दूर-दूर तक फैले रेतीले धोरों का समन्दर बीकानेर

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नाम लेते ही जैसे चलचित्र की भांति मानसपटल पर धोरांरी धरती, थार का निर्जन रेगिस्तान, मरुस्थल, रेतीली भूमि प्यासी धरती अकाल की मण्डराती काली छाया आदि विभिन्न रूपों में उभरता है। वही है बीकानेर।  जो राजस्थान में क्षेत्रफल की दृष्टि से तीसरा स्थान शुष्क एवं गर्म जलवायु, सत्ताईस हजार तीन सौ वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में आठ लाख 40 हजार उनसठ आबादी निवास करती है। जिसकी 108 किमी की सीमा अन्तर्राष्ट्रीय महत्व की है। जो पर्याय है बगों की मिश्री वृद्धों की पसन्द रसगुल्लों का पुरुषों की रुचि भुजिए एवं पापड़ का तथा महिला की आनन्ददायी सुपारी का।

लोक संस्कृति की अमूल्यनिधी है होली की रम्मतें, अद्भुत व चमत्कारिक अग्नि नृत्य तथा माटा नृत्य जिसका सानी नहीं है। जिसका धार्मिक व पौराणिक क्षेत्र भी कम महत्व का नहीं। सांध्य योग के प्रणेता महर्षि कपिल मुनि की साधना स्थल, अकाल एवं संकट से मुकाबला करने की प्रेरणा देने वाली चूहों वाली देवी के नाम से विश्वविख्यात करणीमाता की कर्मभूमि, ढ़ोलामारु की प्रणय स्थली तथा जसनाथ सम्प्रदाय के प्रणेता की क्रीड़ास्थल रहा है। जहां वैदिक व सिन्धु घाटी का मिश्रण हुआ। यहां की स्थापत्य कला एवं उस्ता चित्रकला अद्वित्य है।

स्थापत्य कला की बेजोड़ कारीगरी एवं पत्थर की बारीक खुदाई से युक्त रामपुरिया हवेलियां, आमेर के पास यही है भूमि रावबीकाजी, राजा करणी सिंह व मेजर पूर्णसिंह जैसे महान योद्धा कुशल प्रशासक महाराजा गंगा सिंह, डिंगल के महान कवि पृथ्वीराज की। देश के प्रसिद्ध खिलाड़ी महाराजा डा. करणी सिंह, मगन सिंह, प्रसिद्ध माण्ड गायिका अल्लाह जिलाई बाई, प्रसिद्ध कार्टूनिस्ट पंकज गोस्वामी, सुधीर तैलंग तथा ऊंट की खाल पर स्वर्ण कला के चितरे हिस्सामुदीन जिन पर हमें गर्व है। साहित्य कला एवं संस्कृति की दृष्टि से समृद्ध प्राचीन एवं प्रर्वाचीन इंदिरा गांधी नहर की पृष्ठ भूमि में जिले का भूगोल बदल रहा है। जिले का चहुंमुंखी विकास हो रहा है। ब्रॉडगेज से जुड़ने का सीधा-सीधा फायदा पर्यटकों के साथ-साथ स्थानीय उद्योगपतियों को भी हुआ है।

मरुस्थल की गोद में बसा शहर

राज्य के उत्तर-पश्चिम क्षेत्र में मरुस्थल की गोद में बसा यह शहर आरम्भ से ही पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र रहा है। यहां, कहीं दूर तक लहराता रेत का समन्दर हिलोरें लेता आकृष्ट करता है। स्थापत्य कला से समृद्ध यहां की हवेलियां, ऐतिहासिक जूनागढ़ दुर्ग, भव्य मंदिर बरबस ही पर्यटकों को अपनी ओर खींचते-से हैं। दरअसल जितनी वैभवपूर्ण है यहां की ऐतिहासिक धरोहरें, किले व स्मारक, उतना ही समृद्ध है यहां का सांस्कृतिक इतिहास। साहित्य और कला की उर्वरा भूमि बीकानेर विकास की दृष्टि से निरन्तर समृद्ध और समृद्ध हुई है। विकास की गौरव गाथा को अपने में समेटे यह नगर आज राजस्थान ही नहीं अपितु पूरे देश में अपना अलग और विशिष्ट स्थान बनाए हैं। काबों (चूहों) वाली देवी के रूप में विश्वविख्यात करणी माता का देशनोक स्थित मन्दिर, महर्षि कपिल की तपोभूमि कोलायत आदि ऐसे स्थल हैं जो दूर देशों में भी बीकानेर को अपनी विशिष्ट पहचान देते हैं। राव बीकाजी ने इस ऐतिहासिक शहर की स्थापना वैशाख शुक्ला द्वितीया, सम्वत् 1545 वि.में की थी।

