

- Round Trip
- One Way


मुख पृष्ठ » पश्चिम भारत » राजस्थान »
अपने नाम के अनुरूप ‘पैलेस ऑन व्हील्स’ पहियों पर घूमते हुए राजमहल की तरह है और इसका हर यात्री राजा के समान। इन महलों में यात्रा करते सैलानियों को एकबारगी लगता है मानो समय के विपरीत चलते हुए यह रेलगाड़ी उन्हें इतिहास के ही किसी विरल कालखंड में लिए चली जा रही हो। राजस्थान की गौरवशाली संस्कृति के दर्शन कराती इस यात्रा में पर्यटक एक सप्ताह के लिए बीते समय के वैभव और विलासिता को पूरी तरह अनुभव करते हैं। यही कारण है कि पैलेस ऑन व्हील्स की यात्रा आज संसार की दस ‘लग्जरी’ यानी अत्यंत आरामदेह यात्राओं में गिनी जाती है। शायद इसीलिए विदेशी सैलानी और देश का धनाढय वर्ग इस आलीशान रेलगाड़ी में यात्रा करने को लालायित रहता है। पैलेस ऑन व्हील्स की यात्रा शुरू होती है दिल्ली छावनी रेलवे स्टेशन से। इस दौरान पर्यटकों को राजस्थान के प्रमुख शहरों और राष्ट्रीय उद्यानों के अलावा ताजनगरी आगरा की सैर भी कराई जाती है।
दिल्ली छावनी स्टेशन पर विशेष स्वागत कक्ष में प्रवेश करते ही हमारा स्वागत कुछ इस ढंग से हुआ मानो हम शाही अतिथि हों। संगीत की स्वर लहरियों के मध्य पारंपरिक राजस्थानी वेशभूषा में सजी-संवरी युवतियों ने तिलक लगाकर, फूलमाला पहनाकर सैलानियों का स्वागत किया। विदेशी सैलानियों के लिए स्वागत का यह अंदाज एकदम निराला था। हम प्लैटफार्म पर पहुंचे तो वहां सुंदर बोगियों की लंबी ट्रेन खड़ी थी।
पैलेस ऑन व्हील्स की इन बोगियों को सैलून कहते हैं। सैलून के द्वार पर अटेंडेंट ने अदब से सलाम कर हमें केबिन तक पहुंचाया। सैलून में प्रवेश करते ही मिनी लाउंज है। छोटे से मेहमानखाने के समान, इसमें तीन सोफों के मध्य एक कांच की टेबल लगी है। खिड़कियों पर शानदार पर्दे लगे हैं और दीवार पर आकर्षक पेंटिंग सजी हैं। छत पर की गई निराली चित्रकारी भी पर्यटकों का ध्यान आकर्षित करती है। कार्नर टेबल पर फू्रट बास्केट रखी है। हर सैलून में चार केबिन हैं। शाही मेहमानों की खिदमत के लिए हर सैलून में एक सैलून कैप्टन और एक अटेंडेंट हमेशा तैयार रहते हैं। केबिन में पहुंचने के कुछ ही पल बाद अटेंडेंट ने हमें फ्रूट पेश किया। साथ ही उसने यात्रा की रूपरेखा तथा राजस्थान के पर्यटन स्थलों से संबंधित एक मोटी सी सोवेनियर भी हमें दी। किसी भी जरूरत के लिए कॉलबेल का स्विच बताकर उसने संगीत चैनल का स्विच ऑन कर दिया।
शाही सवारी का अनोखा संसार
