धर्म-संस्कृति व त्योहार , से जुड़े परिणाम

कौमी एकता का प्रतीक अजमेरशरीफ

कौमी एकता का प्रतीक अजमेरशरीफ

अजमेर का इतिहास जितना रोचक है, धार्मिक दृष्टि से वह उतना ही महत्वपूर्ण है। अरावली की  पहाडि़यों के मध्य तारागढ़ नामक पहाड़ी के आसपास फैले इस शहर को चौहान राजा अजयपाल ने सातवीं सदी में बसाया था। चौहान राजाओं के बाद यह मेवाड़ के राणाओं, मुगल शासक अकबर और फिर अंग्रेजों के अधिकार में रहा। धार्मिक दृष्टि से यह शहर हिंदू-मुस्लिम दोनों ही समुदायों की श्रद्धा का महत्वपूर्ण उदाहरण है। अजमेर की प्रसिद्धि का सबसे बड़ा कारण सूफी संत ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह है, जिन्हें श्रद्धा से लोग ख्वाजा... आगे पड़ें

बर्फ का देश लद्दाख

बर्फ का देश लद्दाख

लामाओं की भूमि लद्दाख के बारे में बहुत सुना था, इसलिए उसे देखने की हमारी बहुत इच्छा थी। पहले यह क्षेत्र पर्यटकों के लिए सुविधाजनक नहीं था। सिर्फ ट्रेकिंग और रोमांच भरी साहसी यात्रा करने वाले लोग ही अपने साधनों से वहां पहुंच पाते थे, लेकिन अब सब कुछ आसान हो गया है। ज्यादातर पर्यटक श्रीनगर, चंडीगढ़ या दिल्ली से हवाई यात्रा कर सीधे लेह जा पहुंचते हैं लेकिन जो लोग रोमांचक यात्राओं में यकीन रखते हैं और प्रकृति के सौंदर्य का आनंद उठाना चाहते हैं उनके लिए सड़क मार्ग से उत्तम कोई विकल्प नहीं है।... आगे पड़ें

सुनहरा शहर जैसलमेर

सुनहरा शहर जैसलमेर

राजस्थान के थार मरुस्थल में बसा, जैसलमेर अद्भुत विषमताओं का शहर है। दूर-दूर तक फैले रेत के सुनहरे मैदानों के मध्य यह शहर भी स्वर्ण आभा से दीप्त लगता है, क्योंकि यह पूरा शहर पीले रंग के पत्थरों से निर्मित है। इसे गोल्डन सिटी यानी स्वर्ण नगरी भी इसीलिए कहा जाता है। प्रकृति की शुष्कता के मध्य इस शहर के अतीत का वैभव आज भी विद्यमान है। इस शहर की स्थापना बारहवीं शताब्दी में भाटी राजपूत राव जैसल द्वारा की गई थी। मध्य एशिया और भारत के बीच होने वाले व्यापार का मार्ग यहीं से  गुजरता था। इस कारण उस दौर... आगे पड़ें

मोहक हैं गोवा के समुद्रतट

मोहक हैं गोवा के समुद्रतट

भारत के सबसे लोकप्रिय और सदाबहार पर्यटन स्थलों में शामिल है गोवा। यहां प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर समुद्रतट हैं तो इतिहास के झरोखे में झांकने के लिए कई किले भी हैं। साझी संस्कृति की झलक देते मंदिर और गिरजाघर हैं तो कलाप्रेमियों के लिए संग्रहालय और कला दीर्घाएं भी हैं। ट्रेकिंग के शौकीनों के लिए यहां पूरी सुविधाएं हैं तो खाने-पीने के शौकीनों के लिए एक से बढ़कर एक समुद्री व्यंजन और खाद्य पदार्थ। समुद्र किनारे रेत की चांदनी गोवा में यादवों का साम्राज्य 14वीं शताब्दी तक रहा। इसके बाद पुर्तगालियों... आगे पड़ें

