मलेशिया जहां घुल जाती हैं एशियाई संस्कृतियां

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एशिया के प्रमुख देशों की सभ्यताओं की सांस्कृतिक झलक देखनी हो तो चले जाइए मलेशिया। मलय, चीनी व भारतीय संस्कृतियों का अद्भुत मिश्रण यहां देखने को मिलता है। आधुनिक व प्रगतिशील होते हुए भी मलेशिया ने जिस अनोखे ढंग से अपनी पारंपरिक विरासत को सहेजकर रखा है, वह यहां के लोगों के सामाजिक धार्मिक और सांस्कृतिक जीवन को नजदीक से देखने पर पता चलता है। मलेशिया की राजधानी क्वालालम्पुर में कदम रखते ही इस शहर की आधुनिकता से परिचय होता है। चारों ओर गगनचुंबी व आकर्षक आकार की इमारतें, विदेशी कारें, शॉपिंग मॉल व फैशनेबल कपड़ों में सजे लोग-ये सभी परिचायक हैं इस देश की प्रगतिशीलता के। चीन, भारत, इंडोनेशिया से आए लोग व स्थानीय जातियों ने मलेशिया को एक बहुजातीय देश बना दिया। फलस्वरूप इन सभी देशों से आए धर्म भी इस देश की जीवनशैली के अभिन्न अंग बन गए।

बहुलता मंदिरों की

प्रमुख रूप से बौद्ध धर्म को अपनाने वाले चीनी मूल के लोगों ने यहां लगभग हर प्रांत में सुंदर मंदिर बनाए हैं, जहां देश-विदेश के बौद्ध दर्शनार्थ आते हैं। पिनांग द्वीप में कई चीनी बौद्ध मंदिर हैं, जिनकी सुंदरता विदेशी पर्यटकों को आकर्षित करती है। थाई शैली में बने वाट चायामंगकालारम नामक बौद्ध मंदिर में लेटे हुए भगवान बुद्ध की प्रतिमा है, जो संसार की तीसरी सबसे लंबी प्रतिमा है। बर्मा शैली में बने धर्मीकारम मंदिर के प्रवेशद्वार पर पत्थर से बने दो विशाल हाथी आपका स्वागत करते हैं। इस मंदिर के प्रागंण में एक बोधिवृक्ष भी है।

1800 में यहां आए प्रथम चीनी देशवासियों द्वारा जॉर्जटाउन में कुआन चिन तेंग मंदिर बनाया गया जो कृपा की देवी का मंदिर है। इस द्वीप पर यह सबसे पुराना मंदिर है जहां साल में तीन बार कृपा की देवी के जन्मदिन के उपलक्ष्य में त्योहार मनाया जाता है। मलेशिया में चीनी लोगों की बहुसंख्या के कारण बहुत सी कोंगसी हैं। कोंगसी में एक ही समूह या सरनेम वाले चीनी खास अवसरों पर मिलते हैं। खू कोंगसी व केक लोक सी पिनांग के मशहूर कोंगसी हैं जिनकी आकर्षक बनावट हर पर्यटक को मुग्ध कर देती है। हिंदू समुदाय के लोगों ने भी मलेशिया की धरती पर अपनी धार्मिक आस्था के चिन्हों के रूप में कई मंदिरों का निर्माण किया है, जिनमें पिनांग का श्री मरियाम्मन व सेलेंगोर का बाटू केव्स प्रसिद्ध है। 1883 में निर्मित श्री मरियाम्मन मंदिर अत्यंत आकर्षक है। इसमें हिंदू देवी-देवताओं की प्रतिमाएं हैं। सोना, चांदी, हीरे व पन्नों से जडि़त भगवान सुब्रमणियम की एक विशाल मूर्ति इस मंदिर में है जिसे थाइपुसम त्योहार के दौरान रथ में बिठाकर यात्रा निकाली जाती है। यह त्योहार जनवरी के अंत में मनाया जाता है। क्वाला लम्पुर से लगभग 13 किमी दूर शहर की सीमाओं से बाहर लाइमस्टोन से बनी बाटू गुफा हिंदुओं व पर्यटकों के लिए थाई पुसम त्योहार के समय  विशेष आकर्षण का केंद्र बन जाती है। बाटू गुफा के प्रागंण में कई छोटी गुफाएं हैं, पर 100 मीटर ऊंची व हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियों से सजी मुख्य गुफा विशेष रूप से दर्शनीय है। इस गुफा तक पहंुचने के लिए 272 सीढि़यां चढ़नी होती हैं जिन्हें चढ़कर लगभग एक लाख श्रृद्धालु प्रतिवर्ष अपने इष्टदेवी देवता के दर्शन पाते हैं।

