किशोर मन की पहली विदेश उड़ान

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आखिरकार इसी साल 29 मार्च को मेरी दसवीं की बोर्ड परीक्षाएं खत्म हुई। आखिरकार इसलिए क्योंकि सभी की बातें सुन-सुनकर मुझे भी अनायास परीक्षाओं का तनाव हो गया था। लिहाजा जैसे ही परीक्षाएं खत्म हुई, दिल-दिमाग से जैसे बोझ उतर गया। जब तक परीक्षाएं चल रही थीं, वक्त कैसे निकला जा रहा था, पता ही नहीं चला। सोचा था, परीक्षा खत्म होते ही पहला काम खर्राटे भर-भरकर अपनी बकाया नींद पूरी करने का करूंगी। लेकिन खर्राटे क्या यहां तो मुझे दूर-दूर तक नींद की आहट तक नहीं सुनाई दी। खैर, अब मेरे सामने परीक्षाओं से बड़ा टेंशन टाइम पास करने का खड़ा हो गया।

लेकिन मेरी किस्मत का ताला जल्द ही खुल गया। मम्मी ने अखबार में ट्रैवल कंपनी का विज्ञापन देखा जो खास तौर पर विद्यार्थियों के लिए थाईलैंड टूर ले जा रही थी। मम्मी-पापा ने तफ्तीश की और 1 मई को जाने वाले स्टूडैंट्स स्पेशल थाईलैंड टूर के लिए मेरा नाम शामिल हो गया। मेरी खुशियों का ठिकाना न रहा। हालांकि मन में थोड़ा डर-सा भी था, आखिरकार अकेले कहीं जाने की आदत नहीं थी, सिवाय स्कूल की पिकनिक के। वहां भी साथ में सारे परिचित टीचर्स व यार-दोस्त होते थे। लेकिन यहां, इस पहली विदेश यात्रा में मुझे जानने वाला कोई नहीं था। अकेले मैं कैसे मैनेज कर पाऊंगी? तब तक तो पासपोर्ट-इमिग्रेशन किस चिडि़या का नाम होता है, यह कभी जानने-समझने की कोशिश ही नहीं की थी। क्या यह सब मुझसे हो पाएगा?

फिर भी विदेश जाने की उत्कंठा ने मेरे तनाव पर जीत पा ली। अंतत: 1 मई को मैं ट्रैवल कंपनी द्वारा जुटाए गए 32 विद्यार्थियों के दल के हिस्से के रूप में एस्कॉर्ट वीणा पाटिल के साथ मुंबई के सहार एअरपोर्ट पर पहुंच गई। हमें रात साढ़े-आठ बजे का रिर्पोटिंग टाइम दिया गया था। बैंकाक जाने वाली हमारी इंडियन एअरलाइंस फ्लाइट का डिपार्चर समय था-रात 12.25। बहरहाल, रात साढ़े-आठ बजे मम्मी-पापा ने मुझे टूर आर्गनाइजर्स के हवाले कर दिया। मैंने देखा कि 7 साल से लेकर 20 साल के बच्चे टूर में शामिल थे। भले ही हम शुरू में एक-दूसरे के लिए अनजान थे लेकिन एअरपोर्ट पर ही हम सबमें आपस में परिचय हो गया और देखते ही देखते कुछ से गाढ़ी दोस्ती हो गई। मैं किससे बात करूंगी, क्या होगा.. ये सारी चिंता तो उड़न-छू हो गई। हमारी फ्लाइट छूटने में विलंब हुआ। रात 12.25 के बजाय 1.30 बजे हमने मुंबई से बैंकॉक की तरफ उड़ान भरी। हम बच्चों को एअरपोर्ट पर तो पहले नींद आ रही थी, पर फ्लाइट जैसे ही टेक-ऑफ हुई सारे बच्चों में हलचल छा गई।