वैसे तो पैलेस ऑन व्हील्स की भव्यता के बारे में हमने कई बार सुना था, लेकिन इस बारे में पहले से हमें कोई जानकारी नहीं थी कि ऐसी कौन सी सुविधाएं इस यात्रा में उपलब्ध कराई जाती हैं, जिनके कारण इसे शाही रेलगाड़ी की संज्ञा दी जाती है। इसी जिज्ञासा के कारण केबिन में विश्राम करते हुए हम ट्रेन की भव्यता को निरखने लगे। ट्रेन ने सही समय पर प्रस्थान किया। चलती गाड़ी में यह एहसास ही नहीं हो रहा था कि हम रेलगाड़ी के डिब्बे में यात्रा कर रहे हैं। लगता था किसी महाराजा की आरामगाह में बैठे हैं। वॉल टू वॉल कारपेट वाले कक्ष में दो गद्देदार आरामदेह बेड हैं। जिनके साथ एक वार्डरोब, एक छोटी टेबल और दीवार पर एक छोटा आईना लगा है। बड़ी सी खिड़कियों पर झालरदार रेशमी परदे सजे हैं। केबिन से जुड़ा है छोटा सा बाथरूम जिसमें ठंडे-गरम पानी और शॉवर की सुविधा है। पेस्ट, सोप, शैम्पू और टॉवल वहीं उपलब्ध हैं। कक्ष में लगे सुंदर लैंपों से प्रकाश की समुचित व्यवस्था है। मनोरंजन के लिए यहां संगीत के चार-पांच चैनल हैं। पूरी तरह वातानुकूलित ये सैलून वास्तव में मिनी महल जैसे लगते हैं। खिड़की से परदा हटाकर हमने बाहर झांका तो हमारे सामने वही साधारण संसार था।
आज यह लग्जरी ट्रेन पर्यटन का सिर्फएक साधन ही नहीं, बल्कि भारत आने वाले विदेशी सैलानियों के लिए आकर्षण का एक बड़ा कारण भी है। पर्यटन विभाग तथा रेलवे की आय के साथ विदेशी मुद्रा का भी अच्छा स्त्रोत बन चुकी है यह रेलगाड़ी। शाही सवारी के अनोखे संसार में हम इस कदर गुम थे कि हमें पता ही नहीं चला कि कब डिनर का समय हो गया। अटेंडेंट ने आकर रात्रि भोजन के लिए चलने का आग्रह किया तो हम डाइनिंग हाल की ओर चल दिए।
पैलेस ऑन व्हील्स की भव्यता मिनी महलों तक ही सीमित नहीं है। मध्य की बोगियों में स्थित ‘महाराजा’ और ‘महारानी’ नाम के दो रेस्तरां भी इसकी शान के हिस्से हैं। पहियों पर दौड़ती ट्रेन के इन रेस्तराओं की सजावट किसी पॉंचसितारा होटल के छोटे रेस्टोरेंट का सा एहसास देती है। महाराजा की लाजवाब आंतरिक सज्जा को देख हम भी चकित रह गए। हर रेस्तरां में चालीस लोगों के बैठने की सुविधाजनक व्यवस्था है। सज्जा में रंगों और प्रकाश का अद्भुत संयोजन माहौल को रोमानी बना रहा था। उस खूबसूरत माहौल में उम्दा भोजन कर हम सैलून में वापस आ गए।
सुबह आंख खुली तो पैलेस ऑन व्हील्स जयपुर स्टेशन पर खड़ी थी। मिनी लाउंज में हमने ब्रेकफास्ट किया। इसमें बटर टोस्ट, पराठे, एग, जूस, चाय, कॉफी आदि उपलब्ध थे। यह सब सैलून में बनी मिनी पैंट्री से उपलब्ध कराया जाता है। जयपुर स्टेशन पर भी सैलानियों का पारंपरिक स्वागत हुआ। वहां से उन्हें वातानुकूलित कोच में बैठाकर साइट सीन के लिए ले जाया जाता है। राजस्थान के महल, किले और हवेली आदि पैलेस ऑन व्हील्स के यात्रियों के नगर भ्रमण के खास हिस्से हैं। इस तरह इन शाही मेहमानों को राजा-महाराजाओं का इतिहास भी पता चलता है। इस दौरान गाइड संबंधित राजाओं के शौर्य और उनकी वीरता की गाथाएं भी बताता है। सबसे पहले पर्यटक गुलाबी नगरी की पहचान ‘हवा महल’ देखने पहंुचते हैं। छोटे-छोटे सैकड़ों झरोखों