इतिहास के झरोखे से वर्तमान का सफर राजस्थान

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राजस्थान को देखने के लिए इसे कई हिस्सों में बांटना ही समझदारी का काम है। ऐसे में इस बार हम आपको राजस्थान की राजधानी जयपुर और झीलों की नगरी उदयपुर ले चल रहे हैं जहां के किलों और झीलों की सुंदरता के साथ-साथ जहां की संस्कृति आपको बरबस बार-बार वहां आने और बसने को लालायित करती है।

जयपुर

राजस्थान में इस खंड के पर्यटन का आरंभ जयपुर से किया जा सकता है जो राजस्थान की राजधानी है और जो सड़क, वायु और रेल तीनों ही मार्गो से जुड़ा हुआ है।जयपुर का न केवल ऐतिहासिक दृष्टि से महत्व है, अपितु स्थापत्य कला, पेंटिंग, पोलो व वास्तुशिल्प की दृष्टि से भी इसका विशिष्ट स्थान व पहचान है। सन 1727 में सवाई जयसिंह द्वितीय ने इस शानदार शहर को बसाया था। जयपुर शहर की योजना बंगाली वास्तुकार विद्याधर भट्टाचार्य ने बनाई थी। उस काल में यह दूसरा शहर था जो व्यवस्थित तरीके से बसाया गया था। लंबी-चौड़ी सड़कों से युक्त यह शहर 9 वर्गाकार क्षेत्रों में बंटा हुआ है। यहां की अधिकांश इमारतें गुलाबी रंग से रंगी हुई है। इसी कारण इसे गुलाबी शहर भी कहा जाता है।

सिटी पैलेस:

जयपुर का सिटी पैलेस न केवल अपने गौरवशाली इतिहास के कारण अपितु अपनी भव्यता व वास्तुशिल्प के बेजोड़ उदाहरण के रूप में भी पर्यटकों को अपनी ओर आकृष्ट करता है। संगमरमर के स्तंभों व पत्थरों से बना पैलेस बरबस ही सैलानियों का मन मोह लेता है। संगमरमर के पत्थर पर बारीक जाली के झरोखे, दिलकश गुंबद व लंबे गलियारे उस काल के वास्तुशिल्प की श्रेष्ठता के परिचायक हैं। सिटी पैलेस में स्थित संग्रहालय में पेंटिंग्स, राजा-रानियों की पोशाकें, दुर्लभ पांडुलिपियां, विभिन्न प्रकार की तलवारें व भाले तथा जिरह बख्तर सजे हुए हैं।

जंतर-मंतर:

शहर के बीच में स्थित जंतर-मंतर इस बात का प्रमाण है कि उस काल में भारत ग्रह-नक्षत्रों व ज्योतिष के क्षेत्र में अग्रणी था। महाराजा जयसिंह स्वयं ज्योतिष व ग्रह-नक्षत्रों के अध्ययन में न केवल रुचि रखते थे अपितु इस क्षेत्र के ख्याति प्राप्त लोगों में उनका भी नाम आदर से लिया जाता था। जयसिंह ने जयपुर सहित दिल्ली, उज्जैन, बनारस आदि में वेधशालाएं बनाई। जयपुर के जंतर-मंतर पर विदेशी पर्यटक सूर्य की किरणों से समय की गणना कर अपनी कलाई में बंधी आधुनिक घड़ी में वही समय देखकर दांतों तले अंगुली दबा लेते हैं।

हवामहल:

हवामहल का निर्माण सवाई प्रताप सिंह ने करवाया था। पांच मंजिली इस भव्य इमारत में सैकड़ों झरोखे बने हुए हैं। इन झरोखे में से रनिवास की रानियां शाही सवारी व अन्य समारोहों को आराम से देख सकती थीं। इसके पास ही में रामनिवास बाग है जिसका सवाई रामसिंह ने 1868 में अकाल राहत कार्य के रूप में निर्माण करवाया। बाग के साथ चिडि़याघर, संग्रहालय व कई खेल के मैदान हैं। इसमें बने नयनाभिराम अलबर्ट हॉल के नक्शे को प्रसिद्ध वास्तुशिल्पी सर जैकब ने बनाया था। सांस्कृतिक गतिविधियों के लिए यहां रवीन्द्र मंच का निर्माण किया गया है। एक आर्ट गैलरी व एक मुक्तआकाशीय थियेटर भी हाल ही के वर्षो में यहां बनाया गया है।