विदेश में पहला कदम

सवेरे 5 बजकर 10 मिनट पर हम थाईलैंड की राजधानी बैंकॉक के सुवर्णभूमि हवाईअड्डे पर पहुंचे। यह हवाईअड्डा पट्टाया और बैंकॉक शहरों के बीचोबीच है। इस देश का पहला दर्शन ही लुभावना लगा। काफी साफ-सुथरा और खुशमिजाज। यहां से बाहर निकल कर हमें होटल रिवरसाइड इन में ले जाया गया। अपने नाम के अनुकुल यह पांच सितारा होटल यहां की मुख्य नदी ताओ फराया के तट पर बनाया गया है। इस देश की जो मुख्य नदियां हैं उनमें ताओ फराया को हमारी गंगा की ही तरह पवित्र नदी की मान्यता मिली हुई है। अन्य मुख्य नदियों में नान, पिंग, वांग और येन नदियां शामिल हैं। हम वहां पहुंचते ही अपने कमरों में जाकर कुछ देर आराम करने के बाद बैंकॉक घूमने अपनी एस्कॉर्ट और वहां के एस्कॉर्ट गौरव के साथ निकल पड़े। हम वहां पहुंचे तब वहां कुछ मिला-जुला मौसम था। यानि थाईलैंड में अक्तूबर से मार्च तक के महीने सूखे होते हैं, तो अप्रैल से सितंबर तक बारिश और गर्मी, दोनों साथ-साथ अनुभव करने का मौका सैलानियों को मिलता है। पहले दिन हम वहां के प्रसिद्ध बुद्धा टेंपल गए। यह मंदिर दुनिया भर में मशहूर है, गौतम बुद्ध की यहां लेटी, खड़ी और बैठी मूर्तियां हैं जो काफी विशाल हैं। खास बात इनकी यह है कि ये मूर्तियां सोने की बनी हैं। फिर हम पहुंचे दुनिया के सबसे ऊंचे होटलों में से एक-द स्काय बैंकॉक में। इस खूबसूरत होटल की 84वीं मंजिल पर हमको ले जाया गया जहां से पूरा बैंकॉक नजर आता है।

थाईलैंड में दूसरा दिन

दूसरे दिन हमें सफारी व‌र्ल्ड जाना था। यहां बहुत सारे जानवर है, जो यहां स्वच्छंद घूमते हैं। उन्हें देखने के लिए पर्यटकों को अपनी गाडि़यों से जाना पड़ता है। हमने यहां का प्रसिद्ध मैरिन पार्क, ओरांग-उटांग शो (एक खास प्रजाति के बंदर), काउ बॉय स्टंट शो, डॉल्फिन शो और हॉलीवुड शो का मजा लिया। दिन के अंत में वहां के मशहूर एम.बी.के शॉपिंग मॉल जाने का मौका मिला। यहां का नजारा हमारे अपने देश के किसी भी बड़े शॉपिंग मॉल की तरह ही था। यहां भी कुछ हद तक बार्गेनिंग की जा सकती है। थाईलैंड की चीजों में यहां के ज्वैल्स यानि नीलम, पुखराज जैसे रत्न प्रसिद्ध है। कुछ आर्टिफेक्टस भी लोग खरीदते हैं। यहां हाथी का यहां काफी महत्व है। हर त्यौहार और देश के सांस्कृतिक कार्यक्रमों में कई हाथी जुलूस में नजर आते हैं, जो हमने वहां हफ्ते भर में कई बार देखे।

तीसरा दिन

यह दिन भी काफी रोमांचक रहा। हमने इस दिन ड्रीम व‌र्ल्ड में घूमने का लुत्फ उठाया। यह अमेरिका के डिज्नी व‌र्ल्ड का ही एक प्रतिरूप है। हर राइड का मजा लूटने के बाद हमने स्प्लैश राइड का आनंद लिया जो हमेशा यादगार रहेगा। हमने फिर हॉन्टेड हाउस देखा, यह हॉलीवुड के ही एक कार्यक्रम का नमूना है। हमारी खुशियां जैसे दिन दूनी-रात चौगुनी हो रही थीं, रात में हमें क्रूज पर जाने का मौका मिला, यहां हमने म्यूजिक-डांस विद डिनर का मजा लिया। मन कर रहा था. यह रात कभी खत्म ही न हो।