वाली इस पांच मंजिला इमारत का वास्तुशिल्प अनोखा है। यह इमारत कभी राज परिवार की स्ति्रयों के लिए बनी थी। यहां बैठकर इन झरोखों से वे नगर की गतिविधियां देखती थीं। इन झरोखों से बहती हवा महल के तापमान को अनुकूल बनाए रखती थी। इसलिए इसे हवा महल कहते थे। हवा महल के आसपास बाजार में पर्यटकों को खरीदारी का अवसर भी मिल जाता है। वहां से पर्यटकों को आमेर फोर्ट ले जाया जाता है। एक पहाड़ी पर स्थित इस किले तक पहुंचने के लिए हाथी की सवारी कराई जाती है। विशाल किले में पहुंचकर, संगमरमर और लाल पत्थर का बना दीवाने आम और दीवारों तथा छत पर जड़े कांच से जगमगाता शीश महल पर्यटकों को प्रभावित करता है। वहीं गणेशपोल, जय मंदिर, सुहाग मंदिर और सुख निवास जैसे महलों में दीवार और छतों की पच्चीकारी, संगमरमर की बारीक जालियां तथा चंदन की लकड़ी के डिजाइनर दरवाजों की कारीगरी भी उन्हें आकर्षित करती है।
आमेर फोर्ट से पर्यटकों को लेकर कोच रामबाग पैलेस पहुंची। सुंदर उद्यान और फव्वारों वाला यह महल आज एक हेरीटेज होटल का रूप ले चुका है। जहां पर्यटकों की अच्छी आवभगत होती है। दोपहर का भोजन उन्हें इसी पैलेस में कराया जाता है। दोपहर बाद का आकर्षण है ‘जंतर मंतर’। यह देश की सबसे बड़ी वेधशाला थी जिसे 1728 में महाराजा जय सिंह ने बनवाया था। ग्रह-नक्षत्रों की गणना के लिए प्रयोग किए जाने वाले अजीब से दिखने वाले यंत्रों के विषय में गाइड ने विस्तार से बताया। जंतर-मंतर के निकट ही सिटी पैलेस है। इस महल के काफी बड़े हिस्से में बने समृद्ध संग्रहालय में दर्शक राजाओं द्वारा प्रयोग की गई वस्तुएं, अस्त्र-शस्त्र और चित्र आदि देखते हैं। यहां पहुंचकर उन्हें लगता है कि जैसे 16-17वीं शताब्दी के दौर में पहुंच गए हों। वहां से जयपुर के बाजार आदि घुमाते हुए कोच उन्हें वापस स्टेशन ले आती है।
शहर सा बसा है
पैलेस ऑन व्हील्स के जयपुर से प्रस्थान करने के कुछ देर बाद हम मध्य की बोगी में बनी लाउंज में आ गए। यह मुख्य लाउंज भी शाही रेलगाड़ी का विशेष आकर्षण है। किसी महल के दीवानेखास जैसी इस लाउंज के झिलमिलाते झूमर और जगमगाते लैंपशेड से प्रकाशवान वातावरण में एक सुंदर बार भी है। बार के काउंटर पर खास राजस्थानी पगड़ी बांधे और शेरवानी पहने खिदमतगार खड़ा होता है। सामने आरामदेह सोफों पर बैठे पर्यटकों को ड्रिंक्स पेश की जाती हैं। लाउंज की आंतरिक सज्जा भी गजब की है। खिड़की पर लगे रेशम और शनील (वेलवेट) के पर्दे, चित्रों से सजी दीवारें और छतों पर कांच की सजावट तथा चित्रकारी बेहद मनमोहक है। यहां पैलेस ऑन व्हील्स में सफर करते विभिन्न देशों के सैलानियों से सामना होता है। इनकी तुलना में भारतीय पर्यटकों की संख्या प्राय: कम ही होती है।
