मंदिर में जगदम्बा की प्रतिमा स्थापित करने के कारण इसका नाम जगदम्बी मंदिर पड़ा। वैसे यह मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित था। प्रवेशद्वार के सरवल पर चतुर्भुजी विष्णु गरुड़ पर आसीन नजर आते हैं। मंदिर की आलियों में सरस्वती एवं लक्ष्मी की प्रतिमाएं विशेष हैं। यहां की दीवारों पर कुछ प्रभावशाली मैथुन दृश्य भी हैं। महादेव मंदिर एक छोटा सा मंदिर है। मंदिर का मूलभाग खंडित अवस्था में है। प्रवेशद्वार पर एक शिव प्रतिमा नजर आती है। इस मंदिर पर चंदेलों का राजकीय चिह्न भी है।

कंदारिया महादेव मंदिर

कंदारिया महादेव मंदिर खजुराहो का सबसे विशाल और विकसित शैली का मंदिर है। सप्तरथ शैली में बने 117 फुट ऊंचे इस मंदिर का निर्माण राजा विद्याधर ने 1065 के आसपास करवाया था। इसकी बाह्य दीवारों पर कुल 646 मूर्तियां हैं तो भीतर भी 226 मूर्तियां हैं। इतनी मूर्तियां किसी अन्य मंदिर पर नहीं हैं। मंदिर के सरदल पर शिव की चारमुखी प्रतिमा के साथ ब्रह्मा एवं विष्णु भी विराजमान हैं। गर्भगृह में संगमरमर का विशाल शिवलिंग है।

कंदारिया महादेव मंदिर का कोई उपमंदिर शेष नहीं है। दीवारों पर सुर-सुंदरी, नर-किन्नर, देवी-देवता एवं प्रेमी युगल आदि चित्रित हैं। एक जगह ऊपर से नीचे की ओर क्रम में बनी तीन मूर्तियां कामसूत्र के सिद्धांत का वर्णन करती दिखती हैं। एक अन्य दृश्य में एक पुरुष शीर्षासन की मुद्रा में तीन स्त्रियों के साथ रतिमग्न हैं। वास्तव में यहां कुछ अनोखे मैथुन दृश्य हैं।

वामन मंदिर

पूर्वी मंदिर समूह में तीन हिंदू तथा चार जैन मंदिर हैं। हिंदू मंदिर में ब्रह्मा मंदिर पिरामिड शैली का छोटा सा मंदिर है। यहां ब्रह्मा जी के साथ शिव एवं विष्णु की भी प्रतिमाएं हैं। वामन मंदिर विष्णु के वामन अवतार को समर्पित है। मंदिर की भित्तियों पर प्रेमी युगलों के कुछ आलिंगन दृश्यों को छोड़ ज्यादातर एकल प्रतिमाएं हैं। यहीं शिव विवाह का खूबसूरत अंकन भी है। जवारी मंदिर में भगवान विष्णु के वैकुंठ रूप में दर्शन होते हैं। यहां भी दीवारों पर उपस्थित काफी मूर्तियों के मध्य कुछ खास मैथुन दृश्य नजर आते हैं।

जैन मंदिर

यहां के जैन मंदिरों में घंटाई मंदिर काफी जीर्ण अवस्था में है। शेष तीन जैन मंदिर एक परिसर में हैं। इनमें प्रमुख है पा‌र्श्वनाथ मंदिर। राजा धंगदेव के काल में एक नगर श्रेष्ठी द्वारा इसका निर्माण कराया गया था। मंदिर की बाहरी दीवारों पर तीर्थकरों के साथ कुबेर, द्वारपाल, गजारुड़ या अश्वारुड़ जैन शासन देवताओं का सुंदर अंकन है। मंदिर में पा‌र्श्वनाथ जी की श्यामवर्ण प्रतिमा विराजमान है। आदिनाथ मंदिर की पंक्तियों में गंधर्व, किन्नर, विद्याधर शासन देवी-देवती, यक्ष मिथुन व अप्सरा शामिल हैं। यहां आरसी के काजल डालती नायिका तथा शिशु पर वात्सल्य छलकाती माता की मूर्तियां पर्यटकों को मुग्ध कर देती हैं। तोरण में तीर्थकर माता के सोलह स्वप्नों का मोहक चित्रण है। शांतिनाथ मंदिर केवल सौ वर्ष पुराना है। यहां पूजा अर्चना का नियम भी है। मंदिर में मूलनायक सोलहवें तीर्थकर शांतिनाथ की 12 फुट ऊंची प्रतिमा है। यह मंदिर प्राचीन मंदिरों से भिन्न है। जैन मंदिरों के पास ही साहु शांति प्रसाद जैन कला संग्रहालय भी है।

दक्षिणी मंदिर समूह में खोकर नदी के तट पर स्थित दुल्हादेव मंदिर है। इस मंदिर में एक विशाल शिवलिंग पर एक हजार छोटे-छोटे शिवलिंग बने हैं। 12वीं शताब्दी में निर्मित यह मंदिर चंदेल राजाओं की अंतिम धरोहर है। उधर चतुभुर्ज मंदिर में शिव की सौम्य प्रतिमा है। दीवारों पर बनी मूर्तियों में दिग्पाल, अष्टवसु, अप्सराएं और व्याल प्रमुखता से है। इस मंदिर की दीवारों पर मिथुन मूर्तियों का अभाव है। चतुर्भुज मंदिर से कुछ दूर एक ओर प्राचीन मंदिर के अवशेष कुछ वर्ष पूर्व प्राप्त हुए। बीजा मंडल नामक इस स्थान पर अभी भी उत्खनन का कार्य चल रहा है।

पुरातत्व संग्रहालय

खजुराहो के सभी मंदिरों में व्याल एवं शार्दुल मूर्तियों की अवस्था में है, लेकिन फिर भी मंदिर की भव्यता कम नहीं होती। पश्चिम मंदिर समूह में ध्वनि एवं प्रकाश कार्यक्रम भी आयोजित किया जाता है। खजुराहो में एक पुरातत्व संग्रहालय भी है। मंदिरों के निर्माण के संदर्भ में हेमवती की कथा के अलावा इन्हें तांत्रिक समुदाय द्वारा निर्मित भी कहा जाता है। योग तथा भोग को मोक्ष का मार्ग मानने वाले तांत्रिक समुदाय ने ही मैथुन दृश्यों को मंदिरों पर उकेरा होगा। बहरहाल स्थापत्य की इस अनोखी विधा के पीछे कुछ भी औचित्य रहा हो, आज से मंदिर संसार भर के कलाप्रेमियों के लिए अतीत का एक अद्वितीय उपहार हैं। वास्तव में महान थे वो शिल्पकार जिन्होंने हथोड़े-छैनी के प्रयोग से ही आस्था से आसक्ति तक जीवन के तमाम संवेंगों को पाषाण पर उकेर दिया

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