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गोपालपुर सागरतट को उड़ीसा का सबसे सुंदर सागरतट माना जाता है। गोपालपुर ऑन सी के नाम से प्रसिद्ध इस तट पर देखने के लिए बस समुद्री नजारे हैं। यहां कोई ऐतिहासिक इमारत नहीं है, कोई भव्य मंदिर नहीं है और न यह कोई व्यावसायिक केंद्र ही है। इसीलिए शांत सैरगाह की तलाश में निकले सैलानियों के लिए यह स्वर्ग के समान है। यहां का स्वच्छ एवं नीला जल तैराकी के शौकीन लोगों के लिए बड़ा आकर्षण है। हालांकि कुछ स्थानों पर गहरे जल के कारण उन्हें सजग रहना पड़ता है, किंतु समुद्र स्नान की इच्छा को गोपालपुर तट तक आने वाला कोई सैलानी शायद ही रोक पाता हो।
उफनती लहरों द्वारा सुनहरी रेत पर फैलाए गए समुद्री झाग के बीच पर्यटक घंटों नंगे पैर घूमते रहते हैं। सूर्योदय व सूर्यास्त के मोहक दृश्यों के मध्य दिन भर यहां ऐसा बहुत कुछ नजर आता है जो पर्यटकों को बांधे रखता है। लहरों के समान चढ़ती-उतरती मछुआरों की छोटी-छोटी कश्तियां और मछलियों से भरे जाल किनारे की ओर खींचते मछुआरे इन दृश्यों में स्थानीय जीवन का रंग भरते हैं। ठंडी गीली रेत से अनोखे मूर्तिशिल्प गढ़ने वाले कलाकार पुरी के समान यहां भी अपने हुनर से पर्यटकों को मंत्रमुग्ध कर देते हैं। गोपालपुर के तट पर आकर पर्यटक सी फूड का स्वाद भी ले सकते हैं और चाहें तो यहां से सीपी आदि के बने हस्तशिल्प भी खरीद सकते हैं।
आज का गोपालपुर ऑन सी कभी एक बंदरगाह था। तब व्यापारिक जहाज यहां से इंडोनेशिया की ओर जाते थे। दूसरे विश्वयुद्ध के बाद यहां से व्यापार बंद हो गया। उस दौर का लाइट हाउस व स्तंभ आज भी यहां देखे जा सकते हैं। यही नहीं, उस दौर की स्मृति के रूप में यूरोपीय व्यापारियों के कुछ बंगले और कोठियां भी यहां मौजूद हैं। बाद में एक सैरगाह के रूप में इसकी खोज का श्रेय दक्षिण पूर्व रेलवे के कुछ रिटायर्ड एंग्लो इंडियन कर्मचारियों को जाता है, जिन्होंने आजादी से पूर्व, जगह की सुंदरता से प्रभावित होकर यहां कुछ कॉटेज और बंगले बनाए। बस तभी से यहां पर्यटकों का आना-जाना शुरू हो गया। सागरतट से कुछ दूर ताड़ के वृक्षों से घिरा एक मंदिर परिसर है। यहां मंदिर में भगवान कृष्ण यानी गोपाल की प्रतिमा विराजमान है। इसीलिए इस स्थान का नाम गोपालपुर पड़ा था। तट के पास ही बैकवाटर के क्षेत्र में पर्यटक वोटिंग का आनंद भी ले सकते हैं। हावड़ा-चेन्नई रेल मार्ग पर स्थित बेरहमपुर से गोपालपुर 16 किलोमीटर दूर है। वैसे भुवनेश्वर से इसकी दूरी 186 किलोमीटर है।
चांदी जैसी रेत पर
दूसरी दिशा में चांदीपुर ऑन सी भी ऐसा ही शांत और सुंदर सागरतट है। यह स्थान भुवनेश्वर से 205 किलोमीटर दूर है। बालासोर स्टेशन से यह मात्र 13 किलोमीटर दूर है। यह स्थान आज सप्ताहांत पर्यटन के लिए आदर्श सैरगाह बन गया है। चांदीपुर सागरतट की खासियत यह है कि चांदनी रात में यहां की सफेद रेत चांदी के समान चमकती हुई सी प्रतीत होती है। इसीलिए इस स्थान का नाम चांदीपुर पड़ा था।
चांदीपुर की दूसरी विशेषता यह है कि लो टाइड के समय यहां का सागरतट करीब पांच किलोमीटर तक फैल जाता है। उस समय तैराकी के शौकीन लोग इसका भरपूर आनंद लेते हैं, लेकिन लहरों का आनंद लेने के लिए कई किलोमीटर पैदल चलना पड़ सकता है। वैसे हाई टाइड के समय लहरें अपने आप करीब चली आती हैं। यहां सैलानियों को कुछ छोटी समुद्री वनस्पतियां देखने का मौका भी मिलता है। पर्यटक चाहें तो साइटसीन टूर के तहत यहां स्थित एक पुराना किला, कृष्ण मंदिर तथा पहाड़ी पर स्थित पंचलिंगेश्वर मंदिर भी देख सकते हैं।
चांदीपुर कभी महत्वपूर्ण व्यावसायिक केंद्र था। 17वीं शताब्दी के आरंभ में यहां अंग्रेज, डच और फ्रांसीसी व्यापारियों की फैक्टि्रयां थीं। बंगाल में खोली गई ईस्ट इंडिया कंपनी की पहली फैक्ट्री भी यहीं थी।
गोपालपुर में ठहरने के लिए उड़ीसा पर्यटन का होटल पंथनिवास उपयुक्त स्थान है। इसके अलावा होटल सांग ऑफ सी, होटल सी पर्ल, मैरियेड होटल, हॉलीडे होम, ओसेन हाउस, होटल कलिंग, हॉलिडे इन, यूथ हॉस्टल एवं ओबेराय पापनीच है। चांदीपुर में भी उड़ीसा पर्यटन का पंथनिवास टूरिस्ट बंगला समुद्रतट के सामने है। इसके अलावा होटल मून लाइट, होटल सागरिका, दीपक लॉज आदि स्थान भी उपलब्ध हैं।