अगले दिन जैसलमेर की सुहानी सुबह सैलानियों का स्वागत करती है। इस शहर में सैलानियों को स्थापत्य कला के साथ राजस्थान के स्थानीय जीवन को करीब से देखने का अवसर भी मिलता है। सबसे पहले हम गड़ीसर झील देखने पहुंचे। झील के किनारे कुछ मंदिर और एक गेट बना है। वहीं एक छोटा सा संग्रहालय भी है। इसके बाद सैलानी जैसलमेर की भूल-भुलैया जैसी गलियों में प्रवेश करते हैं। दरअसल पुराने शहर में बनी ऐतिहासिक हवेलियों को देखने के लिए इन गलियों में आना पड़ता है। गाइड के मार्गदर्शन में बढ़ते हुए हमने भी पटवों की हवेली, सलीम सिंह की हवेली और नाथमल की हवेली देखी। इन हवेलियों का अद्भुत वास्तुशिल्प वास्तव में दर्शनीय है। गलियों में घूमते हुए सैलानियों को दुकानों पर सजे हस्तशिल्प, मूर्तियां और परिधान भी आकर्षित कर लेते हैं। इस तरह नगर भ्रमण के साथ खरीदारी का सिलसिला भी जारी रहता है। वैसे भी जैसलमेर की अर्थव्यवस्था काफी हद तक पर्यटन पर निर्भर है। कुछ देर बाद हमने यहां के प्रसिद्ध सोनार किले में प्रवेश किया। त्रिकूट पहाड़ी पर बना यह किला लगभग 800 वर्ष पुराना है। इसकी एक प्रमुख खासियत यह है कि इसके अंदर एक नगर सा बसा है। राजाओं ने यह किला केवल अपने लिए नहीं बल्कि पूरी प्रजा की सुरक्षा को ध्यान में रख कर बनाया था। किले के भीतरी भाग में बने रंगमहल, बादल महल, गज महल, मोती महल, सर्वोत्तम विलास और जवाहर विलास देखने लायक हैं। इनके अतिरिक्त किले के परिसर में आठ जैन मंदिर तथा चार वैष्णव मंदिर भी हैं। यहां घूमते हुए पर्यटकों को ऐसा लगता है जैसे मध्य युग के किसी शहर में आ गए हों। दोपहर के भोजन और विश्राम के लिए हम वापस पैलेस ऑन व्हील्स पर आ गए। दोपहर बाद हम कोच द्वारा शहर से करीब तीस किलोमीटर दूर रेगिस्तान का वास्तविक स्वरूप देखने पहंुचे। कोच से उतर कर बाहर देखते हैं तो सामने रेत का सुनहरा संसार नजर आता है। पर्यटक ऊंट पर बैठकर एक काफिले के रूप में रेत के ऊंचे-ऊंचे टीलों के बीच पहंुच जाते हैं। वहां घूमते-घूमते शाम होने लगती है और तभी सूर्यास्त का सुंदर नजारा भी देखने को मिलता है। सैंड डयूल्स से वापस आते हैं तो गोरवंद पैलेस में एक रंगारंग सांस्कृतिक संध्या हमारी प्रतीक्षा में थी। वहां राजस्थान के लोक नर्तक और गायकों द्वारा प्रस्तुत कार्यक्रम देख सभी विभोर हो जाते हैं। गैर, घूमर, कालबेलिया जैसे नृत्य की लय दर्शकों को झूमने पर बाध्य कर देती है। कार्यक्रम के बाद वहीं रात्रि भोज का आयोजन भी होता है।
ऊंची पहाड़ी पर किला
