जिम कार्बेट: नैनीताल से नियरी तक

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कहा जाता है कि वे लोग बहुत सौभाग्यशाली होते हैं, जिन्हें अपने जीवनकाल में मां पूर्णागिरी के मंदिर के चारों ओर अद्भुत प्रकाश, मध्य रात्रि में दिखाई देता है। नैनीताल के लेफ्टिनेंट कर्नल एडवर्ड जेम्स कार्बेट (1875-1955) को मां पूर्णागिरी का यह आशीर्वाद प्राप्त हुआ था। क्रिस्टिफर्ड विलियम कार्बेट के पुत्र थे जिम कार्बेट। विलियम 1862 से 1881 तक नैनीताल डाकखाने के पोस्टमास्टर रहे थे। वर्ष 1907 से 1939 के मध्य जिम कार्बेट ने कई आदमखोर शेर और गुलदार मारकर उत्तराखंड के हजारों गांववासियों को भयमुक्त किया। रातों रात सुनसान में अकेले जिस प्रकार वह इन नरभक्षियों के शिकार में बैठे रहते थे, यह उनके साहस का परिचय देता है। समाजसेवा में भी वह लिप्त रहते थे। पहाड़ी क्षेत्र विशेषकर छोटा हल्द्वानी गांव उनका ऋणी रहेगा। उनके लेखन कौशल ने उन्हें एक काल्पनिक व्यक्ति बना दिया और अमेरिका, यूरोप, अफ्रीका और आस्ट्रेलिया में भारत की लोकप्रियता बढ़ाई। इनकी सुप्रसिद्ध पुस्तक ‘मैन इटर्स आफ कुमाऊं’ कालाढूंसी में लिखी गई थी और 1944 में ही इसकी दो लाख पचास हजार प्रतियां बिक गई थीं।

अफ्रीका में कीनिया और तंजानिया जिन कार्बेट की बेहद पसंदीदा जगहों में से थीं। संभवत: वहां की कुमाऊं जैसी पहाडि़यां, अंग्रेजी और हिंदी बोलने वाले लोग, लाखों हिंदुस्तानी, भारतीय व्यंजनों का भंडार, विशाल मंदिर और गिरिजाघर उन्हें घर से दूर एक घर का अनुभव दिलाता था। वर्ष 1922 में उन्होंने अपने मित्र परसी विंदम के साथ मिलकर तंजानिया में एक संपत्ति खरीदी। वह अक्सर वहां जाते थे। जीवन भर वह और उनकी बहन मैगी अविवाहित रहे और एक साथ रहे। जिम कार्बेट जब 72 वर्ष के हो गए तो उन्हें भय लगने लगा कि उनकी मृत्यु के उपरांत मैगी की देखभाल कौन करेगा। उधर कीनिया में नियरी के पास उनके भतीजे जनरल टाम कार्बेट खेती करते थे। लिहाजा अपनी बहन के साथ जिम कार्बेट हिमालय से प्रस्थान करके कीनिया के ऐवरडेयर पहाड़ी में नियरी नाम के गांव में जा बसे। हालांकि दिल उनका अपने नैनीताल में रहा।

नियरी में ही लिखीं पांच सुप्रसिद्ध पुस्तकें

उन्होंने अपनी पांच सुप्रसिद्ध पुस्तकें-टंपिल टाइगर, माई इंडिया, जंगल लोर, मैन इटिंग लेपर्ड आफ रुद्रप्रयाग और ट्री टाप्स नियरी में ही लिखी थीं। जिम कार्बेट नैनीताल में गर्नी हाउस में रहते थे, जो मेरे पूर्व निवास ‘एलिसमेयर’ और वर्तमान निवास ‘दी हाइव’ के पास ही हैं। वर्ष 1862 से कुछ समय तक दी हाइव में ही नैनीताल का डाकघर था, जहां पूरे कुमाऊं क्षेत्र की डाक आती थी। यहीं कुछ वर्षो तक जिम के पिता, क्रिस्टिफर्ड कार्बेट बैठते थे। वर्ष 1937 में मेरे पिता राजा राम कुमार भार्गव, राजा साहब महमूदाबाद व अन्य 14 मित्रों के साथ जिम कार्बेट ने आल इंडिया कांफ्रेंस फार वाइल्ड लाइफ प्रिजर्वेशन की स्थापना की।

