मलेशिया: जहां लुत्फ है सुकून का

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शहर की भीड़ और शोर से अगर आप ऊब गए हों, लेकिन शहर की सुविधाओं को छोड़ना भी न चाहते हों तो एक बार मलेशिया जरूर हो आएं। यह उन थोड़े से देशों में है, जहां आपको शहर की सारी लग्जरी और शांति दोनों एक साथ मिल सकती है। सच पूछिए तो सुकून का लुत्फ यहीं है। समुद्र से घिरे द्वीपनुमा इस देश में शांतिप्रियता का असर भी साफ दिखाई देता है। मलेशिया की समृद्धि और खुशहाली की वजह सुव्यवस्था, संसाधनों का समुचित प्रबंधन और लोगों का आपसी भाईचारा ही है। शांति और व्यवस्था के प्रति वहां के लोगों के मन में जो सम्मान है, उसे और उसके असर को आप सिर्फ वहां जाकर और देखकर ही महसूस कर सकते हैं। राजधानी कुआलालम्पुर, पेनांग और मलक्का में पूरे एक हफ्ते की घुमक्कड़ी के दौरान हमें यह बात महसूस होती रही। कुछ भारतीय पत्रकारों की हमारी टीम के लिए हैरत की बात थी कि एक हफ्ते में हमें सिर्फ तीन बार पुलिस दिखी।

पहली बार तब जब हम पेनांग में चीनी नववर्ष के सिलसिले में आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रम में शामिल हो रहे थे। वहां पेनांग राज्य के मुख्यमंत्री आए हुए थे। दूसरी बार चीनी नववर्ष के ही मुख्य आयोजन में, जहां मलेशिया के राजा आए हुए थे। तीसरी बार कुआला लम्पुर के निकट हाइवे पर दिखी, जहां सड़क दुर्घटना में एक बाइक सवार की मृत्यु हो गई थी। इसके अलावा पुत्राजया में प्रधानमंत्री कार्यालय और राजमहल तक पर केवल एक-एक गार्ड दिखे। इसके बावजूद पूरे देश में न तो कहीं कोई ट्रैफिक नियमों का उल्लंघन करता दिखा, न कहीं अशांति और न ही कहीं कूड़ा-करकट। है न, हम भारतीयों के लिए हैरत की बात।    नई दिल्ली से दिन में करीब साढ़े तीन बजे उड़ान भरने के बाद एयर इंडिया का विमान कुआलालम्पुर पहुंचा तो वहां के समय के अनुसार रात के साढ़े 11 बज चुके थे। शहर एयरपोर्ट से करीब डेढ़ घंटे की दूरी पर है। लिहाजा करीब एक बजे होटल पहुंचने के बाद हम सो गए। दूसरे दिन सुबह 8 बजे ही हमारा दल पेनांग के लिए रवाना हो गया। करीब तीन किमी लंबी पिनांग टनेल और स्ट्रेट्स ऑफ मलक्का समुद्र पर बना 13.5 किमी लंबा पुल पार कर तीन बजे हम पेनांग पहुंचे।

पूरब का मोती

पेनांग को पूरब का मोती कहते हैं। यहां हमें कई कार्यक्रमों में हिस्सेदारी करनी थी और साथ ही पर्यटन भी। शाम को हमें जिस सम्मेलन में जाना था वह समुद्र किनारे बने एक होटल में आयोजित था। जाते हुए हमने बीच का नजारा लिया। लौटते हुए नाइट बाजार भी देखा। दूसरा दिन साइटसीन का ही था। सबसे पहले हम थाई बौद्ध मंदिर पहुंचे। वाट छायामंगकालरम नामक इस मंदिर में रेक्लाइनिंग बुद्धा की प्रतिमा है। इसके ठीक सामने ही बर्मी़ज बौद्ध मंदिर है। यह मंदिर भी दर्शनीय है। यहां एक स्नेक टेंपल भी है। इस मंदिर में हर तरफ सांप बिलकुल ऐसे ही घूमते रहते हैं जैसे राजस्थान के कर्णी माता मंदिर में चूहे। यहां मरिअम्मन मंदिर भी देखे जाने लायक है। भगवान सुब्रह्मण्यम के इस मंदिर का निर्माण 19वीं शताब्दी में हुआ था।