यात्रा के चौथे दिन सूर्योदय तक पैलेस ऑन व्हील्स सूर्य नगरी जोधपुर पहुंच जाती है। यह शहर 15वीं शताब्दी में सूर्यवंशी राजा राव जोधा ने बसाया था। जोधपुर का मुख्य आकर्षण है ‘मेहरानगढ़ फोर्ट’। ऊंची पहाड़ी पर स्थित इस किले के भीतरी वास्तुशिल्प में शामिल हैं मोती महल, सुख महल और फूल महल। किले की मजबूत प्राचीर पर रखी बड़ी-बड़ी तोपें आज भी शत्रु पर आक्रमण करने को तैयार लगती हैं। फोर्ट से कुछ दूर सफेद संगमरमर की एक इमारत पर्यटकों को अपनी ओर आमंत्रित करती है, वह है, ‘जसवंत थड़ा’। यह महाराजा जसवंत सिंह द्वितीय का स्मारक है। इसके निकट ही कुछ और छतरीनुमा स्मारक बने हैं। वहां से पर्यटक उम्मेद भवन पैलेस पहंुचते हैं। 20वीं सदी के आरंभ में बना उम्मेद भवन पैलेस एक आधुनिक महल है।
उम्मेद भवन पैलेस के एक छोटे से हिस्से में संग्रहालय है और एक हिस्सा होटल में तब्दील हो चुका है। इसमें एक इनडोर स्विमिंग पूल भी है। दोपहर का भोजन हमने उसी भव्य होटल में किया। जोधपुर के रंग-बिरंगे बाजारों में सैलानियों को खरीदारी का अवसर भी दिया जाता है। शाम से पहले यह रेलगाड़ी जोधपुर से प्रस्थान कर लेती है।
इतिहास शाही रेलगाड़ी का
राजस्थान के ऐतिहासिक रजवाड़ों की सैर कराने वाली इस शाही रेलगाड़ी का इतिहास जानने के लिए हम काफी उत्सुक थे। राजस्थान सूचना विभाग के श्री गोपेंद्र भट से मुलाकात होने पर हमारी यह जिज्ञासा भी शांत हो गई। देश में रेल तंत्र के उदय के बाद राजस्थान के बड़े-बड़े घरानों ने रेल यात्राओं को भी अपने शाही अंदाज में ढालने का प्रयास किया। इसके लिए उन्होंने निजी सैलून बनवाए, जिनमें सभी सुविधाओं का समावेश किया गया। आजादी के बाद रेल तंत्र सरकारी हाथों में आ गया तो धीरे-धीरे ये शाही सैलून अपनी शान खोने लगे। करीब 24-25 वर्ष पूर्व राजस्थान पर्यटन तथा रेल मंत्रालय का ध्यान इनकी ओर गया तो उन्होंने एक शाही सफर की परिकल्पना की। अलग-अलग रियासतों के 13 सैलून इकट्ठे कर उन्हें फिर से सफर योग्य बनाया गया। सभी सुविधाओं से युक्त इन सैलूनों को जोड़कर एक ट्रेन बनाई गई। जिसका नाम ‘पैलेस ऑन व्हील्स’ रखा गया। देखते ही देखते यह रेलगाड़ी विदेशी यात्रियों को अधिक आकर्षित करने लगी। लेकिन उस समय इस यात्रा में कई तरह की कठिनाइयां आती थीं। ये सैलून आपस में जुड़े हुए नहीं थे। काफी पुराने पड़ चुके लकड़ी के सैलून ज्यादा समय तक पटरी पर नहीं दौड़ सकते थे। इन परेशानियों को दूर करने के उद्देश्य से तथा इसकी बढ़ती प्रसिद्धि को ध्यान में रखकर नये सैलून बनवाए गए। सैलूनों की राजसी शैली में कुछ और सुविधाएं जोड़कर उन्हें वातानुकूलित बनाया गया। सैलूनों के नाम राजस्थान की पुरानी रियासतों के नाम पर रखे गए और उस रियासत की सांस्कृतिक झलक को ही आंतरिक सज्जा में दिखाने का पूरा प्रयास किया गया। बेस्टीब्यूल द्वारा इन्हें आपस में जोड़कर ट्रेन में रेस्टोरेंट तथा आधुनिक पैंट्री कार की सुविधा भी जोड़ दी गई। यह यात्रा इतनी आरामदेह बन गई कि पैलेस ऑन व्हील्स ने संसार की चुनिंदा लग्जरी ट्रेनों में अपना स्थान बना लिया।
शिकारगाह बनी अभयारण्य