मोती डूंगरी एवं लक्ष्मीनारायण मंदिर:

मोती डूंगरी पर प्राचीन किला बना हुआ है तथा यह आज भी निजी स्वामित्व में है। हाल ही में इस पहाड़ी पर लक्ष्मी नारायण का मंदिर बनवाया गया है जो श्वेत धवल संगमरमर के पत्थर से बना है। पहाड़ी की तलहटी में प्राचीन गणेश मंदिर बना हुआ है।

आमेर पैलेस :

शहर का एक अन्य आकर्षक स्थल है आमेर पैलेस जिसका प्रारंभिक निर्माण राजा मानसिंह ने करवाया था। इसके बाद इसका विस्तार मिर्जा राजा जयसिंह व सवाई जयसिंह ने दो शताब्दी पूर्व करवाया था। लाल बलुआ पत्थर व सफेद संगमरमर से बने इस किले में जाने के लिए पर्यटक को हाथी की सवारी करनी होती है। पैलेस में दीवाने आम, गणेश पोल, सुखनिवास, बाग, एवं जसमंदिर है। आमेर पैलेस की दृढ़ता व विराटता भी पर्यटकों के लिए कौतूहल का विषय है। पैलेस का शीशमहल व रंगमहल आज भी आकर्षण का केन्द्र है।

आमेर में इन सबके अलावा एक अन्य आकर्षण का केंद्र है आमेर का प्राचीन शहर। यह किले की नीचे वाली पहाडि़यों में बसा है। यहां का जगत शिरोमणि मंदिर अपनी स्थापत्य एवं मूíतकला के लिए प्रसिद्ध है। इस मंदिर में भगवान कृष्ण की मूíत संत-कवयित्री मीराबाई के साथ स्थापित की गई है।

गलता जी:

गलता जी का निर्माण दीवान कृपाराम ने करवाया था। यहां पर भगवान सूर्य का मंदिर है तथा जहां तक नजर जाती है सैलानियों को हरियाली ही हरियाली नजर आती है। यहां पर कई पवित्र कुंड भी बने हुए हैं।

स्टेच्यू सर्कल :

इस सर्कल के बीच में सवाई जयसिंह की संगमरमर की आदमकद मूर्ति स्थापित की हुई है जो उनकी स्मृति को जीवित रखे हुए है। हाल ही के वर्षो में इस सर्कल के आसपास बी.एम. बिरला प्लेनेटेरियम व साइंस केन्द्र बने हैं।

उदयपुर- झीलों व बागों का शहर

जयपुर से आप सीधे उदयपुर जा सकते हैं। नैसर्गिक सौंदर्य की अनुपम स्थली उदयपुर देशी एवं विदेशी पर्यटकों केआकर्षण का प्रमुख केन्द्र है। महाराणा उदय सिंह ने सन 1559 में उदयपुर नगर की स्थापना की थी। अद्वितीय सौंदर्य एवं प्राकृतिक छटा से सुसज्जित उदयपुर को पूर्व का वेनिस, झीलों की नगरी, राजस्थान का कश्मीर आदि विशेषण ठीक ही दिये गये हैंै। फल-फूलों से लदी हुई पर्वतमालाओं केमध्य स्थित शहर, नीले जल से युक्त झीलों में अपनी परछाई निहारते हुए यहां केराजप्रसाद, शीतल समीर के झोकों से संपूर्ण वातावरण को सुवासित करने वाले यहां केपुष्पोद्यान और मेवाड़ के शौर्य पूर्ण अतीत को स्मरण कराने वाले निस्संदेह उदयपुर को पर्यटकों के लिए आकर्षक बनाते हैं।

राजमहल :