दूसरे दिन सबसे पहले हम कोटा कार्नवालिस देखने निकले। कोटा यहां किले को कहा जाता है। यह किला लॉर्ड कार्नवालिस ने एक जेल के तौर पर बनवाया था और बनाया था भारतीय मजदूरों ने। किले के भीतर अब भी कोठरियां बनी हुई हैं। इनमें एक कोठरी को नमूने के तौर पर सुरक्षित रखा गया है। जबकि अन्य सेलों में कुछ यादगार चीजें, तस्वीरें आदि रखकर उन्हें संग्रहालय का रूप दे दिया गया है। किले पर सामने की तरफ एक तोप रखी है। यहां की देखरेख करने वाले अबू बकर की वेशभूषा बिलकुल अंग्रेजी शासन के सिपाहियों जैसी थी।

इसके बाद हम निकले बटरफ्लाई फार्म देखने। कहने को तो यह तितलियों का पार्क है, लेकिन यहां कई तरह के जीव-जंतु हैं। इनमें जलजंतु भी शामिल हैं और जलजंतुओं में एक छिपकली हमारे लिए अजूबा थी। यह देखने में छोटे मगरमच्छ जैसी लग रही थी। इसके बाद हम बाथू फिरंगी बीच पहुंचे। रोमांच के शौकीन यहां हमेशा वाटर स्कूटरिंग, पैरा ग्लाइडिंग या बोटिंग करते मिलते हैं।

ऐतिहासिक शहर मलक्का

अगली सुबह करीब नौ बजे हम मलक्का के निकटवर्ती ए फमोसा के लिए निकले। हम एक बार फिर सागर पर बने पुल व टनेल से गुजरते हुए शाम को अपने गंतव्य पहुंचे। फमोसा वस्तुत: पुर्तगाली शब्द है और इसका अर्थ है राजमहल। एक जमाने में यह पुर्तगालियों का राजमहल ही था। अब रिसॉर्ट है, जो खास तौर से अपने गोल्फ कोर्स के लिए मशहूर है। यहां माइक्रोलाइट फ्लाइंग क्लब, वाटर व‌र्ल्ड, काउब्वाय टाउन और वाइल्ड लाइफ सफारी भी हैं। जानवरों और काउब्वाय़ज के तरह-तरह के करतब और यहां के थियेटर में फोर डी हॉरर शो देखना हमारे लिए रोमांचक अनुभव था। अगले दिन मलक्का निकले। यह ऐतिहासिक शहर है। एक-एक इमारत, सड़कें, गलियां और माहौल सभी इसके ऐतिहासिक होने का बयान देती हुई सी लगती हैं। यमराज की धारणा तो हमारे यहां भी है, लेकिन मृत्यु के देवता की प्रतिमा और उनकी पूजा हमने यहीं देखी- चीनी समुदाय के एक मंदिर में। वैसे इस मंदिर में मुख्य रूप से पूजा भगवान बुद्ध की होती है। उनके दाहिने तरफ कनफ्यूशियस और बाई तरफ ताओ की भी प्रतिमाएं हैं। इन सभी प्रतिमाओं के समक्ष श्रद्धालु अगरबत्तियां जलाते हैं।

यहां पुर्तगालियों, डच लोगों और अंग्रेजों के चर्च भी हैं। इनमें खास तौर से सेंट फ्रांसिस के चर्च को लेकर कई दंतकथाएं भी हैं। यह चर्च एक छोटी सी पहाड़ी पर बना है। मंदिर व चर्च के बाद हमने बाजार भी देखा। यहां के बाजारों में एंटीक सामानों की भरमार है, लेकिन इन्हें खरीदते समय बहुत सावधानी की जरूरत है।