वन्य प्राणियों का शिकार कभी राजाओं का खास शौक होता था। इसके लिए उन्होंने अपनी पसंद की शिकारगाहें बना रखी थीं। राजस्थान की ऐसी ही एक शिकारगाह ‘रण थम्भौर’ थी, जो आज एक राष्ट्रीय वन्य प्राणी उद्यान है। वहां वन्य जीवों को उनके स्वच्छंद वातावरण में विचरण करते देखा जाता है। पैलेस ऑन व्हील्स के मुसाफिरों को रण थम्भौर का वन्य संसार दिखाने के लिए रेलगाड़ी ‘सवाई माधोपुर’ ठहरती है। यहां से सुबह की चाय के तुरंत बाद पर्यटक नेशनल पार्क पहुंचते हैं। उस दौर में बना ‘जोगी महल’ आज भी पार्क के मध्य स्थित है। इस पार्क में चीतल, सांभर, नीलगाय, चिंकारा, भेडि़ए और तेंदुए आदि तो आसानी से देखने को मिल जाते हैं। यदि भाग्य साथ दे तो पर्यटक रॉयल बंगाल टाइगर को भी यहां आजाद विचरण करते देख सकते हैं। सुबह के सुहाने मौसम में वन्य जीवन की झलक देखने के बाद 11 बजे के लगभग पैलेस ऑन व्हील्स चित्तौड़गढ़ की ओर प्रस्थान करती है। दोपहर बाद सैलानी शौर्य और बलिदान की धरती पर कदम रखते हैं। साइटसीन के दौरान जब गाइड चित्तौड़गढ़ का रोमांचक इतिहास सुनाता है तो विदेशी सैलानियों को तो वे घटनाएं ‘एडवेंचर टेल्स’ जैसी लगती हैं। यहां पर्यटक विशाल किले के साथ राणा कुंभा महल, फतह प्रकाश महल, पद्मिनी महल, विजय स्तंभ और कीर्ति स्तंभ आदि देखते हैं। 14वीं और 16वीं शताब्दी में हुए तीन युद्ध और रानियों के जौहर की साक्षी ये इमारतें आज भी उस दौर की कहानी कहती प्रतीत होती हैं।
पूरब के वेनिस की सैर
यात्रा के छठे दिन का लक्ष्य उदयपुर होता है। उदयपुर रेलवे लाइन के गेज में अंतर के कारण सैलानियों को चित्तौड़गढ़ से ही लग्जरी कोच के जरिये उदयपुर ले जाया जाता है। पूरब का वेनिस कहा जाने वाला यह शहर अपनी झीलों और उद्यानों के लिए प्रसिद्ध है। इसकी स्थापना सन् 1568 में महाराणा उदय सिंह ने की थी। झीलों के अलावा सिटी पैलेस भी उदयपुर का एक आकर्षण है। यह ऐतिहासिक विरासत दरअसल कई महलों का समूह है। इनमें विशेष हैं मानक महल, कृष्णा विलास महल, जनाना महल, मोती महल, चिनी महल तथा मोर चौक। एक संग्रहालय के रूप में यहां राज परिवारों से संबंधित अनेक वस्तुएं, चित्र, मिनिएचर पेंटिंग व अस्त्र-शस्त्र आदि प्रदर्शित हैं। उदयपुर का अगला आकर्षण है लेक पैलेस। पिछौला झील के मध्य एक छोटे से टापू पर महाराणा जगत सिंह द्वारा बनवाया गया ‘जगनिवास’ आज भव्य लेक पैलेस होटल के रूप में प्रसिद्ध है। सैलानियों को मोटर बोट द्वारा लेक पैलेस ले जाया जाता है। इस जल महल का वास्तुशिल्प बेहद प्रभावित करता है। दोपहर का भोजन भी लेक पैलेस में ही कराया जाता है। शाम तक पर्यटक वापस रेलगाड़ी में आ जाते हैं। यात्रा के दौरान हमने ध्यान दिया कि पैलेस ऑन व्हील्स की यात्रा में राजसी अंदाज का एहसास बनाए रखने में सैलून कैप्टन तथा अटेंडेंट का काफी योगदान होता है। यात्रियों को राजा का दर्जा देते हुए ये उसी ढंग से सेवा के लिए तत्पर नजर आते हैं। अंगे्रजी के साथ इन्हें और भी भाषाओं का थोड़ा ज्ञान होता है। पर्यटकों के बदलते शौक तथा पर्यटन क्षेत्र की जानकारी बढ़ाने के लिए इन्हें ट्रेनिंग भी दी जाती है। राजस्थानी पगड़ी और शेरवानी इनकी खास पोशाक होती है।
