तीन धाराओं का संगम प्राग

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हर देश की राजधानी का अपना व्यक्तित्व होता है। किसी को ऐतिहासिक धरोहरों के कारण प्रसिद्धि मिलती है तो किसी की गगनचुंबी इमारतें समृद्धि की गाथा बयां करती हैं पर चेक गणराज्य की राजधानी प्राग यानी प्राहा आपको अतीत की कंदराओं से गुजार कर वर्तमान की ऐसी स्थितियों में ले जाएगी जहां विकास के प्रतिमानों से आपका दीदार होगा। प्राग में चेक संस्कृति के मूल घटकों के अलावा बोहेमियन, जर्मन और प्राचीन यहूदी शैलियों का अनूठा संगम है।

अनगिनत रोशनियों का प्रवेश द्वार

सात पहाडि़यों की पृष्ठभूमि में वाल्तवा नदी के तट पर स्थित इस क्षेत्र के प्राकृतिक वैभव को देखकर लगभग हजार बरस पहले एक राजकुमारी के मुख से एकबारगी निकल पड़ा था ”किसी दिन जरूर इस नगर का वैभव सितारों को छू लेगा और उसी दिन से इसे प्राहा पुकारा जाएगा।” प्राहा- यानी अनगिनत रोशनियों का प्रवेश द्वार।

प्राग वैभवशाली विराट महलों, किलों, कलायुक्त भव्य गिरिजों, चक्करदार पथरीली गलियों, मध्ययुगीन शिल्प वाली अट्टालिकाओं और कांस्य प्रतिमाओं से सजे चौक- चौराहों का शहर है जो अपने स्वर्णिम अतीत को मुट्ठियों में भींचें इत्मिनान से खड़ा है। समन्वित, संयोजित, समानुपातिक बसावट के कारण प्राग की आधुनिकता भी लाजवाब है। लग्जरी कारों का यह देश स्कोडा गाडि़यों का निर्माता हैं। प्राग को पर्यटक ‘मैजिकल सिटी’ (जादुई नगरी), ‘गोल्डन सिटी’ (स्वर्णपुरी), ‘सिटी ऑफ हण्ड्रेड टॉवर्स’ (सौ गुंबदों का शहर) और ‘पेरिस ऑफ ईस्ट’ (पूर्वी यूरोप का पेरिस) की संज्ञा देते हैं। यूरोप के शक्तिशाली सम्राट चा‌र्ल्स चतुर्थ ने 14वीं सदी में प्राग को राजधानी बनाकर संपन्नता के शिखर पर पहुंचा दिया था। कुल 12 लाख की आबादी वाले इस शहर की धुरी है वाल्तवा नदी। यह मध्य प्राग में बहती हुई पुराने शहर ‘स्टारेमेस्तो’ को नए शहर ‘नोवेमेस्तो’ से अलग करती है।

दाहिने तट पर पुराने शहर का चौक स्तारोमेस्तेस्के पर्यटकों से भरा रहता है। यहीं बार्क और गोथिक शिल्प की नायाब प्रस्तुतियों के रूप में पुरातन इमारतें और गिरजाघर हैं खरीददारों के लिए यहां स्थानीय कलात्मक उत्पादों और सोवेनियर्स का खासा जखीरा है। इसी चौक से पेरिस स्ट्रीट पर चलते हुए उत्तर में पुरानी बस्ती जोसेफोव पहुंचा जा सकता है। मध्ययुग के यहूदियों की जीवन शैली के विशुद्ध स्वरूप का दर्शन करवाती यह बस्ती कभी संपन्न यहूदी व्यापारियों का आवास हुआ करती थी। कला की बेमिसाल बानगी पेश करने वाले सिनेगॉग और प्राचीन यहूदी कब्रिस्तान हा‌र्ब्रिटोन एक संपन्न समाज को प्रतिबिंबित करता है। इसके विपरीत दिशा में है नोवेमेस्तो यानी नया शहर जिसकी धड़कन है विशाल टाउन हॉल और भव्य भवनों से घिरा चौक वेंसाल्स। कई बड़े होटलों-रेस्तरां वाले इस चौक में संत वेंसाल्स की कांस्य प्रतिमा है। पांच क्रांतियों का साक्षी रहा यह चौक गवाह है हिटलर की फौजों की कदमताल का, सोवियत टैंकों की दहशत का और 1989 की मखमली क्रांति का। चौक के सामने राष्ट्रीय संग्रहालय में चेक गणराज्य के इतिहास को समेटा गया है।