पिछोला झील के तट पर उदयपुर नगर में सबसे ऊंचे स्थान पर स्थित यह महल इतना भव्य और विशाल है कि प्रसिद्ध इतिहासकारफर्र्गूसन ने इसे राजस्थान के विंडसर महलों की संज्ञा दी। महलों में सबसे पुराना भागों राय आंगन नौ चोकी, धूणी आदि को महाराणा उदयसिंह ने बनवाया था। महल से नगर का विहंगम और पिछोला झील का अत्यंत सुंदर दृश्य दृष्टिगोचर होता है ।

महल के प्रताप कक्ष, बाड़ी महल, दिलखुश महल, यश मंदिर, मोती महल, भीम विलास, छोटी चित्रशाला, स्वरूप विलास, सूर्य प्रकाश, माणक महल, सरज गोखड़ा, शिव निवास इत्यादि बहुत सुंदर व दर्शनीय हैं। राजमहल में मयूर चौक का सौंदर्य अनूठा है। चारों ओर कांच को बड़ी बारीकी एवं कौशल से जमाकर मोर और कुछ मूर्तियां बनाई गई हैं। यहां बने पांच मयूरों का सौंदर्य देखते ही बनता है।

प्रताप कक्ष में महाराणा प्रताप के जीवन से संबधित अनेक चित्र, अस्त्र-शस्त्र, जिरह-बख्तर इत्यादि का संग्रह है। यहीं महाराणा प्रताप का ऐतिहासिक भाला रखा है जिससे हल्दी घाटी के युद्ध में आमेर के कुंवर् मानसिंह पर प्रताप ने वार किया था।

महल के अंदर क्रिस्टल आर्ट गैलरी की छवि निहारने के लिए देशी-विदेशी पर्यटक अवश्य आते हैं। इतिहास प्रेमियों एवं शोधकर्ताओं के लिए महल में अत्याधुनिक पुस्तकालय है। महल में आज भी पौराणिक काल से चले आ रहे पर्व  मनाए जाते हैं जिनमें पर्यटक भी शामिल होते हैं।

राजमहल केदक्षिण में एक मध्यकालीन भवन है जिसे जनाना महल के नाम से जाना जाता है। इसे मेवाड़ के महाराणा कर्णसिंह की महारानियों के लिए सन् 1620 में निर्मित किया गया था। महल का निर्माण एक दुर्ग की तरह करवाया गया था जिसमें एक भी खिड़की नहीं रखी गई थी। जनानी ड्योढ़ी से गुजर कर बाएं हाथ की ओर रंगमहल में पहुंचा जाता है जहां राज्य का सोना-चांदी और खजाना रखा जाता था। दाई ओर पीतांबर राय जी, गिरधर गोपाल जी तथा बाणनाथ जी की मूर्तियां हैं।

राजमहल के ही एक हिस्से में राज्य सरकार का संग्रहालय है। इस संग्रहालय में ऐतिहासिक एवं पुरातत्व संबंधी सामग्री का विपुल संग्रह है। भारत के विभिन्न प्रदेशों में पहनी जाने वाली पगडि़यों व साफों के नमूने, सिक्के, उदयपुर के महाराणाओं के चित्र, अस्त्र-शस्त्र व पोशाकों के संग्रह के साथ-साथ शहजादा खुर्रम की वह ऐतिहासिक पगड़ी भी है जो मेवाड़ के तत्कालीन महाराणा की दोस्ती में अदला-बदली की गई थी।

राजमहल के पहले मुख्य द्वार बड़ी पोल से लगभग 175 गज की दूरी पर जगदीश महल स्थित है। यह 80 फीट ऊंचे प्लेटफॉर्म पर निर्मित है। मंदिर में काले पत्थर से निर्मित भगवान जगदीश विष्णु की भव्य मूर्ति है।

फतहसागर झील:

इसके पास ही फतहसागर झील है जो नगर के उत्तर-पश्चिम में करीब पांच किलोमीटर दूर स्थित है। यह झील 1678 में महाराणा जयसिंह द्वारा बनवाई गई थी। झील तीन वर्ग किलोमीटर में फैली हुई है। फतहसागर के मध्य में समुद्रतट से लगभग 1960 फुट की ऊंचाई पर स्थित नेहरू उद्यान साढ़े चार एकड़ क्षेत्र में फैला हुआ मनोरम दर्शनीय स्थल है। उद्यान की परिधि 2160 फुट है। उद्यान में पहंुचने के लिए झील के किनारे से नियमित नौका सेवा की व्यवस्था उपलब्ध है।