पक्षियों के कलरव में
यात्रा के सातवें दिन सैलानियों को भरतपुर स्थित केवलादेव घाना राष्ट्रीय उद्यान की सैर कराई जाती है। सुबह बहुत जल्दी ही वे उद्यान की ओर चल देते हैं। यह उद्यान पक्षी प्रेमियों के लिए स्वर्ग है। यहां तीन सौ से भी अधिक तरह के पक्षी देखे जा सकते हैं। सुबह का वातावरण पक्षियों के कलरव से गूंज रहा होता है। इनमें साइबेरिया और चीन से आने वाले कई प्रवासी पक्षी भी होते हैं। इनमें साइबेरियन क्रेन प्रमुख है। दस बजे से पूर्व ही सैलानी पैलेस ऑन व्हील्स पर आ जाते हैं।
भरतपुर से पैलेस ऑन व्हील्स उत्तर प्रदेश की ओर बढ़ती है। क्योंकि यात्रा की रूपरेखा में इस राज्य में स्थित विश्व धरोहर स्तर की दो ऐतिहासिक इमारतें भी शामिल हैं। इनमें से एक है ‘फतेहपुर सीकरी’। यह स्थान 16वीं शताब्दी में कुछ वर्षो तक अकबर की राजधानी था। उस समय बनवाया गया बुलंद दरवाजा ख्वाजा सलीम चिश्ती की दरगाह के अतिरिक्त निकट ही बने जोधा बाई महल, हवा महल, पंच महल, बीरबल महल, हिरन मीनार, दीवान-ए-आम, दीवान-ए-खास और नौबतखाना भी दर्शकों को दिखाए जाते हैं। इस तरह सैलानियों को मुगल स्थापत्य कला को देखने का मौका भी मिलता है।
जब पर्यटक फतेहपुर सीकरी देखकर वापस आते हैं तो दोपहर के भोजन का समय हो जाता है। सातवें दिन के मेनू के खास व्यंजनों की भीनी सी खुशबू सैलानियों की भूख जगा देती है। यात्रा के आरंभ में हमने सोचा था कि चलती रेलगाड़ी में रोज लगभग एक जैसा ही भोजन होगा। लेकिन यात्रा के दूसरे दिन ही हमें एहसास हो गया कि शाही यात्रा में भोजन का अंदाज भी शाही ही है। रेस्तरां की टेबल पर रखे मेनू कार्ड में रोज नये व्यंजनों के नाम देखकर सैलानियों को आश्चर्य होता है। पटरी पर दौड़ती ट्रेन में अंतरराष्ट्रीय स्तर की क्वालिटी का भोजन और उसमें इतनी विविधता उपलब्ध कराने के लिए आधुनिक उपकरणों से लैस एक पैंट्री कार है। इसमें स्वच्छता और भोजन का स्तर बनाए रखने के लिए विशेष रूप से प्रशिक्षित शेफ नियुक्त हैं। यहां परोसे जाने वाले व्यंजनों की लंबी सूची में से चिकन शाहजानी, कीमा हैदराबादी, मटन रोगन जोश, चिकन, बिरयानी और रॉयल कानसोमी आदि नॉन वेजीटेरियन और पनीर झालफरेजी, जैकेट पोटेटो, फलदारी कोफ्ता, गोभी अचारी, पनीर अकबरी, ओरियंटल राइस आदि वेजीटेरियन डिशेज बेहद लजीज लगते हैं। इन सबके साथ प्लेन पास्ता, पास्ता विद रेड वाइन सॉस, क्रीम ऑफ स्पिंच, योगर्ट, कस्टर्ड, फू्रट जेली और आइसक्रीम आदि के अलावा रसगुल्ला, राजभोग और रसमलाई जैसी मिठाइयां भी सैलानियों के स्वाद में शामिल होती हैं। कभी-कभी उलझन होने लगती है कि क्या खाएं और क्या न खाएं। प्रशिक्षित वेटरों द्वारा भोजन भी बहुत सलीके से परोसा जाता है। यात्रियों को असुविधा न हो इसलिए भोजन के समय रेलगाड़ी की रफ्तार भी कुछ कम रहती है।