चालीस वर्षो से खुद भी वन्य जीव संरक्षण में लगे रहने के कारण मैंने जिम कार्बेट साहब को अपना हीरो माना। जीवन पर्यत जिम कार्बेट वन्य जीवों के संरक्षण में लगे रहे। कार्बेट नेशनल पार्क इनकी एक सुंदर यादगार है। जिम कार्बेट से मेरा भावात्मक लगाव था, और शुरू से तमन्ना रही थी कि उनसे संबंधित स्थानों का कीनिया में भ्रमण करूं। पत्नी श्रुति और पुत्र परीक्षित को लेकर 28 दिसंबर 2006 को मैं नैनीताल से नैरोबी पहुंच ही गया। वहां से अगले ही दिन 160 कि. मी. की दूरी पर नियरी नगर पहुंचा।

नियरी में 1928 में मेजर एरिक वाकर ने प्रसिद्ध होटल आउटस्पेन का निर्माण किया था और 1938 में उसी के बगल में एक छोटा काटेज निर्मित किया। अंतर्राष्ट्रीय स्काउट व गाइड आंदोलन के जनक लार्ड बेडेन पावेल के लिए यह बना और 1938-1941 तक लार्ड पावेल इसी में रहे। इस निवास का नाम ‘पैक्सटू’ रखा और 1941 में यही उनका देहांत हुआ। 1941 से 1947 तक यह खाली पड़ा रहा। फिर 1947 से 1955 तक जिम कार्बेट पैक्सटू में रहे। जिम कार्बेट के इस निवास में कुछ घंटे बिताने का मुझे सुखद अनुभव हुआ। 1955 में 80 वर्ष की आयु में जिम कार्बेट साहब का निधन हुआ और पैक्सटू से डेढ़ किलोमीटर दूर बेडेन पावेल रोड पर नियरी गिरिजाघर के प्रागंण में लार्ड पावेल की कब्र से थोड़ी ही दूर पर इनको दफनाया गया। 1963 में इनकी बहिन मैगी को उसी कब्र में रखा गया और कब्र के सिरहाने जो पत्थर था, उस पर जोड़ दिया गया ‘और उनकी बहन मैगी-1963′। कब्र का हाल देखकर मुझे बहुत दुख हुआ। कब्र के ऊपर की सीमेंट जगह-जगह से उखड़ी हुई थी। उसकी मरम्मत के लिए कब्रिस्तान के प्रबंधक महोदय को मुझे एक हजार शीलिंग भेंट करने का सौभाग्य मिला।

ट्री टाप्स होटल में रात

फिर 29 दिसंबर, 2007 की रात मैंने विश्व विख्यात ट्री टाप्स होटल में बिताई। दुनिया में वन्य प्राणियों को देखने के लिए इससे सुंदर स्थान नहीं। जिम कार्बेट यहां अक्सर आकर रहते थे और यात्रियों को यहां लाते थे। पहले पेड़ों पर निर्मित यह होटल बहुत छोटा था। बात 5 फरवरी 1952 की है। इसमें एक युगल पर्यटक उस रात ठहरा। पर्यटक युगल था इंग्लैंड की राजकुमारी एलिजाबेथ और उनके पति राजकुमार फिलिप। रात्रि को जब एलिजाबेथ अपने कक्ष में गई तो एक राजकुमारी थी और जब सुबह जीने से उतरीं तो ब्रिटिश साम्राज्य की महारानी बन चुकी थी। उनके पिता सम्राट जार्ज छठवें का निधन बीती रात हो चुका था। उस रात जंगली जानवरों से और माऊ-माऊ आतंकियों से उनकी रक्षा करने के लिए जिम कार्बेट साहब तैनात थे। इसी होटल के बार के सामने जिम कार्बेट बैठते थे। यही पर मैंने बैठकर होटल की महाप्रबंधक महोदय को नैनीताल शहर की ओर से जिम कार्बेट संबंधी साहित्य भेंट किया। मेरे लिए अपने जीवन का यह एक यादगार क्षण था।

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