फतहसागर के सर्पाकार मार्ग पर पहाड़ी को कांट-छांट कर एक सुंदर उद्यान गुरू गोविंद सिंह चट्टान बाग बनाया गया है जिसे चट्टान बाग कहते हैं। इस उद्यान से संपूर्ण झील का दृश्य बड़ा ही सुंदर दृष्टिगोचर होता है। फतहसागर झील के दूसरे किनारे पर तथा रानी रोड केपास संजय पार्क स्थित है जिसमें लगा फव्वारा बहुत आकर्षक है। यह फव्वारा अपने आप में अद्वितीय है। पहाड़ों को काट कर बनाए गए इस पार्क में आने वाला पर्यटक इसे देख ठगा-सा रह जाता है। यहां लगा फव्वारा संगीत की ताल पर नृत्य करता है। यहां निर्मित सन सेट प्वाइंट का नजारा भी अद्वितीय है।

पिछोला झील :

इस झील को चौदहवीं शताब्दी में एक बनजारे द्वारा महाराणा लाखा केसमय में बनवाया गया था। कालांतर में इसकेपुनर्निर्माण एवं जीर्णाद्वार भी हुए हैं। उत्तर से दक्षिण तक करीब साढ़े चार किलोमीटर चौड़ी यह झील 10-15 फुट गहरी है। इसकी जल क्षमता 41 करोड़ 20 लाख घन फुट है। झील के तट पर बने घाट और मंदिर आकर्षण के केन्द्र हैं।

पिछोला झील केदक्षिण छोर पर एक टापू पर जग मंदिर महल बना हुआ है। शाहजादा खुर्रम ने सन् 1622-24 में इसी महल में शरण ली थी, गोल गुंबद, पानी का हौज और आसपास के उद्यान इस बात के  द्योतक हैं कि उन्होंने ही उसे ताजमहल जैसा स्मारक बनाने की प्रेरणा दी थी। यहां नौका द्वारा ही पहुंचा जा सकता है।

महाराणा प्रताप स्मारक मोती मगरी:

फतहसागर के किनारे की पहाड़ी मोती मगरी को महाराणा प्रताप स्मारक केरूप में विकसित किया गया है। मोती मगरी का बड़ा ऐतिहासिक महत्व है। उदयपुर के संस्थापक महाराणा उदय सिंह उदयपुर बसाने के पूर्व इसी पहाड़ी पर अपने लिए मोती महल बनवा रहे थे, जिनके भग्नावशेष आज भी स्थित हैं। इन्हीं खंडहरों के पास चेतक पर सवार महाराणा प्रताप की भव्य मूर्ति स्थापित की गई है। फूलदार पौधों की क्यारियों, फव्वारों से युक्त जलाशय एवं छोटे-बड़े सुंदर लॉन इस स्मारक की सुंदरता में अभिवृद्धि करते हंै।

सहेलियों की बाड़ी:

यह उदयपुर का सबसे सुंदर उद्यान है। महाराणा संग्राम सिंह द्वितीय ने इसका निर्माण तथा महाराणा फतह सिंह ने इसका पुनर्निर्माण करवाया था। यहां फव्वारों की इतनी सुंदर व्यवस्था है कि ग्रीष्म ऋतु की तपती दोपहरी में भी सावन का आनंद प्राप्त होता है। सहेलियों की बाड़ी में प्रवेश करते ही दिखाई देती हैं चार काले संगमरमर की छतरियां। हौज के मध्य में सफेद संगमरमर से निर्मित बड़ी छतरी है। इन छतरियों में व हौज केचारों ओर फव्वारों की सुंदर व्यवस्था है। फव्वारों के चलने पर लगता है मानो सावन की झड़ी लग गई है। पश्चिम रेलवे ट्रेनिंग स्कूल के सम्मुख स्थित सुखाडि़या सर्कल के मध्य में निर्मित 42 फुट ऊंचा फव्वारा देश में अपने ढंग का अनोखा फव्वारा है और देखने लायक है।