चा‌र्ल्स ब्रिज

प्राग की पहचान है वाल्तवा के तटों को बांधे चा‌र्ल्स ब्रिज। 516 मीटर लंबे, 10 मीटर चौड़े 16 खंभों वाले इस पुल का निर्माण चा‌र्ल्स के समय आरंभ हुआ था पर निर्माण कार्य की समाप्ति कोई 100 साल बाद वेंसाल्स के शासन में हुई। गोथिक शिल्पकला का अद्भुत प्रमाण यह पुल इस तरह कलाकृतियों से सजा है कि इसे खुली कलादीर्घा कह सकते हैं। तीस विशाल प्रतिमाओं और मूर्ति समूहों में कहीं बाइबिल की कथाओं का रूपांकन है तो कहीं ऐतिहासिक किरदारों की प्रस्तुति। चा‌र्ल्स पुल से प्राग के विहंगम दृश्य को निहारना भी विस्मयकारी अनुभव है। पुल पर सैलानियों का मजमा इस तरह जुटता है कि भवानी प्रसाद मिश्र की पंक्तियां बरबस याद हो आती हैं:

धंस सको तो धंसो इसमें, धंस न पाती हवा जिसमें।

यहां कलाबाजी दिखाते कलाकार, विभिन्न विधाओं के चितेरे, गायक, वादक व चेक हस्तकला के कारीगरों का जमावड़ा भी रहता है। यों प्राग की हर गली, हर चौक, हर चौराहा सैलानियों के लिए कुछ खास परोसता नजर आता है। वेंसाल्स चौक से गोल्डन लेन का नजारा किया जा सकता है जहां 16वीं सदी के कॉटेज आज भी सलामत हैं। यहीं 22 नंबर कुटिया में फे्रंज काफ्का ने कहानियां लिखी थी। यहीं नोबेल विजेता जेरोस्लोव का भी निवास रहा है। संगीतकारों और शिल्पियों के प्रति असीम सम्मान से भरी इस नगरी ने उस पूरी गली को ही मोजार्टोवा का नाम दे डाला है जहां 1787 में मोजार्ट रहते थे। सन् 1348 में बनी चा‌र्ल्स यूनिवर्सिटी में भारतीय मनीषी रवीन्द्रनाथ ठाकुर के नाम पर ठाकरोवा सड़क का नामकरण चेक संवेदनशीलता का प्रमाण है। नौंवीं सदी में बने प्राग के किले का स्थापत्य मध्ययुग की दुर्गकला की मिसाल है। यहां सब कुछ जैसे यथावत है। नाजी आक्रमण के दौरान आंशिक रूप से ध्वस्त हुए ओल्ड टाउन हॉल की ऐस्ट्रोनोमिकल क्लॉक से आज भी हर घंटे की टंकार पर संतों का जुलूस वैसे ही गुजरता है जैसे सदियों से गुजरता रहा होगा। 15वीं सदी की तकनीक वाले इस घंटाघर के दर्जन भर संतों और मृत्यु के प्रतीक मानव अस्थि पिंजर को देखने के लिए सैलानी हर घंटे इंतजार करते हैं।

अपनी यात्रा में बोहेमिया और मोराविया के देहाती इलाकों को भी शरीक करें। मई में यहां की आबोहवा गुले-गुलजार होती है। राजमार्ग ई-48 पर बसा कार्लोविवेरी प्राग से सड़क से सिर्फ दो घंटे की दूरी पर है। बारह प्राकृतिक जलस्त्रोतों वाले इस शहर की खोज का श्रेय प्राग के संस्थापक चा‌र्ल्स चतुर्थ को ही दिया जाता है। औषधीय गरम सोतों से भरी-पूरी यह जगह चेक आने वालों का मनचाहा ठिकाना है। यों इस स्पा डिस्टि्रक्ट का पैदल मार्ग कुल ढाई कि.मी. लंबा ही है। टेप्ला नदी की संकरी घाटी में स्थित इस स्पा स्थली पर हर साल अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव आयोजित होता है। कार्लोविवेरी के हर झरने का ताप, मात्रा और उछाल की ऊंचाई शिलापट्ट पर दर्ज हैं। इन झरनों से निकलने वाले पानी को कांच की सुराहियों में भर-भर पीने वालों की भीड़ ऐसे जुटती है मानो हरिद्वार के तट पर गंगाजली लिए भक्तगण खड़े हों। पर यहां की प्रसिद्धि तो चेक धरती के सोमरस ’बेखरोका’ की उत्पत्ति स्थली होने में है। औषधीय वनस्पतियों और मसालों से बनी यह अमृतोपम चेक सुरा चिकित्सकीय गुणों के कारण कई रोगों के लिए संजीवनी मानी जाती है।  इसे यहां का राष्ट्रीय पेय मान लें तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी।

