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मध्यप्रदेश के पठारी भाग में फैला कान्हा राष्ट्रीय उद्यान देश का प्रमुख वन्यजीव अभ्यारण्य है। वन्य जीवन की विविधता के कारण आज यह दुनिया भर के प्रकृतिप्रेमियों के आकर्षण का केंद्र बन गया है। कान्हा नेशनल पार्क के रोमांचक और मनोरम वन्य जीवन ने ही रुडयार्ड किप्लिंग को जंगल बुक जैसी महान कृति एवं मोगली जैसा चंचल चरित्र रचने के लिए प्रेरित किया था। 1973 से ही बाघ परियोजना में शामिल यह उद्यान सतपुड़ा की मैकल पहाडि़यों में स्थित है। हालोन तथा बंजर घाटियों के मध्य स्थित कान्हा 940 वर्ग किमी के दायरे में फैला है। साल के जंगलों के बीच इसके हरे-भरे चरागाहों से गुजरती सुलकुम व बंजर जैसी मौसमी नदियां इसके नैसर्गिक सौंदर्य में चार चांद लगाती हैं।
जैव विविधता
कान्हा राष्ट्रीय उद्यान में प्रवेश खटिया एवं मुक्की नामक दो स्थानों से किया जा सकता है। इन दोनों स्थानों पर बने वन विभाग के परिचय केंद्रों पर पहले पर्यटकों का परिचय जंगल के वातावरण से कराया जाता है। तस्वीरों, मॉडलों और वन्य जीवन पर केंद्रित फिल्मों के जरिये जंगलों को समझने के बाद सैलानी कान्हा की सैर का भरपूर आनंद उठाते हैं। उद्यान में कदम रखते ही वन्यजीवों एवं पक्षियों का उन्मुक्त संसार आपके सामने होगा। यहां आप तमाम तरह के दुर्लभ वन्य जीवों को वन में स्वच्छंद विचरते हुए देख सकते हैं। चितकबरा हिरण, सांभर, कालेमृग, सियार, लंगूर, जंगली सूअर, तीन पट्टी वाली गिलहरी, बंदर और बारहसिंगा तो यहां बहुतायत में हैं। बार्किग डीयर, खरगोश, गौर, सोनकुत्ता व रीछ आदि भी दिख जाते हैं, पर तेंदुआ, जंगली बिल्ली, लोमड़ी, नीलगाय, बिच्छू, साही व चौसिंघे को देखने के लिए टोह लेनी पड़ती है। कान्हा को बारहसिंगे के शरणस्थल के रूप में जाना जाता है। विलुप्त होने के कगार पर खड़े इस जंतु की संख्या पिछले 30 वर्षो के दौरान 66 से बढ़ कर 330 हो गई है। बाघों की संख्या यहां सौ से अधिक है, पर उन्हें देखने के लिए आपको बहुत धैर्य रखना पड़ेगा। बाघ को करीब से देखने के लिए यहां लोग घंटों हाथी पर बैठकर जंगल में भटकते हैं। स्तनपायी जीवों की 22 प्रजातियां यहां हैं।
रंग-बिरंगे पशु-पक्षी
साल के ऊंचे पेड़ों या बांस के झुरमुटों में भटकते सैलानियों को जहां जंगली झाडि़यों या बेलों पर लदे फूलों की महक सुकून देती है, वहीं कान्हा के खामोश माहौल में गूंजता पक्षियों का कलरव मधुर संगीत सा सुनाई पड़ता है। यहां का पक्षी संसार बेहद रोचक और रोमांचक है। पक्षीप्रेमी अब तक यहां पक्षियों की करीब 260 प्रजातियों की पहचान कर चुके हैं। डैने फैलाकर वृक्षों पर मंडराते पक्षियों को देखने के लिए अभ्यारण्य के पहाड़ी भागों में पhहुंचना होता है। उष्ण कटिबंधीय वन और बांसों के जंगल में कई जातियों के पक्षियों के आश्रय हैं। साल के वनों में ये कम ही नजर आते हैं। जलपक्षियों को तो छोटे नालों और ताल आदि में किलोलें करते आसानी से देखा जा सकता है। कान्हा में मुख्यत: नीलकंठ, जंगली मुर्गा, फाख्ता, मोर, हरे कबूतर, रैकेट ट्रेल ड्रोंगो, ट्री पाई, फ्लाई कैचर, गिद्ध, बाज, धनेश, मैना, काली बुज्जा, सारस, जलकौवा, ब्राउनफिश आउल आदि देखे जा सकते हैं। कान्हा में सरीसृप प्रजाति के भी कई जंतु हैं। इनमें सामान्य गोद, अजगर, कोबरा, वुल्फ स्नेक, रैट स्नेक आदि खास हैं।
सनसेट प्वाइंट
बमनी दादर नामक स्थान यहां सनसेट प्वाइंट के रूप में प्रसिद्ध है। यहां से सूर्य के अस्त होने का दृश्य देखकर पर्यटक मुग्ध रह जाते हैं। इसकी नैसर्गिक छटा के बीच ही रोमांचक ध्वनि एवं प्रकाश कार्यक्रम भी दिखाया जाता है। कान्हा राष्ट्रीय उद्यान घूमने के लिए ट्रेन द्वारा जबलपुर, बिलासपुर या रायपुर पहुंच सकते हैं। वहां से बस या टैक्सी द्वारा मुक्की या किसली पहुंच सकते हैं। किसली आने वाले सैलानी तीन किमी आगे खटिया से उद्यान में प्रवेश करते हैं। पर्यटकों के ठहरने के लिए मुक्की में कान्हा सफारी लॉज है तथा किसली में बघीरा लॉग हट्स और टूरिस्ट हॉस्टल हैं। इनके अलावा कुछ प्राइवेट होटल भी हैं। पार्क की सैर का उपयुक्त समय नवंबर से मई तक है। दिसंबर से फरवरी के मध्य आने वाले पर्यटकों को ऊनी वस्त्र भी साथ रखने चाहिए।