सज्जनगढ़:

शहर के आकाश को छूता सज्जनगढ़ एक प्राचीन धरोहर है। यहां से शहर की झीलों, महलों, आसपास केदेहात का दृश्य दिखाई देता है। यहां मनभावन अभ्यारण्य भी है। महाराणा सज्जन सिंह द्वारा निर्मित यह एक दर्शनीय स्थल है। यहां स्थित बाग में लगभग चार सौ प्रकार की वनस्पतियां पाई जाती हैं। बाग में बने सरस्वती पुस्तकालय में प्राचीन हस्तलिखित पाण्डुलिपियों एवं ग्रंथों का दुर्लभ संग्रह है। बाग में ही जिले का चिडि़याघर दर्शकों के लिए कौतूहल पैदा करता है।

पश्चिमी क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र :

भारतीय सांस्कृतिक, लोक कला तथा परंपराओं के संरक्षण एवं उन्हें पुनर्जीवित करने हेतु चार राज्यों महाराष्ट्र, गुजरात, गोवा व राजस्थान का पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र, पिछोला के तट गणगौर घाट पर स्थित बागोर की हवेली में स्थापित किया गया  है। इस प्रांगण में चारों राज्यों की संस्कृति के दुर्लभ अंश भी संजोए गए हैं।

बच्चों की रेल :

उदयपुर के सौंदर्य में अभिवृद्धि करने के लिए गुलाब में ढाई लाख रुपये की लागत से दो किलोमीटर गोलाकार बच्चों की रेल भी यहां पर संचालित की जा रही है ।

आहाड़ :

सिसोदिया राजवंश की प्राचीन राजधानी आहाड़, उदयपुर से तीन किलोमीटर दूर स्थित है। आहाड़ में मेवाड़ के शासकों के शाही स्मारक यहां के गौरव हैं। प्राचीन कलाकृतियों का दुर्लभ संग्रह, मिट्टी के बर्तन, लोहे की वस्तुएं व प्रदेश की खुदाई में निकली अन्य कलात्मक एवं पुरातत्व महत्व की वस्तुएं आहाड़ संग्रहालय में प्रदर्शित हंै।

नागदा :

नागदा उदयपुर शहर से 23 किलोमीटर दूर स्थित है। यह छठी शताब्दी का प्राचीन स्थल है। यहां नवीं शताब्दी में निर्मित सास-बहू मंदिर के अवशेष देखे जा सकते हैं।

जगत :

10 वीं सदी का अंबिका माता मंदिर बाहरी दीवारों पर अपनी बेजोड़ नक्काशी के लिए विख्यात है। जगत को राजस्थान का खजुराहो भी कहा जाता है।

हल्दी घाटी :

उदयपुर आने वाले पर्यटक ने यदि हल्दी घाटी को नमन न किया, तो ऐसा माना जाता है कि उसकी आस्था स्वतंत्रता में नहीं है। राणा प्रताप के जीवन से जुड़े चावंड, गोगुप्दा, कुम्भलगढ़ का नजारा लिए बगैर उदयपुर की यात्रा अधूरी रहेगी। हां! सर्वधर्म समभाव एवं सनातन धर्म के आस्था केन्द्र, एकलिग जी, नाथद्वारा, ऋषभदेव, परशुराम महादेव, रणकपूर महल, चारभुजा आदि में नमन करने की इच्छा जहां उन्हें वहां खींच ले जाती है, वहीं वहां की स्थापत्य कला इनका मन बार-बार आने को प्रेरित करती है।

जयसमंद झील:

उदयपुर से 48 किलोमीटर दूर एक और झील जयसमंद का निर्माण महाराणा जयसिंह द्वारा 17वीं शताब्दी में करवाया गया था। यह एशिया की दूसरे नंबर की मीठे पानी की सबसे बड़ी झील है। संगमरमर की रमणीय छतरियां इसके इर्द-गिर्द बनी हैं। झील के दोनों किनारों पर उदयपुर की महारानियों के लिए ग्रीष्मकालीन महल निर्मित हैं। झील के मध्य में जयसमंद रिसोर्ट देखने योग्य है।

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