बोहेमियन क्रिस्टल और स्थानीय वुड क्राफ्ट

बोहेमियन क्रिस्टल और स्थानीय वुड क्राफ्ट यहां से खरीदा जा सकता है। लकड़ी के हाथ से चित्रकारी किए गए अंडे और केस्केट चेक लोक कला की खासियत हैं। बोहेमियन चीनी मिट्टी के बर्तन और पुराने घरों की अनुकृतियां भी प्राग से खरीदी जा सकती हैं यहां रूसी सैनिकों की वर्दियां, अलंकरण, टोपियां और बैच हर दुकान में बिकते मिल जाएंगे। लकड़ी की रंगारंग कठपुतलियां भी खरीदी जा सकती हैं। 24 प्रतिशत लेड मिश्रित बोहेमियाई क्रिस्टल अपनी अद्भुत कारीगरी के चलते खरीदने लायक उत्पाद है। यहीं नहीं रंगीन कांच से बने फूलों के बुके तो मानो आपकी जेब को ध्यान में रखकर ही बनाए गए हैं। प्रकाश, माइम और नृत्य के अद्भुत समन्वय वाला ब्लैक थियेटर प्राग की विशेषता है।

सांस्कृतिक वैभव

चेक कथाकार फे्रंज काफ्का की अंधेरी गलियों का ऐसा मायावी जाल जिसमें जादू टोने के तंत्र-मंत्र का अहसास प्रतिफल हो। इसका अभिन्न अंग हैं। सही मायनों में प्राग  संगम है अतीत के सांस्कृतिक वैभव का, वर्तमान की जीवंतता का और प्रकृति की मनोहारी छटाओं के चामत्कारिक वरदान का। चेक लोग नरम मोटी गद्देदार रोटियां नेडलीकी बड़े चाव से खाते हैं। आलू के साथ टुकड़ों में परोसी जाने वाली नेडलीकी चावल की भी सखी बन जाती है। चेक राष्ट्रीय भोजन वेप्रोवे में नेडलीकी के साथ भुना हुआ पोर्क और जेलो परोसा जाता है। चेक सामान्यतया मांसाहारी भोजन के शौकीन होते हैं हालांकि शाकाहारी रेस्तां में तरह-तरह के सलाद, उबले आलू और विविध प्रकार की चीज खाई जा सकती हैं। बोहेमियन खाना खाने वालों को ह‌र्ब्स, मसाले और विभिन्न सॉसेज खाने का चस्का रहता है। खजूर, आडू, क्रेनबेरी, सेव और चेरी से सजे यहां के डेजर्ट खाए जाने जरूरी हैं। तरल चॉकलेट की सजावट वाली पेस्ट्रीज खाना न भूलें और गला तर करने के लिए चेक कावा एस्प्रेसो पी जा सकती है। प्राग की एक और खासियत- इसे विश्व की बीयर केपिटल माना जाता है। लाइट और डार्क बीयर की ढेरों किस्म यहां उपलब्ध हैं। मोरावियन और स्लोवाकियन वाइन का भी यहां खूब चलन है। बीयर से परहेज करने वालों के लिए मिनरल वॉटर, अंगूर, सेव और संतरे का रस पीना बेहतर होगा।

कैसे जाएं

प्राग जाने के लिए आस्टि्रयन एयरलाइन्स, के.एल.एम. और लुफ्थान्सा एयरलाइंस हैं जिनके किराये रु. 35,000 से रु.38,000 के बीच बैठते हैं।

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