भारतभूमि का प्रकाश पर्व

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कार्तिक माह की अमावस्या के गहरे अंधकार को भेदकर पूरे वातावरण को प्रकाश से जगमगा देने वाला ज्योति पर्व दीपावली भारत भूमि का महापर्व है। मान्यता है कि इस दिन धन-संपत्ति की देवी लक्ष्मी मृत्युलोक में विचरण करने आती हैं। मानव उनके आगमन से सुख, समृद्धि, ज्ञान व ऐश्वर्य पाने की कामना करता है। मुख्यत: प्रकाश पर्व होने के कारण दीप तो इस दिन पूरे देश में जलाए जाते हैं, लेकिन अलग-अलग क्षेत्रों के रीति-रिवाजों में काफी अंतर है। एक ही पर्व के ये कई रूप हमारी संस्कृति की सबसे बड़ी खूबी अनेकता में एकता को दर्शाते हैं।

धनतेरस की धूम

पूरे उत्तर भारत में दीपावली सबसे बड़े त्योहार के रूप में मनाई जाती है। पांच दिन की इस श्रृंखला का पहला पर्व धनतेरस कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को वैद्य शिरोमणि धन्वंतरि के सम्मान में मनाया जाता है। इस दिन सेहत क लिए पूजा होती है। कहते हैं कि इससे अकाल मृत्यु का संकट टलता है। धनतेरस को नए बर्तन व जेवर खरीदना शुभ माना जाता है। अगले दिन नरक चतुर्दशी मनाई जाती है। इस दिन श्रीकृष्ण ने नरकासुर का वध किया था। इस दिन संध्या वेला में दीपकों की पूजा के बाद उन्हें जलाकर घर आंगन में रखते हैं। अमावस्या को दीपावली का मुख्य पर्व होता है। इस दिन पूरे घर को सजाया जाता है। सूर्यास्त के बाद श्रीगणेश एवं लक्ष्मीजी का पूजन किया जाता है। पूजा के बाद घर को दीपकों की कतारें बनाकर सजाया जाता है। कई तरह के पकवान बनाए जाते हैं। आतिशबाजी का क्रम देर रात तक चलता है।

चौथे दिन यानी शुक्ल प्रतिपदा को गोवर्धन पूजा होती है। यह पशुधन पूजा है। यह ब्रजभूमि का महत्वपूर्ण पर्व है। इस दिन नई फसल के अन्न की पूजा भी होती है। श्रृंखला का अंतिम पर्व यम द्वितीया यानी भैया दूज के रूप में मनाया जाता है। इस दिन यमुना एवं यम की पूजा होती है। बहन भाई के मस्तक पर तिलक लगा कर दीर्घायु की कामना करती है। जैन धर्मावलंबी भगवान महावीर के निर्वाणदिवस के रूप में दीवाली मनाते हैं। लोग मंदिरों में एकत्र हो पूजा करते हैं। शाम को आरती होती है। रात में घरों में प्रकाश कर पटाखे चलाते हैं। पंजाब में सिखों का उल्लास भी देखने योग्य होता है। सन 1619 में इसी दिन गुरु हरगोविंद जी मुगलों की कैद से छूटकर अमृतसर आए थे। इसी खुशी में स्वर्ण मंदिर पर दीवाली को जगमग प्रकाश किया जाता है।

कश्मीर में सुखसुप्तिका

जम्मू-कश्मीर में यह पर्व सुखसुप्तिका के रूप में मनाते हैं, जो एकादशी से शुरू होकर अमावस पर लक्ष्मी पूजन के साथ पूर्ण होता है। हिमाचल प्रदेश में कई जगह चंदन की लक्ष्मी प्रतिमा बनाकर कांसे की तश्तरी में रखकर पूजा होती है। राजस्थान की राजधानी जयपुर में तो दीवाली की सजावट आज एक पर्यटन आकर्षण बन गई है। गुलाबी शहर के प्रमुख बाजारों की जगमगाहट देखते ही बनती है। देश की राजधानी दिल्ली में दीवाली मेलों की धूम देखते ही बनती है।

चतुर्दशी पर तेल स्नान

तमिलनाडु में दीवाली से पहले दिन नए वस्त्र तथा खास पकवान पूजागृह में रखे जाते हैं। सुबह उठ कर पहले सबको पान खाने को दिया जाता है। तेलस्नान कर नए वस्त्र पहने जाते हैं। पूजा के बाद प्रसाद लिया जाता है। आंध्र प्रदेश में सायंकाल पूजा के बाद दीयों से घर को प्रकाशमान कर पटाखे छोड़ते हैं। केरल में नरक चतुर्दशी मनाई जाती है। सुबह तेल स्नान कर नए कपड़े पहन कर पूजा की जाती है। लोग मंदिरों में दीप जलाते हैं।

मुंबई का महालक्ष्मी मंदिर

महाराष्ट्र में भी दीपावली की सुबह तेलस्नान किया जाता है। रात में घरों को दीयों से सजा कर आतिशबाजी की जाती है। कई जगह महाराजा बलि की पूजा भी की जाती है। मुंबई के महालक्ष्मी मंदिर में खासी भीड़ होती है। मुंबई में दीपावली की रात का दृश्य तब अद्भुत बन जाता है, जब वहां की गगनचुंबी इमारतों में लोग एक साथ बालकनी में आतिशबाजी चलाते हैं। गुजरात में भी दीवाली की धूम होती है। पहले दिन नरक चतुर्दशी काली चौदस के रूप में मनाते हैं। दीवाली की सुबह यहां भी तेलस्नान करते हैं। इसके बाद मित्रों एवं स्वजनों से मिलते हैं। दीपोत्सव के अगले दिन पड़वा यानी शुक्ल प्रतिपदा पर गुजरात एवं महाराष्ट्र में नए एवं शुभ कार्य शुरू करने की परंपरा है। कोंकण क्षेत्र में नरकासुर के वध की खुशी में दीवाली मनाई जाती है। घर को फूलों, रंगोली व कंदील से सजाया जाता है।

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