चौथा दिन

इस दिन सुबह हम पट्टाया शहर की ओर चल पड़े। ताज्जुब हो रहा था इस शहर की  साफ-सफाई, चौड़े-विशाल रास्तों, भूल-भूलैया जैसे फ्लाईओवरों और गगनचुंबी इमारतों के साथ हरियाली पर भी। अक्सर कहा-देखा जाता है, सींमेट-कंक्रीट के जंगलों में पेड़-पौधों और हरियाली का खयाल नहीं रखा जाता..पर यह देश इस मामले में अलग नजर आता है। बैंकॉक से पट्टाया की राह पर विशालकाय इमारतों के साथ चॉल टाइप घर भी नजर आते है, पर उनमें भी एक अनुशासन-था। पट्टाया पहुंचने पर वहां का जाना-माना अल्काझर शो और म्यूजियम देखा। थाईलैंड में महत्वपूर्ण सांस्कृतिक इमारतों और मॉन्युमेंट्स का काफी खयाल रखा गया है। घूमते हुए बारिश भी हमारे साथ दे रही थी।

पांचवां दिन

पट्टाया के विशाल तटों का मजा लूटने का आनंद तब दुगुना हुआ जब हमने वहां पैरासैलिंग की। यहीं पर हमें एक खास पोशाक पहना कर अन्डरवॉटर जाने का मौका मिला। हमने पानी के नीचे जाकर मछलियों को ब्रेड खिलाया। पानी इतना साफ-सुथरा भी होता है..! कई तरह की वॉटर राइड्स का भी आनंद लिया। यहां पर्यटकों को सी-फूड की अनेक किस्में सर्व होती है। देर रात हमने गो-कार्टिग भी की।

अंतिम दिन

आज हम सभी को इस बात का दुख हो रहा था कि कल हमारे थाईलैंड टूर का अंतिम दिन था। हमने आज नून-नूंच व्हिलेज देखा। एक ख्वाब-सा गांव-असली थाई संस्कृति को समझने का मौका यहां मिलता है। अनेक मनोरंजक कार्यक्रमों की बरसात हुई, एलिफेंट शो इसमें खास आकर्षण था। पट्टाया के टिस्को लोटस शॉपिंग मॉल में हमने शॉपिंग की। फिर निकल पड़े अपने होटल की ओर ।

प्रस्थान

सुबह 10 बजे अपना लगैज पैक करने के बाद हम पट्टाया से निकले। पट्टाया से सुवर्णभूमि एअरपोर्ट साढे-तीन घंटे की दूरी पर है। इसी रास्ते में दुनिया भर की फेमस हीरे-जेवरातों की गैलरी आती है। यहां सभी ने ढेरों फोटो खींची. कुछ छिटपुट खरीदारी भी की। वहां के मैक्डोनल्ड्स में लंच किया, और ड्यूटी-फ्री शॉप से चॉकलेट खरीदना भी नहीं भूले। हमारी मुंबई जानेवाली फ्लाइट ने शाम पांच बजे मुंबई के लिए थाईलैंड से उड़ान भरी और रात 8.30 बजे हम सहार हवाई अड्डे पर पहुंचे। विदेश का यह पहला सफर मुझे आजीवन याद रहेगा। इस यात्रा ने मुझे एक नया देश-थाईलैंड देखने का मौका तो दिया ही, स्वतंत्र रूप से सफर करने से मुझमें आत्मविश्वास की नई लहर भी पैदा हुई।

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