दर्शनीय हैं मस्जिदें

मलेशिया का राष्ट्रीय धर्म इस्लाम होने के कारण इस देश में मस्जिदों की प्रचुरता है। कुछ मस्जिदें सार्वजनिक धार्मिक स्थल होते हुए भी इतनी आकर्षक शैली में बनी हैं कि वे यहां के दर्शनीय स्थलों में गिनी जाती हैं। ऐसी ही एक मस्जिद है उबूदियाह मस्जिद। पेराक की राजधानी क्वालाकांगसार में स्थित यह मलेशिया की सबसे खूबसूरत मस्जिद है, जिसके सुनहरे गुंबद व चमकती मीनारें बहुत दूर से दिखाई देती हैं। पेराक के 28वें सुल्तान अदजाम शाह प्रथम के शासनकाल में इस मस्जिद का निर्माण हुआ।  क्वाला लम्पुर में ब्रिटिश आर्किटेक्ट द्वारा डिजाइन की गई 1909 में बनी मस्जिद जामेक भारतीय मुस्लिम आर्कीटेक्चर का नायाब नमूना है। प्याज की शेप में बने इसके गुंबद, गोलाकार कोलोनेड और चमकते व ठंडे मार्बल के फर्श इसे  आकर्षण का केंद्र बनाते हैं। राष्ट्रीय मस्जिद भी इस्लामिक कला, कैलीग्राफी व सजावट का अद्भुत उदाहरण है। इसकी छत छातेनुमा है और मीनार 245 फीट ऊंची है। जिसमें 18 पाइंट का एक सितारा बना है, जो 13 राज्यों व इस्लाम के पांच स्तंभों का प्रतीक है।

इस मस्जिद के प्रांगण में 48 छोटे गुंबद है और यहां करीब 8000 लोग एकसाथ नमाज अदा कर सकते हैं।  कई वर्षोतक ब्रिटिश व पुर्तगालियों द्वारा शासित होने के कारण मलेशिया के विभिन्न प्रांतों में प्राचीन चर्च भी हैं, जहां ईसाई धर्म के अनुयायी प्रार्थना के लिए आते हैं। पर्यटकों के लिए यहां के चर्च भी किसी दर्शनीय स्थल से कम नहीं हैं। मलाका प्रांत में स्थित सेंट पीटर्स चर्च की स्टेंड ग्लास खिड़कियों व टूमस्टोन को देखने बहुत लोग आते हैं। 1521 में निर्मित सेंट पॉल चर्च सेंट फ्रांसिस जेवियर की कब्र लिए है जो 1553 में यहां दफनाए गए। सेंट फ्रांसिस की मार्बल की मूर्ति यहां बनी है। एक पहाड़ी पर स्थित यह चर्च अब खंडहर मात्र है। पिनांग में सबसे पुराना एंगलिकन चर्च सेंट जॉर्ज चर्च है जिसकी इमारत बहुत सुंदर है।

खान-पान में वैविध्य

मलेशिया के बहुसांस्कृतिक, बहुधार्मिक व बहुजातीय समाज से जुड़े यहां अनेक दर्शनीय स्थल हैं, जो ऐतिहासिक धरोहर के रूप में पर्यटकों को यहां की सामाजिक व्यवस्था व इतिहास को जानने के लिए विवश कर देते हैं। एशिया के विभिन्न देशों के खान-पान व रीति-रिवाजों से रूबरू होना हो तो मलेशिया से बेहतर जगह कोई नहीं, जहां मलय, भारतीय, चीनी व्यंजनों का असल स्वाद तो मिलेगा ही, साथ ही यूरोपियन, जापानी, थाई व वियतनामी खानों का लुत्फ भी आप उठा सकेंगे। विभिन्न धर्मो से जुड़े स्थलों का विचरण करते-करते ही आपका परिचय उन धर्मो से जुड़ी बहुत सी परंपराओं से स्वत: हो जाएगा। शाकाहारी होने के कारण यदि आपको भोजन ढूंढने में परेशानी हो तो भी निराश मत होइए, क्योंकि मलेशिया की धरती पर उगने वाले स्वादिष्ट फल आपकी स्वाद ग्रंथियों को संतुष्ट कर सकते हैं।  सदा मुस्कुराते चेहरों व गर्मजोशी से स्वागत करने वाले मलेशिया निवासियों के बीच कुछ दिन बिताकर आपको विदेश घूमने का आनंद तो आएगा ही, साथ ही अपने देश से बहुत दूर जाने का गम भी नहीं सताएगा। आप लौटेंगे, बहुत सारी यादों के साथ।

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