ताज के शहर में
सफर का आखिरी ठहराव है ताजमहल का नगर आगरा। यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहरों की सूची में शामिल विश्व प्रसिद्ध ताजमहल देखने की चाह भारत आने वाले हर विदेशी सैलानी की होती है। शायद इसीलिए पैलेस ऑन व्हील्स की रूपरेखा में इसे शामिल किया गया है। ताज परिसर में दाखिल होते ही पर्यटक सफेद संगमरमर के बने इस शाहकार को देख चकित रह जाते हैं। उनमें भव्य मकबरे के दूधिया सौंदर्य को कैमरे में कैद करने की होड़ सी लग जाती है। मेहराबदार ऊंचा द्वार और झरोखे, उनके साथ की गई कलात्मक नक्काशी, संगमरमर की खूबसूरत जालियां और चारों कोनों पर खड़ी ऊंची मीनारें ताज की सुंदरता का हिस्सा हैं। शाहजहां द्वारा 17वीं शताब्दी के मध्य में बनवाई गई इस इमारत में मुमताज महल और शाहजहां की कब्र मौजूद हैं। परिसर में बनी हस्तशिल्प की दुकानों से वह यादगार के रूप में ताजमहल का प्रतिरूप जरूर खरीदते हैं। इसके साथ ही पैलेस ऑन व्हील्स की वापसी यात्रा शुरू हो जाती है।
्रपहियों पर दौड़ते महलों का यह सात दिनी सफर वास्तव में अविस्मरणीय है। मुसाफिर जब भी अपने मिनी महल की खिड़की से बाहर देखते हैं, राजस्थान की संस्कृति या भूगोल का कोई नया दृश्य उनके सामने होता है। कहीं कैक्टस और कीकर का साम्राज्य नजर आता है तो कहीं छोटी-छोटी पहाडि़यां, कहीं रंग-बिरंगे परिधानों में लिपटी स्ति्रयों का समूह सिर पर घड़े रखकर जा रहा होता है, तो कहीं ऊंटों पर बैठे पुरुषों का कारवां सा जाता दिखाई देता है। हर नगर में प्रवेश के समय वहां पर्यटकों के स्वागत का पारंपरिक ढंग सफर को और दिलचस्प बना देता है। किसी स्थान पर हाथी सूंड उठाकर सलाम करते हैं तो कहीं ऊंट अदब से गर्दन झुकाते हैं। कहीं सैलानियों के स्वागत में रंगोली सजी होती है, तो कहीं राजस्थानी वाद्य बज उठते हैं, जिनसे ‘पधारो म्हारे देस’ की गूंज सुनाई पड़ती है। सफर की समाप्ति पर ऐसी अमूल्य यादों के साथ सैलानी अपने साथ यहां के हस्तशिल्प की कई मूल्यवान वस्तुएं, ज्वेलरी और वस्त्र आदि भी ले जाते हैं। राजस्थान के इतिहास और परंपराओं से साक्षात्कार कराता यह अद्भुत सफर हर सैलानी के लिए जीवन की एक यादगार बन जाता है। राजसी सफर में सैलानी उस दुनिया को लगभग भूल से जाते हैं, जहां से सफर शुरू किया था। इसलिए वापस उस दुनिया में कदम रखते ही ऐसा लगता है जैसे स्वप्नलोक से वापस धरती पर लौटे हों।