पेट्रोनास टॉवर के शहर में

दूसरे दिन सुबह ही हम कुआलालम्पुर के लिए रवाना हुए। करीब दो घंटे सफर के बाद हम पुत्राजया पहुंचे। यह कुआलालम्पुर के निकट ही उसके ट्विन सिटी जैसा है। अब मलेशिया की असली राजधानी यहीं है। देश के सभी विभागों के मुख्यालय और मंत्रालय यहां हैं। यहां एक राजमहल भी है, हालांकि राजा वहां रहते नहीं हैं। पुत्राजया से बाहर आने के थोड़ी ही देर बाद पेट्रोनास टॉवर दिखने लगा। 88 मंजिला यह इमारत सिर्फ स्टेनलेस स्टील और शीशे की बनी हुई है। टॉवर के बाद हम मिनारा कुआलालम्पुर देखने गए। पहाड़ी पर बने इस मीनार से पूरे शहर की झलक देखी जा सकती है। इसके बाद हम यहां के नेशनल मॉस्क भी गए। मस्जिद परिसर में स्ति्रयों के लिए बुर्के भी रखे हुए हैं, जिन्हें ओढ़ कर वह वहां जा सकती हैं। सफर के अंत में मलेशिया के प्रसिद्ध चॉकलेट लेना भला कैसे भूलते। हमने विभिन्न रंगों और स्वादों वाले सैकड़ों चॉकलेट देखे और कुछ खरीदे भी। सुबह करीब 8 बजे हमने होटल छोड़ा और वापसी के सफर पर चल पड़े। पूरे रास्ते उन सुंदर दृश्यों को हम ऐसे निहार रहे थे, गोया हमेशा के लिए आंखों में भर लेना चाह रहे हों।

विदेश जाए और खरीदारी न करे, ऐसा हो ही नहीं सकता। आप कहीं भी आएं-जाएं अपने सभी परिजनों-रिश्तेदारों व मित्रों के लिए कुछ न कुछ यादगार तो आपको लाना ही है। यहां आपको स्थानीय कलात्मक वस्तुएं मिल सकती हैं। पेनांग में हफ्ते के प्रत्येक दिन साप्ताहिक नाइट बाजार लगता है। हालांकि हर दिन इसकी जगह बदल जाती है। वस्तुत: यह बाजार ही यादगार वस्तुओं की खरीदारी के लिए सबसे मुफीद जगह है। ऐसे ही कुआलालम्पुर में चाइना बाजार है। ऐसा एक बाजार मलक्का में भी है। वैसे इन बाजारों में खरीदारी करते समय सतर्कता बहुत जरूरी है। न तो इनके सामानों टिकाऊ होने का भरोसा किया जा सकता है और न इनके मूल्य पर ही। मोलभाव तो आपको जरूर करना आना चाहिए। अगर आपको मोलभाव करना नहीं आता तो बेहतर होगा कि मॉल्स में ही जाएं। इसके सभी शहरों में सुविधासंपन्न बड़े मॉल्स हैं। इनमें आपको सभी तरह के ब्रैंडेड सामान निश्चित मूल्य पर मिलेंगे। वैसे यहां हस्तकला की वस्तुएं भी खूब मिलती हैं। इनमें दस्तकारों द्वारा बनाए गए पीतल के तरह-तरह के बर्तन, चांदी के सजावटी सामान और कई अन्य चीजें शामिल हैं।

अगर आप शाकाहारी हैं तो अधिकतर मलेशियाई रेस्तराओं में घुसते ही आने वाली गंध आपको थोड़ा परेशान कर सकती है। लेकिन अगर मांसाहारी हैं और खास तौर से सी फूड पसंद करने वाले हैं, फिर तो यह आपके लिए खाने-पीेने के मामले में स्वर्ग जैसी जगह है। केकड़ों, झींगों व कछुओं सरीखे सी फूड की यहां कई किस्में हैं। दक्षिण एशिया के कई देशों की तरह मलय लोगों का भी मुख्य भोजन चावल है। चावल यहां कई तरह से बनाया जाता है। उबले हुए अंडे, मूंगफली और संबल के साथ मिलाकर बनाई गई चावल की मसालेदार डिश नासी लेमाक यहां विशेष रूप से लोकप्रिय है। यहां उड़द की दाल से बनी एक मसालेदार शाकाहारी डिश बुबुर किचांग हिजाओ का स्वाद भी लाजवाब होता है। यहां सभी प्रमुख शहरों में भारतीय रेस्तरां भी हैं। वैसे अगर आप शाकाहारी हैं तो बेहतर होगा कि मलेशिया के फलों को आजमाएं। तरबूज, अनन्नास और लीची तो यहां शाकाहारी लोगों के भोजन का मुख्य हिस्सा है। यहां की लीची भारतीय लीची से भिन्न होती है। भारतीय लीची के छिलके पर दाने से निकले होते हैं, जबकि मलेशियाई पर रेशे जैसे होते हैं। सेब यहां कई तरह के पाए जाते हैं।