यहां के प्रमुख पर्यटन स्थलों में गजनेर पैलेस की झील, वहां के वन्यजीव अभ्यारण्य व अप्रवासी पक्षी, जिले की नोखा तहसील में स्थित गुरू जम्भेश्वर की तपोभूमि, भाण्डासर जैन मंदिर जिसका शिल्प सौन्दर्य देखते ही बनता है। राष्ट्रीय एकता के साथ-साथ दूर देश तक फैली यहां की मिट्टी की खुशबू से जुड़े इटली के विद्वान टेस्सीटौरी की समाधि स्थल विश्व कुटुम्बकम का सन्देश देती है। जिला मुख्यालय से 45 किलोमीटर दूर बना कतरियासर गांव पर्यटन की दृष्टि से अपने आप में नायाब है। रेत के विशाल धोरे, कतारबद्ध बने पारम्परिक झोपड़े बडे़ भू-भाग में फैला वन्यजीवन किसी राष्ट्रीय अभ्यारण्य से कम नहीं लगता।

नवम्बर से फरवरी माह तक यहां का मौसम देशी-विदेशी पर्यटकों के लिए काफी अच्छा रहता है। इन महीनों में न तो बहुत ज्यादा गर्मी न ही ज्यादा सर्दी रहती है। यहां आने के साधनों में देश की राजधानी सहित हैदराबाद मुम्बई (बान्द्रा), कोलकाता (हावड़ा) जम्मू तवी-कालका एक्सपे्रस जैसी गाडि़या पूरे देश में घूमती हुई बीकानेर तक आती हैं। वहीं राजस्थान रोडवेज की बसें भी देश के विभिन्न कोनों तक सीधी जाती है। इसके साथ ही राजस्थान पर्यटन विकास निगम की शाही रेल ‘पैलेस ऑन व्हील्स’ का मार्ग भी बीकानेर से जुड़ा है।

लक्ष्मी निवास पैलेस

विश्व के विलक्षण महलों में शुमार, बीकानेर एवं राजस्थान की ही नहीं, समूचे भारत वर्ष की शान कहे जा सकने वाले विश्वविख्यात महल ‘लक्ष्मी निवास पैलेस’ अतीत से लेकर अब तक अजीमुस्सान शान के साथ खड़ा है। विश्व की अधिष्ठात्री मां लक्ष्मी के नाम पर निर्मित यह विलक्षण महल विश्वविख्यात महाराजा स्वर्गीय गंगासिंह जी ने अपनी दूरदर्शिता के साथ निर्मित करवाया था। 1902 में बनकर तैयार हुए इस महल के आर्किटेक्ट ब्रिटिश इंजीनियर सर स्विंटन जैकब थे जिन्होंने इसे इंडो सेरेसिनिक स्टाइल में बनवाया। इसके निर्माण का नक्शा एवं निर्मित कलाकृतियों ने इसे नयनाभिराम इस कदर बनाया कि देखने वालों की आंखें ठहर जाए। भारतीय उप महाद्वीप में इस प्रकार का आलीशान महल अन्यत्र कहीं दिखना दुर्लभ है। यह महल पूर्ववर्ती राजपूताना रियासत के गौरव के रूप में शान से शीश उठाए खड़ा है। विशाल दरबार हाल मध्य में स्थित किए इस महल में चारों तरफ विशाल कमरे हैं, जिनका सौन्दर्य देखते ही बनता है। कमरों को देखकर पुरुष एवं महिला कलाकारों की सभ्यता का प्रथम दृष्टया अहसास होता है। पत्थरों केनिस, पटिंग ग्रास आदि यहां के विशिष्ट आकर्षण हैं।

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