चंडीगढ़ जहां पत्थरों में है जिंदगी

चंडीगढ़ जहां पत्थरों में है जिंदगी

उत्तर भारत के प्रमुख शहर चंडीगढ़ के तीन ओर पंजाब, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश की सीमाएं लगती हैं। स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की कल्पना के इस शहर को मूर्त रूप देने का कार्यभार सौंपा गया था एक फ्रेंच आर्किटेक्ट ली कारबूजयर को। कारबूजयर ने अपने ममेरे भाई पियरे जेनेरेट तथा मैक्सवेल व जेनड्रेन नामक दंपती के सहयोग से इस नगर का निर्माण किया। इसका नियोजन करते हुए उन्होंने इस बात का पूरा ध्यान रखा था कि यहां आधुनिक युग की सभी सुविधाओं के साथ-साथ प्राचीन भारतीय संस्कृति... आगे पड़ें

सुमिरि शारदा मैहर वाली

सुमिरि शारदा मैहर वाली

नैसर्गिक रूप से समृद्ध कैमूर तथा विंध्य की पर्वत श्रेणियों की गोर में अठखेलियां करती तमसा के तट पर त्रिकूट पर्वत की पर्वत मालाओं के मध्य 600 फुट की ऊंचाई पर स्थित मां शारदा का ऐतिहासिक मंदिर 108 शक्ति पीठों में से एक है। यह पीठ सतयुग के प्रमुख अवतार नृसिंह भगवान के नाम पर नरसिंह पीठ के नाम से भी विख्यात है। ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर आल्हखण्ड  के नायक आल्हा व ऊदल  दोनों भाई मां शारदा के अनन्य उपासक थे। पर्वत की तलहटी में आल्हा का तालाब व अखाड़ा आज भी विद्यमान है। पौराणिक मंदिर मैहर में प्रतिदिन... आगे पड़ें

साई बाबा से है शिरडी की पहचान

साई बाबा से है शिरडी की पहचान

महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के कोपरगांव क्षेत्र में छोटा सा कस्बा है शिरडी। यहां आज रोजाना 50 हजार भक्त साई बाबा के दर्शनार्थ पहुंचते हैं और गुरुवार तथा रविवार को यह संख्या एक लाख पार कर जाती है। दशहरा, रामनवमी, गुरुपूर्णिमा एवं 31 दिसंबर जैसे अवसरों पर तो बाबा के दर्शनार्थियों की संख्या प्रतिदिन तीन लाख से भी ज्यादा हो जाती है। हालांकि यहां पहुंचने के लिए कोई सीधा रेलमार्ग भी नहीं है। मनमाड या नासिक तक रेल से सफर के बाद लोग बसों या दूसरे साधनों से शिरडी पहुंचते हैं। शिरडी मुंबई से क रीब 250 किमी... आगे पड़ें

आकर्षण के कई केंद्र हैं देवघर में

आकर्षण के कई केंद्र हैं देवघर में

झारखंड के देवघर जिले में स्थित विश्वप्रसिद्ध बैद्यनाथ मंदिर स्थापत्य कला की दृष्टि से देश के प्राचीनतम मंदिरों में से एक है। पत्थरों से निर्मित इस मंदिर के शिखर पर स्वर्ण कलश है और कलश पर पंचशूल। मंदिर के गुंबद के भीतरी तल में अष्टदल कमल अंकित है। इसमें चन्द्रकांत मणि जड़ा हुआ है। हर साल सावन के महीने में शिवभक्त कांवरिये सुल्तानगंज से गंगा का पावन जल कांवर में भरकर 105 किमी की यात्रा पैदल तय कर देवघर स्थित रावणेश्वर बैद्यनाथ धाम पहुंचते हैं और वहां पूरी श्रद्धा के साथ बाबा का जलाभिषेक करते... आगे पड़ें

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