कैसे पहुंचें

नई दिल्ली से एयर इंडिया की सीधी उड़ानें प्रतिदिन कुआलालम्पुर के लिए हैं। इसके अलावा मलेशियन एयरलाइंस और इंडियन एयरलाइंस की नियमित उड़ानें भी हैं।

साइटसीन

मलेशिया के भीतर घूमने के लिए आपके पास कई विकल्प हैं। एक से दूसरे शहर जाने के लिए ट्रेन सबसे अच्छा विकल्प है। इसके अलावा बसें, टैक्सियां और कारें भी खूब चलती हैं। शहरों के भीतर घुमक्कड़ी के लिए आप कार ले सकते हैं और चाहें तो किराये पर मोटर साइकिल या साइकिल भी मिल सकती है।

कब जाएं

मलेशिया आप जब भी जाना चाहें, बेफिक्र निकल सकते हैं। यहां बहुत ठंड तो कभी पड़ती ही नहीं, ज्यादा गरमी भी बहुत थोड़े दिनों के लिए होती है। तापमान यहां हमेशा 21 से 32 डिग्री सेल्सियस के बीच रहता है। मलेशिया की घडि़यां भारतीय समय से ढाई घंटे आगे हैं।

वीजा

भारतीय पर्यटकों को मलेशिया में प्रवेश के लिए पहले से वीजा लेना होता है। यह वीजा नई दिल्ली स्थित मलेशिया हाई कमीशन से मिल सकता है। वीजा फीस 650 रुपये है।

कहां ठहरें

ठहरने के लिए मलेशिया के हर शहर में सभी तरह के होटल हैं।

मुद्रा

मलेशिया की राष्ट्रीय मुद्रा रिंगिट है। एक सौ यूएस डॉलर के 360 से 370 रिंगिट तक मिल जाते हैं। वैसे वहां भारतीय रुपये का भी विनिमय हो जाता है, लेकिन यह हर जगह संभव नहीं होता। बेहतर होगा कि आप यहां से यूएस डॉलर लेकर जाएं और वहां पहुंच कर उसे मलेशियन रिंगिट में बदल लें। सभी बैंकों के वीजा और मास्टर कार्ड भी यहां आसानी से चलते हैं।

खर्च

अगर आप पैकेज टूर में जाना चाहें तो ट्रेवल एजेंट आपको 30 से 50 हजार के खर्च में मलेशिया के सभी प्रमुख शहरों का भ्रमण करा सकते हैं। इसमें आने-जाने के किराये के अलावा ठहरने व खाने का खर्च भी शामिल होगा। शॉपिंग या अन्य खास खर्चो का इंतजाम आपको अलग से करना पड़ेगा।

सावधान

मलेशिया में ट्रैफिक नियमों का उल्लंघन भूल कर भी न करें। यह यहां दंडनीय अपराध है, जिसके लिए जुर्माने से लेकर जेल तक हो सकती है। पुलिस तो यहां आम तौर पर नहीं दिखती, लेकिन कैमरे जगह-जगह लगे हैं और जरूरत पड़ते ही पुलिस तुरंत प्रकट हो जाती है। कूड़ा-करकट भी इधर-उधर न फेंकें। किसी व्यक्ति या वस्तु की ओर इंगित करना हो तो तर्जनी उंगली कतई न दिखाएं। यह यहां बहुत बुरा माना जाता है। मुट्ठी बंद करके अंगूठा दिखाएं। किसी के घर जाएं तो जूता दरवाजे पर निकालना न भूलें।

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